Class 7, Lesson 12: इस्राएल का राजा

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इस्राएल के राजा 1) यारोबाम (1 राजा 11:28-40; 12:20-40:20) एप्रैमी गोत्र के नबात का पुत्र यारोबाम सुलैमान का अपना कर्मचारी था। उस समय सुलैमान उसके पिता दाऊद के नगर की छतों और दीवालों की मरम्मत कर रहा था। यारोबाम अति योग्य व्यक्ति था। जब सुलैमान ने देखा कि वह कितना मेहनती था तो उसने उसे एप्रैम और मनश्शे के गोत्र से आए मजदूरों का प्रधान नियुक्त कर दिया। एक दिन जब यारोबाम यरूशलेम से जा रहा था, शीलोह से भविष्यद्वक्ता अहिय्याह उसे मार्ग में मिला, जिसने नया वस्त्र पहना था। उस समय मैदान में दोनो अकेले ही थे, और अहिय्याह ने नया चोगा (चद्दर) लिया और उसके 12 टुकड़े कर दिया। फिर उसने यारोबाम से कहा, "दस टुकड़े ले ले; क्योंकि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, सुन मैं राज्य को सुलैमान के हाथ से छीनकर दस गोत्र तेरे हाथ में कर दूंगा। परंतु मेरे दास दाऊद के कारण और यरूशलेम के कारण जो मैंने इस्राएल के सब गोत्रों मे से चुना है, उसका एक गोत्र बना रहेगा। इस बात ने यारोबाम को काफी प्रभावित किया होगा। जब सुलैमान ने इसके विषय सुना तो उसने यारोबाम को मार डालने की सोचा। लेकिन वह बचकर मिस्र भाग गया। सुलैमान पूरे इस्राएल पर यरूशलेम में 40 वर्षों तक शासन करता रहा। उसकी मृत्यु के बाद उसका बेटा रहूबियाम शेकेम गया, जहाँ सारा इस्राएल उसे राजा बनाने के लिये इकट्ठा हुआ था। जब यारोबाम ने सुलैमान की मृत्यु के विषय सुना तो वह मिस्त्र से लौट आया। जब रहूबियाम राजा बनाया गया तब उत्तरी इलाके के गोत्र के लोग चाहते थे कि यारोबाम उनकी कम टॅक्स लेने की विनती को रहूबियाम के सामने प्रस्तुत करे। टॅक्स की रकम घटाकर और श्रम में कमी (हल्का) करने के द्वारा रहूबियाम उत्तरी जातियों का समर्थन प्राप्त कर सकता था। परंतु उसने कहा कि उनके सुझाव पर सोचविचार करने के लिये उसे तीन दिनों का समय चाहिये। उसने सम्मतिदाताओं के दो समूहों से पूछा। बुजुर्गों के समूह ने सुझाव दिया कि टैक्स कम किया जाए और बोझ हल्का किया जाए। लेकिन जवानों की सम्मति बुजुर्गो की सम्मति से भिन्न थी। राजा ने जवान सलाहकारों की सलाह को मान लिया और लोगों की मांग पर ध्यान नहीं दिया। घटनाओं की यह शृंखला परमेश्वर की योजना के अंतर्गत थी। इस बात ने अहिय्याह नबी के द्वारा यारोबाम को दिए गए संदेश को पूरा किया। जब सारे इस्राएल ने यह जान लिया कि राजा ने उनकी विनती को ठुकरा दिया है तो वे चिल्ला पड़े, "दाऊद के साथ हमारा क्या अंश? हमारा तो यिशै के पुत्र में कोई भाग नहीं। हे इस्राएल अपने डेरे को चले जाओ अब हे दाऊद अपने ही घराने चिंता कर।" इसलिये इस्राएल के लोग घर लौट गए। परंतु रहूबियाम इस्राएलियों पर शासन करता रहा जो यहूदा में रहते थे। रहूबियाम राजा ने अदोराम को जो बेगारों पर अधिकारी था आदेश की पुनः बहाली के लिये भेजा, परंतु इस्राएल