Audio | Prayer | Song | Instrumental |
---|---|---|---|
1 तीमुथियुस, तीतुस और 2 तीमुथियुस का सर्वेक्षण क) 1 तीमुथियुस यह पत्र स्पष्ट रूप से प्रेरित पौलुस को इसका लेखक बताता है। यह विश्वास किया जाता है कि पौलुस ने इसे मकिदुनिया से रोम में सन् 62-65 के बीच उसकी पहली और दूसरी बार बंदी बनाए जाने के बीच लिखा था। इस समय के दौरान वह कई स्थानों में गया। फिर भी हम उसके यात्रा के सही क्रम को नहीं जानते। हम इसे अच्छी तरह "पौलुस की चैथी मिश्नरी यात्रा कह सकते हैं।" वह अवश्य ही निम्नलिखित स्थानों में गया रहा होगा: 1) कुलुस्से और इफिसुस। (फिलेमोन 22) 2) मकिदुनिया (1 तीमुथियुस 1:3; फिलिप्पियों 1:25; 2:24) 3) इफिसुस। (1 तीमुथियुस 3:14) 4) स्पेन। (रोमियों 15:24) 5) क्रेते। (तीतुस 1:5) 6) कुरिन्थ। (2 तीमुथियुस 4:20) 7) मिलेतुस (2 तीमुथियुस 4:20) 8) निकुपुलिस में जाड़ा बिताया। (तीतुस 3:12) 9) त्रोआस (2 तीमुथियुस 4:13) तीमुथियुस एक यूनानी पिता और यहूदी माता का बेटा था (प्रेरितों के काम 161)। उसके पिता के मसीही होने का कोई उल्लेख नहीं किया गया है, परंतु उसकी माता यूनीके और उसकी नानी लोईस दोनों उनके सच्चे विश्वास के लिये जाने जाते थे (2 तीमुथियुस 1:5)। जब पौलुस उसकी पहली यात्रा में उस शहर में गया तब पौलुस लुस्त्रा में रहता था (प्रेरितों के काम 12:6; 16:1)। पौलुस ने तीमुथियुस को यीशु पर विश्वास करने में अगुवाई किया था। इस प्रकार वह उसका आत्मिक पिता बना (1 तीमुथियुस 1:2; 2 तीमु 1:2; फिलिप्पियों 2:22)। पौलुस ने उसे सहयात्री के समान साथ रखा (प्रेरितों के काम 16:3,4) और वह प्रेरित का सबसे अधिक विश्वासयोग्य संगी कर्मी बना (रोमियों 16:21, 1 थिस्स 3:2,6)। पौलुस ने उसकी पत्रियों में अभिवादन में तीमुथियुस के नाम को भी सम्मिलित किया। उसके अंतिम दिनों में चाहा कि उसका विश्वास का पुत्र उसके साथ रहे (2 तीमुथियुस 1:4, 4:9,21)। पहली बार रोमी बंदीगृह से स्वतंत्र किए जाने के बाद (प्रेरितों के काम 28), पौलुस ने तीमुथियुस के साथ प्रत्यक्ष रूप से एशिया की कुछ कलीसियाओं को भेंट दिया जिसमें इफिसुस का भी समावेश है। जब पौलुस ने इफिसुस छोड़ा, संभवतः मकिदुनिया जाने के लिये, उसने तीमुथियुस को कलीसिया की अगुवाई करने के लिये पीछे छोड़ दिया इस आशा में कि वह जल्द ही लौट जाएगा। लेकिन उसकी वापसी में देरी हो गई। इसलिये उसने तीमुथियुस को एक पत्र लिखा: वही पत्र 1 तीमुथियुस है। पौलुस के जीवन के अंति समय में उसके द्वारा लिखे गए तीन पत्र तीमुथियुस और तीतुस को संबोधित किए गए थे। केवल ये ही वे पत्र हैं जिन्हें पौलुस ने व्यक्ति विशेष को लिखा (फिलेमोन मूलतः उसके नाममात्र था, परंतु वह दूसरों को भी लिखा गया था) और उन्हें तीमुथियुस और तीतुस को उनकी कलीसियाओं को मजबूत बनाने की सेवकाई में प्रोत्साहित करने के लिये थीं, वे कलीसियाएँ जो इफिसुस और क्रेते