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पौलुस की दूसरी मिश्नरी यात्रा (आगे) फिलिप्पी, जो मूलरूप से क्रेनिदेस (झरने) कहलाती थी मकिदुनिया के फिलिप द्वारा कब्जा किया गया। ईसापूर्व वर्ष 168 में वह रोम के अधीन हो गया। बाद में उसे रोमी बस्ती बनाया गया। ओक्टावियन (जो पहला रोमी सम्राट कैसर अगस्तुस बना) उसने पुराने सैनिकों को फिलिप्पी में बसाया। शहर में यहूदी जनसंख्या बहुत कम रही होगी क्योंकि वहाँ कोई आराधनालय नहीं था (प्रार्थना का स्थान)आराधनालय के लिये कम से कम दस यहूदी पुरुष होना चाहिये। फिर भी पौलुस और उसके साथी सब्त के दिन शहर के बाहर नदी के किनारे गए इस उम्मीद से कि उन्हें वहाँ कुछ यहूदी मिलेंगे जो प्रार्थना के लिये इकट्ठे होंगे। वहाँ जाकर उन्होंने स्त्रियों का एक समूह पाया। उन्होंने वहाँ बैठकर उन्हें सुसमाचार सुनाया। उस समूह में थुआथीरा की लुदिया नामक एक स्त्री थी जो महीन मलमल के कपड़े बेचती थी। वह परमेश्वर की आराधना करती थी। परमेश्वर ने पौलुस के संदेश के लिये उसके ॉदय को खोला। अपने हृदयों में प्रभु को ग्रहण करने के बाद उसे और उसके घराने को बपतिस्मा दिया गया। उसने न केवल अपना हृदय खोला, परंतु मिश्नरियों के लिये घर भी बनाई। उन्होंने उसकी पहुनाई का आनंद लिया। दूसरे दिन जब पौलुस और उसके साथी प्रार्थना के लिये जा रहे थे, तो उनकी मुलाकात दुष्टात्माग्रस्त एक लड़की से हुई। कुछ लोग उसका शोषण कर रहे थे और वह उनके लिये भविष्य बताकर काफी धन कमाकर देती थी। पौलुस और उसके साथियों का पीछा करते हुए को चिल्लाकर कहने लगी, "ये मनुष्य परमप्रधान परमेश्वर के दास हैं जो हमें उद्धार के मार्ग की कथा सुनाते हैं।" और, वह कई दिनों तक ऐसा ही करती रही। अंततः उस आत्मा से अप्रसन्न होकर पौलुस ने मुड़कर उससे कहा, "मैं तुझे यीशु मसीह के नाम से आज्ञा देता हूँ कि उसमें से निकल जा।" और वह उसी घड़ी निकल गई। जब उसके स्वामियों ने देखा कि उनकी कमाई की आशा जाती रही, तो पौलुस और सीलास को पकड़ के चैक में प्रधानों के पास खींच लाए और उन्हें फौजदारी के हाकिमों के पास ले गए और कहा, ये लोग जो यहूदी हैं, हमारे नगर में बड़ी हलचल मचा रहे हैं, और ऐसी रीतियाँ बता रहे हैं जिन्हे ग्रहण करना या मानना हम रोमियों के लिये ठीक नहीं। तब भीड़ के लोग उनके विरोध में इकट्ठे होकर चढ़ आए, और हाकिमों ने उन्हें बेत मारने की आज्ञा दी। और जब वे उन्हें बहुत बेंत मार चुके उन्होंने उन्हें बंदीगृह में डाल दिया। और दरोगा को उनकी कड़ी निगरानी करते का आदेश दिया और उसने ऐसी आज्ञा पाकर उन्हें भीतर की कोठरी में रखा और उनके पाँव काठ में ठोंक दिए। मध्यरात्रि के समय पौलुस और सीलास प्रार्थना कर रहे थे और परमेश्वर की स्तुति के गीत गा रहे थे। उनके दुख के बीच भी वे परमेश्वर की स्तुति कर