ने उसे पथराव करके मार डाला। फिर इस्राएल के लोगों ने एक सभा बुलाया और यारोबाम को इस्राएल का राजा बना दिया। इस प्रकार केवल यहूदा और बिन्यामीन के गोत्र दाऊद के घराने के विश्वासयोग्य रहे। इस्राएल के पहले राजा ने पहले शकेम को अपनी राजधानी बनाया और फिर पनूएल को बनाया जो यरदन के पार है। इस डर से कि कहीं इस्राएल के लोग यरूशलेम लौटकर त्योहारों में वहाँ आराधना न करें और वापस यहूदा के राजा के प्रति इमानदार न हो जाएँ, उसने अपनी धार्मिक प्रथा चलाया; दान और बेथेल आराधना के नए केंद्र बन गए। उसने दोनों स्थानों मे सुनहरे बछड़े रख दिया और घोषणा किया कि वे ही ईश्वर हैं, जिन्होंने उन्हें मिस्र से निकाल लाया था। उसने एक नई याजकीय व्यवस्था की स्थापना किया जो आवश्यक रूप से लेवी नहीं थे जिन्हें परमेश्वर ने ठहराया था, परंतु आम लोगों में से थे। उसने 7वें माह के मिलापवाले तंबू के पर्व की जगह 8वें माह के 15वें दिन को एक नया पर्व मनाने की आज्ञा दिया। इस्राएल के त्योहार यारोबाम द्वारा ठहराए गये थे, जबकि यहूदा के त्योहार परमेश्वर के आदेश थे। उसकी प्रजा ने इन परिवर्तनों को तुरंत स्वीकार कर लिया जो यह दर्शाता है कि उनके हृदय परमेश्वर से बहुत दूर थे। परमेश्वर की आज्ञा से एक व्यक्ति यहूदा के बैतेल गया, और वह वहाँ उस समय गया जब यारोबाम वेदी पर बलि चढ़ाने ही वाला था। राजा यारोबाम परमेश्वर के जन से बहुत नाराज था क्योंकि वह वेदी के विरुद्ध कह रहा था। इसलिये उसने उस व्यक्ति की ओर इशारा किया और चिल्लाया, "उस व्यक्ति को पकड़ लो।" परंतु उसी स्थिति में राजा का हाथ लकवाग्रस्त हो गया, और वह उसे वापस नहीं खींच सका। उसी समय वेदी में एक चैड़ी दरार पड़ गई और उसकी राख गिर गई, ठीक वैसे ही जैसे परमेश्वर के जन ने पहले कहा था। राजा ने परमेश्वर के उस जन से पुकार कर कहा, "अपने परमेश्वर यहोवा के मना और मेरे लिये प्रार्थना कर कि मेरा हाथ ज्यों का त्यों हो जाए।" इसलिये परमेश्वर के जन ने प्रभु से प्रार्थना किया और राजा का हाथ फिर से सामान्य हो गया। जब अबिय्याह उसका बेटा बीमार हुआ तो उसने अपनी पत्नी को अहिय्याह भविष्यद्वक्ता के पास भेजा। रानी वेष बदल कर गई। शायद राजा ने सोचा था कि भविष्यद्वक्ता को मूर्ख बनाने से वह भी परमेश्वर को मूर्ख बना सकता है। परंतु परमेश्वर ने अहिय्याह को राजा के लिये संदेश दिया उसे राजा की योजना के विषय बताया। जैसे ही वह भविष्यद्वक्ता के पास पहुँची उसने उसका भेद खोल दिया और उसे विनाश के संदेश के साथ यारोबाम के पास लौटा दिया। यारोबाम ने इस्राएल पर 22 वर्ष राज्य किया, और मर गया। यदि यारोबाम परमेश्वर की आज्ञापालन की शर्तों को मान लेता तो परमेश्वर के साथ उसकी उपस्थिति बनी रही होती और उसके राज्य को बनाने के लिये उसके पास परमेश्वर की सामर्थ रही होती। उसने परमेश्वर के वचन को पूरी तरह एक ओर कर दिया था और अपने ही हृदय की युक्तियों पर चला। ऐसा करना कभी भी खतरनाक बात हो सकती है क्योंकि मनुष्य का हृदय सबसे अधिक धोखा देनेवाला और अति दुष्ट है।" केवल परमेश्वर का वचन ही मानवीय आचरण के लिये संपूर्ण मार्गदर्शक है। 