Class 7, Lesson 19: एलिशा का जीवन और सेवकाई ( भाग -2 )

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एलीशा का जीवन और सेवकाई (भाग 2) शूनेमिन के बेटे का जिलाया जाना (2 राजा 4:32-35) यहाँ हम एक स्त्री को देखते हैं जो एलीशा की असाधारण पहुनाई करती थी जब भी वह शूनेन से होकर गुजरता था। धनी होने कारण वह और उसका परिवार प्रसिद्ध थे। जीवते परमेश्वर पर उसका विश्वास इस बात से दिख पड़ता है कि वह परमेश्वर के जन के लिए आशीष का कारण बनना चाहती थी। जब एलीशा इस दंपत्ति की पहुनाई का कुछ समय तक आनंद पाया तो उसने बदले में उनके लिए कुछ करने की इच्छा किया। जब उसे एलीशा की मध्यस्थी द्वारा राजा का अनुग्रह प्राप्त हुआ तो उसने अपने ही लोगों के बीच में रहने की नम्र इच्छा जताई। उसे राजा के द्वारा दिए जानेवाले सांसारिक फ़ायदों से कोई लगाव नहीं था। वह उसके घर, स्थिति और मित्रों से संतुष्ट थी। लेकिन एलीशा ने अपने दास गेहजी से पूछा कि वह उसके लिए (स्त्री) क्या करे। गेहजी नए कहा "उसका कोई पुत्र नहीं है, और उसका पति बूढ़ा है।" तब एलीशा ने कहा, "उसे बुला ला।" फिर उसने उसे बुला लाया, और वह द्वार पर खड़ी हो गई। "अगले वर्ष इसी समय तक तेरी बाहों में एक पुत्र होगा, एलीशा नए कहा। इब्री स्त्री के लिए संतानहीन होना बड़े दुख की बात थी। जब एलीशा ने कहा कि एक वर्ष में उसके पास एक बालक होगा तो सचमुच यह उसके लिए बहुत अच्छी खबर थी। उसने उससे विनती की कि वह ऐसी अच्छी आशा न बंधाए जो पूरी नहीं हो सकती। परंतु एलीशा परमेश्वर की ओर से कह रहा था जो ऐसी प्रतिज्ञा को पूरी कर सकता था। उचित समय आने पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया। कुछ वर्षों के बाद लड़के को तीव्र सिरदर्द हुआ जिसने उसकी जान ले ली। ऐसी दुखद स्थिति में भी यह स्त्री उसके विश्वास में मजबूत थी। जब उसका लड़का मरा तब भी उसका शांत विश्वास भयानक सदमे में भी प्रशंसनीय था। यदि परमेश्वर उसे बच्चा दे सकता है, तो वह उसे वापस भी लौटा सकता है उसने ऐसा तर्क की। एक क्षण के भी संकोच किए बिना उसने उसे भविष्यद्वक्ता के खाट पर लिटा दी और अपने दास के साथ कर्मेल पर्वत की ओर दौड़ चली जो 22 कि.मी. दूर था जहाँ भविष्यद्वक्ता रहता था। यह उसके विश्वास की कैसी परीक्षा थी कि जब उसे जरूरत थी तब एलिशा उससे कुछ मीलों की दूरी पर था। जब उसने पति से कहा कि "सब ठीक हो जाएगा" तो उसने यात्रा शुरू करने से पहले ही वर्तमान परीक्षा से परे देखी और सुखद वापसी की कल्पना की। पर्वत पर पहुंचकर एलीशा के पूछने पर भी उसने बोली "सब ठीक है।" जब एलिशा नए गेहजी से कहा कि वह उसकी छड़ी को ले जाए और लड़के के मुँह पर रखे, लेकिन स्त्री को ऐसा लगा कि इसका कोई फायदा न होगा और वह एलीशा को न छोड़ेगी। उसके धीरज और विश्वास का उसे फल मिला। गेहजी के हाथ में एलीशा की छड़ी का बच्चे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। जब एलीशा आया तो बच्चा सचमुच मर चुका था। और वह भविष्यद्वक्ता की खाट पर पड़ा था। वह भीतर गया, द्वार बंद किया और परमेश्वर से प्रार्थना किया। फिर वह बच्चे के शरीर पर लेट गया। बच्चे का शरीर गर्म होने