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इस्राएल के राजा 8) अहज्याह (1 राजा 22:51; 2 राजा 1:1-18) दस गोत्रों के राज्य का आठवाँ राजा अहज्याह, आहाब का सबसे बड़ा बेटा था, अति दुष्ट मनुष्य जिसने दो वर्षों से कम राज्य किया। वह उस समय सामरिया के शाही महल में था जब वह छत से गिर गया था और गंभीर रूप से घायल हो गया था। इस डर से कि कही उसकी चोटें घातक सिद्ध न हो जाएँ उसने पलिश्तियों के मुख्य शहरों में से एक एक्रोन में बालजबूब देवता से यह पूछने के लिये संदेश वाहकों को भेजा कि वह बचेगा या नहीं। अहज्याह द्वारा लोगों केा बालजबूब के पास भेजना जानबूझकर यहोवा का तिरस्कार करना था, और उसकी उपस्थिति और सामर्थ का अनादर था। इसी बीच परमेश्वर के दूत ने एलिया से कहा, "उठकर शमरोन के राजा के दूतों से मिलने को जा, और उनसे कह, क्या इस्राएल में कोई परमेश्वर नहीं जो तुम एक्रोन के बालजबूब देवता से पूछने जाते हो? इसलिये अब यहोवा तुझसे यों कहता है, जिस पलंग पर तू पड़ा है, उस पर से कभी न उठेगा, परंतु मर ही जाएगा।" इसलिये एलिया यह संदेश देने को चला गया। संदेश वाहकों ने एलिया की आज्ञा का पालन किया और एक्रोन को गए बिना ही राजा के पास लौट गए। उन्हें अवश्य यकीन हो गया रहा होगा कि भविष्यद्वक्ता ने यह बात ईश्वरीय अधिकार से कहा होगा। जब अहज्याह ने उस व्यक्ति के बारे में वर्णन सुना जो संदेशवाहकों से मिला तो उसने तुरंत पहचान लिया कि वह एलिया ही था। इस संदेश से न घबराते हुए उसने क्रोध से भरकर एक सेना अधिकारी को 50 लोगों के साथ भेजा कि एलिया को बंदी बनाकर लाएँ। उन्होंने उसे एक पहाड़ी की चोटी पर बैठा हुआ पाया। सेना अधिकारी ने कहा, "हे परमेश्वर के भक्त राजा ने कहा है तू हमारे साथ चला आ।" परंतु एलिया ने उसे जवाब दिया, "यदि मैं परमेश्वर का भक्त हूँ तो आकाश से आग गिरकर तुझे तेरे पचासों समेत भस्म कर डाले।" तब स्वर्ग से आग गिरी और प्रधान के साथ उसकी टुकड़ी जलकर भस्म हो गई। और अहज्याह द्वारा भेजी गई दूसरी टुकड़ी भी प्रधान के साथ आग में भस्म हो गई। तीसरा प्रधान और 51 लोगों की उसकी टुकडी दंड से बच गई क्योंकि परमेश्वर और उसके दास के प्रति उनकी नीति पूरी तरह भिन्न थी। एलिया उनके साथ गया और पहले के संदेश को व्यक्तिगत रीति से मृत्यु का संदेश सुना दिया। अहज्याह मर गया और चूँकि उसका कोई बेटा नहीं था, जो उसका उत्तराधिकारी बनता, उसका भाई यहोराम इस्राएल के सिंहासन पर बैठा। 9) यहोराम ( 2 राजा 1:17-9:24) यहोराम आहाब का दूसरा पुत्र था जिसने इस्राएल पर शासन किया। यहूदा के राजा के रूप में यहोशापात के 18वें वर्ष के शासन के बाद यहोराम इस्राएल का राजा बना। उसने 12 वर्ष शासन किया। यद्यपि वह दुष्ट था लेकिन वह उसके पिता आहाब और माँ यिजबेल से कुछ कम ही दुष्ट था। यहोराम ने आहाब द्वारा बनाए गए बाल के पवित्र पत्थर से छुटकारा पाया। परंतु बालदेवता की पूजा के विषय वह सहानुभूति रखता था और समर्थन देता था। आहाब