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दाऊद क्योंकि पूरे शास्त्र में दाऊद ही ऐसा व्यक्ति है जिसकी कब्र पर "परमेश्वर के मन के अनुसार पुरुष" लिखा गया है, कोई भी व्यक्ति उसे आत्मिक अलौकिक प्रकार का व्यक्ति का समझ सकता है। परंतु उसमें अलौकिक मानवीय प्राणी के गुण नहीं थे। दासों के चुनाव में परमेश्वर का तरीका मानवीय तर्क के विपरीत होता है। एक छोटा चरवाहा लड़का इस्राएल का अगला राजा अभिषिक्त किया जाएगा, संसार की समझ से परे था। लेकिन परमेश्वर के विचार से यह सिद्ध बात थी। जैसे-जैसे कमजोर चरित्र शाऊल के जीवन में बनते गए, तो उसके हटाए जाने का समय आ गया था। इस बार नया राजा परमेश्वर का चुनाव था - एक ऐसा चुनाव जो मानवीय तर्क पर नहीं परंतु हृदय के 3 मुख्य गुणों पर आधारित था अर्थात आत्मिकता, नम्रता और इमानदारी। जब शाऊल की असफलता से शमूएल को दुख पहुँचा तो परमेश्वर की हल्की फटकार के साथ उसे अपनी योजना की याद दिलाया। "मैंने शाऊल को इस्राएल पर राज्य करने के लिये तुच्छ जाना है, तू कब तक उसके विषय विलाप करता रहेगा? अपने सींग में तेल भरकर चल; मैं तुझ को बैतलहमवासी यिशै के पास भेजता हूँ, क्योंकि मैंने उसके पुत्रों में से एक को राजा होने के लिये चुना है।" विरोधी राजा के अभिषेक का विचार और शाऊल के नगर गिबा से होकर इस कार्य को करने के लिए गुजरने का विचार - शमूएल के लिये घबराहट का कारण बन गया। लेकिन परमेश्वर की आज्ञापालन करते हुए शमूएल ने वहीं किया जो उसने उसे करने को कहा था। और बैतलहम आया। शमूएल का आना बैतलहम के लोगों के लिये छोटी बात नहीं थी। "क्या तू मित्रभाव से आया है," नगर के बुजुर्गों ने थरथराते हुए पूछा। अपने भले और शांतिमय इरादों का यकीन दिलाते हुए शमूएल ने यिशै और उसके पुत्रों को यज्ञ में बुलाया जिसमें परमेश्वर अपने चुने हुए व्यक्ति को प्रगट करने वाला था। जब यिशै के पुत्रों को शमूएल के सामने लाया गया तो सर्वप्रथम उसकी नजर उसके ज्येष्ठ पुत्र एलियाब पर पड़ी। फिर अबीनादाब आया फिर तीसरा और क्रम चलता रहा। इस प्रकार यिशै ने उसके सात पुत्रों को शमूएल के सामने आया। परंतु शमूएल ने यिशै से कहा, "यहोवा ने इन्हें नहीं चुना" जब लड़कों की प्रस्तुति करीब खत्म हो चुकी थी, तो शमुएल असमजंस में पड़ गया। परमेश्वर ने इस परिवार से एक राजा चुनने की प्रतिज्ञा किया था, परंतु वह है कहाँ? अंत में शमूएल ने यिशै से पूछा, "क्या तेरे इतने ही बच्चे हैं? वह बोला "नहीं, छोटा तो रह गया, वह भेड़ बकरियों को चरा रहा है।" दाऊद के विषय यिशै के विचारों की परवाह न करते हुए शमूएल ने उसे देखने की जिद किया। इसलिये उसने उसे भी बुलवाया। दाऊद आया और जब शमूएल ने उसे देखा तो पाया कि उसकी लाली झलक रही थी, उसकी आँखें सुंदर थीं और उसका रूप सुडौल था। परमेश्वर ने शमूएल से कहा, "उठकर इसका अभिषेक कर, यही है।" शमूएल ने तेल का सींग लेकर उसका वहीं अभिषेक किया। उसके