Class 7, Lesson 23: पौलुस की दूसरी मिश्नरी यात्रा

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पौलुस की दूसरी मिश्नरी यात्रा समय आ गया था कि दूसरी मिश्नरी यात्रा शुरू हो जाए। पौलुस और बरनबास अंताकिया में थे और उस समय वे वहाँ परमेश्वर की शिक्षा दे रहे थे और प्रचार कर रहे थे। पौलुस ने बरनबास को अपना विचार बताया कि उन्हें उन स्थानों को फिर से जाना चाहिये जहाँ उन्होंने पहले प्रचार किया था। बरनबास यूहन्ना मरकुस को भी उनके साथ ले जाना चाहता था। परंतु पौलुस इस बार पर अड़ा रहा कि उन्हें उसे साथ नहीं ले जाना चाहिये जिसने उनका साथ पंफूलिया में छोड़ दिया था और उनके साथ कार्य करने नहीं गया था। उनके बीच में गहरा मतभेद उत्पन्न हो गया और वे स्वयं अलग हो गए। बरनबास ने मरकुस को लेकर जहाज से साइप्रस की ओर प्रस्थान किया। पौलुस ने सिलास को चुना और भाइयों द्वारा प्रभु के अनुग्रह में सौंपे जाने के बाद वे निकल पड़े। उन्होंने सीरिया और सिलकिया की यात्रा किया और कलीसियाओं को मजबूत बनाते गए। संभवतः पौलुस और बरनबास मरकुस के विषय आंकलन में सही थे। बाद में पौलुस ने बरनबास से सकारात्मक शब्दों में बातें किया। (1 कुरि 9:6, कुलु 4:10)। प्रेरित पौलुस बरनबास को बहुत सम्मान देता था और ऐसा दिख पड़ता है कि मरकुस के विषय मतभेद के बावजूद वे मित्र बने रहे। न मरकुस न बरनबास प्रेरितों के काम में कहीं और दिख पड़ते हैं। पौलुस द्वारा सीलास का चुनाव जिसका नाम सिल्वानुस था, अच्छा निर्णय था। वह यरूशलेम की कलीसिया का आधिकारिक प्रतिनिधि था जिसने यरूशलेम की परिषद का आदेश अंताकिया ले गया। अंताकिया की कलीसिया उसे अच्छी तरह जानती थी, इसलिये पौलुस और सिलास दोनों को भाइयों ने प्रभु के अनुग्रह में प्रोत्साहित किया। पौलुस और सिलास पहले दिरबे गए और फिर लुस्त्रा गए। उन स्थानों में लौटने के बाद पौलुस को पुरानी बातें याद आई होगी। लुस्त्रा में पौलुस की मुलाकात तीमुथियुस में से हुई। तीमुथियुस जिसका घर लुस्त्रा में था, उसके माता-पिता अलग अलग पाश्र्वभूमि में से थे; उसकी माँ यहूदी थी और पिता यूनानी था। संभवतः तीमुथियुस का परिवर्तन प्रेरित के लुस्त्रा की पहली भेंट के दौरान पौलुस की सेवकाई के द्वारा हुआ था। पौलुस का हृदय उस समय आनंदित हुआ जब लुस्त्रा और इकुनियुम के भाइयों ने बताया कि तीमुथियुस मसीही विश्वास में अच्छी तरह बढ़ रहा था। वह मरकुस के समान उसे सहायक के रूप में यात्रा पर ले जाना चाहता था। लेकिन इसमें एक समस्या थी। वे यहूदी जिन्हें वह सुसमाचार सुनाने वाला था, वे अपमानित हुए होते यदि उसके साथ किसी यहूदी स्त्री का बेटा रहा होता जिसका खतना न हुआ हो। जब तीनों प्रचारक लिकाओनिया शहर से होकर गुजरे तो उन्होने यरूशलेम के प्रेरितों और प्राचीनों के आदेश को सौंप दिया। उनकी सेवकाई के परिणामस्वरूप कलीसियाएँ मसीही विश्वास में मजबूत होती गई और प्रतिदिन संख्या में बढ़ती गईं। पिरगा और गलातिया की कलीसियाओं को पुनः भेट देने के बाद उन्होंने पश्चिम एशिया माइनर के एशिया में जाने की सोचा, परंतु पवित्र आत्मा ने उन्हें रोक दिया। हमें बताया नहीं गया है कि क्यों। वहाँ से वे उत्तर-पश्चिम की ओर यात्रा करके मूसिया जिल्हा को गए। परंतु उन्होंने वहाँ प्रचार नहीं किया। जब उन्होंने उत्तरपूर्व के बिथूनिया में जाने की कोशिश किया जो मृत सागर के किनारे है, तो पवित्र आत्मा ने उन्हें रोक दिया। इसलिये वे सीधे तटीय शहर त्रोआस को चले गए। एशिया को सुसमाचार की आवश्यकता थी, परंतु यह परमेश्वर का समय नहीं था। वे हाल ही में पूर्व से आए थे उन्हें दक्षिण या उत्तर में जाने की मनाही थी, परंतु उन्होंने इसे नहीं समझा कि परमेश्वर उन्हें पश्चिम में जाने की अगुवाई कर रहा था, वे परमेश्वर के विशेष निर्देश के लिये रूके रहे। अंततः त्रोआस में परमेश्वर ने रात्रि के दर्शन द्वारा सकारात्मक निर्देश दिया। पौलुस ने मकिदुनिया के एक व्यक्ति को उसकी मदद के लिये पुकारते देखा। मकीदुनिया यूनान का उत्तरी भाग था। अंततः परीक्षा और इंतजार का समय खत्म हुआ और मिश्नरी सुसमाचार प्रचार के कार्य में लग गए। तुरंत ही उन्होंने मकिदुनिया पार करने की तैयारी किया। परंतु त्रोआस छोड़ने से पहले उन्होंने दल में एक चैथा व्यक्ति जोड़ लिया। लूका जो एक प्रेमी वैद्य था शायद वह त्रोआस का नागरिक था, पौलुस सिलास और तीमुथियुस के समूह में जुड़ गया। त्रोआस से मिश्नरी सीधे सुमात्रा गए और फिर नियापुलिस गए। नियापुलिस से वे यात्रा करके इग्नातिया गए और फिर इग्नातिया रोड से फिलिप्पि गए, जो एक रोमी बस्ती और उन्नतिशील शहर था। इस प्रकार दूसरी मिश्नरी यात्रा का पहला भाग खत्म हुआ और मिश्नरी लोग यूरोपीय महाद्वीप में प्रवेश किये।

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