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अलगाव के उदाहरण: बाइबल के आरंभ में ही हम देखते हैं कि परमेश्वर ज्योति को अंधकार से अलग कर देते हैं। ‘‘और परमेश्वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है, और परमेश्वर ने उजियाले को अंध्यिारे से अलग किया।’’ ;उत्पत्ति 1:4। परमेश्वर उदाहरण पेश कर रहे हैं यह सिखाने के लिए कि अनेक बातों को अलग-अलग किया जाना चाहिए। कुछ वस्तुएँ अपने मूल स्वभाव के कारण आपस में घुल-मिल नहीं सकते। जिस क्षण प्रकाश आता है उसी क्षण अंध्कार समाप्त हो जाता है।अंधकार की परिभाषा है ज्योति का न होना। जहाँ एक है वहाँ दूसरा नहीं रह सकता। यह सत्य सोचने पर बहुत हल्का लगता होगा परन्तु यह वह सत्य है, जिस पर परमेश्वर का वचन हमारा ध्यान बार-बार आकर्षित करता है।परमेश्वर ने माँग की थी कि दाख की बारी में भी बीजों को अलग किया जाए। ‘‘अपनी दाख की बारी में दो प्रकार के बीज न बोना, ऐसा न हो कि सारी उपज, अर्थात तेरा बोया हुआ बीज और दाख की बारी की उपज दोनों अपवित्र ठहरें।’’ ;व्यवस्था. 22:9। एक साथ बीज के बोए जाने पर वे आपस में इतना घुल मिल जाते हैं कि उनका फल पवित्र नहीं रहता। बोए जाने के बाद उन्हें अपनी जाति के अनुसार अलग-अलग करना असंभव होता है। मत्ती 13:24-30( 36-43 में यही मुख्य पाठ सिखाया गया है। खेतों में काम करने वाले जानवरों के विषय में भी यही कहा गया है। ‘‘बैल और गदहा दोनों संग जोतकर हल न चलाना।’’ ;व्यवस्था 22:10। यह असंगतता को दिखाता है। इन दोनों जानवरों के स्वभाव अलग-अलग हैं उन्हे एक साथ जोता नहीं जाना चाहिए अपनी चाल और शक्ति में वे बहुत अलग हैं। परमेश्वर ने अपने लोगों को वस्त्र में भी मिलावट करने से मना किया था। ‘‘ऊन और सनी की मिलावट से बना हुआ वस्त्र न पहिनना।’’;व्यवस्था. 22:11) अलगाव का स्पष्टीकरण: परमेश्वर के स्पष्ट कथन का क्या उद्देश्य था कि बीज में, जानवरों में अथवा वस्त्र में मिलावट ना करें। क्या परमेश्वर को वास्तव में उन वस्तुओं या पशुओं की चिंता थी? इस रस्म के नियम के पीछे छिपे सिद्धांत को पौलुस 1 कुरि. 9:7-10 में स्पष्ट करते हैं। नैतिक सत्य को लगातार याद दिलाते रहने के लिए एक तस्वीर के रूप में परमेश्वर ने कुछ रस्मों के नियम दिए। परमेश्वर ने बीज, जानवरों और वस्त्रों में मिलावट की अनुमति नहीं दी। परमेश्वर ने प्रकाश को अंधकार से अलग करके मनुष्य को यह सिखाया कि जो मूल स्वभाव में अलग-अलग हैं उन्हें मिलाया न जाए। जो मनुष्य आत्मिक अंधकार में रहते हैं वे उन मनुष्यों के साथ घुल मिल नहीं सकते जो एक आत्मिक जीवन जीते हैं। अच्छे का विशिष्ट गुण और गवाही बुरे की संगति में छिप जाता और निगला जाता है। अपने आकार और ताकत में भिन्न-भिन्न जानवर एक साथ समानता में कोई कार्य नहीं कर सकते।संसार के कार्य कलाप भी एक मसीही के जीवन शैली के अनुरूप नहीं हो सकते। जब परमेश्वर ने अपने लोगों को वस्त्रा में मिलावट न करने की आज्ञा दी जब वह उनको यह शिक्षा दे रहे थे कि परमेश्वर के लोग परमेश्वर की बातों का सांसारिक बातों के साथ मिलावट ना करें। यह परमेश्वर के लोगों का उत्तरदायित्व है कि वे संसार की बातों से अलग रहें जैसे ज्योति अंधकार से अलग है। जंगली पौधें के साथ इतना घुल मिल न जाएं कि अंतिम कटनी पर ही वे अलग हो सकें। अलगाव की आज्ञा: अंध्कार को दूर करो: ऐसा नहीं है कि परमेश्वर ने मात्रा उदाहरण के साथ अलगाव