Class 7, Lesson 17: एलिया का जीवन और समय ( भाग 2 )

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एलिय्याह का जीवन और समय (भाग 2) इस पाठ में हम परमेश्वर के उत्साही जन एलिय्याह को देखेंगे जो एक स्त्री (इजेबेल) की धमकी से कायर बन गया। अग्नि द्वारा उत्तर देने वाला परमेश्वर एलिय्याह की चुनौती को स्वीकार करते हुए अहाब ने इस्राएल के सभी लोगों और बाल के भविष्यद्वक्ताओं को कर्मेल पर्वत पर इकट्ठा किया। एलिय्याह उनके सामने खड़ा हुआ और कहा, "तुम कब तक दो विचारों में लटके रहोगे यदि यहोवा परमेश्वर हो तो उसके पीछे हो लो और यदि बाल हो तो उसके पीछे हो लो।" परंतु लोग पूरी तरह शांत थे। भीड़ से बात करते हुए उसने लोगों को दो विचारों के बीच लटकने का दोषी ठहराया, उसने कहा कि उन्हें प्रभु को या बाल को चुन लेना चाहिये। फिर उसने उसके सामने एक प्रस्ताव रखा जिसे वे ठुकरा नहीं सके। उसने कहा, "यहोवा के नबियों में से केवल मैं ही रह गया हूँ; और बाल के नबी साढ़े चार सौ मनुष्य हैं। इसलिये दो बछड़े लाकर हमें दिए जाएँ, और वे एक अपने लिये चुनकर उसे टुकड़े-टुकड़े काटकर लकड़ी पर रख दें और कुछ आग न लगाएँ; और मैं दूसरे बछड़े को तैयार करके लकड़ी पर रखूँगा, और कुछ आग न लगाऊँगा। तब तुम अपने देवता से प्रार्थना करना और मैं यहोवा से प्रार्थना करूँगा और जो आग गिराकर उत्तर दे वही परमेश्वर ठहरे।" सभी लोग इस परीक्षा के लिये तैयार हो गए। इस प्रकार परीक्षा की शर्ते ठहराई गई। पहली बारी बाल के भविष्यद्वक्ताओं की थी बाद में एलिय्याह की। उन्होंने उन्हें दिया गया बछड़ा लिया उसे तैयार किया और सुबह से दोपहर तक बाल को पुकारते रहें, "हे बाल हमारी सुन" परंतु कोई उत्तर नहीं मिला। और वे उनकी बनाई गई वेदी के चारों तरफ उछलने कूदने लगे। एलिया के ठट्ठे और बाल की खामोशी से उत्तेजित होकर उन्होंने जोर जोर से चिल्लना शुरू किया और अपनी ईमानदारी सिद्ध करने के लिये अपने शरीर को घायल भी किया। दोपहर तक वे नबूवत करते रहे और चीखते रहे परंतु कोई उत्तर नहीं मिला, और किसी ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। बाल के नबी बुरी तरह असफल रहे। अब एलिय्याह की बारी थी। उसकी आँखों में विश्वास झलक रहा था और उम्मीद दिख रही थी। उसने सभी लोगों से कहा, "मेरे पास आओ।" वह चाहता था कि वे उसे ध्यान से देखें कि वह क्या करनेवाला था और निश्चय जान लें कि उसके कार्य में कोई बनावटीपन नहीं है। एलिया ने परमेश्वर के नाम के 12 पत्थर बनाया। 