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इफिसियों और कुलुस्सियों का सर्वेक्षण प्रेरित पौलुस पत्र की शुरूवात मसीही के स्वर्गीय बैंक खाते के साथ शुरू करता है: लेपालकपन, स्वीकृति, छुटकारा, क्षमा, बुद्धि, उत्तराधिकार, पवित्र आत्मा की मुहर, जीवन, अनुग्रह, नागरिकता संक्षेप में प्रत्येक आत्मिक आशीष। वह हमें हमारे उद्देश्य और बुलाहट के विषय मसीह की देह के रूप में नया दर्शन देता है, और बताता है कि हम उस प्रकार कैसे जी सकते हैं। इफिसियों एशिया को रोमी प्रांत की कलीसियाओं को लिखा गया सामान्य पत्र है। पौलुस ने इस पत्री को करीब सन 61 में रोम में लिखा था, जब वह कैसर के सामने मुकदमें की सुनवाई के लिये नजरबंद किया गया था (पढ़े प्रेरितों के काम 28)। यद्यपि सिपाहियों द्वारा उसकी निगरानी की जाती थी, वह स्वतंत्रता के साथ अतिथियों का स्वागत करता, सुसमाचार का प्रचार करता था और कलीसियाओं को लिखता था। इफिसियों के अलावा, इसी दौरान उसने तीन अन्य पत्रियाँ भी लिखा:फिलिप्पियों, कुलुस्सियों और फिलेमोन। अब इफिसी कलीसिया का निर्माण किस तरह हुआ था? इसका उत्तर देने के लिये हमें पौलुस की दूसरी मिश्नरी यात्रा के समय में पीछे जाना होगा। उस यात्रा के दौरान उसकी मुलाकात तंबू बनानेवाले प्रिसकिल्ला और अक्विला से हुई जो कुरिन्थ से गुजर रहे थे। वह जल्द ही उनका मित्र बन गया और व्यवसाय में सहभागी बन गया और कुछ समय तक उनके साथ रहकर तंबू बनाने लगा और आराधनालय में प्रचार करने लगा। वे उसके साथ इफिसुस गए, जहाँ उसने उन्हें छोड़कर कैसरिया और अंताकिया के लिये यात्रा किया। इफिसुस एक प्रसिद्ध बंदरगाह का शहर था जो विश्व के सात अजूबों में एक का स्थान था, प्रसिद्ध डायना का मंदिर (जो अरतिमिस भी कहलाता है)। उसकी तीसरी मिश्नरी यात्रा में पौलुस इफिसुस को लौटा और फिर से शहर में रूक गया और पहले आराधनालय में और फिर तरन्नुस की पाठशाला में सिखाने लगा। वहाँ पौलुस ने विश्वासियों के साथ करीब तीन वर्ष बिताया जो किसी अन्य स्थानीय कलीसिया में बिताए हुए समय से ज्यादा था। पवित्र आत्मा ने पौलुस के इफिसियों के विषय घनिष्ट ज्ञान का उपयोग किया कि वह उस पत्री के संदेशों को लिखे। पत्री को दो खंडों में बाँटा जा सकता है: सैद्धांतिक और व्यवहारिक। अध्याय 1-3 दिखाते हैं कि अपने मृत्यु, पुनरूत्थान और महिमा के द्वारा मसीह ने हमारा परमेश्वर से मेल-मिलाप कराया, और यहूदी और अन्यजातियों को एक देह बनाया, जिसका यीशु सिर है। यह खंड सैद्धांतिक है और मसीह में हमारी स्थिति को बताता है। अध्याय 4-6 हमें निर्देश देते हैं कि हमें अपनी स्थिति के लिये किस तरह प्रकाश या ज्योति में जीना है - मसीह में हमारी नई पहचान के अनुसार। यह खंड व्यवहारिक है, जो परमेश्वर के कार्य को पूरा करने में हमारी भूमिका को समझाता है।