के शासनकाल में मोआब का राजा इस्राएल को भेंट अर्पण किया करता था। लेकिन आहाब की मृत्यु के बाद मोआब ने इस्राएल के विरुद्ध विद्रोह करने का निर्णय किया। यहोराम ने तुरंत ही मोआब को नियंत्रित कर लिया। उसने यहोशापात को उसके विरुद्ध युद्ध में सम्मिलित होने को कहा और मूर्खतापूर्ण रीति से यहोशापात मान गया। (1 राजा 22)। एदोम का राजा जो यहोशापात का दास था, वह भी दोनों के साथ मिल गया। जब वे मोआब पहुँचे, तो पानी की कमी हुई। यहोराम ने परमेश्वर को दोष देना शुरू किया, जबकि यहोशापात ने किसी भविष्यद्वक्ता से संपर्क करने की सलाह दिया। यहोशापात की बात मानकर एलीशा ने परमेश्वर की इच्छा जानने का प्रयास किया। उसी के अनुसार अगली सुबह घाटी में पानी बहने लगा और इस्राएल ने युद्ध जीत लिया। नामान जो अराम के राजा की सेना का एक प्रधान था, उसे अरामी राजा बेनह्दद के पत्र के साथ यहोराम के पास भेजा गया था कि उसका कोढ़ दूर करे। यहोराम चकित हो गया जब उसने पत्र को पढ़ा, और उसने चिंता और निराशा में अपने वस्त्र फाड़े। यहोराम को ऐसा लगा कि बेन्हदद उससे लड़ने का बहाना ढूँढ रहा है। उसे परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता एलीशा के विषय नहीं मालुम था जो उसके कोढ़ को दूर कर सकता था। जब एलीशा ने राजा की चिंता के विषय सुना तो उसने राजा को संदेश भेजा कि उसे चिंता करने की जरूरत नहीं है। उसने कहा कि यदि वह (यहोराम) नामान को उसके पास भेजे तो वह उसे अच्छा कर देगा। जल्द ही नामान उस घातक बीमारी से चंगा हो गया। उस समय अरामी लोग इस्राएल पर अचानक हमला करते थे। लेकिन उनकी योजनाएँ निष्फल हो गई जब परमेश्वर ने एलीशा को योजना के विषय बताया, और उसने इस्राएल के राजा यहोराम को चेतावनी के साथ बताया कि वह सतर्क रहे। यहोराम इस मुकाबले के लिये तैयार हो गया और उस गुप्त हमले का सामना किया। ऐसा कई बार हुआ। एक बार फिर से अराम के राजा ने उसके उसकी सारी राज्य की लड़ाकू सेना को इकट्ठी किया और सामरिया को घेर लिया। यद्यपि शहरपनाह ने लोगों को उस घेराबंदी से बचा लिया, परंतु अकाल से मृत्यु होने लगी। सामरिया में एलीशा ही एकमात्र व्यक्ति था जो छुटकारे के लिये परमेश्वर विश्वास करता था। और एक व्यक्ति के विश्वास ने आशीष लाया। एलीशा की दृष्टि सामरिया की जल की कमी पर नहीं थी परंतु उसे मुहैय्या कराने की परमेश्वर की योग्यता पर थी। और अगले दिन उसके विश्वास की पुष्टि हो गई। अदृश्य रथों और घोड़ों ने दुश्मनों को जान बचाकर भागनेपर मजबूर कर दिया।इसके परिणामस्वरूप प्रचुर मात्रा में भोजन सामग्रियाँ उपलब्ध हो गईं। अब समय आ गया था कि अहाब के घराने के विरुद्ध परमेश्वर की भविष्यद्वाणी पूरी हो जाए। परमेश्वर ने इस उद्देश के लिये येहू को चुना। उसने यहोराम को मार डाला और अहाब के घराने की प्रभुता का अंत कर दिया। 