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कैसरिया में पौलुस का बंदी बनाया जाना शुरू में पौलुस का यरूशलेम आना सराहा गया। अगले दिन याकूब और अन्य प्राचीनों के साथ सभा आयोजित की गई। पौलुस ने विस्तारपूर्वक बताया कि उसकी सेवकाई के द्वारा परमेश्वर ने अन्यजातियों के मध्य क्या किया था। जब यरूशलेम की कलीसिया के अगुवों ने इसके विषय सुना तो उन्होंने प्रभु की स्तुति किया। जब पौलुस की रिपोर्ट पर आनंद मनाया जा रहा था, विश्वासी यहूदियों में जो व्यवस्था के प्रति जोशीले थे, उन्हें पौलुस के प्रभाव के विषय संदेह था। पौलुस के विषय एक झूठी रिपोर्ट प्रचलित थी। यह सच है कि पौलुस ने अन्यजातियों को सिखाया था कि यदि वे उनके पुत्रों का खतना न भी करें तो यह बात महत्वपूर्ण नहीं थीं और उसने उन्हें यहूदी प्रथाएँ नहीं सिखाया। लेकिन उसने यहूदियों को नहीं सिखाया कि वे खतना न करें या कि वे यहूदी प्रथाओं की उपेक्षा करें। याकूब और प्राचीनों ने पौलुस को सलाह दिया कि वह चार पुरुषों के शुद्धिकरण विधि में सम्मिलित होवे जिन्होंने शपथ खाई थीं और उनके लिये खर्चा दे। यह यहूदी विश्वासियों को शांत करने के लिये था।1 जब करीब सात दिन बीत चुके तब कुछ अविश्वासी यहूदियों ने जो आसिया के थे उसे मंदिर में देख लिया और एक भीड़ को उसके विरुद्ध भड़काने लगे। सारा शहर दुविधा में था। भीड़ ने पौलुस को पकड़कर मंदिर के आहाते से बाहर निकाला। और जब वे उसे मार डालने की तैयारी कर रहे थे, तो रोमी सेना के प्रधान तक यह बात पहुँची कि सारा यरूशलेम दुविधा में था। वह जल्दी जल्दी कुछ सिपाहियों को लेकर आया और पौलुस को उग्र भीड़ से बचाया, उसे दो सांकलों से बांधा और उससे पूछा कि वह कौन था, और उसने क्या किया था। भीड़ के कुछ लोग कह रहे थे और अन्य लोग कुछ और कह रहे थे और जब सेना अधिकारी असली कारण को नहीं समझ सका तो उसने उसे गढ़ में ले जाने को कहा। भीड़ के कारण सिपाहियों द्वारा पौलुस को उपर ले जाया गया। जब पौलुस को गढ़ पर पहुँचाया ही जा रहा था, उसने सूबेदार से कहा, "क्या मैं तुझ से कुछ कह सकता हूँ?" पौलुस को यूनानी बोलते हुए सुनकर सूबेदार चैंक गया। पौलुस ने उसे बताया कि वह तरसुस जो सिलिकिया में है, वहाँ का एक यहूदी है। और वह ऐसे शहर का रहवासी या नागरिक है जो संस्कृति, शिक्षा, और व्यवसाय के लिये प्रसिद्ध है। प्रेरित ने लोगों से बात करने की अनुमति मांगा। और जब उसे अनुमति दी गई, तो पौलुस ने सीढ़ियों पर खड़े होकर, "हाथ हिलाकर लोगों को शांत किया और जब वहाँ शांति स्थापित हो गई तो उसने उनसे इब्री भाषा में बोलना शुरू किया। सबसे पहले उसने उसकी परंपरा, अति आदरणीय गमलिएल के द्वारा उसके प्रशिक्षण, व्यवस्था के पालन के प्रति उसके अनुग्रह और मसीहत को नाश करने के प्रति उसके जुनून के विषय कहा। फिर उसने दमिश्क के मार्ग के अनुभव के विषय कहा। उस वृत्तांत के दौरान उसने बताया कि प्रभु ने उससे क्या करने को कहा था। "और उसने मुझसे कहा, "पौलुस ने आगे कहा" जा क्योंकि मैं तुझे दूर अन्याजातियों के बीच भेजता हूँ" इस समय तक भीड़ ने उसे सुना और फिर उन्होंने चिल्लाकर कहा, "ऐसे व्यक्ति का अंत करो।" यह देखकर पलटन के सरदार ने यह कहकर उसे गढ़ में लाने की आज्ञा दिया कि उसे कोड़े मारकर यह जाना जाएगा कि लोग किस कारण इस तरह उसके विरोध में चिल्ला रहे