Class 7, Lesson 16: एलिया का जीवन और समय ( भाग 1 )

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एलिय्याह का जीवन और समय (भाग 1) परिचय उन सभी भविष्यद्वक्ताओं में से जो इस्राएल के पूरे इतिहास में जाने जाते थे, एलिय्याह के समान कोई और ज्लवंत और दमकता हुआ भविष्यद्वक्ता नहीं था। परमेश्वर के पास हर समय के लिये उचित व्यक्ति था। इस समय के लिये एलिया था। वह अनजाना और अनसुना था। परमेश्वर के द्वारा चुने गये व्यक्ति की तैयारी अक्सर गुप्त में होती है और वह वहीं जाता है जहाँ परमेश्वर चाहता है। करीब 50 वर्षों से भी अधिक समय तक रक्तपात और अनैतिकता का अंधकार सारे इस्राएल देश पर मंडराता रहा था। मूर्तिपूजा की भी जड़ें गहराई तक पहुँच चुकी थी। यह भयानक स्थिति थी परंतु स्थिति उससे भी बुरी होनेवाली थी जब ओम्री का पुत्र अहाब सिंहासन पर बैठा। अहाब की पत्नी इजेबेल भी एक दुष्ट स्त्री थी। इस अंधियारे पटल पर एलिय्याह प्रगट होता है जो दुष्ट राजा की आंखों में परमेश्वर के वचन के प्रकाश को चमकाने से नहीं डरता। एलिय्याह गिलाद के तिशबी से आया जो यरदन नदी के पूर्व में है और इसलिये वह तिशबी कहलाया। उनके नाम का अर्थ है "मेरा परमेश्वर यहोवा है।" यही उसके व्यक्तित्व की विशेषता या द्योतक है। करीत में डेरा एलिय्याह ने इजेबेल की योजना के विषय सुना जो परमेश्वर की जगह बाल आराधना प्रचलित कर रही थी। इस खबर ने उसके धर्मी हृदय को उत्तेजित कर दिया। परमेश्वर की प्रतिज्ञा से लैस होकर वह सामरिया में अहाब राजा के महल में गया और उससे कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा जिसके सम्मुख मैं उपस्थित रहता हूँ, उसके जीवन की शपथ इन वर्षों में मेरे बिना कहे न तो मेघ बरसेगा, और न ओस पड़ेगी।" यह घोषणा करने के बाद परमेश्वर ने एलिय्याह से सामरिया छोड़ने और पश्चिम की ओर लौटने को कहा और करीत नामक एक नाले के रूकने को कहा जो यरदन के पूर्व की ओर बहता है। परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते हुए वह नाले में जाकर छिप गया। वहाँ उसकी देखभाल और पोषण नाले के पानी, सुबह शाम चमत्कारिक रूप से कौए के द्वारा लाई गई रोटी से किया गया। एलिय्याह के भोजन लानेवाले कितने अनोखे थे। कौओं द्वारा खिलाया गया, जो प्रकृति के विपरीत है। परमेश्वर का उसके प्राणियों पर पूरा नियंत्रण है। परमेश्वर ने उन्हें आज्ञा दिया था कि वे उसे नाले के पास भोजन पहुचाएँ। इस अनुभव ने उसे परमेश्वर की सर्वोच्चता और उसकी देखभाल के विषय सिखाया जो साथ-साथ चलते हैं। कुछ समय पश्चात साढ़े तीन वर्ष के सूखा के कारण नाला सूख गया। यह उसी की प्रार्थना का सीधा परिणाम था। दिन प्रतिदिन जब नाला सूखता जा रहा था, वह भविष्यद्वाणी को पूरी होते और प्रार्थना के उत्तर को महसूस कर रहा था। एलिय्याह भी तो हमारे समान दुख-सुख भोगी मनुष्य था और उसने गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की कि मेघ न बरसे और साढ़े तीन वर्ष तक भूमि पर मेघ नहीं बरसा।" (याकूब 5:17) सारपत की विधवा क्या एलिय्याह के लिये मार्ग का अंत हो गया? क्या परमेश्वर उसके प्रियजन को सूखे नाले के किनारे छोड़ देगा? नहीं! वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर उसे नहीं छोड़ेगा जिसने उसकी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया, उसकी भविष्यद्वाणियों को पूरा किया और उसकी जरूरतों को पूरी किया। वास्तव में यह एक कार्य के बाद दूसरा कार्य की शुरूवात थी। जब नाला सूख गया तो परमेश्वर का यह वचन उसके पास पहुँचा, "चलकर सीदोन के सारपत नगर में जाकर वही रह सुन, मैंने वहाँ की एक विधवा को तेरे खिलाने की आज्ञा दी है।" सारपत भूमध्यसागर के तट पर बसा एक नगर था जो सोर और सैदा के बीच था, और ईजेबेल का घर था। यह करीत से करीब 140 कि.मी दूर था। क्रिया में मूल शब्द का अर्थ "सूंघा, शुद्ध किया और परखा" होता है। परमेश्वर ने एलिय्याह से कहा कि एक विधवा उसे खिलाएगी। सामान्यतः विधवाएँ गरीब होती थीं। इसके अलावा सूखे के कारण वहाँ अकाल भी पड़ा था और सामान्यतः सबसे पहले अकाल मे गरीबों का भोजन ही पहले खत्म हो गया था। इसलिए भोजन के लिये एक विधवा के घर जाना अनोखा निर्देश था। एक बार फिर परमेश्वर अपने दास का पेट भरने के लिये असामान्य स्त्रोत का उपयोग कर रहा था। आज्ञापालन करते हुए एलिया उस छोटे शहर को चला गया। वहाँ उसे एक विधवा मिली जो लकड़ियाँ चुन रही थी और उसने उससे पानी मांगा। जब वह पानी लाने जाने लगी, तो उसने कहा, "अपने हाथ में एक टुकड़ा रोटी भी मेरे पास लेती आ।" उसने कहा, "तेरे परमेश्वर यहोवा के जीवन की शपथ मेरे पास एक भी रोटी नहीं है केवल घड़े में मुट्ठीभर मैदा और कुप्पी में थोडा सा तेल है, और मैं दो एक लकड़ी बीनकर लिए जाती हूँ कि हम उसे खाएँ, फिर मर जाएँ।" एलिय्याह ने उससे कहा, "मत डर, जाकर अपनी बात के अनुसार कर, परंतु पहले मेरे लिये एक छोटी सी रोटी बनाकर मेरे पास ले आ।" "इसके बाद तेरे और तेरे पुत्र के लिये भरपूर भोजन रहेगा।" उसने उसकी आज्ञा का पालन की और उसकी इसी आज्ञापालन ने उसे एक बहुमूल्य सीख दिया कि जो लोग परमेश्वर को पहला स्थान देते हैं, उन्हें जीवन में किसी बात की घटी नहीं होती। उसका आटे का घड़ा और कुप्पी भर तेल कभी खत्म नहीं हुआ। लूका 4:26 में हम पढ़ते हैं कि एलिया को एक अन्यजातीय विधवा के पास भेजा गया था किसी इस्राएली विधवा के पास नहीं। परमेश्वर ने विश्वासयोग्यता के अनुसार न केवल एलिय्याह की जरूरत पूरी किया परंतु विधवा और उसके बेटे की भी जरूरत को पूरी किया। सूखा के दिनों में परमेश्वर की सहायता भविष्यद्वक्ता के पास बहुत ही निम्नतरीकों से पहुँची पहले अशुद्ध पक्षियों के द्वारा और फिर एक अन्यजातीय (गरीब विधवा) स्त्री के जरिये। परमेश्वर के जन की जो उसकी वाणी