10) येहू ( 2 राजा 9:1-10:36) येहू पांचवी राजसत्ता का संस्थापक था, वह राजसत्ता जो 114 वर्षों तक चलने वाली थी, जो इस्राएल के किसी अन्य राजसत्ता से दुगनी थी। येहू और हजाएल जो अराम का राजा था अहाब के घराने को नष्ट करने के लिये चुना गया था। (1 राजा 19:15,17)। परमेश्वर ने अहाब के घराने के विनाश की घोषणा एलिया के द्वारा कर दिया था। अब एलिया के उत्तराधिकारी एलीशा का समय था कि उस पर अमल करे। (1 राजा 21:17-28)। एलीशा भी जानता था कि येहू परमेश्वर का साधन बनेगा। यहूदा का राजा अहज्याह इस्राएल के राजा यहोराम के साथ गया कि रामोत गिलाद में अराम के राजा हजाएल के विरुद्ध लड़े। अरामियों ने यहोराम को जख्मी कर दिया। इसलिये यहोराम राजा सुधरने के लिये यिज्रेल आ गया और उसे देखने अहज्याह गया। इसी बीच एलीशा ने एक जवान भविष्यद्वक्ता को रामोत गिलाद भेजा कि येहू को अभिषिक्त करे। यह एक अचानक और अनापेक्षित घोषणा थी और येहू को जल्दबाजी में राजा घोषित किया गया। उसे बाल के उपासकों का इश्वरीय दंड के अनुसार वध करने को नियुक्त किया गया, विशेषकर अहाब के दुष्ट घराने को। येहू उसे सौंपे गए कार्य के लिये यथोचित व्यक्ति था, वह निडर, निश्चयी, निर्भय, उत्साही और दयाहीन था। जिस दिन से भविष्यवक्ता रामोत-गिलाद में आया और परमेश्वर का संदेश दिया और उस दिन तक जब येहू ने इस्त्राएल से बाल की उपासना खत्म किया, वह समय मूर्तिपूजा के दंड का भयानक समय था। जैसे ही उसे राजा घोषित किया गया, उसने यहोराम राजा के विरुद्ध उसके षड़यंत्र की योजना को उजागर कर दिया। ऐसा ठहराया गया था कि एक छोटी टुकड़ी को लेकर येहू यिज्रेल को जाएगा, राजा पर अचानक हमला करेगा, उसे घात करेगा और उसके स्थान पर राज्य करेगा। यिज्रेल में दो राजा इस्राएल का यहोराम और यहूदा का अहज्याह इन्हें खतरे का कोई आभास नहीं था। जब यिज्रेल की मीनार से संतरी ने टुकड़ी को येहू के नेतृत्व में बेतहाशा भागकर आते देखा तो उन्होंने सोचा कि वह युद्ध क्षेत्र से कोई महत्वपूर्ण समाचार ला रहा है। शायद अरामियों ने रामोत-गिलाद पर फिर से कब्जा कर लिया था। उन्होंने जल्दबाजी में संदेशवाहकों को भेजा और जो हुआ उसके लिये वे तैयार नहीं थे। यहोराम का समय आ गया था, और येहू ने उसे धनुषबाण से मार डाला। यहूदा का राजा अहज्याह अहाब का पोता था और मूर्तिपूजक भी था। परिणामस्वरूप वह येहू के आदेशाधीन था। इसलिये यहोराम के साथ पाए जाने के कारण उसे भी उसकी सजा मिली। और अहज्याह का विनाश परमेश्वर की ओर से था।" (2 इतिहास 22:7) मरनेवाली अगली महिला इजेबेल थी। उसे नीचे फेंक दिया गया और उसे घोडों ने रौंद डाला इस प्रकार (1 राजा 21:23) में लिखी एलिया की भविष्यद्वाणी पूरी हुई। फिर अहाब के घराने पर दंड उतरा। यह कितना भयानक चित्रण है। अहाब के न केवल 70 पुत्र परंतु हर एक जो उसके घराने से जुड़ा था, उसके रिश्तेदार, बुजुर्ग और याजक सभी मारे गए। और हत्या अभी भी जारी थी, अहज्याह के वारीसदार मारे गए थे, और फिर येहू उस देश के सभी बाल उपासकों को खत्म करने निकला था। परमेश्वर ने उसकी सराहना किया कि उसने उसे