पौलुस सात बातों के तीन समूह भी बनाता है: मसीह में सात आशीषें (अध्याय1) मसीह की देह में सात एकताएँ (अध्याय 4)और हथियार के सात भाग (अध्याय 6)। मसीह के साथ हमारी एकता: मसीह ने हमारे लिये क्या किया? (पौलुस 1:4-14) में उसके द्वारा दिए गए हमारे सात गुणा आशीषों की सूची बताता है: 1) हमें सृष्टि के पहले ही पवित्र और निर्दोष होने के लिये चुन लिया गया है। (पद 4) 2) हमें परमेश्वर की संतान होने के लिये लेपालक बनाया गया है (पद 5) 3) हमें छुडाया गया है (पद 7 क) 4) हमें हमारे पापों की क्षमा दी गई है (पद 7 ख) 5) हमें परमेश्वर की अनंत योजना बताई गई है (पद 9-10) 6) हमने मीरास पाई है (पद 11) 7) हम पर पवित्र आत्मा की मुहर दी गई है और मीरास का यकीन दिलाया गया है (पद 13 ख-14) मसीह ने हमारे भीतर क्या किया? मसीह में हम छुडाए गए हैं और नए उद्देश्य के लिये हमारा मेल-मिलाप किया गया है, ताकि हम माध्यम बने जिसके द्वारा परमेश्वर उसके अनुग्रह का बहुतायात को उजागर कर सके और उस कार्य को पूरा कर सके जिसके लिये उसने हमें पहले से ही ठहराया है। (पद 7,10)। मसीह ने हमारे मध्य क्या किया है? मसीह ने न केवल लोगों का परमेश्वर से पुनः मेल कराया है, उसने लोगों का भी आपस में मेलमिलाप कराया है। मसीह शांति का मध्यस्थ बना, यहूदियों को अन्यजातियों से जोड़ा ताकि एक नई देह बन सकें - अर्थात कलीसिया। यह नया समुदाय एक जीवित मंदिर है "आत्मा में परमेश्वर का निवास।" अध्याय 3 में पौलुस इस नए परिवार के निर्माण में उसकी अनोखी भूमिका को समझाता है। अन्यजातियों के लिये प्रेरित के रूप में, उसके जीवन का उद्देश्य उन्हें परमेश्वर के परिवार में लाना था। परमेश्वर पिता से अपनी प्रार्थना में वह मांगता है कि वे मसीह की आत्मा की सामर्थ को जाने, उसकी बसनेवाली उपस्थिति को और उसके उमंडते प्रेम की "चौड़ाई, लंबाई और ऊँचाई और गहराई" को जानें। परमेश्वर के भावह्निल करनेवाले अनुग्रह से प्रभावित होकर पौलुस ने अपनी प्रार्थना का अंत स्तुति से किया: "अब जो ऐसा सामर्थी है कि हमारी विनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है, उस सामर्थ के अनुसार जो हममें कार्य करता है, कलीसिया में और मसीह यीशु ने उसकी महिमा पीढ़ी से पीढ़ी तक युगानुयुग होती रहे। आमीन।" (3:20,21) एक दूसरे के साथ हमारी एकता: पौलुस का "आमीन" 4थे अध्याय में सीधे "इसलिये" से शुरूवात करता है क्योंकि वह सिद्धांत से लागूकरण की ओर बढ़ता है। वह हमारी नई एकता के विषय कहता है।