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1 और 2 पतरस का सर्वेक्षण क) 1 पतरस पहला पतरस "विदेशों के राजदूतों के लिये लिखी गई हस्तपुस्तिका कहलाती है। प्रेरित पतरस ने यह पत्री सन 63 के करीब लिखा था। 1:1 के अनुसार, उसने उन्हें लिखा था जो "परदेशियों के समान रह रहे थे, पुन्तुस, गलातिया, कप्पदुकिया, आसिया और बिथुनिया में तितर-बितर होकर रह रहे थे- वे प्रांत जो आज का टर्की हैं। लेकिन उससे अधिक पाठकों को "परदेशी" और "तितर-बितर" हुए लोग बताता है। क्योंकि इन शब्दों में हम पतरस के मुख्य उद्देश्यों को पाते हैं कि मसीही लोग इस संसार में "परदेशी" हैं और एक दूसरी बेहतर दुनिया के नागरिक हैं - एक संसार जो हमारे उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के द्वारा बड़ी कीमत देकर खोला गया। लेकिन इस वर्तमान संसार की ताकतें परमेश्वर के राज्य में विरोध में है; इसलिये वे हमला करते हैं और हम क्लेश उठाते हैं, ठीक वैसे ही जैसे मसीह ने क्लेश भोगा था। उसका क्लेश मसीही जीवन का तरीका बताता है। चूँकि यीशु "क्लेश भोगनेवाला दास" था, उसके अनुयायियों को भी क्लेश का अनुभव होता है (यूह.16:33)। लेकिन पतरस क्लेश को अपने आप में अंत नहीं करता। विपरीत वह कहता है कि यह सामर्थशाली है और उसका निश्चित अंत हैः महिमा। क्योंकि जैसे मसीह ने दुख उठाया और महिमान्वित हुआ, उसी प्रकार हम भी क्लेश से महिमा का अनुकरण करते हैं। यही हमारी आशा है, और क्लेश में आशा, पतरस के पूरे पत्र का मुख्य उद्देश्य है। पतरस अभिवादन के साथ उसका पत्र शुरू करता है (1:1-2)। फिर वह हमारी जीवित आशा और पवित्र जीवन का वर्णन करता है (1:3-2:12)। वह हमारे समर्पित, मसीह के समान जीवनशैली (2:13-3:7) को भी समझाता है और हमें मसीह के लिये क्लेश उठाने को सम्मति देता है (3:8-5:11)। अंत में वह प्रोत्साहन, अभिवादन और शांति के साथ पत्र बंद करता है (5:12-5:14)। अभिवादन: (1:1-2) आरंभ से ही, पतरस विश्वासी की नई पहचान बताता है, जो परमेश्वर पिता, परमेश्वर पुत्र और परमेश्वर पवित्र आत्मा में जड़ पकड़े हुए है। स्पष्ट है कि हमारे उद्धार की विशेषता यह नहीं है कि हमने परमेश्वर को चुना है, परंतु उसने हमें चुना है। वह हमें पहले से जानता था और उसने हमारा उद्धार करने को हमें चुना है। उसकी आत्मा ने पिता के चुने हुओं को उसकी ठहराई हुई सेवा के लिये अलग किया है, मसीह की आज्ञापालन में हमारी अगुवाई करता है, और उसके लहू के द्वारा हमें हमारे पापों से निरंतर शुद्ध करता है। हमारी जीवित आशा और पवित्र जीवन (1:3-2:12) इस खंड में पतरस परमेश्वर की उद्धार की आशीषों के लिये प्रशंसा करता है। पहले वह विश्वासी की भविष्य की विरासत का अनुमान लगाता है। इस संसार में हम क्रूस के मार्ग पर चलते हैं, जो क्लेश को दर्शाता है, परंतु चूँकि क्रूस, मसीह के जीवन का अंत नहीं था, इसलिये वह हमारा भी अंत नहीं है। हमारा प्रभु मृत्यु पर विजयी हुआ और नया जीवन के साथ पुनरूत्थित हुआ, और हमें भी उसी नए जीवन में जन्म लेने के योग्य बनाया - परमेश्वर की उपस्थिति में एक अनंतकालीन जीवन। यही हमारी अनंत जीवित आशा है। उसे स्वर्ग में हमारे लिये सुरक्षित रखा गया है और हमें परमेश्वर की सामर्थ द्वारा सुरक्षित रखा गया है। दूसरी बात, वह जीवित आशा द्वारा उत्पन्न वर्तमान के आनंद को देखता है जो कई परीक्षाओं के बावजूद उत्पन्न होता है। तीसरी