Class 7, Lesson 10: यहूदा का राजा

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यहूदा के राजा आहाज जब राजा बना तब वह 20 वर्ष का था और उसने यरूशलेम पर 16 वर्ष शासन किया। उसका एक अच्छा पिता और एक अच्छा पुत्र था, परंतु वह स्वयँ यहूदा का सबसे बुरा राजा था। उसके पिता योताम ने "अपने जीवन भर वही किया जो परमेश्वर की दृष्टि में सही था" जो सचमुच प्रशंसनीय है। परंतु आहाज इसके विपरीत चरम सीमा तक चला गया। वह दुष्टताई के हर रूप से प्रेरित था। परमेश्वर का क्रोध भड़काने के लिये वह जो कुछ कर सकता था उसने किया। उसने हर प्रकार की अन्यजातीय मूर्तिपूजा किया, बालाम के लिये प्रतिमाएं ढालकर बनाया और यहाँ तक कि मूर्तियों के सामने अपने ही बच्चे अर्पण किया। यहूदा के इतिहास में एक जटिल समय आया। योताम के शासनकाल में ही यहूदा के विरुद्ध अरामी और इस्राएलियों की सैन्य एकीकरण के रूप में राजनैतिक क्षितीज पर बादल छाने लगे थे और अब आहाब के शासनकाल के दौरान ये दोनों राज्य आहाज को पराजित करने के लिये आपस में मिल गए। और उन्होंने यहूदा के सिंहासन पर अपनी इच्छा का व्यक्ति रख दिया। यह दाऊद के घराने को बहिष्कृत करने का एक स्पष्ट खतरा था। लेकिन परमेश्वर उनकी इस योजना को सफल नहीं होने देना चाहता था, या इस दौरान यरूशलेम पर हमला करने नहीं देना चाहता था। उसने घबराए हुए राजा को यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा एक संदेश भेजा और यकीन दिलाया कि उसे उसके सिंहासन से हटाने की उन दो राजाओं की योजना सफल नहीं होगी। उसे परमेश्वर पर विश्वास न करने के परिणामों से भी अवगत कराया गया (यशायाह 7:5-9)। अहाज यदि परमेश्वर की ओर फिरता और उस पर विश्वास कर लेता तो शत्रुओं के विरुद्ध जिन्होंने उसे धमकी दिया था परमेश्वर उसी के संग होता। लेकिन आहाज ने ऐसा नहीं किया और परमेश्वर ने उसे दिखा दिया कि वह अपनी ताकत से अराम और इस्राएल के विरुद्ध लड़ाई में कितना असहाय था। परमेश्वर ने अराम (सीरिया) के राजा को, आहाज को पराजित करने, और बड़ी संख्या में उसके लोगों को दमिश्क में भेजने की अनुमति दिया। इस्राएल की सेनाओं ने भी आहाज को हटाया और उसकी सेना के कई लोगों को घायल किया। एक ही दिन में इस्राएल के राजा पेकह ने यहूदा की सेना के 1,20,000 लोगों को मार डाला क्योंकि उन्होंने उनके परमेश्वर यहोवा को छोड़ दिया था। इस्त्राएल की सेनाओं ने यहूदा से 2,00,000 स्त्रियों और बच्चों को बंदी बनाया और बहुत सी लूट को लेकर वापस समरिया गए। यहूदा को, अरामी राजा के द्वारा बंदियों की बड़ी संख्या के लोगों को खोना पड़ा, परंतु परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता ओदेद की मध्यस्थी के द्वारा उन 2,00,000 लोगों को लौटा दिया गया जिन्हें इस्राएल के राजा ने बंधुवाई में ले गया था। ओदेद एक विशिष्ट तरीके का निडर और