अभिषेक के बाद चुना हुआ राजा दाऊद, जैसे वह था, मैदानों में भेड़ चराने चला गया जब तक परमेश्वर ने उसे सिंहासन पर न बैठा दिया। परमेश्वर ने शाऊल को दोहरा दंड दिया। उसने न केवल उससे अपना पवित्र आत्मा वापस ले लिया परंतु उसे सताने के लिये एक दुष्टात्मा को भी अनुमति दिया। जैसे परमेश्वर का आत्मा उसे समृद्ध और बलवान बनाने आया था, वैसे ही दुष्ट आत्मा उसे नाश करने और उसको अनैतिक बनाने आया था। उसके दासों ने सुझाया कि यदि कोई उसके लिये संगीत बजाए तो उसे शांति मिलेगी। हताश शाऊल बिना किसी संकोच के मान गया। दासों के मन में सबसे पहला नाम दाऊद का आया। स्पष्ट है कि शाऊल के दास को दाऊद के उत्साह और चरित्र के विषय पहले से ही मालुम था इसलिये उसने उसकी सिफारिश किया। इस अज्ञात सेवक को कभी दाऊद से मिलने और उसके संगीत को सुनने का मौका मिला रहा होगा। और परमेश्वर ने प्रतीक्षा करने वाले राजा को वहाँ ले आया जहाँ उसे होना चाहिये था कि महल के तौर तरीके सीखे। दाऊद शाऊल के पास आया और उसकी सेवा टहल किया, और शाऊल ने उससे बहुत प्रेम किया और दाऊद उसका हथियार ढोनेवाला बन गया। किसी समय का एक विश्वासयोग्य चरवाहा, अब वह विश्वासयोग्य दास, नम्र व्यक्ति था जो अपने कौशल्य का उपयोग राजा की भलाई के लिये करने को तैयार था। दाऊदऔर गोलियात यह दृष्य परमेश्वर के लोगों के प्राचीन शत्रुओं पलिश्तियों से शुरू होता हैं जहाँ उन्होंने एक बार फिर इस्राएलियों को धमकी देना शुरू कर दिया था। इस बार वे यहूदिया की सीमा में एला पहाड़ी पर थे। पूरी लड़ाई को टालने के लिये पलिश्तियों ने योग्य योद्धाओं के एक के मुकाबले एक प्रतिस्पर्धा का चुनाव किया जिससे विजय का चुनाव हो सके। उन्होंने गोलियात को चुना जो आकार में विशाल, नौ फीट नौ इंच ऊँचा था। उसके झीलम का वजन 175 पौंड का था। वह सामने आया और इस्राएलियों को ललकार कर कहने लगा, अपने में से एक पुरुष चुनो कि वह मेरे पास उतर आए। यदि वह मुझसे लड़कर मुझे मार सके, तब तो हम तुम्हारे अधीन हो जाएँगे; परंतु यदि मैं उस पर प्रबल होकर मारूँ, तो तुमको हमारे अधीन होकर हमारी सेवा करनी पड़ेगी। जब शाऊल और सभी इस्राएलियों ने उसके शब्दों को सुना तो उनका मन अत्यंत कच्चा हो गया और वे भयभीत हो गए। जैसे हमने आत्मा से परिपूर्ण दाऊद को आत्मारहित शाऊल को बचाते देखा, उसी तरह हम विश्वास से परिपूर्ण दाऊद को विश्वासरहित शाऊल को बचाने के लिये आते हुए देखते हैं। यिशै ने अपने सबसे छोटे पुत्र दाऊद को, अपने बड़े पुत्रों को भोजन पहुँचाने और उनका हाल देखने के लिये भेजा जो एला घाटी में युद्ध क्षेत्र में थे। उनकी छावनी में पहुँचने के बाद उसने लाई हुई सामग्रियों को छावनी में ही छोड़ा और भाइयों को देखने को छोड़ा। वहाँ उसने पलिश्ती की पहली झलक देखा और उसे इस्राएलियों को ललकारते सुना। क्या किया जाना चाहिये इसके विषय सोचकर उसने एक सिपाही से पूछा, "जो उस पलिश्ती को मार के