सौपें हुए कार्य को पूरा किया। (2 राजा 10:30)। लेकिन इन सबके बावजूद उसका हृदय परमेश्वर के साथ ठीक नहीं था। उसने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की व्यवस्था पर पूर्ण मन से चलने की चैकसी न की, वरन यारोबाम जिसने इस्त्राएल से पाप कराया था, उसके पापों के अनुसार करने से वह अलग न हुआ। (2 राजा 10:31)। कुछ हद तक येहू ने ठीक किया था, उसने बाल उपासना को खत्म किया था। परंतु उसने सच्ची उपासना का समर्थन नहीं किया। सोने के बछड़ों को हटाया नहीं गया। लोगों को परमेश्वर की सच्ची उपासना में वापस लाने का उसका कोई इरादा नहीं था। उसने अपने राजसत्ता को परमेश्वर की आज्ञापालन से बढ़कर समझा इसलिये वह खो गया। येहू ने परमेश्वर की व्यवस्था पर चलने पर कोई ध्यान नहीं दिया और "उन दिनों यहोवा इस्त्राएल की सीमा को घटाने लगा।" (2 राजा 10:31-33)। येहू का करीब आधा राज्य जल्द ही अराम के राजा हजाएल को दे दिया गया। परमेश्वर ने विश्वासयोग्यता के साथ उसकी शर्तहीन प्रतिज्ञा कि वह येहू की पीढ़ियों को इस्राएल के सिंहासन पर बनाए रखेगा, पूरा किया। उसने अपने स्वार्थ के कारण स्वयं को कई आशीषों से वंचित कर लिया। येहू का अनुभव उन सबके लिये चेतावनी होना चाहिये जो परमेश्वर की सेवा को उनके फायदे तक ही आराधना करते हैं। और वह वास्तविक आज्ञाकारिता नहीं होती। 11) यहोआहाज ( 2 राजा 13ः1-9) येहू का पुत्र यहोआहाज 17 वर्ष तक इस्राएल का राजा था। उसने यहोवा और अशेरा की उपासना करके यारोबाम का अनुकरण किया। परमेश्वर ने अरामियों को इस्राएल के विरुद्ध भेजकर उसे दंडित किया। उन्होंने बड़ी संख्या में यहोआहाज की सेना को खत्म किया। जब उसने परमेश्वर से प्रार्थना किया तब परमेश्वर ने एक छुड़ाने वाला तैयार किया और उसने इस्राएल को अरामियों के हाथ से छुड़ाया। लेकिन वह यारोबाम के घराने के पापों से अलग नहीं हुआ, बल्कि उन्हीं में चलता रहा। जब यहोआहाज मर गया, उसे सामरिया में गाड़ा गया, और उसका बेटा यहोआश उसके बाद सिंहासन पर बैठा। 12) योआश (यहोआश) ( 2 राजा 13:10-14:16) योआश येहू को प्रतिज्ञा किये गए चार पीढ़ियों मे से दूसरी पीढ़ी था। वह अपने पिता के समान ही दुष्ट व्यक्ति था और उसने नाबात के पुत्र यारोबाम के पापों का अनुकरण किया। योआश स्वयँ परमेश्वर का उपासक नहीं था और दान और बेतेल के बछड़े उसके शासनकाल में भी पूजे जाते थे। लेकिन उसने यहोवा की उपासना को भी क्रियाशील रूप से विरोध नहीं किया। ऐसा दिख पड़ता है कि वह एलीशा के कार्यों की वास्तविक तारीफ करता था। उसने एलीशा को राज्य के महान रक्षक के रूप में देखा और उसकी मृत्यु पर शोक भी किया। एलिशा ने रोनेवाले राजा को अरामियों पर विजय का सांकेतिक यकीन दिलाया जिसमें उसने धनुष और तीर का उपयोग किया। यह ऐसा था मानो एलिशा कह रहा हो, मैं तो मर रहा हूँ, परंतु यहोवा जीता रहेगा। हिम्मत रख क्योंकि जब तू अरामियों से लड़ेगा वह तेरे साथ रहेगा। पूर्व की ओर बढ़ता हुआ यह तीर परमेश्वर के ओर से छुटकारा है।" (2 राजा 13:17)।