हैं। जब वे उसके पास ही खड़ा था, कहा, "क्या यह उचित है कि तुम एक रोमी मनुष्य और वह भी बिना दोषी ठहराए हुए, कोडे़ मारो? जब सूबेदार ने यह सुना तो वह पलटन के सरकार के पास गया और इस विषय कह दिया। सरदार ने आकर उससे पूछा, "मुझे बता क्या तू रोमी है?" पौलुस ने कहा, "हाँ"। सरदार ने कहा, "मैंने रोमी नागरिक होने का पद बहुत रुपये देकर पाया है।" पौलुस ने कहा, परंतु मैं जन्म से रोमी हूँ। यह सुनते ही उन लोगों ने जो उसे जांचने पर थे उसे खोल दिया, और यह जानने के बाद कि वह एक रोमी था, सरदार भी डर गया, क्योंकि उसी ने उसे बेड़ियों से बांधा था। अगले दिन यह निश्चित रूप से जानने के लिये कि यहूदी उस पर क्यों दोष लगा रहे हैं, उसने उसे छोड़ दिया और प्रधान याजकों और सारी महासभा को इकट्ठा होने की आज्ञा दी, और पौलुस को नीचे ले जाकर उनके सामने खड़ा कर दिया। महासभा के सामने खड़े होकर पौलुस ने कहा कि उसने सारा जीवन सच्चे विवेक से बिताया है। महायाजक हनन्याह ने इसे अपमानजनक समझा और उसने उसके पास खड़े थे उन्हें उसके मुँह पर थप्पड़ मारने को कहा। पौलुस ने उससे कहा, "हे चुना फिरी हुई भीत, परमेश्वर तुझे मारेगा। तू व्यवस्था के अनुसार मेरा न्याय करने को बैठा है, और फिर क्या व्यवस्था के विरुद्ध मुझे मारने की आज्ञा देता है?" जो लोग पौलुस के पास खड़े थे, उससे कहा, "क्या तू परमेश्वर के महायाजक को बुरा भला कहता है?" और पौलुस ने कहा, "हे भाइयो, मैं नही जानता था कि यह महायाजक है, क्योंकि लिखा है अपने लोगों के प्रधान को बुरा न कह।" पौलुस हनन्याह को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता था। महासभा से उसका काफी समय से संबंध नहीं था और उस समय महायाजक ने अपनी आधिकारिक पोषाख नहीं पहना होगा। जब स्थिति बिगड़ती गई तो पौलुस ने यह जानकर कि एक भाग सदूकियों और दूसरा भाग फरिसियों का है वह सभा में बोल पड़ा, "हे भाइयो, मैं फरीसी और फरीसियों के वंश का हूँ मरे हुओं की आशा और पुनरूत्थान के विषय में मेरा मुकदमा हो रहा है।" इस कथन ने दो समूहों में फूट डाल दिया और सदूकी चिल्लाने लगे कि न पुनरूत्थान है, न स्वर्गदूत, और न आत्मा है, और फरीसी बल देकर कह रहे थे कि यह सब है। वहाँ बड़ा शोरगुल होने लगा। और फरीसियों के कुछ शास्त्री उठे और यह तर्क देने लगे, हम इस मनुष्य में कोई बुराई नहीं पाते। जब भारी मतभेद हो रहा था तब सरदार डर गया कि कहीं वे पौलुस के टुकड़े-टुकड़े न कर डाले, पलटन को आज्ञा दी कि उतरकर उसे उनके बीच में से जबरदस्ती निकालें और गढ़ में ले जाएँ। उस रात जब पौलुस बंदीगृह में अकेला पड़ा था, प्रभु उसके पास खड़ा हुआ और कहा, हे पौलुस ढाढ़स बांध, क्योंकि जैसी तूने यरूशलेम में मेरी गवाही दी, वैसी ही तुझे रोम में भी गवाही देनी होगी। अगली सुबह, 40 यहूदियों ने पौलुस की हत्या करने का षड़यंत्र किया। वास्तव में उन्होंने शपथ खाई कि जब तक वे पौलुस का मार न डालेंगे, वे कुछ नहीं खाएंगे या पीएंगे। जब षड़यंत्रकारी गुप्त योजना बना रहे थे तब पौलुस की बहन के पुत्र ने इस षड़यंत्र को सुन लिया और गढ़ जाकर पौलुस को इसकी सूचना दिया। पौलुस ने एक सूबेदार को बुलाकर कहा, "इस जवान को पलटन के सरदार के पास ले जा यह उसे कुछ बताना चाहता है।" वह सूबेदार उसे सरदार के पास ले गया। पौलुस के भांजे ने न केवल षडयंत्र का पूरा ब्यौरा दिया