बात, वह बीते दिनों के भविष्यवक्ताओं के विषय कहता है जिन्होंने मसीह में परमेश्वर के अनुग्रह के सुसमाचार के विषय पहले ही बता दिया था। पवित्र आत्मा काफी समय से यह सुसमाचार बता रहा था, भूतकाल और वर्तमान में भी। और यह अद्भुत बात है कि स्वर्गदूत भी "इसे देखने की लालसा करते हैं। चूँकि हम किसी बहुमूल्य वस्तु, अर्थात यीशु मसीह के लहू के द्वारा छुड़ाए गए हैं, हमें हमेशा उस वास्तविकता को हमारे सामने रखकर जीना चाहिये और उसका आदर करना चाहिये जिसने ऐसी कीमत चुकाया। हम उसके वचन के द्वारा परमेश्वर के परिवार में जन्में हैं। और प्रेमी और पवित्र पिता की संतान के नाते हमें एक दूसरे से ॉदय से प्रेम करना चाहिये और आत्मिक पोषण की खोज करना चाहिये जो हमें वैसे लोग बनने में सहायता करेगा, जिसके लिये परमेश्वर ने हमें बुलाया है। पतरस मसीह को उस बहुमूल्य जीवित पत्थर के रूप में देखता है जो लोगों के द्वारा तिरस्कृत किया गया परमेश्वर द्वारा चुना गया जिस पर उसके लोग जो जीवित पत्थर के समान हैं आत्मिक घर के समान खड़े किए गए हैं। परमेश्वर के घर के सदस्य होने के कारण हमें "पवित्र याजकीय सेवा" के लिये बुलाया गया है - हमें परमेश्वर की पवित्रता प्रदर्शित करना चाहिये और संसार के सामने परमेश्वर को प्रस्तुत करना चाहिये। हमारा समर्पण (2:13-3:7) "परमेश्वर के लिये अपने आपको समर्पित करो", पतरस इस नए खंड की शुरूवात करता है। सबसे पहले, वह हमें हमारे सरकारी अगुवों के प्रति समर्पित रहने को कहता है। हमें परमेश्वर से प्राप्त स्वतंत्रता का दुरूपयोग नहीं करना चाहिये और न अपने ही नियमों के अनुसार चलना चाहिये परंतु दूसरों को बचाने के द्वारा परमेश्वर की सेवा करना चाहिये। फिर पतरस दासों से आग्रह करता है कि वे उनके स्वामियों के अधीन रहें चाहे वे कुटिल और दुष्ट (बेरहम) भी क्यों न हों। यहाँ पतरस फिर से मसीही क्लेश के विषय को फिर से दोहराता है और मसीह को सर्वोच्च आदर्श बताता है। जिस प्रकार यीशु ने जो सर्वसामर्थी प्रभु है, स्वेच्छा से उसी के बनाए प्राणियों के अधिकार को समर्पित किया ताकि हमें बचा सके, उसी प्रकार हमें भी नम्रता से सहनशीलता को अपनाना चाहिये ताकि दूसरों को मसीह के पास लाया जा सके। फिर पतरस पत्नियों को उनके पतियों के अधिकार के अधीन रहने की सम्मति देता है। फिर पतियों को चाहिये कि वे उनकी पत्नियों के साथ अच्छा व्यवहार करें और उनके साथ दयालुता बरतें। इसके अलावा पतरस इस बात पर बल देता है कि स्त्री की सच्ची सुंदरता उसके बाहयरूप में नहीं होती, परंतु "हृदय के गुप्त व्यक्तित्व नम्रता और मन की दीनता की दृष्टि में बड़ी मूल्यवान है।" इस प्रकार का चरित्र निर्माण हमारी आशा की वास्तविकता की गवाही देता है। प्रभु के आनेवाले दिन के प्रकाश में, पौलुस अपने पाठकों को पवित्रता, स्थिरता और पवित्रता का जीवन जीने का प्रोत्साहन देता है। अपनी चेतावनियों को देकर और प्रोत्साहित करने के बाद, पतरस उन्नति के आग्रह के साथ इस पत्र को बंद करता है। "इसलिये हे प्रियो, तुम लोग पहले ही से इन बातों को जानकर चैकस रहो ताकि अधर्मियों के भ्रम में फँसकर अपनी स्थिरता को कहीं हाथ से खो न दो। पर हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के अनुग्रह और पहचान में बढ़ते जाओ। उसी की महिमा अब भी हो, और युगानुयुग होती रहे। आमीन।"
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