12 पत्थर इस्राएल के 12 गोत्रों को प्रस्तुत करते हैं। यद्यपि वे गोत्र दो राष्ट्रों में बैठ चुके थे परंतु परमेश्वर की दृष्टि में वे एक ही लोग थे। उसने वेदी के चारों ओर गड्डा खोदा फिर उसने वेदी पर लकड़ियों को रखा, बछडे़ के टुकडे़ किया और उन्हें लकड़ी पर रख दिया। उसने उन्हें चार घड़े पानी लकड़ी पर डालने को कहा। उसने उन्हें ऐसा तीन बार कहने को कहा। पानी वेदी से होकर गड्डे में जमा हो गया। ऐसा उसने इसलिये किया क्योंकि वह हर संभावना को खत्म करना था कि वेदी में चमत्कार की बजाय पहले से ही आग थी। इस्राएलियों के शाम के बलिदान के समय (3 बजे) एलिय्याह ने प्रार्थना किया। उसके शब्दों ने इस्राएल के परमेश्वर का ध्यान अपनी ओर खींचा जो उस घटना का मुख्य पात्र था। उसकी प्रार्थना ने वह सब किया जो उसने कहा और किया क्योंकि परमेश्वर का दास परमेश्वर का आज्ञाकारी था। उसने परमेश्वर से केवल इतना कहा कि वह लोगों को बता दे कि वही सच्चा परमेश्वर है ताकि वे अपना हृदय उसी की ओर फेरे। आगे जो हुआ वह तत्काल और चमत्कारिक था। परमेश्वर की आग गिरी और होमबलि, लकड़ी, पत्थर और धूल को भस्म कर दी और गड़हे का पानी सुखा दी। पत्थरों सहित सब कुछ महीन राख में बदल गया। जब धुआँ साफ हो गया तब उनके चेहरे पर दो ही भाव प्रगट थे लोगों पर आराधना के भाव और भविष्यद्वक्ताओं पर चिंता के। वे उनके मुँह के बल गिर पड़े और कहा, "यहोवा ही परमेश्वर है, यहोवा ही परमेश्वर है।" "बाल के सभी भविष्यद्वक्ताओं को पकड़ो।" एलिय्याह ने कहा, "एक भी बचकर भागने न पाए।" और लोगों ने उन सबको पकड़ लिया, और एलिय्याह ने उन सब को किशोन के नाले में ले जाकर मार डाला। एलिय्याह न बारिश के लिए प्रार्थना की तब भविष्यद्वक्ता ने राजा से कहा कि अब भारी बारिश होगी। अहाब खा पी लेने के द्वारा सूखा के अंत का उत्सव मनाने को पहाड़ के नीचे की और छोड़ पड़ा, परंतु एलिय्याह बारीश के लिये प्रार्थना करने पर्वत पर उपर चढ़ा। उसने भूमि पर गिरकर अपना मुँह घुटनों के बीच छिपा लिया। जब वह प्रार्थना कर रहा था तो उसकी मुद्रा उसकी प्रार्थना की गंभीरता को दर्शा रही थी, एक बार फिर से परमेश्वर की महिमा के लिये। एलिय्याह ने दास से कहा कि वह बाहर जाकर समुद्र की ओर देखे। दास ने वैसा ही किया और आकर कहा कि हाँ कुछ दिखाई नहीं पड़ता। एलिय्याह ने उसे सात बार भेजा। परमेश्वर ने उसकी निरंतर प्रार्थना का उत्तर दिया। सातवीं बार दास ने लौटकर बताया, "देख समुद्र में से मनुष्य का हाथ सा एक छोटा बादल उठ रहा है।" प्रत्यक्ष रूप से एलिया को छोटा सा बादल दिखा परंतु उसके हृदय में परमेश्वर की प्रतिज्ञा थी। उसने अहाब को खबर भेजा कि वह जल्दी से यिज्रैल पहुँचे (शायद वह राजा का ग्रीष्मकाल का निवास था)। तब परमेश्वर का हाथ भविष्यद्वक्ता के साथ था और वह तेजी से छोड़ा और अहाब के रथ को भी पीछे छोड़ते हुए यिज्रैल पहुँचा। यह बात ध्यान देने योग्य है कि जब लोगों ने यह मान लिया कि यहोवा ही परमेश्वर है, और बाल के भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला गया तब ही बारीश हो सकी। यह घटना हमें सिखाती है कि पापों का अंगीकार और परमेश्वर के वचन का पालन आशीष पाने के कदम है। भविष्यद्वक्ता जो मरना चाहता था कर्मेल की घटनाओं से भयभीत अहाब ने इजेबल को बाल के भविष्यद्वक्ताओं की मृत्यु के विषय बताया। जब उसने यह सुनी तो उसने एक दूत भेजकर एलिय्याह को संदेश दि कि वह एक दिन के भीतर उसे मार डालेगी। तब एलिय्याह की क्या प्रतिक्रिया हुई? जब उसने इजेबल की धमकी को सुना तो वह डर गया। वह जान बचाने के लिये बेर्शेबा को भाग गया जो यिज्रेल से 130 कि.