साहसी भविष्यद्वक्ता था। किसी सेना को इस तरह की धमकी का संदेश देना जिसने जीत हासिल की हो, सचमुच साहस की मांग करती है। न तो यशायाह के द्वारा परमेश्वर का संदेश और न ही राजाओं के द्वारा दंड, आहाज राजा को उसकी दुष्टता से फेर सका। जब इस्राएल और अरामियों ने उसे फिर से धमकी दिया तो उसने सहायता के लिये परमेश्वर को पुकारने की बजाय अश्शूर के राजा तिलगतपिलनेसेर को बुलवाया। यशायाह ने उसे इस तालमेल के विरुद्ध कड़ी चेतावनी दिया। उसने आहाज को बताया कि वास्तव में उनकी मदद करने के बजाय अश्शूर यहूदा पर हमेशा के लिये कब्जा कर लेगा। इस महान भविष्यद्वक्ता ने राजा और उसके लोगों को किसी अश्शूरी, या मिस्री से जैसे लोग सलाह देते थे सहायता न लेने को कहा, परंतु उसने उन्हें सर्वसामर्थी परमेश्वर से सहायता मांगने को प्रेरित किया। क्योंकि आहाज ने भविष्यद्वक्ता की बातों पर ध्यान नहीं दिया, उसकी मुसीबतें कई गुणा बढ़ गई। यहाँ तक कि परमेश्वर ने उन्हें उत्पीड़ित करने के लिये एदोमियों और पलिश्तियों को भी अनुमति दिया। परमेश्वर का वचन उस समय पूरा हुआ जब तिलगतपिलनेसेर, अश्शूर का राजा, अराम (सीरिया) पर विजय प्राप्त करके यहूदा को गया, मदद करने नहीं लेकिन उसे परेशान करने। जो भेंट उसने मांगा वह इतनी बड़ी थी कि उसे मंदिर का सोना और महल का खजाना भी दे देना पड़ा। देखिये, वह कैसे पाप में धँसता ही गया। उसने किस तरह दृढ़ता से मूर्तिपूजा किया और कितने अनादरपूर्वक तरीके से उसने परमेश्वर के घर के साथ व्यवहार किया। उसके सबसे बुरे कार्यों में से एक परमेश्वर की वेदी को हटाकर उसके स्थान पर अन्यजातीय ईश्वर की स्थापना करना था। (2 राजा 16:10-18)। आहाज का जीवन बहुत अल्पकालीन रहा। वह 36 वर्ष की आयु में ही मर गया। 13) हिजकिय्याह (2 राजा 18,19,20; 2 इतिहास 29-32) यह एक महत्वपूर्ण बात है कि बाइबल के कई पन्ने हिजकिय्याह के 29 वर्षीय शासन को समर्पित हैं, 2 राजा की पुस्तक में तीन पूरे अध्याय, 2 रा इतिहास की पुस्तक में चार अध्याय और यशायाह की पुस्तक के कई भाग। यह यहूदा के इतिहास का सबसे जटिल समय था, और हिजकिय्याह यहूदा के महानतम राजाओं में से एक था। हिजकिय्याह के चरित्र को जिन शब्दों में वर्णन किया गया है वे केवल एक और यहूदा के अन्य राजा (आसा) के लिये प्रयुक्त हुए हैं: "जैसे उसके मूलपुरुष दाऊद ने किया था जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है वैसा ही उसने भी किया।" शुरूवात के ये सात शब्द दूसरे राजाओं के विषय वर्णन में नहीं पाए जाते। दाऊद का सा हृदय रखनेवाले हिजकिय्याह ने यह बात पूरी तरह समझ लिया था कि देश के लिये एकमात्र संपूर्ण आशा सरल विश्वास के साथ परमेश्वर के पास लौटना और उसकी आज्ञा का पालन करना था। राजा बनने के बाद हिजकिय्याह ने जो कार्य सबसे पहले किया वह था परमेश्वर के भवन के सारे दरवाजों को