लगा। वह नीचे गया और कुछ समय तक घर में इधर-उधर घूमने लगा। वह नीचे से जाकर बच्चे पर पसर गया। इस बार बच्चे ने सात बार छींका और आँखें खोल दीं। कुछ और नहीं लेकिन परमेश्वर की सामर्थ नए उस व्यक्ति के द्वारा जो परमेश्वर के संपर्क में था, बच्चे को पुनः जीवित कर सकी। केवल जीवते परमेश्वर के साथ संपर्क ही जीवन दे सकता है। शूनेमिन नए इस आश्चर्यकर्म पर कोई आश्चर्य व्यक्त नहीं किया, क्योंकि वह पुनरुत्थान के परमेश्वर पर विश्वास करती थी और उसने उसे निराश नहीं किया। घातक भोजन (2 राजा 4:38-41) यहाँ हम एलीशा को भविष्यद्वक्ताओं की शाला में देखते हैं। हम देखते हैं कि गिलगाल में शिष्यों द्वारा उसका कैसा स्वागत किया गया किस प्रकार वे उसके आसपास बैठ जाते और वह उन्हें अपने अनुभव बताता। यहाँ एक ऐसी स्थिति आई जब एलीशा जो उन्हें सिखा रहा था उसका व्यवहारिक पाठ या सबक सिखाया जाने वाला था। यह अकाल के दिनों में हुआ। एलीशा ने उसके दासों से कहा कि वे भविष्यद्वक्ताओं के पुत्रों के लिए कुछ पेय पकाएँ। उनमे से एक व्यक्ति वनस्पति लेने खेत में गयाऔर जो उसने लाया वह जंगली था। उसने उन्हें टुकड़े-टुकड़े बनाकर पकाने के बर्तन में डाल दिया। उसे पता नहीं था कि वे जहरीले थे। जब उन्होंने उसे चखा तो जान गए कि उन जंगली वनस्पतियों ने उस पेय को जहरीला बना दिया था। एलीशा ने उसमें थोड़ा मैदा मिल दिया और उसे खाने के लिए सुरक्षित बना दिया। जवानों के लिए यह परमेश्वर की सामर्थ को देखने का मौका मिला था। बर्तन में मृत्यु थी परंतु परमेश्वर के पास मृत्यु पर भी अधिकार है और जब उन्होंने एलीशा को पुकारा तो वे बचाए गए। प्रत्येक चमत्कार सीधे एलीशा की ओर मुड़ने और एलीशा का परमेश्वर की ओर मुड़ने का परिणाम था। वह परमेश्वर का प्रतिनिधि था, परमेश्वर का जन था। मैदा बर्तन में विद्यामान मृत्यु का उत्तर था। उसी प्रकार मसीह के विश्वासयोग्य प्रतिनिधित्व के द्वारा सभी समस्याएँ हल होती है। चमत्कारिक रूप से 100 लोगों को खिलाया जाना (4:42-44) यह घटना गिलगाल के पास बाल शालिशा के पास घटी। वहाँ तब भी आकाल था। एक दीं एक आदमी ने पहले उपजे हुए जौ की बीस रोटियाँ और अपनी बोरी में हरी बालें परमेश्वर के भक्त के पास ले आया। एलीशा नए उसके दास से कहा, कि वह उन्हें उसके जवान भविष्यद्वक्ताओं को बाँट दे। "क्या" दास नए आश्चर्य से पूछा "क्या मैं सौ मनुष्यों के सामने इतना ही रख दूँ?" एलीशा नए उसे बाँटने की आज्ञा दिया और प्रतिज्ञा किया कि उसके बाद भी कुछ बचा रहेगा। और निश्चित रूप से वैसा ही हुआ जैसा परमेश्वर नए प्रतिज्ञा किया था। भोजनदान जिसकी बेशक प्रशंसा की गई थी, सौ लोगों के लिए कम था, जब तक उसे परमेश्वर ने भरपूर नहीं किया। यह चमत्कार हमारे प्रभु द्वारा भीड़ को खिलाने के पूर्व छवि है। यह घटना इस बात को भी हमें सिखाती है कि जब हम दूसरों के साथ बाँटते हैं, तो परमेश्वर हमारी और दूसरों की जरूरतों को पूरी कर सकता है, और बच भी जाता है। नामान की चमत्कारिक चंगाई (2 राज्या 5:1-19) इस भाग में हम एलीशा की सेककाई को इस्राएल की सीमाओं के बाहर फैलते हुए देखते हैं। उस समय अराम का राजा बेन्हदद-2 था। नामान