Class 7, Lesson 39: 1, 2 और 3 यूहन्ना का सर्वेक्षण

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यूहन्ना की पहली, दूसरी और तीसरी पत्री का सर्वेक्षण 1 यूहन्ना यूहन्ना ने यह पुस्तक करीब सन 90 में इफिसुस से लिखा जहाँ वह आसिया की कलीसियाओं में सेवा कर रहा था। पतरस, पौलुस और अन्य प्रेरित सताने वालों के हाथों मार डाले गए थे। केवल यूहन्ना ही अंतिम जीवित प्रेरित रह गया था। यूहन्ना की पहली पत्री उसके सुसमाचार पर ही आधारित है। यूहन्ना ने उसका सुसमाचार इसलिये लिखा कि वे विश्वास करें कि यीशु मसीहा है, परमेश्वर का पुत्र है और यह भी कि उस पर विश्वास करने के द्वारा उन्हें जीवन प्राप्त होगा (यूहन्ना 20:31)। उसने पहली पत्री इसलिये लिखा कि जो विश्वास करते हैं वे अनंतजीवन के विषय निश्चित रहें (1यूहन्ना 5:13)। जब हम उसके साथ उसकी संगति में चलते हैं, तब हम उसके चरित्र को प्रदर्शित करते हैं और हमारे पास किसी भी झूठी शिक्षा का तिरस्कार करने का हियाव होता है जो हमें परमेश्वर से दूर ले जा सकती हैं। परमेश्वर ज्योति है, परमेश्वर प्रेम है, और परमेश्वर जीवन है। यूहन्ना ऐसे परमेश्वर के साथ संगति का आनंद ले रहा है जो ज्योति है, प्रेम है और जीवन है, और वह हृदय से चाहता है कि उसके आत्मिक बच्चे भी उसी संगति का आनंद लें। परमेश्वर ज्योति है इसलिये उसके साथ संगति में जुड़ने के लिये हमें ज्योति में चलना होगा अंधकार में नहीं। "ज्योति में चलने" का हमारा प्रमाण परमेश्वर की आज्ञाओं को मानना और प्रेम के साथ हमारे हृदय से उस कड़वाहट या घृणा को निकालना है जो हम अपने किसी भाई के विषय रखते हैं। इस संगति में बाधक दो बड़ी रूकावटें संसार के प्रेम में पड़ना और झूठे शिक्षकों के झूठ में फँसना है। परमेश्वर प्रेम है चूँकि हम उसकी संतानें हैं हमें प्रेम में चलना चाहिये। वास्तव में यूहन्ना कहता है कि यदि हम प्रेम न करें तो हम परमेश्वर को नहीं जानते। इतना ही नहीं, हमारा प्रेम व्यवहारिक होना चाहिये। प्रेम मात्र शब्दों से बढ़कर है, यह कार्यों में होता है। प्रेम देना है, पाना नहीं। बायबल का प्रेम स्वभाव से शर्तहीन है। मसीह के प्रेम ने उन गुणों को पूरा किया और जब यह प्रेम हमारे जीवनों से दिख पड़ता है, तब हम आत्म-दोष से स्वतंत्र होंगे और परमेश्वर के सामने हमें हियाव होगा। परमेश्वर जीवन है जो उसकी संगति करते हैं उनमें उसके जीवन के गुण होना चाहिये। आत्मिक जीवन आत्मिक जनम के साथ शुरू होता है। आत्मिक जन्म मसीह यीशु में विश्वास के द्वारा होता है। यीशु मसीह में विश्वास हमें परमेश्वर के जीवन से भर देता है - अनंत जीवन से। इसलिये जो परमेश्वर की संगति में चलता है वह ज्योति, प्रेम और जीवन में चलेगा। यूहन्ना उसकी पत्री को विश्वास के शब्दों के साथ खत्म करता है, क्योंकि विश्वास संसार और उसके झूठ पर विजय पाने की कुँजी है। विश्वास का सत्य यह है "कि यीशु ही मसीह है" (5:1)। हमारे विश्वास का प्रमाण परमेश्वर के लिये हमारा प्रेम है, दूसरों के लिये प्रेम और परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन है (पद 2)। विश्वास का परिणाम संसार पर विजय है (पद 4-5)। और हमारे विश्वास की पुष्टि आत्मा की गवाही है (पद 6-10)। फिर हम परमेश्वर की अनंत प्रतिज्ञाओं