जब एलीशा ने राजा के विश्वास को परखा तो उसे कम पाया।परिणामस्वरूप अधूरी विजय की ही प्रतिज्ञा की गई, और वह भी परमेश्वर के अनुग्रह से हुआ। जब अराम का राजा हजाएल मर गया, बेन्हदाद उसका बेटा उसके स्थान पर राजा बना। फिर योआश ने जो यहोआहाज का बेटा था, बेन्हदद से उन नगरों को वापस ले लिया जिन्हें उसने उसके पिता यहोआहाज से युद्ध में जीत लिया था। योआश ने उसे तीन बार हराया, और इस तरह इस्राएली नगरों को वापस ले लिया। यहूदा का राजा अमस्याह ने योआश को युद्ध के लिये ललकारा। उसने इस्राएल के राज्य को जीतने की सोचा जो उसके अपने राज्य से तीन गुणा बड़ा था। और चाहा कि उसे यहूदा में मिला ले। लेकिन इस्राएल के राजा ने अमस्याह की चुनौती को एक दृष्टांत द्वारा उत्तर दिया और घर पर ही रहने, अपनी जीतों में संतुष्ट रहने की सलाह दिया। लड़ाई में अमस्याह हार गया और उसे परमेश्वर के कहे अनुसार मूर्तिपूजा के लिये दंडित किया गया। योआश ने कुल मिलाकर 16 वर्ष राज्य किया। लेकिन पाँच वर्षों के बाद योआश का पुत्र यारोबाम-2 भी उसके साथ समानांतर रूप से राज्य करने लगा था। 13) यारोबाम -2 (2 राजा 14:23-29) यारोबाम-2 ने इस्राएल के अन्य राजाओं से ज्यादा समय तक राज्य किया। उसने 40 वर्ष तक सिंहासन पर कब्जा बनाए रखा (कुछ समय योआश के साथ साझेदारी में) और इस दौरान उसने राज्य को इतना विशाल बढ़ाया जो सुलैमान के समय से उस समय तक नहीं बढ़ाया गया था। और फिर भी पवित्र आत्मा उसके शासनकाल को छः छोटी आयतों में कहता है, "मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है परंतु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है" (1 शमूएल 16:7)। जब मनुष्य यारोबाम-2 को देखता था तो वह एक महान राजा था, जब परमेश्वर उसे देखता तो वह एक खोया हुआ पापी था। (2 राजा 14:24)। बाहर से तो यारोबाम-2 काफी सफल था, भीतर से वह पूरी तरह असफल था। आमोस, होशे, और योना ने यारोबाम-2 के दिनों में भविष्यद्वाणी किया था। यह वही था जिसने परमेश्वर के वचन के अनुसार इस्राएल की सीमाओं को पुनः बहाल किया जिसके विषय इस्राएल के परमेश्वर ने अमितै के पुत्र योना के द्वारा कहा था जो गथेपेर का भविष्यद्वक्ता था। परमेश्वर ने देखा था कि इस्राएल क्या स्वतंत्र क्या गुलाम किस तरह पीड़ित थे, उनकी मदद करनेवाला कोई नहीं था। क्योंकि परमेश्वर ने नहीं कहा था कि वह स्वर्ग से इस्राएल का नाम मिटा डालेगा, उसने उन्हें यारोबाम के हाथों से बचाया। 14) जकर्याह ( 2 राजा 15:8-12) जहाँ से इस्राएल के अंतिम राजाओं की सूची शुरू होती है। यारोबाम-2 के बाद जकर्याह उत्तराधिकारी हुआ। उसने केवल 6 माह ही राज्य किया। उसके पहले के राजाओं के समान उसने दान और बेतेल में बछड़े की उपासना जारी रखा। परमेश्वर ने धीरज के साथ उन्हें उसकी ओर फिरने को कहा, परंतु व्यर्थ हुआ। जकर्याह, येहु राजसत्ता (राजवंश) का चौथा और अंतिम शासक था। इस बुरे शासन को केवल 6 माह तक ही चलने की अनुमति दी गई। उसका शल्लूम के द्वारा खुले आम कत्ल किया गया था। 