रहे थे। अचानक वहाँ एक बड़ा भूकंप हुआ। बंदीगृह की नीवें हिल गई और तुरंत सभी दरवाजे खुल गए, और हर किसी की बेड़ियाँ खुल गई। दरोगा की व्यथा या घबराहट की कल्पना कीजिये - ये सब कैदी जिन्हें उसने निदर्यता से दुखदायी काठ में ठोंक दिया था वे सब अब स्वतंत्र थे। चूँकि भागने वाले किसी भी कैदी के लिये वही जिम्मेदार था, उसने स्वयं को मार डालने के लिये तलवार निकाला। परंतु जब पौलुस ने देखा कि क्या होनेवाला है तो उसने उँची आवाज में कहा, "अपने आप को कुछ हानि न पहुँचा, क्योंकि हम सब यही हैं।" दरोगा ने दीया मंगवाकर भीतर की तरफ दौड़ा और डर से काँपते हुए वह पौलुस और सिलास के सामने गिर पड़ा और उन्हें बाहर निकालकर उनसे पूछा, "हे सज्जनों, उद्धार पाने के लिये मैं क्या करूँ?" उन्होंने कहा, "प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा। और उन्होंने उसको और उसके सारे घर के लोगों को प्रभु का वचन सुनाया। फिर उसने रात को उसी घड़ी ले जाकर उनके घाव धोया, और उसे तुरंत बपतिस्मा दिया गया, और साथ में उसके पूरे परिवार को भी बपतिस्मा दिया गया। उसने उन्हें घर भी ले गया और उन्हें भोजन कराया। उसने परमेश्वर पर विश्वास करके आनंद किया और उसका परिवार भी आनंदित था। उसके बाद दरोगा ने पौलुस और सीलास को बंदीगृह में वापस लाया। अगले दिन हाकिमों ने सिपाहियों को कहला भेजा कि "उन मनुष्यों को छोड़ दो।" दरोगा ने ये बातें पौलुस से कहीं, लेकिन उन्होंने ऐसी स्थिति में वहाँ से जाने से इन्कार कर दिया। आखिर, सीलास और पौलुस, यद्यपि जन्म से यहूदी थे, वे रोम के नागरिक थे। उन्हें गैरकानूनी रीति से और सार्वजनिक रीति से पीटा गया था। पौलुस की प्रतिक्रिया यह थी, वे स्वयं आकर हमें निकालें।" जब सिपाहियों ने यह संदेश हाकिमों को कह सुनाया तो वे आए और उनसे आग्रह किया और जब उन्होंने उन्हें बाहर निकाला तो उन्होंने उनसे शहर छोड़कर जाने को कहा। और वे बंदीगृह से निकल कर लुदिया के घर गए, वहाँ इकट्ठे लोगों को प्रोत्साहित किया और फिर वहाँ से विदा हुए। उन्होंने बहुत चाहा कि फिलिप्पी मसीहियों की मदद के लिये लूका वही ठहर जाए। ऐसा इसलिये माना जाता है क्योंकि "हम" शब्द अचानक बदलकर "वे" हो गया था। इस प्रकार पौलुस, सीलास और तीमुथियुस ने लूका, और नए विश्वासियों को अलविदा कहा, और जब वे अम्फिपुलिस और अप्पुलोनिया से यात्रा कर चुके तो थिस्सलुनीके पहुंचे। इग्नेशियन के मार्ग से मकिदुनिया से होकर तीनों मिश्नरी शहर में पहुँचे। जैसे ही वे थिस्सलुनीके पहुँचे पौलुस सीधे यहूदियों के आराधनालय पहुँचा। वे यासोन नामक एक व्यक्ति के घर में रूके थे जो संभवतः पौलुस का एक रिश्तेदार था (रोमियों 16:21)। तीन सब्त के दिनों तक पौलुस उनके साथ वचन से तर्क वितर्क करता रहा और प्रमाण देकर समझाता रहा कि मसीह को क्लेश