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उद्धार का साधरण सा अर्थ है छुटकारा। यह उस क्रिया का वर्णन करता है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति का किसी खतरे से बचाव किया जाता है। हम किसी व्यक्ति को डूबने से बचाना, जलती इमारत में से बचाना या डूबते जहाश में से बचाना आदि कहते हैं। प्रत्येक स्थिति में तीन बातें सोची जाती हैं- 1. वह व्यक्ति खतरे में है जिसे बचाया जाता है। 2. किसी ने उसकी विपत्ति देखी और उसे बचाने गया। 3. बचाने वाला अपने उद्देश्य में सपफल रहा। उसने उस व्यक्ति को जो विपत्ति में था बचा लिया अतः उसका छुटकारा किया। परिभाषा: बचाना, छुड़ाना, उद्धार करना, उद्धारकर्ता, उद्धार आदि शब्द बाइबल में अनेक बार आए हैं जिनका तात्पर्य आत्मिक बचाव या छुटकारे से ही है। छुटकारे का विचार प्रभु यीशु के नाम पर ही केंद्रित होता है। इब्रानी नाम यहोशू का यूनानी रूप है ‘यीशु’। यहोशू का अर्थ है- यहोवा-छुड़ाने वाला। इस्राएल के सेनापति के लिए यह कितना महान नाम है। यहोशू और उसके यो(शत्रुओं को यह नाम स्मरण दिलाता रहा कि ‘‘उद्धार यहोवा ही से है।’’ इस नाम के अर्थ के कारण ही हमारे प्रभु को भी उसके जन्म के समय यह नाम दिया गया। ‘‘तू उसका नाम यीशु रखना, क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा।’’ ;मत्ती 1:21। हम तब तक प्रभु यीशु को नहीं जानते जब तक कि हम उन्हें अपने उद्धारकर्ता की तरह नहीं पहचानते। क्योंकि उनका नाम ही यह प्रकट करता है कि वह कौन हैं। मनुष्य को छुटकारे की आवश्यकता है क्योंकि वह पापी है। अपने कार्य का वर्णन करते हुए प्रभु ने कहा, ‘‘मनुष्य का पुत्रा खोए हुओं को ढूँढ़ने और उनका उद्धार करने आया है।’’ ;लूका 19:10। जिनका उद्धार नहीं हुआ वे खोए हुए हैं। बाइबल में उद्धार शब्द का अर्थ है-खोए हुए पापी को बचाना। आवश्यकता: मनुष्य का पापी स्वभाव एक सत्य है। समय-समय पर यह पापमय विचारों, शब्दों, कार्यों और रवैए के द्वारा परमेश्वर से शत्रुता को प्रकट करता है। निम्नलिखित पद इस बात को स्पष्ट करते हैं-रोमियों 5:12, 18, 19 (6:16( 8:5-8( उत्पत्ति 6:5( इफि. 2:1-3( 2 कुरि 4:3, 4( यशा. 53:6 यिर्म. 17:9( मरकुस 7:20-23( रोमियों 1:21-32( 3:19-23।इन पदों से यह स्पष्ट होता है कि मनुष्य पापी है और उसे क्षमा की आवश्यकता है। मनुष्य खोया हुआ है, उसे ढूँढ़े जाने की आवश्यकता है। वह बरबाद है उसे बचाया जाना है। मनुष्य दोषी है उसे क्षमा की आवश्यकता है। वह आत्मिक रूप से मरा हुआ है उसे जीवन की आवश्यकता है। वह अंध है उसे ज्योति की आवश्यकता है। वह गुलाम है उसे स्वतंत्राता की आवश्यकता है। मनुष्य स्वयं को बचाने में असामर्थ है।परमेश्वर पवित्रा हैं और पाप को दण्ड देना होगा। परमेश्वर ने यह स्पष्ट किया है कि वे पाप से घृणा करते हैं और जो लोग पाप में रहकर मर जाते हैं वे सदाकाल के लिए परमेश्वर की उपस्थिति से दूर रहेंगे। ;पढ़ें-यूहन्ना 8:21-24) मरकुस 9:43-48( लूका 16:22-31 यहूदा11-13 प्रका. 20:11-15। निष्कर्ष स्पष्ट है। क्योंकि मनुष्य पापी है और परमेश्वर धर्मी हैं, अतः पापी का उसके पापों के दण्ड से छुटकाराआवश्यक है।उसका प्रावधन: सुसमाचार परमेश्वर का शुभ संदेश है कि परमेश्वर ने अपने अद्भुत अनुग्रह से अपने प्रिय पुत्रा के द्वारा इस उद्धार का प्रावधन किया। मत्ती 1:21 के अनुसार वह पापियों का उद्धारकर्ता बनने के लिए आए। अनंत परमेश्वर और पवित्रा आत्मा के बराबर होने पर भी उद्धार का प्रावधन करने के लिए प्रभु यीशु ने देहधरण किया। ;यूहन्ना 3:16-17( 10:11, 15-18( मरकुस 10:45( मत्ती 9:12-13। परमेश्वर की अनंत योजनानुसार मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान के द्वारा मनुष्यजाति के लिए इस उद्धार का प्रावधन किया गया। जब प्रभु स्वेच्छा से क्रूस पर लटके थे तब उन्होंने स्वेच्छा से हमारे पापों और अपराधों को अपने ऊपर उठा लिया और हमारे बदले अपना बलिदान दे दिया। मनुष्यजाति के पापों का न्याय और दण्ड प्रभु पर पड़ा और मसीह की मृत्यु के द्वारा परमेश्वर के धर्मिकता की माँग पूरी हुई। परमेश्वर ने प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जिलाकर और अपने दाहिने हाथ बैठाकर इस विषय में पूर्ण स्वीकृति प्रदान की। ;1 कुरि. 