कितना मधुरतम है प्रभु तेरे
आँगन में वास करना,
कितना मधुरतम है,
सेनाओं के यहोवा
तेरा निवास स्थान क्या ही प्रिय है।
1 आँगन में तेरे वास करना
मैं निरन्तर चाहता रहूं,
मन और तन से ईश्वर को,
निरन्तर पुकारता रहूं ।
2 परमेश्वर का मैं मन्दिर हूँ
और इसलिये आनन्दित हूँ,
स्तुति रूपी बलिदान मसीह के
द्वारा निरन्तर चढ़ाता रहूँ ।
3 तेरा निवास स्थान प्यारे परमेश्वर
कितना मधुरतम है,
वचन को तेरे जो मधुर है
निरन्तर परखता रहूँ ।