में थीं। इसलिये इन पत्रियों को पास्तरीय पत्रियों के नाम से जाना गया। पास्तरीय पत्रियाँ अगुवाई के सिद्धांतों और धर्मी जीवन से परिपूर्ण हैं। सिद्धांत के विषय पौलुस की चेतावनी (अध्याय 1) अभिवादन के बाद पौलुस तीमुथियुस को झूठे सिद्धांतों की समस्या के विषय चेतावनी देता है। फिर प्रेरित मसीह के लिये उसके परिवर्तन को याद करता है और सेवकाई के लिये उसकी बुलाहट को भी याद किया। तीमुथियुस को भी ईश्वरीय बुलाहट मिली थी और पौलुस उसे सिद्धांतों या आचरण में बिना हेराफेरी किये पूरी करने की चेतावनी देता है। (1:18-20)। सार्वजनिक आराधना के विषय पौलुस की चेतावनी (अध्याय 2 और 3) इस खंड में पौलुस कलीसियाई आराधना और अगुवाई के मुद्दों पर लिखता है। वह कलीसिया में पुरुषों और स्त्रियों की विभिन्न भूमिकाओं के विषय कहता है। फिर वह प्राचीनों और बिशपों की कई योग्यताओं के विषय सूची जारी करता है। डीकनों के लिये वह 3:8-13 में योग्यताएँ लिखता है। झूठे शिक्षकों के विषय पौलुस की चेतावनी (अध्याय 4) पत्री के इस अंतिम आधे भाग में पौलुस तीमुथियुस के व्यक्तिगत जीवन पर ध्यान केंद्रित करता है, और उसे झूठी शिक्षा से सावधान रहने, धार्मिकता के लिये स्वयँ को अनुशासित करने और झुण्ड की जरूरतों पर नज़दीकी से ध्यान देने के लिये प्रोत्साहित करता है। इस अध्याय में पौलुस विवाह, भोजन, और व्यायाम के विषय सतर्कता से सलाह देता है। अंत में, वह तीमुथियुस को प्राप्त आत्मिक वरदानों के विषय लापरवाही न करने की सलाह देता है। कलीसियाई अनुशासन से विषय पौलुस की चेतावनी (अध्याय 5) जवान सेवक के लिये पास्तरीय सेवकाई की सबसे बड़ी कठिनाई होती है कलीसियाई अनुशासन में अगुवाई करना। पौलुस उसे सलाह देता है कि वह कलीसिया के सभी सदस्यों के साथ एक परिवार का सा व्यवहार करे। वह विधवाओं और बुजुर्गों के प्रति तीमुथियुस की जवाबदारी पर व्यवहारिक निर्देश देता है। सिद्धांत और व्यक्तिगत सच्चाई के विश पौलुस की चेतावनी (अध्याय 6) व्यक्तिगत सच्चाई के साथ सैद्धांतिक सच्चाई भी होना चाहिये। आत्मिक अगुवों को चाहिये कि वे जीवन की आवश्यकताओं में ही संतुष्ट रहें। इस खंड में पौलुस तीमुथियुस को संसारिक अभिलाओं से भागने और ईश्वर की बातों का पीछा करने को कहता है और साथ ही उन्हें भी आग्रह करता है जिनके पास धन है कि वे उनके धन को परमेश्वर की ओर से दान समझें और जरूरतमंदों की सहायता का स्त्रोत समझें। पौलुस के अंतिम शब्द फिर से सही सिद्धातों के महत्व पर है, "हे तीमुथियुस, इस धरोहर की रखवाली कर; और जिस ज्ञान को ज्ञान कहना ही भूल है, उसके अशुद्ध बकवास और विरोध की बातों से परे रह। कितने इस ज्ञान का अंगीकार करके विश्वास से भटक गए हैं। तुम पर अनुग्रह होता रहे।" (पद 20-21) तीतसु तीतुस एक यूनानी था (गलातियों 2:3) जिसे पौलुस ने मसीह के पास लाया था (तीतुस 1:4)। वह पौलुस का सबसे घनिष्ट और सबसे