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यहूदा के राजा 17) यहोआहाज: 2 राजा 23:31-35; 2 इतिहास 36:1-4 योशिय्याह का बेटा यहोयाहाज केवल तीन माह के लिये यहूदा का राजा बना। योशिय्याह के चार बेटे थे जिनमें से तीन ने उनके पिता की मृत्यु के बाद यहूदा पर राज्य किया। जब फिरौन, नको, मिस्त्र के राजा ने योशिय्याह को पराजित किया तब यहूदा मिस्र के अधीन हो गया। यहूदा के लोगों ने यहोआहाज को उनका राजा चुना, परंतु जल्द ही वे जान गए कि उनका स्वामी कौन था। उसने अपने पिता के सुधार कार्यों का अनादर किया और लोगों को मूर्तिपूजा में लौटने की अनुमति दिया। जब मिस्री राजा ने यहोआहाज को असहयोगी पाया तो उसने उसे बंदी बनाकर मिस्र भेज दिया जहाँ आखिरकार वह मर गया। फिरौन नको ने यहूदा पर भारी कर भी लगाया। फिर उसने यहोआहाज के बड़े भाई एलीयाकीम को यहूदा के सिंहासन पर बिठाया और उसका नाम बदलकर यहोयाकिम रख दिया। 18) यहोयाकीम: 2 राजा 23:36; 24:7; 2 इतिहास 36:5-10। यहोयाकीम ने यरूशलेम पर 11 वर्ष शासन किया और प्रथम चार वर्ष उसने अपने लोगों से अत्याधिक कर वसूल करके मिस्त्र को भारी भेंट अर्पण किया। उसने उसके पिता योशिय्याह द्वारा खारिज की गई मूर्तिपूजा की पुनः शुरूवात किया। फिर ईसापूर्व वर्ष 605 में बेबीलोन के राजा नबूकदनेस्सर ने जो कुछ वर्षों से शक्तिशाली होता जा रहा था, फिरौन नको को हटाकर उनकी सीमा तक ढकेल दिया और यहूदा पर कब्जा कर लिया। यही वह समय था जब यहूदियों को बंदी बनाकर ले गया। बंदी बनाए गए लोगों में दानिय्येल भी एक था। तीन वर्षों तक यहोयाकीम बेबीलोन के राजा के अधीन रहा। फिर उसने विनाशकारी परिणामों के साथ विद्रोह किया। कसदियों, अरामियों, मोआदियों और अम्मोनियों के हमलावरों ने जो सभी बेबीलोन के शासनाधीन थे, बेबीलोन के राजा के नेतृत्व में यहूदा पर आक्रमण किया और उसे नाश कर दिया। बाद में उन्होंने यहोयाकीम के शासनकाल में यहूदा की कमजोरी का फायदा उठाया। 2 राजा 24:2-3 में लिखा है कि परमेश्वर ने इन शत्रुओं को, यहूदा के पाप के कारण उसके द्वारा की गई भविष्यवाणी को पूरा करने को भेजा था। यहोयाकीम के शासन के 4थे वर्ष में परमेश्वर ने यिर्मयाह को आज्ञा दिया कि वह इस्त्राएल के विनाश से संबंधित सभी भविष्यद्वाणियों को लिखे और एक वर्ष के बाद उन्हें मंदिर में खुले आम पढ़े। जब दरबार में यह मामला राजा के सामने लाया गया तो उसने उस पत्री को मंगवाया। उसे उसके सामने पढ़ा गया और उसने उसमें के कुछ अंश काटकर आग में झोंक दिया। फिर उसने बारूक और यिर्मयाह को खोजना शुरू किया परंतु परमेश्वर ने उन्हें छिपा दिया। यिर्मयाह ने उन अंशों को फिर से लिखा और उनमें विनाश के विषय यहोयाकीम के डर को भी लिखा। अपने बुरे कार्यों के लिये पश्चाताप करने की बजाय यहोयाकीम ने परमेश्वर के वचन को नष्ट कर दिया। परिणामस्वरूप उसे उसके पाप की सजा भुगतनी पड़ी। यहाँ तक कि आज भी परमेश्वर के शत्रु उसके छपे हुए वचन को नष्ट करते हैं। लेकिन बीज में जीवन होने के कारण (अर्थात परमेश्वर का वचन) वह बढ़ते जाता है। इस संदर्भ में पौलुस के शब्द संदर्भागत हैं, परंतु परमेश्वर का वचन कैद नहीं।" (2 तीमु 2:9) 19) यहोयाकीन ( 2 राजा 24:8-17; 2 इतिहास 36:9-10) यहोयाकीन ने जब शासन करना शुरू किया तो वह 18 वर्ष का था। उसके 3 माह 10 दिनों के शासन के दौरान, ईसापूर्व 597 में दस हजार बंदियों के साथ उसे भी बेबीलोन ले जाया गया। 