2) नादाब (1 राजा 15:25-31) यारोबाम का पुत्र नादाब दो वर्ष तक इस्राएल का राजा रहा। केवल उसकी मृत्यु के विषय को छोड़कर, जो कुछ उसके विषय कहा गया है वह परमेश्वर की दृष्टि में बुरा था, "और अपने पिता के मार्ग पर वही पाप करता हुआ चलता रहा जो उसने इस्राएल से करवाया था।" (1 राजा 15:25-26)। बाद में बाशा नामक उसके एक व्यक्ति ने उसके विरुद्ध षडयंत्र रचा और उसे मार डाला। उसने यारोबाम के घराने के बचे हुए सदस्यों को भी मार डाला इस प्रकार अहिय्याह की भविष्यद्वाणी पूरी हुई। 3) बाशा (1 राजा 15:32-16:6) बाशा इस्साकार के गोत्र का था। उसने नादाब राजा को षड़यंत्र रचकर मार डालने के बाद इस्राएल के सिंहासन को प्राप्त किया। उसके 24 वर्षीय पूरे शासन के दौरान उसके और यहूदा के राजा के बीच दुश्मनी बनी रही। यद्यपि उसने परमेश्वर के द्वारा यारोबाम के घराने के विरुद्ध दंड की आज्ञा का पालन किया था, फिर भी उसने उससे कोई सबक नहीं सीखा था। यारोबाम के घराने पर दंड इसलिये आया था क्योंकि यारोबाम ने पाप किया था। परंतु इसे चेतावनी समझने की बजाय बाशा उसी तरह पाप करता रहा जैसे यारोबाम करता था। इसलिये परमेश्वर ने बाशा को भी वही दंड दिया। 4) एला (1 राजा 16:6-14) एला अपने पिता बाशा की तरह इस्राएल के सिंहासन पर बैठा, परंतु बहुत थोड़े समय तक ही राज्य किया। वह एक पिय्यकड़, नाकाम व्यक्ति था जिसकी हत्या जिम्री नामक एक कर्मचारी ने उस समय किया जब वह तिर्सा में शराब के नशे में था और उसकी सेना गिब्बतोन में पलिश्तियों से लड़ रही थी। 5) जिम्री ( 1 राजा 16:15-20) जिम्री का दुष्ट शासन सभी राजाओं के शासनकाल में सबसे ज्यादा अल्पकालीन था। जिम्री ने बाशा के घराने के साथ वही किया जो बाशा ने यारोबाम के घराने के साथ किया था। वह सेना में बहुत लोकप्रिय नहीं था। जैसे ही यह समाचार फैला कि जिम्री ने एला राजा की हत्या करके सिंहासन पर बैठ गया है, गिब्बतोन में सेना ने ओम्री को सेना प्रधान और इस्राएल का राजा बना दिया। फिर वे उसके साथ तिर्जा शाही नगर को गए और उस पर घेरा डाल दिया। जब जिम्री ने देखा कि नगर पर कब्जा कर लिया गया है और उसके सिंहासन को बचाने की कोई आशा नहीं है तो उसने महल में घुसकर आग लगा दिया और खुद भी जलकर मर गया। 5) तिब्नी (1 राजा 16:21,22) गिनात का पुत्र तिब्नी चार वर्ष के लिए इस्त्राएल का राजा था। यद्यपि इस्त्राएल ने ओम्री को इस्राएली सेना का प्रधान और राजा बनाया था, तिब्नी उसका विरोधी था। उसी समय के दौरान गृह युद्ध छिड़ गया और उत्तरी राज्य दो भागों में बँट गया। तिब्नी ने ओम्री के करीब 6 वर्ष तक विरोध किया। अंत में ओम्री ने तिब्नी पर विजय पाया और अकेला शासक बन गया। तिब्नी की मृत्यु शायद हत्या के द्वारा हुई थी। 6) ओम्री ( 1 राजा 16:21-29) दस गोत्रों के राज्य में ओम्री सिंहासन पाने वाला 6वाँ राजा था।