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यशायाह की भविष्यद्वाणियाँ 760 से 698 ईसा पूर्व के समय की घटनाओं का वर्णन करती हैं। भविष्यद्वाणी की पुस्तकों में यह अपनी उच्च साहित्यिक शैली के कारण सबसे ऊँचे स्थान पर है। इस पुस्तक में 66 अध्याय हैं जो हमें बाइबल की 66 पुस्तकों का स्मरण कराती हैं। कुछ लोगों का कहना है कि यह पुस्तक बाइबल का ‘‘लघु रूप’’ है।इसमें दिए सुसमाचार के संदेश इसकी विशिष्टता है। यशायाह की पुस्तक को ‘‘यशायाह रचित सुसमाचार’’ भी कहते हैं।भविष्यद्वक्ता: आमोस ;आमोस भविष्यद्वक्ता नहींद्ध का पुत्रा यशायाह राजसी परिवार का सदस्य था। उसके दो पुत्रा थे। ;7:3ऋ 8:3, 18द्ध। कहा जाता है कि मनश्शे के शासन काल में उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए, संभवतः जिसका उल्लेख इब्रानियों 11:37 में किया गया है।विषय-वस्तु: यशायाह शब्द का अर्थ है ‘‘यहोवा उद्धार है’’। यही इस पुस्तक का विषय वस्तु है। इस पुस्तक में ‘‘उद्धार’’ शब्द 26 बार आया है, जबकि अन्य सभी भविष्यद्वाणियों की पुस्तकों में सब मिलाकर मात्रा सात बार ही यह शब्द आया है। अध्याय 1-39 मनुष्य के लिए उद्धार की आवश्यकता को चित्रित करता है। अध्याय 40-66 तक परमेश्वर की दया से उसके प्रावधन का वर्णन है। यशायाह की इस्राएल को चेतावनी थी कि परमेश्वर उसे उसकी दुष्टता का दण्ड देंगे। तथापि,परमेश्वर जो उद्धार का परमेश्वर है वह यहूदियों और अन्यजातियों के लिए एक उद्धारकर्ता का प्रावधन करेंगे। इस पुस्तक में हम छः विषयों को देखते हैं: 1. भविष्यद्वक्ता का चुना जाना 2. प्रभु यीशु का जीवन 3. उद्धारकर्ता के कष्ट 4. महिमामय युग सहस्राब्दि 5. सुसमाचार 6. प्रभु यीशु का प्रकट होना 1. भविष्यद्वक्ता का चुना जाना: इस पुस्तक का पहला अध्याय इस बात का वर्णन करता है कि किस प्रकार परमेश्वर को उसके अपने लोगों ने त्याग दिया और मूर्तियों के पीछे हो लिए। परमेश्वर कहते हैं, ‘‘बैल तो अपने मालिक को और गदहा अपने स्वामी की चरनी को पहचानता है, परन्तु इस्राएल मुझे नहीं जानता, मेरी प्रजा विचार नहीं करती।’’ यशायाह 1:3.। अध्याय 6 में हम यशायाह के दर्शन के विषय में पढ़ते हैं। उसने देखा कि परमेश्वर सिंहासन पर विराजमान है और साराप एक दूसरे से पुकार-पुकार कर कह रहे थे, ‘‘सेनाओं का यहोवा पवित्रा, पवित्रा, पवित्रा है।’’ यह सुनकर भविष्यद्वक्ता ने अपनी स्थिति को पहिचाना और उसने कहा, ‘‘हाय, हाय!मैं नष्ट हुआ, क्योंकि मैं अशु( होंठवाला मनुष्य हूँ और अशु( होंठवाले मनुष्यों के बीच में रहता हूँ। क्योंकि मैं ने सेनाओं के यहोवा महाराजाधिराज को अपनी आँखों से देखा है।’’ तब एक साराप हाथ में अंगारा लिए हुए जिसे उसने चिमटे से वेदी पर से उठा लिया था, और उससे उसके होंठों को छू दिया। तब परमेश्वर ने उसे अपने प्रवक्ता के रूप में भेजा। यहाँ पर हम देखते हैं कि पवित्राीकरण सभी विश्वासियों के लिए आवश्यक है, विशेषकर उनके लिए जो परमेश्वर के सेवक हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि पवित्राता के बिना हम प्रभु को देख नहीं सकते। ;इब्रानियों12:14द्ध। व्यावहारिक पवित्राता के बगैर पफलदायक सेवा संभव नहीं है। 2. प्रभु यीशु का जीवन: 1. कुंवारी से जन्म ;7:14 2. उसका ईश्वरत्व और अनंत अस्तित्व ;9:6 3. उसका परिवार ;11:1 4. परमेश्वर के आत्मा के द्वारा प्रभु का अभिषेक ;11:2 5. प्रभु का चरित्रा ;11:3, 4 6. प्रभु का सादा जीवन और नम्रता ;42:1-4 7. प्रभु के कष्ट, मृत्यु और पुनरुत्थान ;अध्याय 53 8. उसका महिमामय शासन ;11:3-16 3. प्रभु यीशु के कष्ट: अध्याय 53 में दिया गया यह विषय स्पष्ट करता है कि किस प्रकार प्रभु ने पापियों के लिए अपने जीवन का बलिदान किया। पद 2 से आगे हम देखते हैं कि उद्धारकर्ता अपनी देह पर संसार के पापों को उठाता है। इस्राएली लोगों ने सोचा कि परमेश्वर का उद्धार केवल उन ही के लिए है। परन्तु सच्चाई यह है कि यह उद्धार हर एक के लिए है। पद 9 ध्यान देने योग्य है। उन्होंने प्रभु को दो डाकुओं के बीच क्रूस पर चढ़ाया। एक ध्नी पुरुष यूसुपफ की कब्र में प्रभु को दपफनाया गया।;मत्ती 27:57-60द्ध यह अद्भुत है कि ऐसी भविष्यद्वाणियाँ पूर्ण रूप से पूरी हुईं। 4. सहस्राब्दि: अध्याय 11:6-11 और 65:17-25 में हम महिमामय सहस्राब्दि के राज्य के विषय में पढ़ते हैं। यह भविष्यद्वाणी तब पूरी होगी जब प्रभु यीशु इस पृथ्वी पर अपने एक हशार वर्ष के राज्य की स्थापना करेंगे। पृथ्वी पर बहुत सी बातें बदल जाएँगी। जंगली जानवरों का स्वभाव बदल जाएगा और मरुभूमि में भी हरियाली होगी। प्रभु यीशु मसीह स्वयं तब राजा होंगे। 5. सुसमाचार: इस भविष्यद्वाणी में हम उद्धार का स्पष्ट संदेश देखते हैं। अपने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा परमेश्वर सब मनुष्यों को अपने पास आने का निमंत्राण देते हैं-‘‘आओ, हे सब प्यासे लोगो, पानी के पास आओ, और जिन के पास रुपया न हो, तुम भी आकर मोल लो और खाओ! दाखमधु और दूध बिना रुपए और बिना दाम ही आकर ले लो।’’ ;यशा. 55:1 इपिफसियों 2:8-9 भी पढ़ें। 6. प्रभु यीशु का दो बार प्रकट होना: अध्याय 61 में हम प्रभु के दो बार प्रकट होने के विषय में पढ़ते हैं। प्रभु यीशु का पहला देहधरण ‘‘यहोवा के प्रसन्न रहने के वर्ष’’ (पद 2) का आरंभ था। वही पद ‘परमेश्वर के पलटा लेने के दिन’’ के बारे में भी कहता है, जो कि प्रभु के दूसरी बार प्रकट होने पर होगा।पहले आगमन की भविष्यद्वाणी के विषय में लूका 4:18-21 में स्वयं प्रभु ने कहा। उन्होंने दूसरी घटना का जिक्र नहीं किया क्योंकि वह उनके द्वितीय आगमन पर पूरी होगी। अभी हम प्रभु की दया और अनुग्रह के युग में जी रहे हैं।
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