इस्राएलियों की नामधराई दूर करेगा उसके लिये क्या किया जाएगा? वह खतनारहित पलिश्ती क्या है कि जीवित परमेश्वर की सेना को ललकारे?" जब दाऊद के बड़े भाई एलीआब ने उसकी बातें सुना तो उसे डाँटा। अंत में यह बात राजा तक पहुँची और उसने तुरंत ही दाऊद को बुलवाया। यकीन से परिपूर्ण जो विश्वास का फल है दाऊद ने गोलियात से लड़ने की सोचा। लेकिन शाऊल को दाऊद की योग्यता पर संदेह था। वह भूल गया था कि परमेश्वर के बल से लड़ने का क्या अर्थ है। परंतु दाऊद ने अपनी पिछली विजयों को याद रखा और अपने विश्वास को बढ़ाने के लिये उनका उपयोग किया। उसने शाऊल से कहा, तेरा दास अपने पिता की भेड़ बकरियाँ चराता था और जब कोई सिंह या भालू झुण्ड में से मेम्ना उठा ले जाता, तब मैं उसका पीछा करके, उसे मारता, और मेम्ने को उसके मुँह से छुड़ा लेता, और जब वह मुझ पर हमला करता, तब मैं उसके केश को पकड़कर उसे मार डालता था। तेरे दास ने सिंह और भालू दोनों को मारा है। वह खतनारहित पलिश्ती उनके समान हो जाएगा, क्योंकि उसने जीवित परमेश्वर की सेना को ललकारा है। यहोवा जिसने मुझे सिंह और भालु दोनों के पंजे से बचाया है, वह मुझे उस पलिश्ती के हाथ से भी बचाएगा।" उसकी बातों से सहमत होकर शाऊल ने दाऊद से कहा, "जा यहोवा तेरे साथ रहे। फिर उसने अपने वस्त्र दाऊद को पहनाए। लेकिन दाऊद को असहज सा लग रहा था। इसके बदले वह अपनी गोफन, पाँच चिकने पत्थर और लकड़ी और निसंदेह परमेश्वर पर विश्वास रखकर घाटी में उतर गया। पहाड़ियों की दोनो चोटियाँ शोरगुल से सजीव हो गई। इस्राएल के सबसे शूरवीर से लड़ने को तैयार गोलियात ने जब एक चरवाहे लड़के को उसके विरुद्ध आते देखा तो अपमानित महसूस किया। यह बात हमें इस बात की याद दिलाती है कि युद्ध परमेश्वर का है। हमारी भूमिका केवल उसकी सामर्थ पर विश्वास करना है। यही बात दाऊद ने भी किया। जब गोलियात ने दाऊद को उसकी ओर बढ़ते देखा तो वह भी इस जवान की ओर बढ़ने लगा। निडर होकर दाऊद भी यथा दूरी तक छोड़ गया, गोफन में पत्थर रखा औ घुमाकर फेंका! एकदम सटीक निशाना। यह पत्थर गोलियात की आँखों के मध्य में लगा। वह उसके माथे में घुस गया और गोलियात मुँह के बल जमीन पर आ गिरा। तब दाऊद छोड़ा और पलिश्ती पर खड़ा हुआ और उसी की म्यान में तलवार निकालकर उसके सिर को काट डाला। जब पलिश्तियों ने देखा कि उनका नायक मारा गया है तो वे भाग खड़े हुए। इस घटना ने दाऊद के जीवन को पूरी तरह बदल दिया। तत्काल वह किशोर शून्य से राष्ट्रीय नायक बन गया। गोलियात की मृत्यु के बाद की घटनाओं से परमेश्वर ने दाऊद को सिंहासन के लिये अपने चुने हुए के समान बनाना शुरू कर दिया। दाऊद की विजय के तुरंत बाद शाऊल ने उसे सेवा में रख लिया औ वह जल्द ही सेना की एक टुकड़ी की कमान पा गया। और दाऊद ने शाऊल की आज्ञा का पूरा पूरा पालन किया और अपना कार्य बुद्धिमानी और विश्वासयोग्यता से करने लगा। शाऊल के प्रति दाऊद का समर्पण एक अच्छी सीख