Class 7, Lesson 20: मंदिर की बंधुआई, वापसी और पुनः निर्माण

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बंधुआई, वापसी और मंदिर का पुनः निर्माण उत्पति से इतिहास तक पुस्तकें परमेश्वर के द्वारा उन लोगों को चुनने, प्रेम करने और आशीषित करने की कहानियों को बताती हैं जिन्हें उसने अपने लोग कहा, और इन लोगों ने केवल उसे तुच्छ समझा, उसकी आज्ञा का उलंघन किया और उसके पवित्र नाम की निंदा किया। उसे उन्हें देश निकाला के द्वारा अनुशासित करना पड़ा। फिर भी उसने उन्हें यकीन दिलाया कि वे उसके अपने लोग हैं- यह भी कि वे हमेश उसी के लोग रहेंगे। इस्राएल पर दाऊद और सुलैमान का राज्य सुनहरा युग था। वचन सुलैमान को उसके पूर प्रतिभा के साथ प्रस्तुत करता है- उसकी ख्याति, उसकी बुद्धि, उसकी संपत्ति के साथ। उसके शासनकाल में इस्राएल ने एक विशाल परंतु दुखद युग में प्रवेश किया। सुलैमान के शासन के बाद हम राज्य को उत्तर (इस्राएल) और दक्षिण (यहूदा) में विभाजित होते देखते हैं। राजाओं की पुस्तक अंतिम आधा भाग उसके राजाओं की सफलता और असफलताओं को दिखाता है। यह चित्रण सुंदर नहीं है। अनैतिकता और मूर्तिपूजा जोरों पर थे क्योंकि दोनों राष्ट्रों ने उनके पड़ोसी राष्ट्रों की जीवन शैली को अपना लिया था और परमेश्वर की इच्छा के विषय उन्होंने अपना हृदय बंद कर लिया था। दोनों राष्ट्रों के 39 राजाओं में से बायबल केवल 8 ही को धर्मी शासक बताती है। परमेश्वर ने उसके लोगों के सामने जीवन और मृत्यु, आशीष और शाप दोनों रखा था। इस्राएल और यहूदा दोनों ने ही बार-बार और हठीलेपन से शाप को ही चुना। उनके निरंतर आज्ञा उल्लंघन के कारण परमेश्वर ने उन्हें वही दिया जो उन्होंने चुना था: बंधुवाई। बँटा हुआ राज्य जल्द ही भंग हो जाता है, परमेश्वर का धीरज काफी लंबा होता है, परमेश्वर का आग्रह निरंतर होता है, परंतु जब उसे नजरअंदाज किया जाए तो परमेश्वर का प्रेम गंभीर भी हो सकता है। राष्ट्र के रूप में इस्राएल के दिनों का अंत होशे के समय हुआ। ईसापूर्व वर्ष 722 में परमेश्वर ने अश्शूरियों को भेजा कि वे सामरिया पर कब्जा करें और उन्होंने इस्राएल के दस उत्तरी गोत्रों को बंदी बनाकर ले गए। और अराम के राजा ने भी दूसरे राष्ट्रों से जीते हुए लोगों को लाकर उन्हें इस्राएल में रख दिया। इस रीति से परमेश्वर ने इस्राएल को उसके आज्ञा उल्लंघन का दंड दिया। यहूदा की बारी 136 वर्षे के बाद आई। बेबीलोनियों के हाथों पड़ने से पहले यहूदा में और चार राजा हुए। वे याहोआहाज, यहोयाकीम, यहोयाकीन, और सिदकिय्याह थे। इन चारों में से कोई भी परमेश्वर के मार्ग पर नहीं चला। यहोआहाज मिस्र में फिरौन नाको का बंदी होकर मरा। यहोयाकीम के शासन में यहूदा बेबीलोन का एक दास राज्य था। लेकिन उसने बेबीलोन के राजा नबूकदनेस्सर का विरोध किया, और राजा और अन्य कई शत्रु राष्ट्रों को यरूशलेम पर ईसापूर्व वर्ष 602 में आक्रमण करने पर मजबूर किया। यहोयाकीम की मृत्यु के बाद उसका पुत्र यहोयाकीन सिंहासन पर बैठा। उसे ईसापूर्व वर्ष 597 में बेबीलोन ले जाया गया। ईसापूर्व वर्ष 586 में सिदकिय्याह के शासनकाल में नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम की शहरपनाह को तोड़ डाला। अंतिम बात जो सिदकियाह ने देखा था वह थी उसके पुत्रों की हत्या। उनकी मृत्यु के बाद सिदकिय्याह की आखें निकाल ली गई और बेड़ियों से बांधकर ले जाया गया। यरूशलेम को आग लगा दी गई, मंदिर को नष्ट कर दिया गया और उसकी संपत्ति को बेबीलोन ले जाया गया। इस प्रकार परमेश्वर का दंड का भारी हाथ यहूदा पर पड़ा। उसने अन्यजातियों के राज्य की शुरूवात किया। परंतु परमेश्वर अपने लोगों को नहीं भूलता। यहाँ तक कि बंधुवाई में भी वह उन्हें प्रोत्साहित करता, रक्षा करता और उन्हें सुरक्षित करता है। परमेश्वर ने दानिय्येल, शदरक, मेशक, अबेदनगो, यहेजकेल जैसे भक्तों को खड़ा किया जो शक्तिशाली