अरामी सेना का प्रधान था। वह एक सफल और उत्साही योद्धा था। लेकिन उसे कोढ़ था। एक गुलाम लड़की नामान के घर में दासी थी। उसने सुझाव दी कि सामरिया में रहनेवाला एलीशा भविष्यद्वक्ता उसे ठीक कर सकता है। नामान को इस्राएल के राजा को देने के लिए अरामी राजा नए परिचय पत्र दिया। उसने साथ में धन और वस्त्रों के तोहफे भी रख दिए। जब इस्राएल के राजा ने वह पत्र पढ़ा तो घबरा गया और उसे ऐसा लगा कि वह (अरामी राजा) इस्राएल पर हमला करने का बहाना ढूंढ रहा है। उसी बीच एलीशा भविष्यद्वक्ता ने राजा की चिंता के विषय सुना और नामान को उसके भेजने को कहा। उसने नमान से व्यक्तिगत रीति से बात नहीं की, उसका शब्द ही उसके लिए काफी था। उसने नामान को संदेश दिया कि वह यरदन नदी में जाकर सात बार डुबकी लगाए। एलीशा के इन शब्दों से नामान क्रोधित हो गया। उसने उसके ओहदे के अनुसार शुद्धिकरण की विधि की उम्मीद की थी। और उसने सोचा की यरदन का कीचड़युक्त पानी उसे कैसे चंगा कर सकता है। अंत में उसके दासों ने उसे भविष्यद्वक्ता किक आज्ञा का पालन करने के लिए मना लिया, और वह पूरी तरह से चंगा हो गया। कहा जाता है कि "नामान ने अपना घमंड खत्म किया और उसका कोढ़ चल गया।" नामान की चंगाई का चमत्कार एक पापी के चंगाई का सबसे उत्तम उदाहरण है। निम्नलिखित बातों पर थोड़ी देर मनन करें। 1) नामान, कोढ़ी एक पापी का चित्रण है जो पहले परमेश्वर के पास आता है। वह महान व्यक्ति था परंतु एक कोढ़ी था। सौभाग्यवश वह उसकी स्थिति के विषय जानता और समझता था। परमेश्वर के सामने अपनी खोई हुई स्थिति को स्वीकार करना और उससे बचने की इच्छा करना, उद्धार की ओर पहला कदम है। 2) यहूदी गुलाम लड़की सुसमाचार की संदेशवाहक थी। वह परमेश्वर के अन्य संदेशवाहकों की तरह मामूली और नम्र थी, परंतु जानती थी कि परमेश्वर के पास चंगाई है। वह जानती थी कि चंगे होने के लिए दूसरों को किस तरह अगुवाई की जाए। परमेश्वर के विश्वासयोग्य गवाह उनके परमेश्वर की गवाही देने में लज्जा महसूस नहीं करते और न ही उसके विषय दूसरों को बताने में लज्जित होते हैं। 3)अराम के राजा ने नामान को धन और बहुमूल्य वस्त्रों के दान देकर भेजा। उसने यह नहीं सोचा कि परमेश्वर के वरदान खरीदे नहीं जा सकते। उन्हें केवल प्राप्त किया जाता है। मानवीय हृदय के लिए एक कठिन सबक! 4) केवल परमेश्वर में ही आशा है, वह खोजने वाले व्यक्ति के लिए द्वार बंद नहीं करता। 5) उद्धार का मार्ग सादगी है। पापी को चाहिए कि वह प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करे, तब भी जब वह कार्य अति सरल दिख पड़े। 6) क्रूस के नीचे घमंड का कोई स्थान नहीं है। आजकल पुरुष और स्त्रियाँ अपने तरीके से उद्धार पाना चाहते हैं, परमेश्वर के तरीके से नहीं। 7) अच्छे मित्रों की संगति का या अनुकरण का मूल्य, नामान के मित्रों की सामायिक सलाह ने उसे परमेश्वर के मार्ग को स्वीकार करने में सहायता किया। धन्य है वह व्यक्ति जिसके पास ऐसा मित्र हो जो उसे सही दिशा बताए। 8) विश्वास द्वारा आज्ञापालन के बाद तुरंत उद्धार होता है। 