उठाना पड़ा, वह मृतकों में से फिर जी उठा। वचन से यह बात प्रमाणित करने के बाद उसने यह घोषणा किया कि नासरी यीशु वही मसीहा है जिसका लंबे समय से इंतजार किया जा रहा था। पौलुस ने अथक रीति से लोगों को मसीह की सच्चाई के विषय सिखाया। परिणामस्वरूप कुछ लोग पौलुस की शिक्षा से प्रभावित हुए और,कुछ लोगों ने विरोध किया। कुछ यहूदी तथा परमेश्वर का भय मानने वाले यूनानी और गणमान्य स्त्रियाँ पौलुस और सीलास के साथ मिल गई। परंतु बाकी के सभी यहूदियों ने ईर्ष्या के कारण बाजार से कुछ दुष्ट मनुष्यों को साथ लिया, बड़ी भीड़ इकट्ठा किया और बखेड़ा खड़ा किया और यासोन के घर पहुँचकर उन लोगों को बाहर लाने को कहा। पौलुस और उसके साथियों को खोज न पाने के कारण उन्होंने यासोन और कुछ भाइयों को खींचकर हाकिमों के सामने ले आए, और पुकारकर कहा, "ये लोग जिन्होंने जगत को उल्टा पुलटा कर दिया है, यहाँ भी आ गए हैं। यासोन ने उन्हें अपने यहाँ उतरा है। ये सब के सब यह कहते हैं कि यीशु राजा है और कैसर की आज्ञाओं का विरोध करते हैं।" इन शब्दों के साथ उन्होंने भीड़ को और नगर के हाकिमों को उकसाया। मिश्नरियों को दोषी ठहराया गया। जाहिर था कि उनके जीवन को बचाने के लिये यासोन को एक समझौते पर हस्ताक्षर करना था और इस बात की गारंटी देना था कि वे लोग उस स्थान को छोड़ देगें और कभी नहीं लौटेंगे। इस बात ने भीड़ को संतुष्ट कर दिया और उन्होंने यासोन और अन्य लोगों से समझौता लिया और उन्हें छोड़ दिया। और भाईयों ने पौलुस और सीलास को तुरंत रात में ही बिरीया भेज दिया। बिरिया एक छोटा शहर था जो थिस्सलुनीके से करीब 50 कि.मी दूर था। बिरीया के यहूदी थिस्सलुनीके के लोग से ज्यादा नम्र थे। उन्होंने बड़ी उत्सुकता से वचन को ग्रहण किया और देखने के लिये हर रोज वचन की जाँच करते रहे कि जो कहा गया था, वैसा ही है या नहीं। उनमें से कई लोगों ने विश्वास किया और उनमें कई प्रसिद्ध अन्यजातीय पुरुष और स्त्रियाँ भी शामिल थीं। थिस्सलुनीके के केवल कुछ यहूदियों ने ही विश्वास किया था, परंतु बिरीया के कई यहूदियों ने विश्वास किया। लेकिन जब थिस्सलुनीके के यहूदियों ने पाया कि बिरीया में भी पौलुस द्वारा परमेश्वर का वचन सुनाया गया था तो वे उपद्रव करते हुए वहाँ आए और भीड़ को उकसाया। और फिर भाइयों ने तुरंत ही पौलुस को रक्षक भाइयों के साथ समुद्र किनारे भेज दिया। सीलास और तीमुथियुस बिरीया में ही रूक गए। पौलुस और उसके साथी समुद्री यात्रा करके एथेन्स में छोड़कर जा रहे थे तब उसने उनके द्वारा सीलास और तीमुथियुस को खबर भेजा कि वे जितनी जल्दी हो सके उसके साथ हो जाए। लूका को फिलिप्पी में और सिलास और तीमुथियुस को बिरीया में छोड़ने के कारण पौलुस एथेन्स में स्वयं को एकदम अकेला पाया।
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