20) सिदकिय्याह ( 2 राजा 24:18-20; 2 इतिहास 36:11-13) बेबीलोन के राजा ने मतनिय्याह, जो यहोयाकीन का चाचा था, उसकी जगह राजा नियुक्त किया। उसने मतनिय्याह का नाम बदलकर सिदकिय्याह रखा। वह भले राजा योशियाह का सबसे छोटा पुत्र था। वह यहूदा का सिंहासन पानेवाला योशियाह का तीसरा बेटा था। जैसा कि हमने पहले अध्ययन किया है उसके दो बड़े भाई यहोआहाज और यहोयाकीम उससे पहले के राजा थे। शुरू में उसने कठपुतली राजा के रूप में सेवा करना मंजूर किया। बाद में उसने बेबीलोन के राजा के विरुद्ध विद्रोह किया। उसने मिस्त्र की सहायता लिया। अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ने और मिस्र के साथ हाथ मिलाने के उसके छल ने यरूशलेम पर अंतिम प्रहार किया। नबूकदनेस्सर ने शहर को 18 महिनों तक घेरा डाले रहा जिसकी वजह से भीषण अकाल पड़ा। सिदकिय्याह और उसके सिपाहियों ने रात के समय दीवाल तोड़कर भागने का प्रयास किया, परंतु कसदियों ने उसे पकड़ लिया और उसे नबूकदनेस्सर के सामने ले आए। बेबीलोन के राजा ने उसके पुत्रों को उसी की आखों के सामने मार डाला, सिदकिय्याह को अंधा बनाया और सांकलो में बांधकर उसे बेबीलोन ले गया। यिर्मयाह ने भविष्यद्वाणी किया था कि सिदकिय्याह बेबीलोन के राजा को आमने सामने देखेगा। यहेजकेल ने भविष्यद्वाणी किया था कि वह बेबीलोन लाया जाएगा परंतु वह उसे देख न पाएगा और वहीं मर जाएगा। इस प्रकार दो महत्वपूर्ण भविष्यद्वाणियाँ पूरी हो गई। योशियाह एक भला व्यक्ति था जिसका हृदय कोमल था, जिसने परमेश्वर की वाणी को सुना और उसे प्रसन्न करने के लिये जीया। लेकिन उसके तीन पुत्रों में से कोई उसके पदचिन्हों पर नहीं चला। सिदकिय्याह का हृदय कठोर, हठीला और कुल मिलाकर दुष्ट था। उसने न केवल दुष्टताई किया परंतु उसने परमेश्वर के वचन के आगे नम्र होने से इन्कार कर दिया। यहूदा के राजा के अंतिम न्याय का समय आ पहुँचा था। परमेश्वर काफी समय से लोगों के उनके पापों से फिरने की सलाह दे रहा था और धीरज के साथ रूका था, परंतु लोगों ने परमेश्वर की नहीं सुना। वे पाप में धँसते ही गए, जब तक कि राजा, याजक और लोग पूरी तरह भ्रष्ट नहीं हो गए। और इसलिये उन पर प्रकोप भड़का और उनका शहर, मंदिर, देश को नष्ट कर दिया और उनके लोगों को बंधुवाई में ले गया। क्या दाऊद के साथ परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ असफल हो गई थीं? क्या परमेश्वर उस प्रतिज्ञा को भूल गया था जो उसने दाऊद के साथ किया था? "तेरा घराना और तेरा राज्य मेरे सामने सदा अटल बना रहेगा।" (2 शमुएल 7:16) कभी नहीं भूला! परमेश्वर की हर प्रतिज्ञा पूरी होती है, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कितनी भी असंभव या अघटनीय क्यों न हो, वह पूरी होगी। आश्चर्यजनक रीति से परमेश्वर ने दाऊद के वंश को गुलामी में भी सुरक्षित रखा और समय के पूरा होने पर उसका पुत्र यहूदियों का राजा पैदा हुआ, ताकि वह "उसके पिता दाऊद के सिंहासन पर बैठ सके।" यरूशलेम का अंतिम विनाश ईसापूर्व वर्ष 586 में बेबीलोन के सुरक्षा कर्मी के प्रधान नबूजरदान के हाथों हुआ। उसने मंदिर, शाही महल और विशाल इमारतों को जला डाला। दीवालें तोड़ डाली गईं परंतु सभी गरीबों को देश के बाहर ले जाया गया। मंदिर के खजानों की बड़े पैमाने पर लूट की गई।
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