मी दूर है, परंतु तब भी यह दुष्ट इजेबेल के लिये ज्यादा दूर नहीं था। इसलिये वह जंगल के भीतर चला गया और वह अकेला एक झाऊ के पेड़ तले बैठ गया। और उसने प्रार्थना किया कि वह मर जाए। "हे यहोवा, बस है अब मेरा प्राण ले ले क्योंकि मैं अपने पुरखाओं से अच्छा नहीं हूँ" फिर वह पेड़ के नीचे सो गया। परंतु जब वह सो रहा था एक स्वर्गदूत ने उसे छूकर कहा, "उठ और कुछ खा ले।" परमेश्वर की प्रतिक्रिया उसे डाँटने की बजाय परमेश्वर ने एलिय्याह को धीरे से उठाया और उसके पैरों पर खड़ा किया। हमारा परमेश्वर जानता था कि उसके जन को आराम और पोषण की आवश्यकता थी। एक बार फिर से परमेश्वर ने एलिय्याह की शारीरिक जरूरत को आश्चर्यजनक रीति से पूरी किया। इस बार परमेश्वर ने उसे एक स्वर्गदूत द्वारा भोजन कराया। परमेश्वर का दूत फिर से आया और उससे कहा कि कुछ खा ले क्योंकि उसे एक लंबी यात्रा करना था। परमेश्वर द्वारा दिए गए भोजन की शक्ति से एलिय्याह ने होरेब पर्वत पर जाने के लिये 40 दिन 40 रात तक यात्रा किया। यह वही सीनै पर्वत है जहाँ परमेश्वर ने मूसा को व्यवस्था दिया था। वह वहाँ आकर एक गुफा में रहने लगा। वहाँ परमेश्वर ने एलिय्याह से बातचीत किया। उसे आज्ञा देने या डाँटने के बजाय उसने उससे केवल एक प्रश्न पूछा, "हे एलिय्याह, तेरा यहाँ क्या काम?" उसने उत्तर दिया, "सेनाओं के परमेश्वर यहोवा के निमित्त मुझे बड़ी जलन हुई है, क्योंकि इस्राएलियों ने तेरी वाचा टाल दी, तेरी वेदियों को गिरा दिया, और तेरे नबियों को तलवार से घात किया है, और मैं ही अकेला रह गया हूँ और वे मेरे प्राणों के भी खोजी हैं।" परमेश्वर ने उसे पर्वत पर ही खड़े रहने को कहा। तब वहा एक बड़ी आंधी चली, भूकंप हुआ और आग जलने लगी। लेकिन इन सब में परमेश्वर नहीं था। अंत में भविष्यद्वक्ता ने एक दबा हुआ धीमा शब्द सुना। जब एलिय्याह ने वह सुना तो उसने अपना मुँह चद्दर से ढाँप लिया। और बाहर जाकर गुफा के द्वार पर खड़ा हो गया। और उस वाणी ने कहा, "हे एलिय्याह तेरा यहाँ क्या काम?" वह परमेश्वर की अनुग्रही वाणी थी। परमेश्वर ने फिर से वही कहा। उसकी प्रतिक्रिया तब भी वही थी। उसका जवाब यह दर्शाता है कि अब भी वह अपने आप पर तरस खा रहा था। यदि हम स्वयं पर तरस खाते हैं तो परमेश्वर पर संदेह करते हैं ऐसे समय में यह बात महत्वपूर्ण है कि हम "परमेश्वर की दबी धीमी वाणी को सुने। फिर परमेश्वर ने एलिय्याह को बताया कि वह अनाज्ञाकारियों को दंडित करने के लिये हजाएल का उपयोग करेगा, येहू इजेबेल के लिये हजाएल का उपयोग करेगा येहू इजेबेल को दंडित