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दाऊद (आगे) दाऊद और योनातान योनातान शाऊल का पुत्र था। योनातान का अर्थ है "यहोवा ने दिया है।" परमेश्वर ने योनातान में दाऊद को एक घनिष्ट मित्र दिया (1 शमूएल 18:1)। इन दो जवान पुरुषों की गहरी दोस्ती के चार विशेष गुण थे। 1) त्याग करने की इच्छा: यद्यपि योनातान दाऊद से कई वर्ष बड़ा था और स्वयँ भी एक शक्तिशाली योद्धा था उसने दाऊद पर कभी अपनी श्रेष्ठता नहीं जताया। इसके ठीक विपरीत उसने उसके साथ स्थायी मित्रता की प्रतिज्ञा किया, जिसकी पुष्टि उसने अपनी श्रद्धा के त्यागपूर्ण कार्यों द्वारा किया उसका चोगा (वस्त्र), झीलम, तलवार, धनुष और पट्टा (18:3-4)। अपना वस्त्र और झीलम देकर योनातान प्रायोगिक तौर पर अपना ओहदा उत्तराधिकारी के रूप में उसे दे रहा था। उसने दाऊद में उस इश्वरीय आशीष और राजकीय गुणों को देखा जो उसके पिता ने खो दिया था। 2) एक इमानदार रक्षक: लेकिन शाऊल त्याग करने के लिये इच्छुक नहीं था। ईर्ष्या की जलन में राजा ने दाऊद को मार डालने के कई षड़यंत्र रचा। परंतु योनातान ने साहस के साथ अपने मित्र की रक्षा की। योनातान अपने पिता के साथ एक सीमा तक वफादार था। जब भी शाऊल ने सीमा से बाहर कदम बढ़ाया और योनातान के मित्र को धमकी दिया, योनातान ने तत्काल सही कदम उठाया तब भी जब उसका उठाया गया कदम राजा की सीमा के बाहर का होता था। उसका उदाहरण हमें सिखाता है कि एक सच्चा मित्र कभी दोहरे चेहरे या स्वभाव का नहीं होता परंतु वह हमेशा इमानदारी और प्रेम के साथ हमें बचाता है। 3) स्वीकार करनेवाला हृदय: चूंकि शाऊल दाऊद को मार डालने पर तुला हुआ था, दाऊद को अपनी सुरक्षा के लिये भाग जाना पड़ा। अपने मित्र को छोड़कर जाने की बात से खेदित दाऊद ने योनातान के प्रति अपनी भावनाओं को स्वतंत्र रूप से व्यक्त किया। जब भी वे मिले, दाऊद मुँह के बल उसके सामने गिर पड़ा, और तीन बार उसके सामने झुका। और उन्होंने एक दूसरे को चूमा और मिलकर रोए, परंतु दाऊद ने ज्यादा रोया। 4) नियमित प्रोत्साहन: जब दाऊद शाऊल का पीछा छुड़ाकर भाग रहा था तब योनातान उसे हिम्मत बंधाने गया। उसने दाऊद से कहा, "मत डर, क्योंकि तू मेरे पिता शाऊल के हाथ में न पड़ेगा, और तू ही इस्राएल का राजा होगा, और मैं तेरे नीचे हूँगा और इस बात को मेरा पिता शाऊल भी जानता है।" तब दोनों ने मिलकर परमेश्वर के सामने मित्रता की वाचा को नवीनकृत किया। उसके पश्चात योनातान महल को लौट गया जबकि दाऊद वहीं रहा। योनातान के साथ दाऊद की मित्रता परमेश्वर में एक बंधुत्व आत्मा पर आधारित थी जिसने उन्हें जीवन के कठिन परिस्थितियों में उसके प्रेम के द्वारा एक दूसरे की सहायता करने के योग्य बनाया। इस प्रकार, उनका संबंध हमें पूरी बायबल में पाए जाने वाले प्रेरणामय मित्रता का चित्रण प्रस्तुत करते हैं। दाऊद और मपीबोशेत यह कहानी दाऊद के द्वारा पहले की गई दो प्रतिज्ञाओं से शुरू होती है -एक प्रतिज्ञा जो उसने उसके सबसे प्रिय मित्र से किया था और