अधिक विश्वासयोग्य साथी था। उसने आखिरकार स्वयं को विश्वासयोग्य और योग्य सेवक सिद्ध कर दिया, इसलिये तीतुथियुस के समान महत्वपूर्ण सेवकाई की उसे भी जवाबदारी दी गई। सेवकाई समस्याओं और चुनौतियों से भरपूर थी। तीतुस को उसके आत्मिक पिता के मार्गदर्शन की आवश्यकता थी। क्रेते एक भूमध्यासागरीय टापू है और उसके प्रथम शताब्दी के रहवासी झूठ और अनैतिकता के कारण उपद्रवी थे। पिन्तेकुसत के दिन (प्रेरितों के काम 2:11) पतरस के उपदेश के समय क्रेते से भी कई यहूदी उपस्थित थे और उनमें से कुछ लोगों ने मसीह पर विश्वास किया होगा और उनके देश के लोगों को सुसमाचार सुनाया होगा। रोम को जाते समय पौलुस ने क्रेते में अल्प विराम किया था (प्रेरितों के काम 27:7-13)। उसने रोमी कैद से छूटने के बाद क्रेते के शहरों में सुसमाचार फैलाया और तीतुस को वहीं छोड़ दिया कि वह कलीसियाओं का गठन पूरा करे। क्रेतियों के मध्य अनैतिकता की समस्या के कारण तीतुस के लिये जरूरी था कि वह मसीही जीवन में धार्मिकता की आवश्यकता पर जोर दे। पौलुस ने यह पत्र सन 64 में लिखा था। तीतुस की पत्री पढ़ने में सरल है और इसे 3 अध्यायों में बांटा जा सकता है। पहले अध्याय में पौलुस तीतुस से प्राचीनों की नियुक्ति करने को कहता है और झूठे शिक्षकों का निडरता से सामना करने को कहता है। दूसरा अध्याय अच्छे कार्यों द्वारा मसीही जीवन की सच्चाई के जीने के महत्व पर बल देता है। तीसरा अध्याय अच्छे कार्य करने के द्वारा सच्चे मसीही जीवन जीने के महत्व पर बल देता है। प्राचीन नियुक्त करे (अध्याय 1) अभिवादन में पौलुस स्वयं को प्रेरित और मसीह का बंधुआदास, जीवन देनेवाले सुसमाचार का सेवक और तीतुस को सामान्य विश्वास में सच्ची सन्तान बताता है। फिर वह तीतुस को क्रेते में उसकी जवाबदारी की याद दिलाता है। पौलुस उसे प्राचीनों की नियुक्ति करने के द्वारा क्रेते में कलीसियाओं का गठन करने को कहता है और उन आत्मिक अगुवों की योग्यताओं के विषय निर्देश देता है (पढे 1:6-9)। यह झूठे शिक्षकों के द्वारा पैदा की गई गड़बड़ियों के कारण महत्वपूर्ण है। इन शिक्षकों को सुधारा जाना जरूरी है और संभव हो सके तो उन्हें सच्चे विश्वास में वापस लाना जरूरी है, ताकि वे यहूदी कथाओं और मनुष्यों के आज्ञाओं द्वारा भटकने न पाएँ।" (पद 14) सभी बातों को व्यवस्थित करें (अध्याय 2 और 3) अब पौलुस सही सिद्धांत पर अमल करने के विषय कहता है। वह कलीसिया में कई समूहों के प्रति तीतुस की भूमिका के विषय बताता है जिसमें बुजुर्गों, बूढ़ी स्त्रियों, जवान स्त्रियों, जवान पुरुषों और दासों का भी समावेश है। मसीह का ज्ञान इन सभी समूहों को परिवर्तन करना चाहिये ताकि उनकी गवाही "परमेश्वर के सिद्धांतों की प्रशंसा करे।" यीशु ने हमें बचाया और अपना बनाया। इसलिये हमें भी उसी के अनुसार जीना है। हमारे पास "धन्य आशा" की पवित्र प्रतिज्ञा है कि वह हमारे लिये