सिखा दिया। परन्तु परमेश्वर मसीहियों को संसार की चाल से अलग किया हुआ जीवन व्यतीत करने की आज्ञा देते हैं। रोमियों 13:12-14 में पौलुस कहते हैं-‘‘रात बहुत बीत गई है, और दिन निकलने पर है, इसलिए हम अंध्कार के कामों को त्याग कर ज्योति के हथियार बाँध् लें। जैसा दिन को शोभा देता है, वैसा ही हम सीधी चाल चलें, न कि लीला-क्रीड़ा और पियक्कड़पन में, न व्यभिचार और लुचपन में, और न झगड़े और ड़ाह में। वरन प्रभु यीशु मसीह को पहिन लो, और शरीर की अभिलाषाओं को पूरा करने का उपाय न करो।’’ ;रोमियों 13:12-14 असमान जुए में न जुतो: 2 कुरिन्थियों 6:14 में विश्वासियों को आज्ञा दी गई है कि वे अविश्वासियों के साथ असमान जुए में न जुतें। उनके एक साथ किए गए कार्य से परमेश्वर की महिमा नहीं होगी। जब हम कार्य की बात करते हैं तो उसके पीछे के उद्देश्य से तात्पर्य है। एक मसीही का उद्देश्य अपने कार्यों से प्रभु यीशु के द्वारा परमेश्वर की महिमा करना है। एक अविश्वासी स्वयं के लिए ही महिमा लाता है। बाहर निकलो: परमेश्वर की स्पष्ट आज्ञा है कि अविश्वासियों के बीच में से बाहर निकलो। हम अविश्वासियों से पूरी तरह कटकर जीवन व्यतीत नहीं कर सकते परन्तु हमें उनके साथ अपनी पहचान नहीं बनाना चाहिए। हमारे लक्ष्य उनके लक्ष्यों से अलग हैं। हमारे उद्देश्य उनके उद्देश्यों से अलग हैं। हमारे क्रिया-कलाप उनके कार्यों से अलग हैं। हमारा रवैया भी उनके रवैए से अलग होना चाहिए। एक विश्वासी को अपनी अलग पहचान बनानी चाहिए। यह परमेश्वर की आज्ञा है। अलगाव के दो पहलू: अलगाव का अर्थ अपने आप को शारीरिक रूप से संसार से अलग कर लेना नहीं है। यूहन्ना 17:15 में प्रभु ने प्रार्थना की, ‘‘मैं यह विनती नहीं करता कि तू उन्हें जगत से उठा ले, परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख।’’ रोमियों 12:2 कहता है, ‘‘इस संसार के सदृश न बनो, परन्तु तुम्हारे मन के नए हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए।’’ रोमियों 13:12-14 हमें सिखाता है, ‘‘अंध्कार के कार्यों को त्याग कर ज्योति के हथियार बाँध लें।’’ अलगाव के दो पहलू हैं-संसार की वस्तुओं को उतार फेंकना या त्याग देना और मसीह यीशु की सामथ्र्य और अनुग्रह को पहन लेना या अपना कर लेना। हमें प्रभु यीशु को अपने जीवन का स्वामी बना लेना है और प्रभु की ( इच्छा के अनुसार संपूर्ण समर्पण करना है ;रोमियों 12:1-12 यह अलगाव का अंतिम लक्ष्य है कि हम स्वयं को पूरी रीति से प्रभु के प्रति समर्पित करें। अलगाव का परिणाम: अलगाव का परिणाम पिता से संगति है। धर्मिकता का अधर्म से कोई मेल नहीं। प्रकाश का अंधकार से कोई संगति नहीं। मसीह का बलियाल के साथ क्या लगाव? विश्वासी के साथ अविश्वासी का क्या नाता? मूर्तियों के साथ परमेश्वर के मंदिर का क्या संबंध्? हम तो जीवते परमेश्वर के मंदिर हैं। ;2 कुरि 6:14-16।परमेश्वर की आज्ञा के साथ वायदा भी है। यदि हम स्वयं को संसार से अलग रखेंगे तो परमेश्वर हमें स्वीकार करेंगे, हमारे साथ संगति रखेंगे और हमारे पिता होंगे। परमेश्वर का यह वायदा हमें सच्चे अलगाव के लिए प्रेरित करे। ‘‘अतः हे प्रियों, जब कि ये प्रतिज्ञाएं हमें मिली हैं, तो आओ हम अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुरु ( करें, और परमेश्वर का भय मानते हुए पवित्राता को सि( करें।’’;2 कुरि. 7:1।
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