खोलकर उनकी मरम्मत करना, और इस तरह घोषणा किया कि उसका उद्देश्य परमेश्वर की आराधना की पुन बहाली करना था और उसे आगे बढ़ाना ही उसका मुख्य कार्य होगा। दूसरी बात जो उसने किया वह याजकों और लेवियों को इकट्ठा बुलाकर उन्हें निर्देश और प्रोत्साहन देना। उन्हें दिये गए अपने भाषण में उसने शुद्धीकरण की (सफाई) बात पर बल दिया कि यह अत्यंत जरूरी है और बताया कि यही वह पाप था जिसके कारण राज्य में इतने बुरे समय आए। लेवियों ने आज्ञाकारिता के साथ निर्देशों का पालन किया। शुद्धिकरण अपने आप में एक प्रकल्प था। वहाँ इतना कचरा था कि याजकों और सहायकों द्वारा मंदिर साफ करने के लिये वास्तव में 16 दिनों का समय लग गया। फिर लेवी हिजकिय्याह के पास गए और उसे यह रिपोर्ट दिए: "हम यहोवा के पूरे भवन को, और पात्रों समेत होमबलि की वेदी, और भेंट की रोटी की मेज को भी शुद्ध कर चुके जितने पात्र राजा आहाज ने अपने राज्य में विश्वासघात करके फेंक दिये थे, उनको भी हमने ठीक करके पवित्र किया है, और वे यहोवा की वेदी के सामने रखे हुए हैं।" मंदिर का शुद्धिकरण (सफाई) करने के तुरंत बाद मंदिर में आराधना की पुनः बहाली की गई, जैसा दाऊद ने ठहराया था। वहाँ पापों का अंगीकार होता था और पापबलि चढ़ाया जाता था। इनके तुरंत बाद होमबलि और मेलबलि चढ़ाए जाने लगे और गाने, आराधना और आनंद के दोहराए जानेवाली बात हमें उस आनंद का कुछ जानकारी देते हैं जो परमेश्वर के साथ सच्चे पुनः बहाली से होती है। फिर पवित्रीकरण और आराधना के बाद प्रचुर दान देने की बात आई। गतिविधियों की यह आशीषित श्रंखला या क्रम हिजकिय्याह के शासनकाल के कुछ ही हप्तों में इतनी तेजी से बढ़ी कि यह बात प्रत्यक्ष दिख पड़ती थी कि उनके पीछे परमेश्वर का हाथ था। परमेश्वर ने उसके अनुग्रह के द्वारा लोगों के हृदय को गुप्त रीति से तैयार किया था। (2 इति. 29:36)। फिर हम उस महान फसह के पर्व के विषय पढ़ते हैं जिसे उस समय मनाया गया था। फसह के पर्व का निर्धारित समय पहले माह में था (लैव्यवस्था 23:5) परंतु चूँकि वह समय निकल चुका था राजा और लोगों ने एक दूसरे से सलाह करके यह निर्णय लिया कि वे मूसा की व्यवस्था की एक विशेष सहूलियत का लाभ उठाते हुए फसह का पर्व दूसरे माह में मनाएंगे। (गिनती 9:9-11)। इस फसह के पर्व का निमंत्रण संदेश वाहकों के द्वारा न केवल पूरे यहूदा में भेजा गया परंतु इस्त्राएल के भी सभी नगरों में भी भेजा गया यद्यपि उस समय दस गोत्रों के लोगों को बंदी बनाकर अश्शूर ले जाया गया था। हिजकिय्याह दिल से यह चाहता था कि जो जो लोग उत्तरी राज्य में छूट गए थे और साथ ही यहूदा के लोग भी पूरे ॉदय के साथ परमेश्वर के पास लौटें। यद्यपि हिजकिय्याह द्वारा उत्तरी राज्यों में भेजा गया अधिकांश निमंत्रण ठुकरा दिया गया था, वह भी सख्त विरोध के साथ, फिर भी इस्राएल के कुछ लोगों ने स्वयं को नम्र