करेगा और एलीशा उसको मददगार और उत्तराधिकारी होगा। इतना ही नहीं परमेश्वर ने एलिया से कहा कि 7000 और भी लोग है जो उसके आज्ञाकारी हैं। इसका मतलब यह हुआ कि परमेश्वर की सेवा में एलिय्याह अकेला नहीं था। इससे हम सीखते हैं कि परमेश्वर के लिये कोई भी तुच्छ नहीं है। होरेब के पहले, एलिय्याह ने परमेश्वर के विषय बहुत कुछ सीखा, लेकिन होरेब में उसने अपनी कमियों या छोटा होने के विषय सीखा। एलिय्याह ने जाकर एलीशा को खोजा जो खेत जोत रहा था। उसने अपनी चद्दर उस पर डाल दिया यह चिन्ह था कि एलीशा उसका उत्तराधिकारी होगा। उसने तुंरत अपना पेशा छोड़ दिया और उसके पीछे चल दिया। एलिय्याह ने उसे अनुमति दिया कि वह उसके परिवार से विदा ले। एलीशा ने अपने निर्णय को पक्का करने के लिये बैलों को बलि किया और जोतने के सामानों को जला डाला। भोजन के पश्चात् एलीशा एलिया के संग हो लिया और उसका दास बन गया। अब समय था कि एलिय्याह अपनी सेवकाई को पूरी करे और एलीशा उसका उत्तराधिकारी बने। जब परमेश्वर एलिय्याह को बवडंर में आकाश में उठानेवाला था तब एलिय्याह और एलीशा गिलगाल के मार्ग पर थे। गिलगाल से वे बेतेल गए और फिर यरीहो गए। यरीहो से वे यरदन नदी गए। जब एलिय्याह ने अपनी चद्दर को यरदन पर मारा तो पानी दो भागो में बँट गया और दोनों ने सूखी जमीन से होकर नदी पार किया। जब एलिय्याह ने कहा यदि वह उसे उससे अलग होते देख ले तो उसकी विनती सुन ली जाएगी। जब वे बातें करते जा रहे थे, अग्नि का एक रथ प्रगट हुआ और उसमें अग्नि के घोड़े लगे थे, आकर दोनों को अलग कर दिया। और एलिय्याह बवडंर द्वारा स्वर्ग में उठा लिया गया। उस प्रार्थना को याद करें जो उसने इजेबेल से भागते समय किया था कि वह मरना चाहता है। अब स्वर्ग में उठाए जाते समय उसने आश्चर्य किया होगा कि किस तरह उसका जीवन बच गया था। परमेश्वर ने अपनी सर्वोच्च योजना द्वारा उसके संसारिक जीवन का इतना महिमायम अंत किया था। एलीशा ने अभी-अभी उसके स्वामी को खोया था। परंतु जब एलिय्याह का जीवन खत्म हुआ तब यह एलीशा की सेवकाई के जीवन की शुरूवात थी। हम दो अद्भुत सिद्धांतों को देखते हैं। पहला: जब परमेश्वर का कोई जन मरता है, परमेश्वर का कुछ नहीं मरता। यद्यपि अगुवे उठा लिए जाते हैं, परमेश्वर तब भी उसके लोगों की भलाई में रूचि रखता है। वह देखभाल के लिये और उसके प्रिय जनों की देखभाल के लिये अगुवे प्रदान करता है। दूसरा: जब किसी महान व्यक्ति का कार्य खत्म होता है तब दूसरे का कार्य शुरू होता है। एलिय्याह के अध्याय के अंत के साथ एलीशा का अध्याय आशीष और सामर्थ के साथ शुरू होता है। हम पौलुस द्वारा तीमुथियुस को दिए गए निर्देश के देख सकते हैं, और जो बातें तूने बहुत से गवाहों के सामने मुझसे सुनी है, उन्हें विश्वासी मनुष्यों को सौंप दे, जो दूसरों को भी सिखाने के योग्य हों।" (2 तीमु 2:2)

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