परंतु उससे आग्रह भी किया कि वह यहूदियों की मांग के आगे न झुके। जब सरदार ने पूरी बात सुन लिया तो उसने निर्देश देकर उस जवान को लौटा दिया कि वह उससे हुए मुलाकात के विषय किसी से कुछ न कहे। उसने तुरंत ही दो सूबेदारों को बुलाया और सेना के निरीक्ष में प्रेरित को कैसरिया भेज दिया। सुरक्षा प्रबंध 200 सैनिकों, 70 घुड़सवारों और 200 भालाधारियों का था। यात्रा रात के 9 बजे शुरू होनेवाली थी। कैसरिया के हाकिम फेलिक्स के नाम पत्र के साथ पौलुस को अन्य जांच के लिये भेजा गया। काफिला यरूशलेम के पहाड़ी इलाके से होकर रात भर यात्रा करके अंन्तिपत्रिस पहुँचा। वहाँ से आधे सैनिक यरूशलेम को लौट गए,और बाकी आधे सैनिकों ने पौलुस को कैसरिया के मार्ग पर ले चले। जब वे कैसरिया पहुँचे तो उन्होने फेलिक्स को पत्र दिया और पौलुस को उसके सामने प्रस्तुत किया। पत्र पढ़ने के बाद फेलिक्स ने पौलुस से पूछा कि वह कहाँ का रहनेवाला है। "किलिकिया" पौलुस ने कहा। "जब तेरे मुद्दई भी आएंगे, तो मैं तेरा मुकद्दमा करूंगा।" हाकिम ने उसे हेरोदेस के किले में पहरे में रखने की आज्ञा दिया। पौलुस द्वारा कैसरिया के लिये यरूशलेम छोड़ने के पाँच दिन बाद महायाजक भी हनन्याह महासभा के कुछ सदस्यों के साथ वहाँ पहुँचा। उन्होंने तिरतुल्लुस नामक एक रोमी वकील को नियुक्त किया कि वह फेलिक्स के सामने खड़े रहकर पौलुस के विरुद्ध आरोप लगाए। जब फेलिक्स ने मामले को सुना तो वह दुविधा में पड़ गया। उसके सामने खड़ा कैदी स्पष्टतः रोमी कानून के किसी भी उल्लंघन से निर्दोष था। फिर भी यदि वह पौलुस को छोड़ देता तो यहूदियों का क्रोध उस पर भड़क उठा होता। इसलिये उसने कहा कि वह लूसियात सरदार के कैसरिया आने तक रूकना चाहता है। वास्तव में यह कारवाई में विलंब करने का तरीका था। फेलिक्स ने कहा कि यद्यपि पौलुस को बंदी रखा जाए, परंतु उसे उचित स्वतंत्रता दी जाए और उसे उसके मित्रों से भी मिलने दिया जाए। बाद में फेलिक्स और उसकी पत्नी द्रुसिल्ला ने प्रेरित के साथ निजी मुलाकात का प्रबंध किया ताकि मसीही विश्वास के विषय ज्यादा जान सके। लेकिन जब पौलुस ने धार्मिकता, आत्मसंयम और आनेवाले न्याय के विषय में कहा तो फेलिक्स डर गया। क्योंकि वह डर गया था, उसने उद्धारकर्ता पर विश्वास नहीं किया। उसने पौलुस से कहा, "अभी तो जा; अवसर पाकर मैं तुझे फिर बुलाऊँगा।" दुर्भाग्य से उचित समय कभी नहीं आया। फिर भी यह अंतिम मुलाकात नहीं थी। वास्तव में, फेलिक्स ने आशा किया था कि पौलुस के कुछ मित्र उसे रिश्वत के रूप में धन देंगे ताकि वह उसे छोड़ दे। दो वर्षों के बाद फेस्तुस, फेलिक्स के स्थान पर आया। यहूदियों की सहायता करने के इरादे से फेलिक्स ने पौलुस को कैसरिया में बंदी बना कर रख दिया। तीन दिनों के बाद फेस्तुस कैसरिया से यरूशलेम गया। यद्यपि पौलुस को कैसरिया में बंदी बनाकर रखे दो वर्ष भी नहीं हुए थे, फिर भी यहूदी उसे भूले नहीं थे। महायाजक और यहूदी अगुवे हाकिम से मिले और पौलुस के विरुद्ध आरोप प्रस्तुत करके उसकी जाँच करने हेतु उसे महासभा के सामने यरूशलेम लाने की मांग करने लगे। परंतु उनकी वास्तविक योजना उसे मार्ग में ही रोककर उसे मार डालने की थी। जाहिर है कि फेस्तुस को उनका यह आग्रह अनुचित लगा इसलिये उसने कैसरिया में ही मुकद्दमें को पुनः शुरूवात करने की प्रतिज्ञा किया। जब पौलुस ने उस