है कि हम जीवन की सीढ़ियों में अपने आपको न उठाएँ परंतु उन्नति का विषय परमेश्वर के हाथों में छोड़ दें। परमेश्वर ने दाऊद को शाऊल के पुत्र योनातान में एक घनिष्ट मित्र भी दिया। लोगों की नजरों में दाऊद एक सितारा था। वे उसकी अगुवाई में आनंदित थे। यहाँ तक कि स्त्रियों ने उनके नए नायक की प्रशंसा में एक गीत लिखा, "शाऊल ने तो हजारों को, परंतु दाऊद ने लाखों को मारा है।" लेकिन दाऊद की उन्नति से शाऊल क्रोधित हो गया। उसने अपने आपको असुरक्षित पाया और कहा, "उन्होंने दाऊद के लिये तो लाखों और मेरे लिये हजारों ही ठहराया है। इसलिये अब राज्य को छोड़ उसको अब क्या मिलना बाकी है?" और उसी दिन से शाऊल, दाऊद को संदेह की दृष्टि से देखने लगा। दाऊद ने ऐसा कुछ नहीं किया था जिससे उसे शाऊल के क्रोध का सामना करना पड़ता। उसने केवल गोलियात को मारा था जिसकी प्रशंसा स्वयँ शाऊल ने किया था। फिर भी उस राजा के हाथों जिसे उसने बचाया था, उसे र्दुव्यवहार, निराशा और दर्द झेलना पड़ रहा था। यह उचित नहीं दिख पड़ता। परंतु आत्मिक परिपक्वता के लिये कोई भी परीक्षा कठिन मार्ग को सहन करके ही प्राप्त होती है। असुरक्षित शाऊल ने दाऊद को मार डालने का अभियान शुरू किया जिस बात ने उसे (दाऊद) आखिरकार जीवन के हर क्षेत्र में वंचित कर दिया था, परंतु वह परमेश्वर में सुरक्षित था। सबसे पहले उसने अपना स्थान खो दिया। जब उसने बड़े नरसंहार द्वारा पलिश्तियों को हराया, तब शाऊल फिर से उससे ईर्ष्या करने लगा और जब दाऊद वीणा बजा रहा था तब शाऊल ने उसे भाला फेंककर दीवाल में ही मार डालने का प्रयास किया। परंतु दाऊद बच गया और भाग गया। यद्यपि उसकी पत्नी मीकल जो शाऊल की बेटी थी, उसे बच निकलने में सहायता दी, लेकिन उसने अपने शब्दों द्वारा उसके साथ विश्वासघात की। तीसरी बात उसे उसके प्रशिक्षक शमूएल की सुरक्षा से वंचित होना पड़ा। चैथी बात उसे उसके परम मित्र को खोना पड़ा। और अंत में उसने अपना आत्म-सम्मान खो दिया। वह बचने के लिये गाद को भाग गया जो गोलियात का नगर था। दुर्भाग्यवश, लोगों ने उसे तुरंत पहचान लिया कि यह वही है जिसने शूरवीर गोलियात को मारा था। आकीश के दासों ने उससे कहा, "क्या यह इस्त्राएल का राजा दाऊद नहीं है?" राजा दाऊद! उसके पास देश, रानी, दास और मित्र नहीं थे। जो कुछ उसके पास बचा था वह था आत्मसम्मान लेकिन वह भी तब खत्म हो गया जब उसने स्वयँ को बचाने के लिये मंदबुद्धि का ढोंग किया। राष्ट्रीय नायक से एक पागल व्यक्ति की तरह, दाऊद सफलता की चोटी से लानत की गहराई तक गिर चुका था। यहाँ तक कि उसके शत्रुओं ने भी उसे तुच्छ जाना। परंतु क्या परमेश्वर ने उसे छोड़ दिया था? कभी नहीं। फिर दाऊद गाद से निकलकर अद्दुलाम की गुफाओं में छिप गया (दाऊद ने वहाँ क्या किया? भजन 34 और उसकी प्रस्तावना को पढ़ें)। और हर कोई जो निराशा में, कर्ज में, और असंतुष्ट था उसके पास आया और वह उनका सरदार बन गया। उसके साथ करीब 