किया, अपने पापों के लिये पश्चाताप किया और यरूशलेम में काफी लोग जमा हुए। सात दिन के अखमीरी रोटी के पर्व के बाद फसह का पर्व शुरू हुआ। यह एक विशाल सभा थी। पहली बार रहूबियाम के समय राज्य के विभाजन के यहूदा और इस्राएल यरूशलेम में परमेश्वर की आराधना के लिये मंदिर में इकट्ठे हुए थे। वहाँ काफी उत्साह, आनंद, गाना और परमेश्वर की स्तुति की जा रही थी। वहाँ पापों के स्वीकार की प्रार्थनाएँ और मेलबलि चढ़ाया जा रहा था। वहाँ लेवियों के द्वारा प्रचार और शिक्षा दी जा रही थी जो राजा के द्वारा प्रमाणित और समर्पित थी। कुल मिलाकर वहाँ इतना आनंद और आशीष था कि सभा के 7 दिन और बढ़ाने की सहमति बनाई गई। और दूसरे सप्ताह के अंत में मंडली को याजकों और लेवियों की आशीष और प्रार्थना के साथ विदा किया गया। इस महान फसह के पर्व के आनंद ने लोगों को नई प्रेरणा के साथ वापस भेजा। एक बुद्धिमान प्रशासक के रूप में हिजकिय्याह ने ऐसी संस्थाएं नियुक्त किया जिनका उपयोग लोगों की मंदिर की सेवा जारी रखने में सहायता प्रदान करने के लिये किया गया। उनके जोश का लाभ उठाते हुए हिजकिय्याह ने ऐसे माध्यम बनाया जिसके द्वारा वे भविष्य की भक्ति भी कर सकते थे। इसमें प्रथम फलों, दशमांश और ऐच्छिक दान शामिल थे। लोगों ने इच्छा से दिया और प्रशासकों ने विश्वासयोग्यता के साथ सेवा किया। दान काफी मात्रा में आता था और इसलिये परमेश्वर के भवन की सेवा क्षमता के अनुसार की जाती थी। हिजकिय्याह स्वयं एक अच्छा उदाहरण था। देने के विषय दूसरों से अनुरोध करने के पहले उसने स्वयं अपने आय स्त्रोतों में से उदारता से दान दिया। यह सच्ची अगुवाई है, न केवल आदेश में परंतु उदाहरण द्वारा भी। जब हिजकिय्याह ने इस कार्य को विश्वासयोग्यता के साथ पूरा कर लिया तब अश्शूर के राजा सन्हेरीब ने यहूदा पर आक्रमण किया। उसने नवनिर्मित शहरों पर डेरा किया और अपनी सेना को आदेश दिया कि वे उसकी दीवालों को तोड़ डालें। परमेश्वर के विषय विश्वासयोग्यता आरामदेह होने की गारंटी नहीं देती। सचमुच, वही समृद्धि जिसका आनंद यहूदा राज्य में रहा था, वह शत्रु के आकर्षण का कारण बन गया। हिजकिय्याह ने शहरपनाहों को मजबूत किया, उसने उसके जल स्त्रोत को सुरक्षित किया, उसने यशायाह भविष्यद्वक्ता की सम्मति से अपने सैनिकों को तैयार किया और स्वर्ग की ओर देखकर प्रार्थना किया और रोया। स्वर्ग के सेना से सेनाओं के परमेश्वर ने मात्र एक ही दूत को भेजा और एक ही रात में और एक ही फूँक में अश्शूर की शक्ति ठंडी पड़ गई और पंगु हो गई। ग्लानि से और लज्जित होकर सन्हेरीब वापस लौट गया, जबकि हिजकिय्याह ने स्वर्ग के परमेश्वर की स्तुति किया। उसी समय वह घातक बीमारी का शिकार हुआ और उसी परमेश्वर ने जिससे उसे राजनैतिक समस्या से बचाया था, शारीरिक बीमारी से भी बचाया। उसने परमेश्वर से प्रार्थना किया जिसने उसे चंगा किया