वह इस नई प्राप्त आत्मिक एकता को बनाए रखने के लिये मेल के बंधन में प्रयास करने का प्रोत्साहन देता है। यहाँ सात बातों का दूसरा समूह प्रगट होता है जो इस एकता की संपूर्णता पर बल देता है - एक देह, एक आत्मा, एक आशा, एक प्रभु, एक विश्वास, एक बपतिस्मा, एक ही परमेश्वर और सबका पिता। यद्यपि हम एकजुट हैं, फिर भी हम एक समान नहीं हैं। एक ही परमेश्वर है जिसने हमें कई आत्मिक वरदान दिया है जो मिलकर मसीह की देह का निर्माण करते हैं। मसीह में हमारी नई चाल हमें इस खंड के, कुँजी विचार पर ले जाती है, "इसलिये प्रिय बालकों के समान परमेश्वर का अनुकरण करो, और प्रेम में चलो जैसे मसीह ने भी तुम सेप्रेम किया और हमारे लिये अपने आपको सुखदायक सुगंध के लिये परमेश्वर के आगे भेंट करके बलिदान कर दिया।" (5:1-2)। 6वें अध्याय में पौलुस हमारी नई शक्ति के विषय कहता है। क्या संसार उठकर परमेश्वर के नए आत्मिक समाज की प्रशंसा करेगा? नहीं। मतभेद आएँगे क्योंकि मात्र मानवीय सीमाओं के पीछे ताकतें परमेश्वर का विरोध करती हैं। पृथ्वी पर मसीह के देह के रूप में हमें अपने स्थान पर स्थिर रहना है - क्योंकि यह बचाए जाने के सत्य का आधार है। उसने अनुग्रह द्वारा हमें उसका "सारा हथियार" दे दिया है जो पौलुस द्वारा बताए गए सात हथियारों में दिख पड़ते हैं: (1) सत्य (2) धार्मिकता (3) परमेश्वर के साथ मेल, विश्वास (4) उद्धार (5) आत्मा परमेश्वर का वचन और (6) प्रार्थना (6:10-18)। पौलुस उसके पत्र को उसके पाठकों को शांति देते हुए खत्म करता है, कि वह उनके पास अपना व्यक्तिगत संदेश वाहक भेजेगा यह बताने के लिये की बंदीगृह में उसकी क्या दशा थी। फिर वह उन्हें आशीष देता है और जो मसीह के देह के अंग है उनसे अनुग्रह की प्रतिज्ञा करता है जो प्रभु यीशु से सच्चा प्रेम रखते है: "परमेश्वर पिता और प्रभु यीशु मसीह की ओर से भाइयों को शांति और विश्वास सहित प्रेम मिले। जो हमारे प्रभु यीशु में सच्चा प्रेम रखते हैं, उन सब पर अनुग्रह होता रहे।"(6:23-24)। आइये हम उसके प्रेम की ज्योति में चलें ख) कुलुस्सियोंः शायद कुलुस्सियों की पुस्तक बाइबल में मसीह पर सर्वाधिक आधारित पुस्तक है। इसमें पौलुस मसीह के व्यक्तित्व पर जोर देता है जो पहले से ही मौजूद है और उसके द्वारा दिए जानेवाली संपूर्णता को भी बताता है ताकि बढ़ती नास्तिकता से निपटा जा सके जो कुलुस्से की कलीसिया के लिये खतरा थी। कुलुस्से की कलीसिया: इफिसुस से 100 मील पूर्व में स्थित कुलुस्से किसी समय समृद्ध और प्रसिद्ध शहर था जो लूकस नदी की घाटी में बसा हुआ था। लेकिन बाद में कुलुस्से का व्यापार घट गया। पौलुस के समय तक यह शहर एक महत्वहीन बाजार बनकर रह गया था। यद्यपि यह छोटा स्थान था फिर भी यह एक बढ़ती कलीसिया का घर था जो इपफ्रास नामक व्यक्ति द्वारा शुरू की गई थी, शायद इफिसुस में पौलुस के 3 वर्ष रहने के दौरान। बाद में जब रोम में पौलुस नजरबंद किया गया था, उस समय इपफ्रास यह खबर लेकर उसके पास आया था कि कलीसिया के द्वारा एक खतरनाक शिक्षा फैल रही थी। यीशु मसीह जो मसीही विश्वास का केंद्र है, दाँव पर लगा था। पौलुस ने कुलुस्सियों को लिखा था कि वे इस नास्तिकता को