आह! वह प्यारी सलीब
मुझको दीख पड़ती है
एक पहाड़ी पर जो खड़ी थी,
कि मसीह-ए-मसलूब ने नदामत उठा,
गुनाहगारों की खातिर जान दी।
कोः-पास न छोडूंगा प्यारी सलीब
जब तक दुनिया में होगा कयाम
लिपटा रहूंगा मैं उसी से
कि मसलूब में है अब्दी आराम।
1 आह! वह प्यारी सलीब
जिसकी होती तहकीर
है मुझको बेहद दिल पंजीर,
कि खुदा के महबूब
और जलाली मसीह
ने पहुंचाया उसे कलवरी।
2 मुझे प्यारी सलीब में
जो लहू-लुहान
नज़र आती है खूबसूरती,
कि खुदा के मसीह ने
कफ्फारा दिया
ताकि मिले मुझे जिन्दगी ।
3 मैं उस प्यारी सलीब का
रहूं वफादार
सिपाही हमेशा ज़रुर,
जब तक मेरा मसीह
न करेगा मुझे
अपने अब्दी जलाल में मंजूर।