यीशु है मेरा मुक्तिधाम,
उसमें मैं पाता पूरा विश्राम,
आए विपत्ति चाहे तूफान (2),
उसमें मैं पाता शरणस्थान।
1. पाप की लहरों से घिरा हुआ था,
न कोई मंजिल और न किनारा,
वह आया बनकर मेरा सहारा,
पाप की लहरों से मुझे उबारा।
2. जीवन था मेरा पाप की खाई,
सब दूर निराशा राहें अंधेरी,
क्रूस की ओर जब दृष्टि उठाई,
किरण जीवन की हृदय में आई।
3. अब कोई डर नहीं और न निराशा,
यीशु ही केवल धन्य आशा,
शीघ्र वह आए लेने मुझे,
यही है दिल की अभिलाषा।