सिंहासन के विरोधी दावेदार को हराने के बाद उसने इस्त्राएल पर 12 वर्ष से अधिक समय तक राज्य किया। पहले 6 वर्ष उसने तिर्जा में राज्य किया। फिर उसने एक नई राजधानी को चुना, एक पहाड़ी जो प्रशंसनीय रूप से सुंदर और सुरक्षित स्थान था। उसने उस पहाड़ी को शेमेर से खरीद लिया, वहाँ शहर बसाया और उसका नाम सामरिया रखा। यह शहर दस गोत्रों के राज्यों की राजधानी बनी रहा और इस्राएल का राजनैतिक जीवन का केंद्र भी। पुरातत्व खोजें बताती हैं कि ओम्री अपने समय का काफी प्रसिद्ध राजा था। 7) आहाब (1 राजा 16:29-22:40) इस्राएल के सिंहासन पर विराजने वाला 7वाँ व्यक्ति आहाब उसके पहले के सब राजाओं से सबसे बुरा था। वह न केवल यारोबाम के पापों के मार्ग पर चला, बछड़े की पूजा की अनुमति दिया, और अन्य दुष्कर्मों को बढ़ावा दिया जो उस समय हुई, परंतु यिजबेल जो सीदोनीयों के राजा की बेटी थी, उससे विवाह करके बाल देवता की भी इस्राएलियों से पूजा करवाया। और वह खुद भी बाल का उपासक बन गया। यही उसका सबसे बड़ा पाप था। "बाल" कई देशों के द्वारा उनके अपने देवता को दिया गया नाम था। बाल की पूजा करने के कई कारणों में से एक कारण उसे जमीन और उत्पादकता का ईश्वर मानना था। परमेश्वर की उपस्थिति से पूरी तरह दूर हो जाने की स्थिति में अचानक एलिशा गिलाद के पहाड़ी जंगलों से प्रगट हुआ। बिना क्षमा याचना किए उसने राजा को यहोवा का संदेश कह सुनाया। यदि आहाब मूसा के लेखों से परिचित रहा होता तो उसे यह भी पता होता कि अन्य देवताओं की आराधना करने के कारण परमेश्वर लोगों को दंड देगा। 1 राजा की पुस्तक के 4 अध्याय मुख्यतः एलिया के विषय कहते हैं। 17वें अध्याय में एलिया अचानक एक छोटा संदेश लेकर आहाब के सामने आता है, फिर व्यक्तिगत जीवन जीता है और परमेश्वर के महान कार्य के लिये उसके द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है। फिर हम उसे कर्मेल पर्वत पर उसके सामर्थशाली विश्वास के साथ खड़े देखते हैं और उसकी प्रार्थना के द्वारा एक दोषी देश परमेश्वर की ओर फिर जाता है। 19वें अध्याय में हम उसे निराशा में परमेश्वर द्वारा ढ़ाढ़स बंधाते, सिखाते और पुनः प्रेरित करते हुए देखते हैं और 21वें अध्याय में हम उसे परमेश्वर की ओर से दुष्ट राजा आहाब को अंतिम संदेश देते हुए देखते हैं। कुछ समय के पश्चात् अराम के राजा बेन्हदद ने अपनी सारी सेना इकट्ठी किया और सामरिया को घेरकर उसके विरुद्ध युद्ध किया। कोई भी व्यक्ति यह सोचेगा कि आहाब, जिसने एलिया भविष्यद्वक्ता के द्वारा परमेश्वर की सामर्थ को देखा था और एलिया की प्रार्थनाओं का उत्तर देने की इच्छा देखा था, तुरंत ही परमेश्वर की ओर फिरा होगा और उसके शत्रुओं के विरुद्ध परमेश्वर से सहायता माँगा होगा। इसके विपरीत उसने सलाह के लिये बुजुर्गों को बुलवाया। लेकिन परमेश्वर ने आहाब को यह यकीन दिलाया कि वही सचमुच परमेश्वर है। यद्यपि आहाब ने नहीं मांगा, परंतु परमेश्वर ने उसे आनेवाले युद्ध में सहायता करने की प्रतिज्ञा किया। 