खत्म करें इससे पहले कि वह नियंत्रण के बाहर हो जाए। यह नास्तिकता क्या थी? कुलुस्से के झूठे शिक्षकों ने सिखाया कि मसीह पर विश्वास करना पर्याप्त नहीं था। उन्होंने सिखाया कि सच्चा उद्धार आत्मिक प्रबोधन या ज्ञानवर्धन द्वारा, यहूदी धार्मिक शिक्षा द्वारा, त्यौहारों और संस्कारों तथा अन्य ज्योतिष विद्या और रहस्यमय बातों के द्वारा मिलता है। मसीहत के मिलेजुले रूप ने मसीह को स्थान तो दिया, परंतु उसका सर्वोच्च स्थान नहीं। यह पत्र स्वयँ को मसीह के विषय सत्य और उस सच्चाई के प्रति हमारी अनुक्रिया के बीच विभाजित करता है। प्रथम दो अध्यायों में पौलुस मसीह की सर्वोच्चता के विषय खुलकर लिखता है और उसके प्रायश्चित की भरपूरी के विषय भी। यहाँ बल यीशु के व्यक्तित्व और कार्य पर दिया गया है। अंतिम दो अध्यायों में पौलुस का लक्ष्य यीशु मसीह की शांति और उपस्थिति पर है। मसीह की सर्वोच्चता : पौलुस अभिवादन के बाद कुलुस्से के विश्वासियों की ओर से धन्यवाद देता है। पौलुस उसकी चिंता व्यक्त करता है कि कुलुस्सियों को मसीह के व्यक्तित्व और सामर्थ को घनिष्टता से जानना जरूरी है। वह सृष्टि और छुटकारा दोनों में ही सर्वोच्च है। अन्यजातियों को पौलुस उसकी अपनी अद्भुत सेवकाई की घोषणा का वर्णन करता है, "मसीह जो महिमा की आशा है तुम में रहता है" (1:27) और उन्हें यकीन दिलाता है कि यद्यपि वह उनसे व्यक्तिगत रीति से नहीं मिला है, फिर भी उसकी तीव्र इच्छा है कि वे केवल मसीह में ही जड़ पकड़ें जो कलीसिया में सर्वप्रधान है। यह झूठे शिक्षकों के कारण अति महत्वपूर्ण है जो उन्हें मौलिकता, व्यर्थ की दार्शनिकता, बाध्य संस्कारों, अनुचित रहस्यवाद और व्यर्थ के सन्यास या साधना द्वारा धोखा देकर फुसला सकते थे। प्रत्येक मामले में पौलुस गलती को मसीह की सच्चाई बताकर खंडन करता है। मसीह को समपर्ण : मसीह की मृत्यु, पुनरूत्थान और महिमा में विश्वासी का मेल वह बुनियाद है जिस पर उसका संसारिक जीवन आधारित होना चाहिये। मसीह के साथ उसकी मृत्यु के कारण, मसीही को चाहिये कि वह स्वयं को पाप के लिये मरा समझे। मसीह के साथ उसके पुनरूत्थान के कारण विश्वासी को चाहिये कि वह स्वयं को प्रभु के लिये उसकी धार्मिकता में जीवित समझे, और नए गुणों को अपनाए जो मसीही प्रेम के फल हैं। परमेश्वर की हर संतान में मसीह रहता है, जब परमेश्वर हमें देखता है तो वह मसीह के द्वारा देखता है और हम उसी में संपूर्ण हैं। (1:27; 2:9-11)। विश्वासी अब व्यवस्था के अधीन नहीं है परंतु वे परमेश्वर की स्वतंत्र संतानें हैं। वे उसके अनुग्रह और प्रेम द्वारा मसीह के साथ जोड़े हुए हैं। यह पत्री उसके ले जाने वालों (तुखिकुस और उनेसिमुस) के विषय कथन, अभिवादन और निर्देशों तथा विदाई के शब्दों के साथ खत्म होती है।
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