आएगा। पौलुस तीतुस से आग्रह करता है कि वह अधिकारपूर्वक इन सत्यों की घोषणा करें। तीतुस को इस विषय निर्देश देकर कि लोगों के विभिन्न समूहों को कैसी शिक्षा दी जाए, अब पौलुस नागरिक अधिकारियों और सामान्य लोगों के प्रति कलीसिया की जवाबदारी के विषय कहता है। नागरिक के रूप में विश्वासियों का व्यवहार उनके नए जन्म और पवित्र आतमा के द्वारा नए किये जाने के कारण अविश्वासियों से भिन्न होना चाहिये। आगे वह दया प्रेम और परमेश्वर की करूणा पर बदल देता है जो हमें बचाते हैं, "हमारे धार्मिकता के काम नहीं।" लेकिन अच्छे कार्यों की आवश्यकता जो उद्धार के परिणाम है इस बात पर तीतुस के तीन अध्यायों में बल दिया गया है (1:16; 2:7; 14; 3:1;18,14)। पौलुस तीतुस को उनसे सख्ती से सामना करने को कहता है जो फूट और विवाद पैदा कर सकते हैं। पौलुस अपने अंतिम शब्दों में दूसरों की ओर से अभिवादन देता है और अच्छे कार्यों के महत्व की याद दिलाता है। पौलुस इस प्रगट इच्छा के साथ बंद करता है, "तुम सब पर अनुग्रह होता रहे।" यह बहुवचन इस बात को दर्शाता है कि ये निर्देश केवल तीतुस के लिये नहीं थे। वे सारी कलीसिया के लिये हैं। 2 तीमुथियुस क्या कोई बंदीगृह से उत्साहवर्धक पत्र की अपेक्षा कर सकता है? परंतु वहीं से पौलुस का तीमुथियुस को दूसरा पत्र लिखा जाता है। रोम का नेरो सम्राट ही मसीहियों के रोमी सताव की शुरूवात का जिम्मेदार था। आधा रोम आग के द्वारा सन 64 में नाश कर दिया गया था। स्थिति को और बुरी बनाने के लिये नेरो ने लोगों को यकीन दिला दिया था कि स्वयं मसीहियों ने ही बड़ी आग लगाई थी। अब मसीही लोग राज्य के अधिकारिक शत्रु थे, जिन्हे खुले आम यातना दी जाती और उनका वध किया जाता था। पौलुस के एशिया वापस लौटने तक, उसके शत्रु उनके आधिकारिक अधिकार का मसीहियों के विरुद्ध उपयोग कर रहे थे। संभवतः उसे त्रोआस में बंदी बनाया गया था और रोम लाया गया था। अपने जीवन को खतरे में देख विश्वासी लोग उसे बंदी बनाए जाने के बाद उसकी मदद नहीं कर पाए (1:15) और किसी ने भी अदालत में उसका बचाव नहीं किया (4:16)। करीब-करीब सभी के द्वारा त्याग देने के बाद प्रेरित पौलुस ने स्वयं को उसके पहले रोमी बंदी बनाए जाने में काफी भिन्न स्थिति में पाया (प्रेरितों के काम 28:16-31)। उस समय वह केवल नजरबंद था, लोग उससे स्वतंत्रता से मिल सकते थे और उसे छूट जाने की आशा थी। अब वह एक ठंडे रोमी कक्ष में था (4:13), उसे "बुरे काम करनेवाला" समझा गया (2:9), उसके शुरूवाती सफल बचाव के बावजूद उसे छूटने की आशा नहीं थी (4:6-8, 17-18)। इन परिस्थितियों में पौलुस ने यह पत्री सन 67 में लिखा, इस आशा से कि शीतकाल शुरू होने से पहले तीमुथियुस उससे मिलने आएगा (4:21)। इस पत्र के लिखे जाने के समय तीमुथियुस इफिसुस में था (1:18, 4:19) और रोम जाते समय वह त्रोआस और मकिदुनिया से होकर जानेवाला था। तिखिकुस ही इस पत्र का वाहक