400 लोग थे। अंधियारी गुफा में से दाऊद परमेश्वर की दया की महान समझ और उसके जीवन के विषय परमेश्वर की इच्छा को समझकर बाहर निकला। जब दाऊद एनगदी में छिपा था तो उसे शाऊल को मारने का सुनहरा मौका मिला था, परंतु उसने निश्चय किया था कि वह परमेश्वर के अभिषिक्त पर हाथ नहीं डालेगा। यहाँ तक कि उसने शब्दों में अपने लोगों को रोका और उन्हें शाऊल को मारने की आज्ञा नहीं दिया। क्योंकि उसने शाऊल से बदला लेने से इन्कार किया था, परमेश्वर ने उसे आशीष दिया। दाऊद चाहता था कि परमेश्वर की इच्छा पूरी हो। जब कुछ समय के लिये शाऊल का पीछा करना बंद हो गया तब दाऊद और उसके लोग सहमे हुए से एनगदी में उनके शरणस्थानों में वापस लौट गए। इसी बीच शमूएल की मृत्यु हो गई, इस्राएल ने एकजुट होकर उसके लिये विलाप किया और उसे उसके घर रामाह में दफना दिया। थका और दुखी दाऊद ने एनगदी छोड़ा और माओन के जंगलों में आ गया। वह और उसके लोगों ने स्थानीय खेतीहरों और उनके जानवरों की हमलावरों और जंगल जानवरों से रक्षा करने की नौकरी पा लिया। उनकी सेना स्वयंसेवी थी। परंतु यह प्रथा थी कि वे (जमीनदार) लोग उनके रक्षकों को फसल और पशुओं का कुछ हिस्सा उन्हें दे। नाबाल एक धनी किसान था, जिसके पास 3000 भेड़ें और 1000 बकरे थे। वह अपने लेनदेन के व्यवहार में कठोर था। उसके नाम का अर्थ "मूर्ख" होता है। लेकिन उसकी पत्नी अबीगैल समझदार, स्पष्ट सोचनेवाली और बुद्धिमान थी। उसके नाम का अर्थ है "जिसका पिता आनंद है।" उसके पति के ठीक विपरीत वह उदार, दयालु और प्रेमी थी। दिन और रात दाऊद और उसके लोग नाबाल के खेत की रक्षा करते थे। उन्होंने नाबाल के लिये अपनी जान को जोखिम में डाल रखा था और अब समय था कि उन्हें उनका लाभांश प्राप्त हो। नाबाल ने परमेश्वर के अभिषिक्त को झिड़क दिया, उसे भगोड़ा विद्रोही कहा और उसके लोगों को खाली हाथ लौटा दिया। जब दाऊद ने नाबाल की प्रतिक्रिया के विषय सुना तो वह बदले की भावना से आगबबूला हो गया। "अपनी अपनी तलवार बांध लो" उसने अपने लोगों से कहा। जब दाऊद नाबाल के खेत की ओर बढ़ रहा था तब घोड़ों की टापों की आवाज सुनकर एक दास ने अबीगैल को आनेवाले तूफान के विषय बताया। उसने तुरंत ही उदारता से भोज्य सामग्रियाँ, दाखरस ली और दाऊद को पहाड़ियों में ही रोक देने के लिये निकल पड़ी। उसकी मध्यस्थी तरकीबयुक्त थी और उसने दाऊद को आदर के साथ मेरे प्रभु कहकर संबोधित की। इस सब बातों में वह नाबाल के प्रति भी इमानदार रही यद्यपि वह उसके बेवकूफी के चरित्र के प्रति इमानदार थी। उसने स्पष्ट रूप से मेल करवैये की तीन विशेषताओं को प्रस्तुत की - तरकीब, विश्वास और इमानदारी। जैसे-जैसे दिन ढलता गया, दाऊद का गुस्सा ठंडा पड़ता गया। नाबाल और दाऊद के बीच की दुश्मनी खत्म हो गई। दाऊद ने खुद शांत रहकर और नाबाल के साथ शांति स्थापित करके, उसकी पत्नी से भी शांति स्थापित किया। अबीगैल घर लौट गई। जैसे ही वह घर के प्रथम