9) आभार मानना बचाए गए या उद्धार प्राप्त आत्मा का पहला फल है। तैरती कुल्हाड़ी (2 राजा 6:1-7) भविष्यद्वक्ताओं के चेलों को जहाँ वे रह रहे थे वह स्थान अपर्याप्त लग रहा था। "आओ हम यरदन नदी के नीचे जाएँ जहां लकड़ियाँ बहुतायत से पाई जाती हैं। वहाँ हम रहने के लिए एक नया स्थान बना सकते हैं ।" यह बात उन्होंने एलीशा से कहा। एलीशा नए उन्हें अनुमति दिया और उनके आग्रह पर उनके साथ हो लिया। पेड़ काटने के दौरान उनमें से एक व्यक्ति की कुल्हाड़ी का सिरा उसके मूठ से निकलकर नदी में जा गिरा। उसने एलीशा को पुकारा और एलीशा नए नदी में एक लकड़ी को फेंका। सब लोग उस समय चकित हो गए जब वही कुलहाड़ी का सिरा पानी पर तैरने लगा था। वह जवान उसे आसानी से पानी पर से उठा सका। इस चमत्कार से परमेश्वर पर्व विश्वास करने वाले बच्चों के लिए काफी शांति की बात है। जो लोग जीवन की छोटी-छोटी बातों में उस पर विश्वास करते हैं उनकी मदद के लिए परमेश्वर की भारी सामर्थ उन तक पहुँचती है। हमारा प्रभु महान है, फिर भी एक महान सहानुभूति रखनेवाले के रूप में वह उसके जीवन में प्रवेश करने के लिए हमेशा तैयार रहता है। परमेश्वर के लिए कोई भी कार्य बड़ा नहीं होता। और करने के लिए उसकी सहायता मांगना बहुत छोटी बात नहीं होती। अरामी सेना का अंधा किया जाना (2 राजा 6:8-23) एलीशा की सेवकाई के दौरान अरामी लोग कभी-कभी इस्राएल से युद्ध करते थे तो कभी-कभी बनाए रखते थे। इस घटना के समय वे इस्राएलियों पर अचानक हमला करने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन एलीशा ने इस्राएल को अरामी के हमले की गुप्त योजना के विषय बताया। एलीशा के पास परमेश्वर के द्वारा दिए गए दान के कारण उनकी अचानक हमले की योजना विफल हो गई, जब तक आराम के राजा ने भविष्यद्वक्ता को पकड़ लेने के बाद यह सब बंद न करवाया। यह जानकर कि भविष्यद्वक्ता दोतान में है जो शहर सामरिया से ज्यादा दूर नहीं था, उसने शहर को घेरने के लिये कई रथ और घोड़े भेजा। सुबह एलीशा के दास ने जब नगर को शत्रु से घिरे पाया तो वह घबरा गया। लेकिन भविष्यद्वक्ता की प्रार्थना के उत्तर में उसके दास को वह चमत्कारिक शक्ति मिली कि वह परमेश्वर के द्वारा भेजे गए रक्षक घोड़ों और अग्निरथों को देख सका जिन्हें उसने अपनी संतानों की रक्षा के लिये भेजा था। वह जवान चिल्ला पड़ा होगा, "यदि परमेश्वर हमारी ओर से है तो हमारे विरुद्ध कौन हो सकता है?" फिर एलीशा ने परमेश्वर से कहा कि वह अरामियों को अंधा कर दे। फिर उसने उन्हें दोतान से सामरिया ले आया वह भी बिना तकलीफ के। इस्राएल का राजा उन्हें मार डालने के लिये बेताब था, परंतु एलीशा ने उसे रोक दिया और कहा कि वह उन्हें भोजन करवाकर वापस घर भेज दे। ऐसे व्यवहार के द्वारा उसने भलाई के द्वारा बुराई पर जीत हासिल किया। उसके बाद अरामी सेना ने इस्राएल पर हमला नहीं किया। जो लोग परमेश्वर के संरक्षण में होते हैं उनका नुकसान करने के लिये उन पर हमला करना कितना निरर्थक होता है। इस बात का यकीन रखना कितनी धन्य बात है कि परमेश्वर संकट में मिलनेवाला सहज सहायक है। इस बात का पूरा निश्चय रखना कि "जो हमारे साथ है, वे उनसे ज्यादा हैं जो उनके साथ हैं!"

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