Class 8, Lesson 28: पुराने व नए नियम के बीच 1

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‘‘देखो, यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन के आने से पहले, मैं तुम्हारे पास एलिय्याह नबी को भेजूँगा। वह माता-पिता के मन को उनके पुत्रों की ओर, और पुत्रों के मन को उन के माता-पिता की ओर फेरेगा ऐसा न हो कि मैं आकर पृथ्वी का सत्यानाश करूँ।’’ ;मलाकी. 4:5-6 पुराने नियम की अंतिम पुस्तक मलाकी और नए नियम की पहली पुस्तक मत्ती के बीच लगभग 400 वर्षों का लंबा अंतराल रहा। इतिहासकार इस अंतराल को ‘‘निःशब्द वर्ष’’ कहते हैं। हम इसे ‘‘तैयारी के वर्ष’’कह सकते हैं। संसार के मुक्तिदाता के आने की तैयारी के वर्ष। इन वर्षों में कोई प्रकटीकरण नहीं दिए गए। इस अंतराल में किसी भी भविष्यद्वक्ता ने भविष्यद्वाणी नहीं की। जब मलाकी ने अपनी पुस्तक लिखी तब यहूदियों का देश पफारसी साम्राज्य के भीतर था। अगले सौ वर्षों तक वह ऐसा ही रहा जब तक कि सिंकदर महान ने उस पर कब्जा न कर लिया। यूनान विभाजित देश था जिस पर एथेंस, स्पार्टा और कुरिन्थ जैसे महत्वपूर्ण शहरों ने शासन किया। पिफलिपयाँ मेसीड़ोन ;382-336 ने समस्त यूनान पर अपना शासन बनाकर रखा। जब वह पफारसी साम्राज्य को जीतने की योजना बना रहा था, उसी समय उसकी हत्या हो गई। उसकी योजना को उसके पुत्रा सिकंदर ने आगे बढ़ाया। उसने एक नया विश्वास बनाने का स्वप्न देखा जो यूनानी संस्कृति और भाषा के द्वारा आपस में जुड़ा हो। सिकंदर महान पूरे संसार में सुसमाचार को फैलाने के लिए परमेश्वर के हाथ में एक उपकरण की तरह था। नए नियम को पहले यूनानी भाषा में ही लिखा गया क्योंकि वह उस समय की प्रचलित भाषा थी। 332 ई.पू. तक पलिश्तीन भी, पफैलते हुए यूनानी साम्राज्य का हिस्सा बन गया था। इतिहास इस बात का गवाह है कि सिकंदर महान ने यहूदियों के साथ उदारता के साथ व्यवहार किया। 323 में 33 वर्ष की उम्र में सिकंदर महान की मृत्यु हो गई। अगले 150 वर्षों तक उसके साम्राज्य पर कब्जा करने के लिए उसके उत्तराध्किारियों के बीच में खींचा तानी चलती रही, और इस्राएल उसके बीच में फँसा रहा।मध्यसागर से लगभग अठारह मील की दूरी पर 753 ई.पू. के आसपास रोम शहर के स्थापना हुई। आरंभ में यह एक छोटा शहर था, परन्तु धीरे धीरे इसने पूरे इटली, उत्तरी अफ्रीका, यूनान आदि को अपने नियंत्राण में कर लिया। बाद में 48 ई.पू. में पोम्पी ने सत्ता खो दी और उसके पुराने साथी जूलियस कैसर ने 44 ई.पू. तक सत्ता संभाली। पिफर उसकी हत्या हो गई। पिफर उसके दत्तक पुत्रा ओक्टेवियन सिंहासन पर बैठा। 27 ई.पू. में रोमी राज सभा ने ओक्टेवियन को ‘‘औगुस्तुस’’ नाम की उपलब्दियाँ । इसी औगुस्तुस कैसर ने रोमी साम्राज्य की पुनः स्थापना की और अगले दो दशकों तक उसके साम्राज्य में शांति और स्मृति बनी रही। औगुस्तुस का शासन काल रोमी इतिहास का सुनहरा युग था। यह कारण बनता है कि हम उस परमेश्वर के विषय में सोचें जो अपने अनंत उद्देश्यों को पूरा करने के लिए इतिहास के द्वारा कार्य करता है। यहूदिया में दिव्य घटनाओं के होने के लिए वह कितना सटीक समय था। जिसके विषय में प्रेरित पौलुस कहते हैं ‘‘परन्तु जब समय पूरा हुआ, तो परमेश्वर ने अपने पुत्रा को भेजा जो स्त्राी से जन्मा, और व्यवस्था के अधीन उत्पन्न हुआ, ताकि व्यवस्था के आधीनों को मोल लेकर छुड़ा ले, और हम को लेपालक होने का पद मिले। और तुम जो पुत्र हो, इसलिए परमेश्वर ने अपने पुत्रा के आत्मा को, जो ‘हे अब्बा, हे पिता’ कहकर पुकारता है, हमारे हृदयों में भेजा है।’’ ;गला. 4:4-6।

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