और अद्भुत चिन्ह दिया। परंतु उसने उस पर दिखाई गई दया के साथ उचित अनुक्रिया नहीं किया,और वह घमंडी हो गया। इसलिये परमेश्वर का क्रोध उस पर, यहूदा पर और यरूशलेम पर भड़का। फिर हिजकिय्याह ने उसके घमंड के विषय पश्चाताप किया और यरूशलेम के लोगों ने स्वयँ को नम्र किया। इसलिये जब तक हिजकिय्याह जीवित था परमेश्वर का क्रोध उन पर नहीं उतरा। जब हिजकिय्याह मरा तो उसे शाही कब्रस्तान के उपरी क्षेत्र में दफनाया गया और सारे यूहदा और यरूशलेम ने उसकी मृत्यु पर उसका सम्मान किया। फिर उसका बेटा मनश्शे अगला राजा बना। 14) मनश्शे ( 2 राजा 21; 2 इतिहास 33) हर पापी के लिये यह एक वास्तविक प्रोत्साहन है कि मनश्शे के जैसा व्यक्ति भी क्षमा किया जा सकता, पुनः बहाल किया जा सकता और परमेश्वर के द्वारा उपयोग में लाया जा सकता है। ध्यान दें कि कष्टों, दुखों और बंधुआई के द्वारा ही मनश्शे को पश्चाताप की स्थिति में लाया गया। बेबीलोन में उसकी बंधुवाई ने उसे मूर्तिपूजा से छुड़ाया और उस समय से लेकर उसके जीवन के अंत तक उसने जान किया कि प्रभु ही परमेश्वर है।" यह व्यक्ति यहूदा का राजा था जिसने सबसे लंबे समय राज्या किया था और सबसे बुरे राजा होने की भी उसकी विशेषता थी। उसकी दुष्टताइयों की सूची में वचन में पाई जाने वाली सूचियों में सबसे लंबी है। मूर्तिपूजा, अनैतिकता, जादूटोना, सताव और ऐसी बातें बहुत सामान्य थी। उसने वह सब बर्बाद करने की ठान लिया था जो उसके पिता ने किया था और अन्यजातियों से भी बढ़कर बुरे कार्य करने के लिये प्रतिबद्ध था। उसके नाम का अर्थ "भूलना" है। निश्चित रूप से वह उसके इश्वरीय पालन-पोषण और माता-पिता के आदर्श को भूल गया था। उसके अधीन रहकर यहूदा के लोग अधर्म की गहराई में फँस गए थे।धर्मी माता-पिता को उनके बिगड़ैल बच्चों के लिये आँसु बहाते हुए देखना सचमुच दुख की बात होती है। फिर भी मनश्शे की कहानी में आशा की एक किरण है। उसके पहले के कई लोगों ने जबरदस्त शुरूवात किया था, और उनका अंत बुरा हुआ। मनश्शे ने अपनी शुरूवात सबसे बढ़कर अंधकारमय रीति से किया था और सबसे अधिक उज्जवल रीति से अंत किया। जब हम उसकी भ्रष्टता, बंधुवाई, दोषस्वीकृति, परिवर्तन दया के लिये पुकार और परिवर्तन के विषय पढ़ते हैं, यह कहने पर मजबूर हो जाते हैं, "जहाँ पाप बहुत हुआ वहाँ अनुग्रह उससे भी कहीं अधिक हुआ।" (रोमियों 5:20) हृदय परिवर्तन के बाद मनश्शे ने सच्चे पश्चाताप का प्रमाण दिखाया। उसके जीवन के अंतिम वर्षों में वह उसके बुरे कर्मों की गलतियों को सुधारने का प्रयास करते हुए दिख पड़ता है। लेकिन वह जो तूफान उठा चुका था उसे पूरी तरह बदलने को असंभव समझ रहा था। वह उसके पहले की दुष्टताई के प्रभाव को मिटा नहीं पा रहा था। परमेश्वर ने जो करूणा मनश्शे को दिखाया वह हम सब के लिये भी उपलब्ध है। आइये हम भी उसके समान परमेश्वर को "मेलबलि