हे यीशु तेरा प्रेम कैसा महान है,
आकाश के तारे पर्वत समुन्दर
सबसे महान है।
1 अगम्य आनंद से हृदय भरपूर है,
प्रभु का कार्य भी कैसा महान है
हर एक विहान और हर एक सांझ
स्तुति के योग्य है।
2 संकट के समय में जीवन निराश होता,
ईश्वर पुकारता हूँ दया मुझ पर दर्शा,
बिन्ती से पहले वह मुझसे कहता
मैं तेरे साथ हूं।
3 अंधेरी घाटी से होकर मुझे जाना,
मृत्यु और जोखिम से सफर मुझे करना,
चरवाहा बनकर अगुवाई करता
सदा वह साथ रहता।
4 कमी घटी का भी मुझे नहीं डर है,
हरी चराईयों में मुझे बैठाता है,
भोजन और जल से वह तृप्त करता,
वह मेरे साथ है।
5 ईश्वर के भवन मे स्तुति सदा करूंगा,
सम्पूर्ण हृदय से उसको सदा भजूँगा,
स्तुति प्रशंसा के योग्य ईश्वर,
हाल्लेलूयाह! आमीन!