दूसरी जो उसने उसके कट्टर शत्रु से किया था। पहली प्रतिज्ञा दाऊद और योनातान के बीच थी। उस दिन की बाट जोहते हुए जब दाऊद राजा बनेगा, योनातान ने अकेले में उसके मित्र से कहा था, "परंतु मेरे घराने पर से भी अपनी कृपादृष्टि कभी न हटाना। वरन जब यहोवा दाऊद के हर एक शत्रु को पृथ्वी पर से नष्ट कर चुकेगा, तब भी ऐसा न करना।" दाऊद ने वाचा बांधा कि वह योनातान और उसके परिवार को बचाए रखेगा और उन पर यहोवा की प्रेम दया दिखाया करेगा। दूसरी प्रतिज्ञा दाऊद और शाऊल के बीच थी। शाऊल भी अपने हृदय में जानता था कि एक दिन दाऊद राजा बनेगा, और उसने उससे याचना किया कि प्रतिज्ञा करे कि "मैं तेरे वंश को तेरे बाद नष्ट न करूँगा, और तेरे पिता के घराने में से तेरा नाम मिटा न डालूँगा।" और दाऊद ने इस प्रतिज्ञा को पूरी करने की शपथ लिया। जब से दाऊद ने यह वाचा बांधा तब से बहुत सी घटनाएँ हुईं। शाऊल और योनातान युद्ध में मारे गए। दाऊद इस्त्राएल के सिंहासन पर बिठाया गया और शक्ति के शिखर तक पहुँच गया। लेकिन वह अपनी प्रतिज्ञाओं को कभी नहीं भूला। एक दिन दाऊद ने पूछा, "क्या शाऊल के घराने में से कोई अब तक बचा है, जिसको मैं योनातान के कारण प्रीति दिखाऊँ?" सीबा जो शाऊल के घराने की दासी थी राजा से बोली कि अब भी योनातान का एक बेटा है जो दोनों पाँव से लंगडा है। जब राजा ने उसके ठिकाने के विषय पूछा तो सीबा उससे बोली, "वह तो लोदबार नगर में, अम्मीएल के पुत्र मीकार के घर में रहता है।" लोदबार का अर्थ "सूखा" होता है। यह बंजरभूमि को दर्शाता है। स्वयं को संभाल न पाने और उसके उत्तराधिकार से वंचित मपीबोशेत, योनातान का पुत्र एक बहिष्कृत व्यक्ति के समान सूखी भूमि में रहता था। जब वह दाऊद के सामने आया तो वह उसके सामने गिर पड़ा और दंडवत किया, "तेरे दास को क्या आज्ञा!" जब उसका पिता और दादा मरे थे तब वह पाँच वर्ष का था और जब यिज्रेल से समाचार आया तो सेविका उसे लेकर भाग गई थी। ऐसा हुआ कि जब वह उसे लेकर भाग रही थी, तो बच्चा छूटकर गिर गया था और वह लंगडा हो गया था। दाऊद ने उससे कहा, "मत डर, तेरे पिता योनातान के कारण मैं निश्चय निश्चय तुझको प्रीति दिखाऊँगा, और तेरे दादा शाऊल की सारी भूमि तुझे फेर दूँगा; और तू मेरी मेज पर नित्य भोजन किया कर।" मपीबोशेत का प्राण उस अनुग्रह को जो दाऊद उस पर कह रहा था मुश्किल से संभाल पा रहा था। उसने फिर से दंडवत किया और कहा, "तेरा दास क्या है कि तू मुझ ऐसे मरे कुत्ते की ओर दृष्टि करे!" इस दयालुता के योग्य ठहरने के लिये मपीबोशेत ने ऐसा क्या किया था? कुछ भी नहीं। यदि वह इसका हकदार होता तो वह अनुग्रह नहीं होता। अनुग्रह बिना किसी प्रतिबंध के स्वीकृति है, बिना दोषी ठहराए क्षमा की प्राप्ति है। फिर राजा ने शाऊल की दासी सीबा को बुलाया और उससे कहा, "जो कुछ शाऊल और उसके समस्त घराने का था वह मैंने तेरे स्वामी के पोते को दे दिया है। अब से तू अपने बेटों और सेवकों समेत उसकी भूमि पर खेती करके उसकी उपज ले आया करना कि तेरे स्वामी