रहा होगा। "धरोहर की रक्षा कर! क्लेश उठा।" (अध्याय 1 और 2) "प्रिय पुत्र" के अभिवादन के बाद (1:2) पौलुस तीमुथियुस के उचित विश्वास के प्रति धन्यवाद व्यक्त करता है (1:5)। फिर वह तीमुथियुस को सुसमाचार की सामर्थ में स्थिर बने रहने, और विरोध की स्थिति में किसी भी प्रकार के डर पर विजय पाने के लिये प्रोत्साहित करता है। फिर पौलुस उसके आत्मिक पुत्र को प्रोत्साहित करता है कि उसने मसीह से जो पाया है वह दूसरों के जीवन में भी उत्पन्न करे। (2:2 में चार पीढ़ियाँ बताई गई हैं।) वह पौलुस के धीरज का अनुकरण करते हुए कठिन परिश्रम करने और स्वयं को एक शिक्षक के समान, सैनिक, किसान, कर्मी और दास के समान अनुशासित करने के लिये जिम्मेदार है (2:1-13)। दूसरों के साथ उसके व्यवहार में तीमुथियुस को झूठी बातों, झूठे झगड़ों, जवानी की अभिलाषाओं, में नहीं फँसना चाहिये जो उसकी गवाही को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसके विपरीत उसे धार्मिकता, विश्वास प्रेम और शांति का पीछा करने को कहा जाता है (2:22) "आगे बढ़कर सुसमाचार का प्रचार कर!" (अध्याय 3 और 4) पौलुस ऐसे समय की कल्पना करता है जब नास्तिकता और दुष्टता बढ़ जाएगी और पुरुष और स्त्री झूठी शिक्षाओं में भटक जाएँगे। हठीलापन और अधार्मिकता का परिणाम केवल धोखा होगा, परंतु तीमुथियुस को इन झूठे सिद्धांतों और नैतिक बुराईयों से निपटने में वचन के उपयोग में डरने की आवश्यकता नहीं है (3:10-17)। वचन प्रेरणा से लिखे गए हैं (परमेश्वर की सांस/प्रेरणा द्वारा) और उनके साथ तीमुथियुस सुसज्जित किया गया है कि वही सेवकाई करे जिसके लिये वह बुलाया गया है। पौलुस एक अच्छी "कुश्ती लड़ चुका है" (4:7)। वह अलग होने और परमेश्वर के साथ होने को तैयार है। और जवान तीमुथियुस को अनुग्रह के सुसमाचार के लिये लड़ाई जारी रखना होगा। अंतिम शब्द "मेरे पास आने का हर प्रयास कर।" पौलुस के अधिकांश संगी लोगों ने या तो उसे छोड़ दिया है, या वे कहीं और सेवकाई में लगे हुए हैं। अब पौलुस के साथ केवल लूका जो इमानदार वैद्य है, बचा है। इसलिये पौलुस तीमुथियुस को देखने को लालायित है जिसे वह उसके कुछ व्यक्तिगत सामान साथ लाने को कहता है - एक बागा जो उसके शरीर को गर्म रख सके चर्मपत्र जो उसके प्राण को गर्म रख सके। यहाँ तक कि वह तीमुथियुस से मरकुस को भी साथ लाने को कहता है जिसने उसे उसकी आरंभिक सेवकाई में छोड़ दिया था, परंतु वह परिपक्व हो गया है और "उपयोगी" बन गया है। लेकिन परमेश्वर ने पौलुस को नहीं छोड़ा है। वह उसके साथ खड़ा रहता है और उसे बल देता है। उसे इस बात का हमेशा यकीन रहता था कि प्रभु उसे सुरक्षित रीति से उसके स्वर्गीय राज्य में ले लेगा। अंत में पौलुस अपनी और अन्य विश्वासियों की ओर से इफिसुस के प्रिय जनों को शुभकामनाएँ देता है और तीमुथियुस से आग्रह करता है कि वह "शीतकाल के पहले" आ जाए (पद 21)।
Not Available