के विषय पढ़ते हैं (पद 11-13) जो हमें हमारी प्रार्थनाओं में यकीन दिलाती है (पद 14-15), दूसरों को पाप से निकालने में हियाव देती हैं (पद 16-17),शैतान के विरुद्ध हियाव बंधाती है (पद 18), संसार की ताकतों के विरोध में हियाव बंधाती है (पद 19), और परमेश्वर के साथ हमारे संबंध का यकीन दिलाती है (पद 20)। यह पत्र एक चेतावनी के साथ खत्म होता है, "हे बालको, अपने आपको मूरतों से बचाए रखो" (पद 21)। यूहन्ना किस मूर्ति के विषय कह रहा है? मसीही जीवन में मूर्ति कुछ भी हो सकती है जो परमेश्वर को हमारे जीवन के केंद्र से हटाती है। आधुनिक मूर्तियाँ धन, भौतिक सामग्रियाँ, शक्ति/अधिकार, लोग या प्रसिद्धि हो सकते हैं। वे विचार या लोग भी हो सकते हैं जो परमेश्वर का स्थान ले लेते हैं। मूर्तिपूजा का विरुद्धार्थी शब्द मसीह में विश्वास है - उस पर पूरी निर्भरता जो हमें अनंतजीवन देता है और हमें परमेश्वर की व्यक्तिगत संगति में आमंत्रित करता है जो शुद्ध ज्योति और अचूक प्रेम है। 2 यूहन्ना यह छोटी पत्री 1 यूहन्ना के समान ही है जिसमें झूठे शिक्षकों का खतरे के विषय चेतावनी भी सम्मिलित है जो यह सिखाते हैं कि यीशु "शरीर में होकर नहीं आया" (पद 7)। यूहन्ना पाठकों को प्रोत्साहित करता है कि वे प्रेम में चलें परंतु उन्हें उनके प्रेम की अभिव्यक्ति को भी परखने की चेतावनी देता है। वह इसी पत्री को "चुनी हुई महिला और उसके बच्चों को" संबोधित करता है। एक विवाद है कि वह "महिला" और बच्चे वास्तविक लोग हैं। कलीसिया और उसके सदस्यों के रूपक हैं। नए नियम में अन्य स्थान पर कलीसिया को एक स्त्री के रूप में चित्रित किया गया है (इफिसियों 5:22-32; प्रकाशितवाक्य 19:7) और यूहन्ना अपने पाठकों को अक्सर "बालको" कहता है। लेकिन व्यक्तिगत संदर्भ जैसे "महिला" (2 यूहन्ना 5) उसका "घर" (पद 10) और उसकी बहन (पद 13) दर्शाते हैं कि यूहन्ना किसी वास्तविक महिला को लिख रहा था। इस पत्री को 4 भागों में बाँटा जा सकता है: परिचय (2 यूहन्ना 1-3) सच्चाई और प्रेम में चलने का प्रोत्साहन (पद 4-6), गलत के विरुद्ध खड़े रहने का निर्देश (पद 7-11); और समाप्ति (पद 12-13) परिचय (2 यूहन्ना 1-3) पौलुस अपने पाठकों के प्रति गहरी भावनाओं को व्यक्त करता है। उनके लिये उसका प्रेम "सत्य" की बुनियाद पर है। यह उचित और शुद्ध है। यह मसीह की वास्तविकता को प्रतिबिंबित करता है। वह "सत्य के खातिर" लिखता है जो परमेश्वर के समान ही अनंत है। फिर वह उसके पाठकों को परमेश्वर की आशीष देता है। अनुग्रह, दया और शांति की आशीषें पिता और पुत्र से होकर सत्य और प्रेम से प्रवाहित होती हैं। उसी प्रकार सत्य और प्रेम वे माध्यम होने चाहिये जिनके द्वारा हम दूसरों को आशीष देते हैं। सत्य और प्रेम में चलने का प्रोत्साहन (पद 4-6) आगे यूहन्ना प्रशंसा करता है कि कुछ लोग सत्य में चल रहे हैं। स्पष्ट है कि अन्य लोग सत्य में नही चल रहे हैं - और समस्या यहीं पाई जाती है। (पद 5-6) में वह उन्हें दूसरों से प्रेम करने की स्मरण दिलाता है - परंतु उस तरीके से जैसा मसीह ने कहा है, "उसकी आज्ञा के अनुसार।" प्रेम वचन की आज्ञाओं के विरोध में नहीं होता। सच्चा प्रेम अपने पैमाने (स्तर) के साथ कभी समझौता नहीं करता। गलत के विरुद्ध खड़े रहने का निर्देश (पद 7:11) यद्यपि झूठे शिक्षक मसीह के विषय आदर से कहते हैं, वे उसके विषय सत्य से इन्कार करते थे और इस प्रकारवे वास्तव में उसके और उसकी शिक्षा के विरोध में थे। वे मसीह की शिक्षा से बाहर गए, अपने विचारों को मिलाए और उसके शब्दों में तोड़-मरोड़ किया। परिणामस्वरूप परमेश्वर के साथ उनका कोई संबंध नहीं था और परमेश्वर का उनसे कोई संबंध नहीं था। इन झूठे शिक्षकों के प्रति प्रेम दिखाकर, वास्तव में हम शत्रु को स्वीकार करते हैं। कुछ लोग इस विचार का उपयोग उनके प्रेम रहित व्यवहार को उचित बताने के लिये करते हैं। लेकिन प्रेरित उन झूठे शिक्षकों के विषय कह रहा है जो हमारी कलीसियाओं में मसीह के विषय उनके झूठ के साथ घुस जाते हैं और लोगों को उनके विश्वास से डगमगा देते हैं। उन्हें स्वीकार करने का मतलब उनके गुनाह में शामिल होना है। हमारी और जिनसे हम प्रेम करते हैं उनकी भलाई के लिये उचित होगा कि सीमा रेखा खींच दे और सत्य पर स्थिर रहें। निष्कर्ष: (पद 12-13) उसके विशेष गर्मजोशी के साथ यूहन्ना अपने पत्री को आशा और आनंद के साथ खत्म करता है। "मुझे बहुत सी बातें लिखनी हैं, पर कागज और स्याही से लिखना नहीं चाहता, पर आशा है कि मैं तुम्हारे पास आऊंगा और आमने सामने बातचीत करूँगा, जिससे तुम्हारा आनंद पूरा हो।" आपेक्षिता और सहनशीलता के दिनों में यूहन्ना की पत्री हमें उत्साही बनने के लिये प्रेरित करती हैं। उस बात के लिये खड़े रहें जिसे परमेश्वर उचित कहता है! किसी से सत्य कहना कठिन बात होगी, परंतु आगे चलकर यही सबसे अच्छा कार्य होगा। 3 यूहन्ना कई तरीकों से यूहन्ना की तीसरी पत्री, दूसरी पत्री के समान है। वे एक बराबर के ही हैं एक ही समय के दौरान लिखी गईं, यात्री शिक्षकों के विषय कलीसिया की नीति के मुद्दे को सुलझाती है और सत्य और प्रेम के विषय पर आधारित है। यद्यपि वे एक समान हैं, फिर भी वे विपरीत हैं। जबकि 2 यूहन्ना मूलतः झूठे शिक्षकों का स्वागत/स्वीकार करने के विरोध में चेतावनी है; 3 यूहन्ना सच्चे संगी मसीहियों और सुसमाचार के राजदूतों का तिरस्कार करने के विरुद्ध चेतावनी है। 2 यूहन्ना में प्रेम को संतुलित करने के लिये सत्य की आवश्यकता थी; 3 यूहन्ना में सत्य को संतुलित करने के लिये प्रेम की जरूरत थी। यूहन्ना की तीसरी पत्री तीन व्यक्तियों पर केंद्रित है। पहला गयुस है जो पत्री को पाता है और यूहन्ना का घनिष्ट मित्र है। वह अनुग्रही, उदार और दयालु और बाहरी जरूरतमंद लोगों के लिये बाहें फैलाने को हमेशा इच्छुक रहता था। दूसरा व्यक्ति दियुत्रिकेस है, वह व्यक्ति जो समस्याएँ खड़ी करता है। यद्यपि वह अच्छे परिवार से था, वह घमंडी, पहुनाई न करनेवाला और अकेला रहनेवाला था। तीसरा व्यक्ति दिमेत्रियुस है, जो संभवतः संदेशवाहक था और उसी ने पत्र पहुँचाया था और गयुस और दियुत्रिकेस के समक्ष यूहन्ना को प्रस्तुत करने का महत्वपूर्ण कार्य किया था। गयुस की प्रशंसा (पद 1-8) यूहन्ना 4 बार गयुस को "प्रिय" कहता है - 2 बार पद 1 और 2 में और 2 बार पद 5 और 11 में। गयुस के साथ यूहन्ना की मित्रता "सत्य में" आधारित है, अर्थात सुसमाचार का सत्य जो सभी विश्वासियों को मसीह में एक करता है। वह प्रार्थना करता है कि गयुस शारीरिक रीति से भी वैसी ही उन्नति करे जैसे वह आत्मिकता