15:1-4(2 कुरि5:21(1 पतरस 2:24) यशा. 53:5( रोमियों 5:6-9) प्रेरितों 4:10-12 5:31( 17:31।उसकी शर्त: एक पापी के उद्धार के लिए आवश्यक सभी कार्यों को प्रभु यीशु ने अपने बलिदान के द्वारा पूरा कर लिया। अब इस उद्धार को प्राप्त करने के लिए हमें क्या करना होगा? हमें पश्चाताप करना होगा। पश्चाताप मन का परिवर्तन है जिसके परिणामस्वरूप पाप के प्रति स्वयं के प्रति, उद्धार और उद्धारकर्ता के प्रति भी हमारा रवैया बदल जाता है। यह मन का परिवर्तन हमारे कार्यों के बदल जाने का प्रमाण है। ;लूका 13:3 प्रेरतों 17:31) (20:21।प्रभु यीशु मसीह के व्यक्तित्व और कार्य के विषय में सुसमाचार पर हमें विश्वास करना होगा ;1 यूहन्ना 5:9,10। एक खोए हुए पापी के रूप में हमें व्यक्तिगत रूप से यह विश्वास करना होगा कि प्रभु यीशु ने मेरे लिए अपना प्राण दिया। प्रभु ने मेरे पापों को उठाकर, मेरे बदले अपना प्राण दिया और इस प्रकार मेरे उद्धार के लिए आवश्यक कार्य को पूरा कर दिया। अपनी सम्पूर्ण स्वेच्छा से यह निर्णय लेना हेगा कि प्रभु यीशु ही मेरे उद्धारकर्ता हैं और अब से आगे के जीवन में वही मेरे प्रभु भी है।;यूहन्ना 1:12) रोमियों 10:9-10। उसका निश्चय:एक व्यक्ति को कैसे पता चलता है कि उसका उद्धार हुआ है?परमेश्वर के वचन के द्वारा। परमेश्वर ने यह स्पष्ट रूप से प्रकट किया है कि जो कोई परमेश्वर के पुत्रा पर विश्वास करता है उसे पापों की क्षमा प्राप्त होती है और उसका उद्धार होता है। उसे अनंत जीवन प्राप्त होता है और वह अनंतकाल के लिए सुरक्षित हो जाता है। ;प्रेरितों13:38) (1 यूहन्ना 2:12, इपिफ. 2:8( 1 कुरि. 6:11)( 1 यूहन्ना 5:13 रोमियों 5:1( 8:1( यूहन्ना 10:27-30। उसका विस्तार: भूतकाल: प्रभु यीशु को उद्धारकर्ता स्वीकार करने से पहले के पापों का परिणाम और दण्ड से भी हमें छुटकारा और क्षमा प्राप्त होती है क्योंकि प्रभु यीशु ने पूरा पूरा दण्ड अपने ऊपर उठा लिया। ;यूहन्ना 5:24( रोमियों 8:1। वर्तमान: वर्तमान में हमें पाप की सामर्थ और नियंत्राण से छुटकारा प्राप्त होता है क्योंकि परमेश्वर पवित्रा आत्मा हमारे अंदर वास करते हैं और हमें एक नया स्वभाव भी दिया जाता है। इस कारण पाप हमारे जीवन में राज्य नहीं कर पाता। ;1 कुरि. 6:19( 2 पतरस 1:3-4 रोमियों 6:1-14। इसका अर्थ यह नहीं है कि एक विश्वासी पाप करने में असमार्थ हो जाता है। हमारे भीतर पुराना स्वभाव रहता है और हम इस शरीर में रहते हैं इस कारण पाप हो सकता है। परन्तु यदि हम अपने जीवन का नियंत्राण पवित्रा आत्मा को सौंप देते हैं तब हम पाप के नियंत्राण से बचकर जीवन व्यतीत कर सकते हैं। यह निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है 1. परमेश्वर के वचन को पढ़ना और उसका पालन करना ;2 तीमु2:15 2. प्रार्थना के द्वारा प्रभु के साथ सदा संपर्क में रहना ;इब्रा. 4:14-16। 3. अपने शरीर को परमेश्वर के कार्य और धर्मिकता के लिए उपयोग करना ;रोमि. 6:13( 12:1-2। 4. परमेश्वर के सम्मुख तत्काल पाप अंगीकार करना और सभी ज्ञात पापों को छोड़ देना। ;1 यूह. 1:8-9 तीतुस 2:11-15। भविष्य: भविष्य में पाप की उपस्थिति से भी हमारा उद्धार होगा।यह तब होगा जब प्रभु यीशु दोबारा आएँगे और जो लोग प्रभु में मरे हैं वे जीवित किए जाएँगे और जो जीवित हैं वे सब भी बदल जाएँगे और उन्हें ऐसा शरीर दिया जाएगा जो न पाप कर सकता है और न मर सकता है। यह उद्धार का अंतिम पहलू है। ;इब्रा. 9:28( 1 थिस्स4:13-18।
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