पर लगाए गए आरोपों का इन्कार कर दिया तो फेस्तुस ने उससे पूछा कि क्या वह अन्य जाँच के लिये यरूशलेम जाना चाहता है? उसे ऐसा लगा कि इस बात से यहूदी संतुष्ट हो जाएँगे। लेकिन पौलुस का जवाब था, "मैं कैसर के न्याय आसान के सामने खड़ा हूँ, मेरे मुकदमें का यही फैसला होना चाहिये।" रोमी नागरिक होने के नाते, पौलुस को अधिकार था कि वह कैसर द्वारा ही न्याय की मांग करे। इस बात ने फेस्तुस को उसकी योजना पर पुनः विचार करने पर बाध्य किया। उसने उसके मंत्रियों की सभा में बातें करके उत्तर दिया, "तूने कैसर की दोहाई दी है, तू कैसर के ही पास जाएगा।" अब जरूरत थी कि फेस्तुस सम्राट को मामले की रिपोर्ट के साथ आरोपी पौलुस को भी भेजे। चूंकि वह यहूदी रीति-रिवाजों से सुपरिचित नहीं था, वह समझ नहीं पाया कि क्या करे। उसी समय राजा हेरोदेस अग्रिप्पा-2 और उसकी बहन बिरनीके फेस्तुस की नई नियुक्ति के अवसर पर बधाई देने कैसरिया आए थे। अग्रिप्पा, हेरोदेस अग्रिप्पा-1 का पुत्र था जिसने याकूब की हत्या किया था और पतरस को बंदीगृह में डाला था। फेस्तुस ने अग्रिप्पा को पौलुस उसके मुकद्दमें और कैसर से उसके आग्रह के विषय बताया। अगले दिन एक औपचारिक सुनवाई का इंतजाम किया गया। अग्रिप्पा और बिरनीके बड़े ठाठ-बाट से आए। उनके साथ सरदार और शहर के प्रसिद्ध लोग भी थे। फिर पौलुस को लाया गया। अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, "तुम्हें अपने विषय में बोलने की आज्ञा है।" तब पौलुस हाथ बढ़ाकर उत्तर देने लगा। उसकी बात पूरी करने के पहले ही अग्रिप्पा ने जोर से कहा, "हे पौलुस, तू पागल है। बहुत विद्या ने तुझे पागल कर दिया है।" पौलुस ने कहा, "हे महामहिम फेस्तुस, मैं पागल नहीं, परंतु सच्चाई और बुद्धि की बातें कहता हूँ। राजा भी जिसके सामने मैं निडर होकर बोल रहा हूँ, ये बातें जानता है और मुझे विश्वास है कि इन बातों में से कोई उससे छिपी नहीं, क्योंकि यह घटना किसी कोने में नहीं हुई। हे राजा अग्रिप्पा, क्या तू भविष्यद्वक्ताओं का विश्वास करता है? हाँ, मैं जानता हूँ कि तू विश्वास करता है।" अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, "तू थोड़े ही समझाने से मुझे मसीही बनाना चाहता है।" पौलुस ने कहा, परमेश्वर से मेरी प्रार्थना है कि क्या थोडे़ में क्या बहुत से, केवल तू ही नहीं परंतु जितने लोग आज मेरी सुनते हैं; इन बंधनों को छोड़ वे मेरे समान हो जाएँ। यह दृष्य, फेस्तुस, अग्रिप्पा, और बिरनीके द्वारा पौलुस के विषय आपसी चर्चा में समाप्त हुआ। "यह मनुष्य ऐसा तो कुछ नहीं करता जो मृत्युदंड या बंदीगृह में डाले जाने के योग्य हो" उन्होंने एक दूसरे से कहा। तब अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, "यदि यह मनुष्य कैसर की दोहाई न करता, तो छूट सकता था।" फेस्तुस ने पौलुस को यूलियस नामक सूबेदार के हाथों सौंप दिया औगस्तुस के लिये काम करता था, जिसके अधिकारी और लोग यात्रा करके सारे राज्य में सुरक्षा और सामान लाने ले जाने का कार्य करते थे। रोमी नागरिक होने के कारण पौलुस को अनुमति दी गई कि वह अपने साथ दो दासों को ले जा सके; अरिस्तर्खुस और वैद्य लूका। यहाँ से प्रेरित की कैसरिया से माल्टा तक की रोमांचक यात्रा शुरू हुई जिसके विषय हम अगले पाठ में पढेंगे।
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