15) शल्लूम (2 राजा 15:10-15) शल्लूम ने केवल एक माह के लिए ही सिंहासन पाया क्योंकि उसके साथ भी वही हुआ था जो उसने जकर्याह के साथ किया था। वह उसकी सेना कर प्रमुख मनहेस द्वारा मारा गया। मनहेस का मानना था कि सेना का प्रधान होने के कारण जकर्याह का उत्तराधिकारी उसे होना चाहिए था। उसने आखिरकार तिप्सह नामक स्थान पर हमला किया क्योंकि वहाँ के रहवासी उसे राजा नहीं मानते थे। सब कुछ अस्पष्ट था और इस्राएल में राजनैतिक अव्यवस्था थी। अंत आते तक स्थिति बिगड़ती ही गई। 16) मनोहस (2 राजा 15;16-22) मनोहस विशेषकर निष्ठुर और भयानक राजा था जो तिप्सह के लोगों के साथ बर्ताव के द्वारा दिख पड़ता है, जिन्होंने उसे समर्पण करने से इन्कार कर दिया था। उसने 10 वर्ष तक सरकार चलाया। उसी के शासनकाल में अश्शूर देश जिसका उपयोग बाद में परमेश्वर ने इस्राएल को दंडित करने के लिए किया था, चुनौतियों के साथ आगे बढ़ा था। इसी समय अश्शूर को 1 हजार किक्कार चाँदी (37 टन जिसकी कीमत 2 मिलियन डॉलर है) दी गई जिसे मनोहस ने उसके राज्य के धनी लोगों से कर के रूप में वसूल किया था। मनोहस की मृत्यु के बाद उसका पुत्र पकह्याह उत्तराधिकारी हुआ। 17) पकह्याह (2 राजा 15:23:25) इस राजा ने केवल 2 वर्ष ही राज्य किया। उसका चरित्र बुरा था, ठीक वैसे ही जैसे उसके पहले के राजाओं का था और वह उसी के एक सेना प्रधान के हाथों मारा गया था। पेकह 50 लोगों को लेकर सामरिया गया और राजा को मार डाला। राजकुमार भी मारे गए। यह किले के भीतर ही किया गया जो महल का सबसे सुरक्षित स्थान होता है। फिर पेकह ने इस्राएल का सिंहासन ले लिया। 18) पेकह (2 राजा 15:27-31) पेकह ने 20 वर्षों तक राज्य किया और उसके शासनकाल में अश्शूर फिर से इस्राएल की ओर बढ़ा, उससे पहले उसने अराम को नाश कर दिया था। गलीली और नप्ताली के देश जीत लिए गए और उस प्रांत के लोगों को बंदी बनाकर अश्शूर ले जाया गया। 19) होशे (2 राजा 17) होशे उत्तरी राज्य जा अंतिम शासक था, और उसके शासन के अंत में दस गोत्रों को अश्शूरियों द्वारा बंदी बनाकर ले जाया गया। उस समय अश्शूर का राजा शल्मनेसर था। उसने सामरिया पर इसलिए आक्रमण किया क्योंकि वसाल के रूप में होशे उसे वार्षिक भेंट नहीं दे सका और अश्शूरी जुए से स्वतंत्र होने के लिए उसने मिस्र के राजा से संधि कर लिया। फिर उसने पूरे इस्राएल देश में अपनी सेना के साथ घूम-घूमकर प्रांतों पर कब्जा किया। राजधानी सामरिया को जीतना कठिन था लेकिन तीन वर्ष तक घेरा डालने के बाद उसने उस पर कब्जा कर लिया और इस्राएलियों को बंधुवाई में अश्शूर ले गया जहाँ उसने उन्हें अलग अलग स्थानों में रखा। इसी तरीके से परमेश्वर ने इस्राएल को उसकी अनाज्ञाकारिता का दंड दिया इस प्रकार दुष्ट राजाओं के शासन के 200 वर्षों के राज्य का अंत हो गया।
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