और धन्यवाद की बलि" चढाएँ। (2 इतिहास 33:16) 15) आमोन (2 राजा 21:19-26; 2 इतिहास 33:21-25) आमोन का शासन उसके पिता मनश्शे के समान ही बुरा था। उसका उससे भी बड़ा पाप यह था कि उसने उसके पिता के विपरीत परमेश्वर के समक्ष नम्र होने से इंकार करर दिया था। उसने अपने हृदय को कठोर किया, परमेश्वर को चुनौती दिया और उसका विद्रोह करते हुए मर गया। अपश्चाताप की भावना ही उसके विनाश का कारण थी। 16) योशियाह ( 2 राजा 22:1-23-1:30; 2 इतिहास 34:1-35:27) योशियाह यहूदा के अंतिम अच्छे राजाओं में से एक था। उसे अक्सर जवान सुधारक कहा जाता है। उसकी अंतिम योजना अंत आने से पहले यहूदा को परमेश्वर के पास वापस लाना था। राष्ट्र का तेजी से पतन हो रहा था। लेकिन अंत होने से पहले शुद्ध हवा का झोंका आया। योशियाह को बेबीलोन की बंधुवाई से पहले के अंधकार में आशा की एक किरण के रूप में देखा जाना चाहिये। योशियाह जब राजा बना तो वह 8 वर्ष का था, और उसने यरूशलेम पर 31 वर्ष राज्य किया। उसने वही किया जो परमेश्वर की दृष्टि में सही था और उसके पूर्वज दाऊद के आदर्श का अनुकरण किया। उसके शासनकाल के 8वें वर्ष में जब वह जवान ही था, योशियाह ने उसके पूर्वज दाऊद के परमेश्वर को खोजना शुरू किया। फिर 12वें वर्ष में उसने यहूदा और यरूशलेम को शुद्ध करना शुरू किया, विधर्मी धर्मस्थलों का नाश, अशेरा का स्तंभ और तराशी गई मूर्तियों और प्रतिमाओं का नाश शुरू किया। जहाँ तक योशियाह का संबंध है परमेश्वर के प्रति सच्चा समर्पण और मूर्तिपूजा के साथ समझौता एक साथ नहीं रह सकते। जब वह 26 वर्ष का था उसने बड़े पैमाने पर मंदिर के सुधार कार्य की शुरूवात किया। दशकों से चली आ रही धुन को साफ किया गया और यह सब इसलिये हुआ क्योंकि 16 वर्षीय एक जवान ने परमेश्वर की बातों पर ध्यान लगाया था। परमेश्वर की व्यवस्था की प्रति को कई वर्षों से नजरों से हटा दिया गया था। वह केवल नजरों से दूर नहीं परंतु विचारों से भी हटा दिया गया था और लोग ऐसे जी रहे थे जैसे व्यवस्था का अस्तित्व ही नहीं था। मंदिर की सफाई करते समय उसकी खोज करीब एक इत्तफाक ही थी। उसके पढ़ते ही जवान राजा की आखों में आँसू आ गए। यह वही पुस्तक थी जिसे वे खो ही चुके थे। उसने अपने वस्त्र फाड़े और रोया और उनकी अनाज्ञाकारिता को जान लिया। भविष्यद्वक्तिन हुल्दा ने भी राजा को आवश्यक जानकारी दी और स्थिति से अवगत कराई। राजा को उसके कोमल हृदय और पश्चातापी आत्मा की सराहना करते हुए उसने यकीन दिलाई की परमेश्वर का क्रोध उसके दिनों में नहीं भड़केगा। परंतु योशियाह ने इस समाचार पर कैसी प्रतिक्रिया किया? उसने सभी लोगों की सामान्य सभा बुलाया और उनके साथ एकजुट होकर वाचा बांधा, जिसमें राजा और लोग जवान और बूढ़े सम्मिलित थे, कि वे इस प्राचीन पुस्तक में लिखी आज्ञाओं का पालन करेंगे। हम सबके पास अपनी अपनी बायबल है। क्या