द्वार पर पहुँची उसने नाबाल को शराब के नशे में पाई। उसने बुद्धिमानी से उसे उस विषय कुछ नहीं बताई जो दाऊद के साथ हुआ था, और उसे सोने दी। लेकिन सुबह उसने उसे सब कुछ बता दी और नाबाल के मन का हियाव जाता रहा। दस दिनों के बाद परमेश्वर ने नाबाल को ऐसा मारा कि वह मर गया। अचानक ही वह व्यक्ति जिसका हृदय पत्थर का सा था "पत्थर सा ही बन गया" और मर गया। जब दाऊद ने सुना कि नाबाल मर गया है तो उसने अबीगैल के पास विवाह का प्रस्ताव भेज दिया। और उससे विवाह कर लिया। हम उसे नम्रतापूर्वक इस आग्रह को स्वीकार करते हुए देखते हैं। 1 शमुएल 31 वें अध्याय में हम शाऊल की मृत्यु के विषय पढ़ते हैं। उसकी मृत्यु एक अंत थी - दुख और खेद से भरी हुई परंतु वह एक शुरूवात भी थी जो एक नए और आशापूर्ण दिन को प्रगट करता है जब इस्राएल ने अपना बुद्धिमान चरवाहा राजा पाया था। अभी तक हमने दाऊद के जीवन की घटनाओं को देखा है - एक चरवाहा लड़के की उसकी नम्र शुरूवात से राष्ट्रीय नायक की महिमा के दिन, उसकी सफलता के शिखर से शाऊल की सेना का एक कमांडर के रूप में और फिर एक भगोड़े के रूप में जो जंगलों में छिपता रहा। अब शाऊल की मृत्यु के साथ दाऊद की कहानी नए मोड़ पर आती है जिसका काफी समय से इंतजार था, अंततः एक बागी अब राजा बनने पर है। जब दाऊद ने शाऊल की मृत्यु के विषय सुना तो उसने ताली बजाकर अपनी अगली चाल की योजना नहीं बनाया। उचित दुख के साथ उसने शाऊल और अपने प्रिय मित्र योनातान की मृत्यु का शोक मनाया। फिर धीरज और संवेदनशील आत्मा के साथ मार्गदर्शन के लिये वह परमेश्वर की ओर मुड़ा. "क्या मैं यहूदा प्रदेश के किसी नगर में जाऊँ?" परमेश्वर ने उसे हेब्रोन जाने को कहा जहाँ यहूदा के लोगों ने उसे अपना राजा अभिषिक्त किया। परमेश्वर ने दाऊद को "मेरे मन के अनुसार मिल गया है, वही मेरी इच्छा पूरी करेगा" ऐसा कहा। हम यह भी देखते हैं कि उसका हृदय परमेश्वर के लिये लालायित था। उसका प्राण परमेश्वर से संतुष्ट था और उसका प्राण यहोवा से लगा हुआ था। दाऊद को अक्सर पलिश्तियों के विरुद्ध लड़ते हुए लड़ाई के मैदान में देखा जाता था। परंतु सभी शत्रुओं को हराने के बाद हम उसे शांति का आनंद उठाते हुए भी देखते हैं। उसकी आत्मिकता के प्रतीक में हम उसके हृदय को वाचा के संदूक की ओर फिरते और परमेश्वर के मंदिर को बनाते हुए भी देखते हैं। परंतु परमेश्वर की इच्छा नहीं थी कि दाऊद उसके लिये मंदिर बनाए। लेकिन उसने बड़ी करूणा के अनुसार उसे परमेश्वर के घर बनाने की तैयारी में आवश्यक कार्य करने की अनुमति देते हुए देखते हैं। उसने उन सिद्धांतों को समझ लिया जिन पर परमेश्वर अपने घर को बनाने के लिये कार्य करता है। यह बात हमें सिखाती है कि हमें "परमेश्वर के घराने में जो जीवते परमेश्वर की कलीसिया है और जो सत्य का खंबा है और नींव है, कैसा बर्ताव करना चाहिये।" (1 तीमु 3:15)
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