के पोते को भोजन मिला करे, परंतु तेरे स्वामी का पोता मपीबोशेत मेरी मेज पर नित्य भोजन किया करेगा।" सीबा के 15 पुत्र और 20 दास थे। मपीबोशेत का एक छोटा बेटा था जिसका नाम मीका था। यह कहानी यहाँ पर मपीबोशेत के राजा के मेज पर भोजन करने के चित्रण के साथ खत्म होती है, ठीक वैसे ही जैसे राजा के अपने बच्चे भोजन करते थे। अनुग्रह का स्वाद कितना मीठा होता है! मपीबोशेत पर दाऊद का अनुग्रह और परमेश्वर का हम पर अनुग्रह इसमें कम से कम 8 समानताएँ देखी जा सकती हैं। 1) किसी समय मपीबोशेत ने उसके पिता की संगति का आनंद उठाया था, उसी प्रकार मनुष्य जाति ने भी अदन के बाग में परमेश्वर की संगति का आनंद पाया था। 2) जब विनाश आया, डर समा गया और मपीबोशेत गिर पड़ा और जीवनभर के लिये लंगडा हो गया। उसी प्रकार जब पाप आया मानवता खत्म हो गई, उसका पतन हो गया जिसमें हमें आत्मिक अपंग बना दिया। 3) अपने मित्र योनातान के लिये शर्तहीन प्रेम के कारण, दाऊद ने खोजा कि वह किस पर अपना अनुग्रह दिखाए। परमेश्वर भी उसके शर्तहीन प्रेम के कारण जो वह अपने पुत्र से करता था और क्रूस पर उसके पुत्र की मृत्यु के कारण खोज में रहता है कि किस पर अपना अनुग्रह दिखाए। 4) अपंग व्यक्ति निस्सहाय और अयोग्य था। वह जो कर सकता था वह था राजा की कृपा पाना। उसी प्रकार हम पापी भी अयोग्य और आशाहीन हैं। हम किसी भी तरह से राजा के अनुग्रह के पात्र या योग्य नहीं हैं। जो कुछ हम कर सकते हैं वह है नम्रतापूर्वक और धन्यवाद के साथ उसके अनुग्रह को स्वीकार करें। 5) राजा ने अपंग मपीबोशेत को बंजर भूमि में से उठाकर महल के शाही भोजन की मेज पर बिठाया। परमेश्वर, हमारे पिता ने हमें हमारी नैतिक बंजरभूमि से उठाया और हमें आत्मिक पोषण और घनिष्टता के स्थान पर बिठाया। 6) दाऊद ने मपीबोशेत को उसके शाही परिवार में स्वीकार किया, और उसे महल की हर आशीष उपलब्ध कराया। हम भी एक परिवार में स्वीकृत किए गए हैं - परमेश्वर के परिवार में, और वह हमें उसके परिवार की सभी सुविधाएं देता है। 7) मपीबोशेत की शिथिलता दाऊद के अनुग्रह की निरंतर यादगार थी। उसी प्रकार हमारी नैतिक दुर्बलता हमें हमेशा यह भूलने से रोकती है कि जहाँ ज्यादा पाप होता है, वहीं अनुग्रह भी बहुतायात से होता है। 8) जब मपीबोशेत राजा की मेज पर भोजन के लिये बैठा तो उसे दाऊद के अपने पुत्रों के बराबर ही सम्मान मिला। हम विश्वासी भी अब राजा की मेज पर परमेश्वर के वचन का भोज करता है। हे यहोवा, तेरी करूणा स्वर्ग में है, तेरी सच्चाई आकाशमंडल तक पहुँची है। तेरे नियम अथाह सागर ठहरे हैं, हे यहोवा तू मनुष्य और पशु दोनों की रक्षा करता है। हे परमेश्वर तेरी करूणा कैसी अनमोल है! मनुष्य तेरे पंखों के तले शपथ लेते हैं। वे तेरे भवन के चिकने भोजन से तृप्त होंगे और तू अपनी सुख की नदी में से उन्हें पिलाएगा। क्योंकि जीवन का सोता तेरे ही पास है; तेरे प्रकाश के द्वारा हम प्रकाश पाएंगे। (भजन 36:5-9)
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