1 प्रभु महान विचारूं कार्य तेरे,
कितने अद्भुत जो तूने बनाये,
देखूं तारें सुनू गर्जन भयंकर
सामर्थ तेरी सारे भूमण्डल पर।
कोः-प्रशंसा होवे प्रभु यीशु की
कितना महान, कितना महान (2)
2 वन के बीच में तराई मध्य विचरूं
मधुर संगीत मैं चिड़ियों का सुनू,
पहाड़ विशाल से जब मैं नीचे देखूं
झरने बहते लगती शीतल वायु।
3 जब सोचता हूं कि पिता अपना पुत्र
मरने भेजा है वर्णन से अपार,
कि क्रूस पर उसने मेरे पाप सब लेकर,
रक्त बहाया कि मेरा हो उद्धार ।
4 मसीह आवेगा शब्द तुरही का होगा
मुझे लेगा जहां आनन्द महान,
मैं झुकूंगा साथ आदर भक्ति दीनता
और गाऊंगा प्रभु कितना महान।