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‘‘जब तक मैं न आऊँ, तब तक पढ़ने और उपदेश देने और सिखाने में लौलीन रह।’’ ;1 तीमु. 4:13। ‘‘जो बागा मैं त्रोआस में करपुस के यहाँ छोड़ आया हूँ, जब तू आए तो उसे और पुस्तकें विशेष करके चर्मपत्रों को लेते आना।’’ ;2 तीमु4:13। यद्यपि इन दो नियमों के दिए जाने के मध्य काल में कोई भी नई भविष्यद्वाणी लिखी नहीं गई, पिफर भी यह एक ऐसा समय रहा जब उस युग को संबोध्ति करने वाला ढेर सारा साहित्य यहूदी लोगों ने प्रस्तुत किया। इनमें तीन सबसे मुख्य हैं-सेप्टुआगिंट, अपोक्रिपफा, और मृत सागर दस्तावेश। सेप्टुआगिंट: 250 ई.पू. के लगभग पुराने नियम का यूनानी अनुवाद सेप्टुआगेंट के द्वारा उन यहूदियों को और समस्त यूनानी भाषा बोलने वालों को वचन प्राप्त हुआ जो अब अपनी पैतृक भाषा नहीं बोलते थे।अपोक्रिफा: निःशब्द वर्षों में लिखे गए लेखों का संग्रह अपोक्रिपफा कहलाता है। इसको पवित्रा आत्मा की प्रेरणा के द्वारा लिखा गया है, ऐसा माना जाता है परन्तु इस बात का सत्य होना कलीसिया के इतिहास में चर्चा और वाद-विवाद का विषय रहा है। आज के दिन अपोक्रिफा केथोलिक और पूर्वी बाइबल में ही पाया जाता है, प्रोटेस्टेंट बाइबल में नहीं है। क्योंकि उनमें गलतियाँ और मनुष्य की कल्पनाएँ ही पाई जाती हैं। मृत सागर दस्तावेश: मृत सागर दस्तावेशों का मिलना आधुनिक युग का एक महत्वपूर्ण खोज है। 1947 में एक अरबी चरवाहे लड़के को कुछ दस्तावेश मिले जब वह अपनी खोई हुई बकरी को ढूँढ़ रहा था।उन दस्तावेशों में पुराने नियम की पुस्तकें, अपोक्रिपफा की कुछ पुस्तकें, भविष्यसूचक पुस्तकें और उस गुट की पुस्तकें जो इन्हें लिखती हैं, आदि प्राप्त हुईं। जो दस्तावेश मिले उनमें एक तिहाई बाइबल पर आधारित थी जिनमें भजन संहिता, व्यवस्थाविवरण और यशायाह भी थे। बाइबल के पाठकों के लिए यह एक महत्वपूर्ण बात है कि पुराने नियम के दस्तावेशों को किस प्रकार सुरक्षित रखा गया। यद्यपि उस कालाविधियों में परमेश्वर ने कोई नया वचन नहीं दिया परन्तु जो पहले से दिया गया था उसे सुरक्षित रखा।जब हम नए नियम के युग में आते हैं, तब हम यहूदियों के आराधनालयों और धर्मिक गुटों को देखते हैं जिनका वर्णन हम पुराने नियम में नहीं पाते। पिफर वे कहाँ से आए? बाइबल के विद्वान कहते हैं कि इनका आरंभ बेबीलोन की बँधुआई के समय में हुआ जब यहूदी लोगों को परमेश्वर के मंदिर से दूर किया गया। प्रभु यीशु के समय तक ये यहूदी आराधनालय अच्छी तरह स्थापित हो चुके थे जहाँ यहूदी समूह आराधना और प्रार्थना के लिए एकत्रा होते थे। प्रभु यीशु मंदिर में और इन यहूदी आराध्नालयों में जाकर शिक्षा देते थे और रोगियों को चंगा करते थे।दोनों नियमों के दिए जाने के बीच की कालाविधियों में अनेक प्रकार के प्रभावों ने यहूदी समाज को विभिन्न धर्मिक गुटों में बाँट दिया था जिनमें मुख्य एस्सेनेस,फरीसी और सदूकी थे।एस्सेनेस: शहरी जीवन और उसके कारण धर्मिक जीवन के पतन से असंतुष्ट होकर कुछ लोगों ने स्वयं को यहूदी ध्र्म से बाहरी रूप से अलग कर लिया और सभ्यता से दूर संन्यास लेकर रहने लगे। वे कमरान गुपफाओं के आस पास समूहों में रहने लगे और अपना समय वचन के अध्ययन और मनन में व्यतीत करने लगे। पुराने नियम के दस्तावेशों को संभालकर रखने के लिए हम उनके आभारी हैं। फरीसी: ये यहूदी आराध्नालय के ही लोग थे। वे संरक्षक, लिखने वाले, और व्यवस्था के व्याख्या करने वाले लोग थे। दुर्भाग्य से वे व्यवस्था की गलत व्याख्या करते थे। जीवन में व्यवस्था को लागू करने की चाहत में उन्होंने बहुत सारे नियम कानून बना लिए जिन्हें मौखिक व्यवस्था कहते हैं। उन ही बातों ने परंपरा बनकर व्यवस्था का पालन करने में अवरोध उत्पन्न कर दिया।सदूकी: ये भी मंदिर से जुड़े लोग थे, परन्तु इनके द्वारा यहूदी समाज में यूनानी विचारधारा और संस्कृति का प्रवेश हुआ। उनका विश्वास था कि शरीर के साथ ही आत्मा की भी मृत्यु हो जाती है। वे पुनरुत्थान पर विश्वास नहीं करते।सेन्हेदरीन: यह यहूदियों का 70 लोगों का राजनीतिक धर्मिक समूह होता था। यहूदियों के धर्मिक और राजनैतिक जीवन पर इनका अधिकार होता था। यह सेन्हेदरीन ही था जिसने प्रभु यीशु को क्रूस पर चढ़ाने का निर्णय लिया था।
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