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यह दारा मादी के राज्य का पहला वर्ष था। उस समय दानिय्येल लगभग 85 वर्ष का था। उसने एक विद्यार्थी के रूप में बेबीलोन में अपना जीवन आरंभ किया था। इस उम्र में भी वह परमेश्वर के वचन का विद्यार्थी था। उसने यिर्मयाह की भविष्यद्वाणियों का अध्ययन किया जिससे उसे पता चला कि यरूशलेम की दुर्दशा 70 वर्षों तक रहेगी।;यिर्मयाह 25:11) (29:10। इस्राएल को यह व्यवस्था दी गई थी। कि सातवें वर्ष वे लोग भूमि को जोतेंगे बोएंगे नहीं ;लैव्य. 25:1-4। परन्तु उन्होंने इस आज्ञा का पालन नहीं किया ;लैव्य. 26:33-35) यिर्मयाह 34:12-22) 2 इति. 36:21। अतः 490 वर्षों का सब्त का कर्ज 70 वर्ष हुए। यद्यपि दानिय्येल स्वयं भी एक भविष्यद्वक्ता था, परन्तु उसे अन्य भविष्यद्वक्ताओं के वचनों को पढ़ना आवश्यक लगा क्योंकि वह परमेश्वर का वचन है। ;मंदिर के विनाश के पश्चात् दानिय्येल ने पुराने नियम की पुस्तकों को संभाल कर रखा होगाद्ध। भविष्य के विषय में दानिय्येल को अनेक दर्शन मिले परन्तु बँधुआई का अन्त कब होगा इस विषय में उसे कोई दर्शन नहीं दिया गया। यिर्मयाह को दी गई भविष्यद्वाणी के विषय में परमेश्वर दानिय्येल को और जानकारी दे रहे थे। दानिय्येल की प्रार्थना: दानिय्येल समझ गया था कि 70 वर्षों का समय समाप्त होने वाला था। अपना व्यक्तिगत पाप और समस्त इस्राएल का पाप जो उनकी बंधुआई का कारण था, उसके लिए उसने सत्यनिष्ठा के साथ परमेश्वर से प्रार्थना की। उसकी प्रार्थना एक अच्छा उदाहरण है। हम उसकी विशेषताएँ देखेंगे- 1. परमेश्वर का वचन पढ़ने के पश्चात् उसने प्रार्थना की। 2. उसने उपवास के साथ प्रार्थना किया ;एज्रा 8:23)( नहेम्याह 9:1)एस्तेर 4:1,3,16, अय्यूब 2:12 योना 3:5, 6 भी पढ़ें। 3. परमेश्वर की विश्वासयोग्यता पर आधारित होकर उसने प्रार्थना की ;पद 4। 4. वह लोगों के साथ एक होकर प्रार्थना करता है और कहता है ‘‘हम ने’’ पाप किया। 5. वह परमेश्वर की वाचा का स्मरण दिलाता है। ;9:4द्ध। संभवतः वह अब्राहम से की गई वाचा के विषय में सोच रहा था कि कनान देश हमेशा उनका रहेगा। ;उत्पत्ति 12:7) (13:14)। परमेश्वर की सन्तान अपनी प्रार्थना में परमेश्वर के वायदों का दावा कर सकते हैं। 6. वह पूरी तरह परमेश्वर के अनुग्रह पर निर्भर रहता है ‘‘अपने धर्म के कामों पर नहीं, वरन् तेरी बड़ी दया ही के कामों पर भरोसा रखकर करते हैं।’’ ;9:18। भविष्यद्वाणी:दानिय्येल की प्रार्थना के उत्तर में परमेश्वर ने भविष्य की बात बताने के लिए उसके पास जिब्राएल स्वर्गदूत को भेजा। उसने कहा, ‘‘हे दानिय्येल, मैं तुझे बुद्धि और प्रवीणता देने को अभी निकल आया हूँ। जब तू गिड़गिड़ाकर प्रार्थना कर रहा था, तब ही इसकी आज्ञा निकली, इसलिए मैं तुझे बताने आया हूँ क्योंकि तू अति प्रिय ठहरा है इसलिए उस विषय को समझ ले और दर्शन की बात का अर्थ जान ले। तेरे लोगों और तेरे पवित्रा नगर के लिए सत्तर सप्ताह ठहराए गए हैं कि उनके अन्त तक अपराध् का होना बन्द हो, और पापों का अन्त और अधर्म का प्रायश्चित किया जाए और युगयुग की धर्मिकता प्रकट हो, और दर्शन की बात पर और भविष्यद्वाणी पर छाप दी जाए, और परमपवित्रा का अभिषेक किया जाए ;दानि. 9:23-24।छः उद्देश्य: परमेश्वर अपने लोगों के लिए जो कार्य करने वाले हैं वह पद 24 में हम पढ़ते हैं। 1. अपराध का होना बन्द 2. पापों का अन्त 3. अध्र्म का प्रायश्चित 4. युगयुग की धर्मिकता 5. दर्शन और भविष्यद्वाणी पर छाप 6. परमपवित्रा ;स्थान का अभिषेक इनमें से पहले तीन उद्देश्य प्रभु यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान के साथ पूरे हुए। अंतिम तीन प्रभु के वापस आने पर पूरे होंगे।
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