का पालन करता है, जरूरतें हमेशा हर तरह से पूरी की जाएँगी चाहे उसके आसपास की स्थितियाँ कैसी भी क्यों न हों। कुछ समय के पश्चात् विधवा का पुत्र गंभीर बिमारी से मर गया। उसे तुरंत ऐसा लगा कि उसके किसी पाप के कारण ही ऐसा हुआ है। जब उसने एलिय्याह को पुकारी तो उसने उसके बेटे के शरीर को लिया और उपरौठी कोठरी में अपने बिस्तर पर रखा। उसने परमेश्वर से तीन बार प्रार्थना किया और उस पर खुद को पसार दिया। और हर बार प्रार्थना किया कि वह उसका प्राण उसमें फिर से डाल दे। परमेश्वर ने चमत्कारिक रूप से लड़के को जीवित कर दिया। उसने उसे अपने साथ नीचे ले गया और उसकी माँ को सौंप दिया। इस बात ने विधवा को यकीन दिला दिया कि एलिय्याह परमेश्वर का जन था और यह भी कि परमेश्वर का वचन सत्य है। यद्यपि वह एक अन्यजातीय स्त्री थी, उसने इस्राएल के परमेश्वर पर विश्वास जताई। एलिय्याह अहाब के सामने अकाल के तीसरे और अंतिम वर्ष में परमेश्वर ने एलिय्याह को आज्ञा दिया कि वह स्वयं को अहाब के सामने प्रस्तुत करे। इसलिये वह स्वयं को दिखाने अहाब के सामने गया। सच पूछा जाए तो यह खतरनाक कार्य था। सामरिया में अकाल भीषण था। इस बात ने अहाब और उसके दास ओबद्याह (वह नबी नहीं जिसने ओबद्याह पुस्तक लिखा) को जानवरों के लिये घास ढूंढने को जाने पर मजबूर किया। ओबद्याह जीवते परमेश्वर का परमभक्त था। यह वही व्यक्ति था जब इजेबेल ने कुछ को मार डाली थी और बाकी की खोज में थी। जब ओबद्याह घास ढूँढ रहा था, एलिय्याह उससे मिला और कहा कि वह जाकर अहाब को उसके विषय जानकारी दे। ओबद्याह को डर था कि इसका अंत मृत्यु हो सकता है और उसने एलिय्याह से कहा, "फिर ज्यों ही मैं तेरे पास से चला जाऊँगा त्यों ही यहोवा का आत्मा तुझे न जाने कहाँ उठा ले जाएगा, अत जब मैं जाकर अहाब को बताऊँगा, और तू उसे न मिलेगा, तब वह मुझे मार डालेगा।" भविष्यद्वक्ता ने प्रतिज्ञा किया कि वह उस स्थान को छोड़कर नहीं जाएगा और परमेश्वर की आज्ञानुसार उसने अहाब से मिलने का प्रबंध किया। जब अहाब ने उसे देखा तो उसे इस्राएल को दुख देने वाला होने का आरोप लगाया। उसने उससे कहा, "हे इस्राएल के सतानेवाले क्या तू ही है?" वह इस बात को समझ नहीं पाया कि परमेश्वर का यह जन इस्राएल के उत्तम मित्रों में से एक है अपने जीवन की परवाह न करते हुए एलिय्याह ने अहाब को उत्तर दिया। उसने राजा को दोषी ठहराया कि वह यहोवा के स्थान पर बाल की आराधना को बढ़ावा दे रहा है और उसने चुनौती दिया कि सभी बाल भविष्यद्वक्ताओं को स्पर्धा के लिये कर्मेल पर्वत पर इकट्ठा किया जाए यह निर्धारित करने के लिये कि सच्चा परमेश्वर कौन है। यह इस्राएल के जीवित परमेश्वर और अन्यजातियों के ईश्वर के बीच एक स्पर्धा थी। एलिया अहाब की दुष्टता, शक्तिहीन इश्वरों को समस्त इस्राएल के सामने उजागर करना चाहता था।

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