232 पुरुषों की एक छोटी टुकडी इस्राएलियों के 7000 सैनिकों के आगे दुश्मनों का खात्मा करने निकल पड़ी। छोटी संख्या इसलिये चुनी गई थी कि यह निश्चित किया जा सके कि विजय परमेश्वर की ओर से ही थी। हमेशा की तरह परमेश्वर ने विश्वासयोग्यता के अनुसार अपनी प्रतिज्ञा को पूरी किया और आहाब को विजय दिलाया। करीब एक वर्ष के बाद, इस्राएल के विरुद्ध अगली अरामी लड़ाई में परमेश्वर ने फिर से इस्राएल को विजय दिलाया और अरामी और आहाब दोनों इस बात को जान गए कि यहोवा ही परमेश्वर था।" (1 राजा 20:28) हम आहाब को फिर से परमेश्वर की इच्छा के प्रति अनादर करते और पूरी तरह अपने ही मार्ग पर चलने की जिद को देखते हैं। उसने नाबोत, उसके भाई की संपत्ति के विषय परमेश्वर द्वारा निर्धारित व्यवस्था की कोई फिक्र नहीं किया। यिजबेल ने एक धूर्त योजना बनाई और नाबोत को मरवा डाली और उसकी संपत्ति राजा को दिलवाई। लेकिन परमेश्वर की दृष्टि में स्वयं आहाब ही खूनी था। एलिया के साथ आहाब की आखिरी भेंट ने स्वेच्छा से चलने वाले राजा को पश्चाताप के बदले क्रोध से भर दिया। भविष्यद्वक्ता द्वारा आहाब पर परमेश्वर की सजा का सुनाया जाना बहुत गंभीर था। परंतु देखिये कि परमेश्वर कितना दयालु है! क्योंकि आहाब ने स्वयं को दीन किया, परमेश्वर ने उस विपत्ति को उसकी मृत्यु होने तक टाल दिया। आहाब के कार्य से कोई भी यह सोच सकता है कि अंततः उसने पश्चाताप किया था और पूरी तरह परमेश्वर की ओर फिर गया था। परंतु जब हम इस्राएल के इस राजा की अंतिम छवि को देखते हैं तो पाते हैं कि उसमें पश्चाताप या समर्पण का कोई चिन्ह नहीं था। आराम और इस्राएल के बीच 3 वर्ष की शांति के बाद आहाब ने फिर से युद्ध करने की सोचा। उस समय धर्मी और नम्र ॉदयी यहोशापात यहूदा पर शासन कर रहा था। उसके बेटे ने आहाब की बेटी से विवाह किया था। और यिजबेल और यहोशापात अराम आए हुए थे। आहाब ने मौका पाकर अराम के विरुद्ध अपनी लड़ाई में उसे भी शामिल होने को निमंत्रित किया। यहोशापात ने सहमति जताया परंतु अहाब से कहा कि वह परमेश्वर से पूछे। हम देखते हैं कि युद्ध में यहोशापात का जीवन चमत्कारिक रूप से (अनायस नहीं) बचाया गया। और आहाब चमत्कारिक रूप से (अनायस नहीं) एक व्यक्ति के तीर से मारा गया जिसने बिना निशाना साधे ही तीर चलाया था। आहाब युद्ध में एक सैनिक के वेष में गया था। तीर का मार्गदर्शन परमेश्वर द्वारा किया गया था। वह सीधे इस्राएल के छदमवेशी राजा को लगा। जब आहाब घायल हो गया तब उसे युद्ध पंक्ति से बाहर निकाला गया। वह उसके रथ में रूका रहा और शाम तक अपनी सेना को आज्ञा देता रहा, और फिर मर गया। उसने इस्राएल पर 22 वर्षों तक शासन किया। क्येांकि आहाब ने स्वयं को दीन किया था, परमेश्वर ने भविष्यद्वाणी की सजा पूरी तरह उसके पुत्र योराम के समय पूरी किया। (2 राजा 9:25,26)।

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