में कर रहा है। शायद उसकी प्रार्थना उस रिपोर्ट के आधार पर है कि गयुस बीमार था। गयुस ऐसा व्यक्ति है जो प्रत्येक शब्द को तौलता है, हर कार्य को मसीह के मापदंड पर परखता है। वह सत्य में विश्वासयोग्य है - जो अच्छे शिष्य की प्रथम आवश्यकता है। वह प्रेम में भी विश्वासयोग्य है। इन गुणों के कारण वह यात्री शिक्षकों की वैधता को परखने में योग्य है। फिर प्रेम की बाहों के साथ वह "परमेश्वर की उचित रीति" से उनकी मदद करता है (पद 6)। वे मसीह के खातिर सेवक थे - राजाओं के राजा के गुप्तचर। यूहन्ना कहता है कि जब हम ऐसे लोगों की मदद करते हैं तो हम "सत्य के पक्ष में उनके सहकर्मी" हो जाते हैं (पद 8)। हम उसके सहभागी हो जाते हैं "जो सत्य लेागों के हृदयों और जीवनों में प्राप्त करता है।" दियुत्रिफेस का सामना (पद 9-11) गयुस के विपरीत, दियुत्रिफेस "परमेश्वर के कार्य की उन्नति के बजाय अपनी ही उन्नति में ज्यादा रूचि रखता है।" अब यूहन्ना दियुत्रिफेस के काले छवी को उजागर करता है। उसने यूहन्ना की शिक्षा और प्रेरिताई अधिकार का तिरस्कार किया था। इतना ही नही उसने प्रेरित पर झूठा आरोप लगाया था और उसके संदेश वाहकों के लिये द्वार बंद कर दिया था। यहाँ तक कि वह उसे भी कलीसिया के बहिष्कृत करता था जो यूहन्ना को स्वीकार करता था। एक अगुवा किस कारण से इतना इष्र्यालु बन सकता था? पद 9 में, यूहन्ना मुख्य समस्या पर उंगली रखता है: दियुत्रिफेस "प्रथम होना चाहता है।" इसलिये यूहन्ना गयुस से आग्रह करता है कि वह स्वयं की इस रोग से रक्षा करे और भलाई करता रहे। वह दिमेत्रियुस का स्वागत करने के द्वारा, एक भला आदमी जो अच्छे स्वागत करने के योग्य है, उसे एक मौका प्रदान करता है कि वही करे जो उचित है। दिमेत्रियुस की गवाही (पद 12) शायद दिमेत्रियुस उन "भाइयों" में से एक है जिसके साथ दियुत्रिफेस ने बुरा व्यवहार किया था। इसलिये वह उसे तीन प्रभावशाली संदर्भों के साथ भेजता है। पहला, उसने हर किसी से अच्छी गवाही प्राप्त किया है। दूसरा, उसका जीवन सत्य की राह पर है जो उसके बदले गवाही देता है और तीसरा यूहन्ना उसी अपनी व्यक्तिगत स्वीकृति प्रदान करता है। विदाई के शब्द (पद 13-14) अपने पत्री के अंतिम पदों में यूहन्ना गयुस से मिलने की तीव्र इच्छा व्यक्त करता है। जब तक वह आ नहीं जाता, वह कलीसिया में परमेश्वर की शांति स्थापित करने के लिये प्रार्थना करता है। "मुझे तुझको बहुत कुछ लिखना तो था परंतु स्याही और कलम से लिखना नहीं चाहता। पर मुझे आशा है कि तुझ से शीघ्र भेंट करूंगा, तब हम आमने-सामने बातचीत करेंगे। तुझे शांति मिलती रहे। यहाँ के मित्र तुझे नमस्कार कहते हैं। वहाँ के मित्रों से नाम ले लेकर नमस्कार कह देना।" हर कलीसिया में कम से कम एक दियुत्रिफेस रहता है जो सेवकाई को रोकने का प्रयास करेगा अनुचित रीति से अगुवों पर दोष लगाएगा, जरूरतमंद लोगों को नजरअंदाज करेगा और कलीसिया के सदस्यों में समस्याएँ पैदा करेगा। परमेश्वर की स्तुति हो कि उसने गयुस और दिमेत्रियुस जैसों को भी रखा है जो पहुनाई करते, उदारता, ईमानदारी और शुद्धता बनाए रखते हैं। आइये हम इन आदर्शों का अनुकरण करें क्योंकि वे उनकी पहचान रखते हैं जो सत्य में चलते हैं।

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