रूप से परमेश्वर के लिये खड़े हुए। यिर्मयाह का विलापगीत इस्राएल की संतानों का बंधुवाई के दौरान दुखों का वर्णन करती है। घटनाओं के ईश्वरीय मोड़ में परमेश्वर ने ऐसे राष्ट्र को खड़ा किया जो उसके लोगों को उखाड़ फेकने वाले राज्य को भी उखाड फेंके। बेबीलोनी लोग जो परमेश्वर के दंड के मात्र साधन थे, वे ईसापूर्व वर्ष 539 में फारस के कुस्त्रू के अधीन हो गए। राजा कुस्त्रू के शासन के पहले वर्ष में परमेश्वर ने राजा के मन में डाला कि वह यहूदियों को उनके अपने देश में लौटने और मंदिर को पुनः निर्माण करने के आदेश दे। ठीक जैसे परमेश्वर ने उसके लोगों को दंडित करने के लिये अन्यजातीय राजा नबूकदनेस्सर को उठाया था उसी प्रकार उसने उन्हें छुडाने के लिये एक विधर्मी राजा कुस्त्रू और बाद में एक अन्य राजा (अर्तक्षत्र) को खड़ा किया। उसने उन्हें उसके लोगों के साथ दयालुता का व्यवहार करने को प्रेरित किया। इस प्रकार एक बार फिर परमेश्वर ने सिद्ध कर दिया कि राजाओं का हृदय और राज्य की सामर्थ उसी के अधीन हैं जिनसे वह अपनी भली और सिद्ध इच्छा को पूरी करता है। बेबीलोन से यहूदियों को यरूशलेम वापसी को "दूसरा निर्गमन" कहते हैं। पहली वापसी के विपरीत, केवल थोडे़ से लोग ही घर वापस लौटना चाहते थे। यहूदियों की पूरी जनसंख्या शायद 20 या 30 लाख में से केवल 49897 ने ही इस मौके का लाभ उठाने की सोचा। एक छोटे से समूह ने ही बेबीलोन छोड़ने का निर्णय लिया, जिसमें उन्हें 1000 कि.मी से ज्यादा लंबी यात्रा करना था और मंदिर तथा शहर के पुनः निर्माण में कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। जिन यहूदियों ने परमेश्वर की आज्ञा मानकर अपने घर लौटने की चुनौती को स्वीकार किया था वे तीन समूहों में लौटे थे - ठीक वैसे ही जैसे वे तीन बार देश से निकाले गए थे (605, 597 और ईसापूर्व वर्ष 586 में)। पहली वापसी जो कुस्त्रू के आदेश के बाद हुई थी उसमें वह समूह था जिसने जरूब्बाबेल के नेतृत्व में मंदिर का पुनः निर्माण किया था। परमेश्वर ने मंदिर बनाने लोगों को प्रोत्साहित करने हेतु जकर्याह और हाग्गै भविष्यद्वक्ताओं को तैयार किया था। दूसरा समूह ईसापूर्व वर्ष 458 में, जिसमें 1754 लोग थे, निकल पड़ा। इस समूह में एज्रा था जो इस जोश के साथ वचन का प्रचार करने और समुदाय को पवित्र जीवन जीने के लिये प्रचार करने आया था। 14 वर्षों के बाद अर्थात् ईसापूर्व वर्ष 444 में तीसरा समूह नहेम्याह के नेतृत्व मे लौटा ताकि वे यरूशलेम की शहरपनाह को फिर से बना सकें। जकर्याह ने एक उत्तम पुनः निर्मित मंदिर की और सभी राष्ट्रों के उसकी ओर आने की भविष्यद्वाणी किया था। यह भी कहा था कि एक दिन यहूदी लोग एक नए शक्तिशाली राज्य में रहेंगे और सिंहासन पर दाऊद का सामर्थी पुत्र (मसीह) बैठकर संसार पर न्याय, शांति और समृद्धि के साथ शासन करेगा। कई वर्ष बीत गए। जो मंदिर विशाल उत्सव द्वारा पुरा किया गया था अब जर्जर हो रहा था और कई कारणों से उस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा था। याजक भ्रष्ट हो गए थे और अपना कार्य पूरी उदासीनता से करते थे। परिवार टूट रहे थे। अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई थी। कीट फसलों को नष्ट कर रहे थे। धनी लोग गरीबों का शोषण कर रहे थे। हर वर्ष मसीहा के राज्य की बाट जोहते लेाग भ्रमित थे और संदेह करने लगे थे। उन्होंने आशा छोड़ दिया और अपने पुराने तरीके से जाने लगे थे। मलाकी की पुस्तक के साथ पुराना नियम खत्म होता है। 400 वर्ष की ईश्वरीय शांति के बाद पर्दा गिर गया। परमेश्वर की "धार्मिकता का सूर्य" कब उगेगा और अंधकारमय पूर्वी आकाश को कब प्रकाशमान करेगा? और नए दिन का स्वागत करने के लिये कौन होगा? इन सारे प्रश्नों का उत्तर तब दिया गया जब परमेश्वर ने नए नियम के सुसमाचारों में अपनी चुप्पी को तोड़ा।

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