Audio | Prayer | Song | Instrumental |
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पिछले पाठ में हमने प्रभु-भोज की स्थापना, उसका अर्थ और उसके पालन की विधि के विषय में सीखा था। इस पाठ में हम इस अध्यादेश के कुछ अपसिद्धांत जो कलीसिया में मिल गए, उनके विषय में सीखेंगे। तत्त्वांतरण ; यह ऐसी शिक्षा है जिसमें यह सिखाते हैं कि रोटी और दाखरस प्रभु यीशु के वास्तविक शरीर और लहू में परिवर्तित हो जाते हैं। यह शिक्षा गलत तरीके से प्रभु के वचनों पर आधरित है- ‘‘यह मेरी देह है’’ ;मत्ती 26:26। स्पष्टतः प्रभु का यह तात्पर्य नहीं था, न ही उनके शिष्यों ने ऐसा समझा। कुरिन्थियों को पत्री लिखते हुए पौलुस ने उन शब्दों को दोहराया-‘‘क्योंकि जब कभी तुम यह रोटी खाते और इस कटोरे में से पीते हो, तो प्रभु की मृत्यु को जब तक वह न आए, प्रचार करते हो।’’ ;1 कुरि. 11:26 यह तत्त्वांतरण के अपसिद्धांत का सीधा खंडन है। यहाँ पर रोटी को ‘‘रोटी’’ ही कहा गया है। धन्यवाद देने के बाद भी वह ‘‘रोटी’’ ही है। प्रभु ने ‘‘रोटी’’ लेकर ध्न्यवाद किया, तब वह रोटी ही थी। धन्यवाद करके जब शिष्यों को दिया तब भी वह ‘‘रोटी’’ ही रही। जब उन्होंने खाया तब भी वह ‘‘रोटी’’ ही थी। अतः यह स्पष्ट है कि प्रभु आलंकारिक भाषा का प्रयोग कर रहे थे। ऐसी भाषा का प्रभु अक्सर उपयोग करते थे। स्वयं के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘सच्ची दाखलता मैं हूँ।’’ ‘‘द्वार मैं हूँ’’, इत्यादि। ऐसे कथन को शाब्दिक रूप में नहीं लेना है। बलिदान: रोमन केथोलिक समुदाय इसे ‘‘मास’’ ; कहते हैं और वे कहते हैं कि जब भी वे इसका पालन करते हैं तब प्रभु यीशु तुरंत ही वास्तविक बलिदान के कार्य को दोहराते हैं। यह पूर्ण रूप से परमेश्वर के वचन के विरु( है। इब्रानियों 7:27 कहता है, ‘‘उन महायाजकों के समान उसे आवश्यक नहीं कि प्रतिदिन पहले अपने पापों के लिए बलिदान चढ़ाए, क्योंकि उसने अपने आप को बलिदान चढ़ाकर उसे एक ही बार में पूरा कर दिया।’’‘‘उसी इच्छा से हम यीशु मसीह की देह के एक ही बार बलिदान चढ़ाए जाने के द्वारा पवित्र किए गए हैं।’’ ;इब्रा. 10:10। अतः नए नियम की स्पष्ट शिक्षा है कि प्रभु यीशु का बलिदान संपूर्ण और अंतिम था। तत्त्वउपस्थिति ; महान सुधरक मार्टिन लूथर भी इस विचारधारा से सहमत थे। उन्होंने कहा कि रोटी और दाखरस में से भाग लेते समय प्रभु यीशु स्वयं शरीर में उन वस्तुओं में उपस्थित रहते हैं। यदि यह सही है तो, रोटी तोड़ते समय प्रभु प्रत्यक्ष दिखाई देने चाहिए। हम जानते हैं कि प्रभु के पुनरुत्थान के पश्चात् उनके शिष्यों ने उन्हें अपनी आँखों से देखा था जब भी प्रभु उनके पास आए या उन्हें दर्शन दिया। मार्टिन लूथर की यह शिक्षा तत्त्वांतरण ;ज्तंदेनइेजंदजपंजपवदद्ध का एक और रूप है। प्रभु भोज किसके लिए है? ‘‘अतः जिन्होंने उसका वचन ग्रहण किया उन्होंने बपतिस्मा लिया, और उसी दिन तीन हजार मनुष्यों के लगभग उन में मिल गए। और वे प्रेरितों से शिक्षा पाने, और संगति रखने और रोटी तोड़ने और प्रार्थना करने में लौलीन रहे।’’ ;प्रेरितों 2:41-42। यहाँ पर हम देखते हैं कि जिन्होंने रोटी तोड़ी उन्होंने पहले विश्वास किया था और पिफर बपतिस्मा में प्रभु की आज्ञा का पालन किया था। वे यरूशलेम की कलीसिया के सदस्य थे। यह स्पष्ट करता है कि ‘‘रोटी तोड़ना’’ वे ही कर सकते हैं जिनका उद्धार हुआ है और बपतिस्मा हुआ है और संगति में हैं। हम पहले ही देख चुके हैं कि प्रभु यीशु ने कलीसिया को दो आदेश दिए हैं। पहला बपतिस्मा, और दूसरा प्रभु-भोज है। दूसरी आज्ञा उन लोगों के लिए है जिन्होंने पहली आज्ञा का पालन किया है। परमेश्वर की कलीसिया में सही कार्य करने का यही तरीका है।‘‘पर मेरा कहना यह है कि यदि कोई भाई कहलाकर, व्यभिचारी,या लोभी, या मूर्तिपूजक, या गाली देने वाला, या पियक्कड़, या अंधेर करने वाला हो, तो उसकी संगति मत करना, वरन ऐसे मनुष्य के साथ खाना भी न खाना।’’ ;1 कुरि. 5:11। प्रभु-भोज में केवल वही भागीदार हो सकते हैं जिनकी गवाही अच्छी है।
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