वह कई वर्षों से दबी पड़ी है, हृदयों की ठंडाई से पड़ी हुई है? उसके जिल्द के भीतर जाने में परमेश्वर हमारी सहायता करें और यह हमारे विवेक को योशियाह के समान क्रियाशील करे ताकि हमारा अभिषेक नया हो जाए। बायबल की ओर वापसी हमारा नारा होने पाए। राजा की आज्ञा से फसह का पर्व मनाने के लिये यरूशलेम तीर्थयात्रियों से भर गया। यह अवसर, यहूदी कैलेंडर में किसी और बात से बढकर लोगों के राष्ट्र के रूप में उनके मूलरूप में वापसी को दिखाता है। इस्त्राएली लोग उनके परिवारों के गोत्र के अनुसार नगर में आए। सब्त के पर्व पर करीब 45000 बलिदान चढाए गए। भीड़ और उत्साह से बढ़कर लोगों को "परमेश्वर के वचन के अनुसार मूसा के माध्यम से विधि करने की फिक्र थी। (पद 6:12)। योशियाह ने लोगों को उनके मूल में ले आया था और प्रभु के साथ उनका अच्छा संबंध करवा दिया था। परंतु अंत में एक दुखदायी बात है। योशियाह मिस्त्र के राजा के साथ राजनैतिक मामले में उलझ जाता है। जब योशियाह ने मंदिर को पुनस्थापित कर लिया, मिस्त्र का राजा नको अपनी सेना लेकर लड़ने के लिये मिस्त्र से निकलकर कर्कमीश की ओर चल पड़ा जो परात नदी के पास है, और योशियाह और उसकी सेना उससे लड़ने निकल पड़े। परंतु नको राजा ने योशियाह को यह संदेश भेजा, "हे यहूदा के राजा मेरा क्या काम! आज मैं तुझ पर नहीं उसी कुल पर चढाई कर रहा हूँ जिसके साथ मैं युद्ध करता हूँ फिर परमेश्वर ने मुझसे फुर्ती करने को कहा है। इसलिये परमेश्वर जो मेरे संग है उससे अलग रह कहीं ऐसा न हो कि वह तुझे नष्ट करें।" परंतु योशिय्याह ने नको की बात मानने से इन्कार कर दिया जिससे परमेश्वर ने सचमुच बात किया था। और वह वापस नहीं गया। इसके विपरीत उसने अपनी सेना को मगिद्दो के मैदान में ले गया। उसने अपना शाही वस्त्र उतारकर रख दिया ताकि लोग उसे पहचान न पाएँ, परंतु शत्रु के तीरंदाजों ने योशिय्याह को तीरों से मारकर घायल कर दिया। उसने अपने लोगों को पुकारा, "मुझे युद्ध क्षेत्र से बाहर ले चलो मैं बुरी तरह घायल हूँ।" इसलिये उन्होंने योशियाह को उसके रथ से निकाला और दूसरे रथ मे डाल दिये। फिर उन्होंने उसे यरूशलेम वापस लाया, जहाँ वह मर गया। उसे वहाँ शाही कब्रस्तान में गाड़ा गया। और सारे यहूदा और यरूशलेम ने उसके लिये विलाप किया। यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता ने योशिय्याह के लिये शोकगीत लिखा और आज भी गायन मंडलियाँ इन गीतों को जो उसकी मृत्यु पर लिखे गए थे, गाते हैं। दुख के मे गीत परंपरा बन गए हैं और उन्हें विलापगीत की पुस्तक में लिखा गया है। यहोयाकीम योशिय्याह का पुत्र था। जब वचन की पत्री को उसके सामने पढ़ा गया तो उसने उसके पिता के विपरीत अपने वस्त्र फाड़ने की बजाय 'पुस्तक' को ही फाड़ डाला और उसे जला डाला। एक पीढ़ी कितनी बदल सकती है! अपने देश को परमेश्वर की ओर फेरने के लिये योशिय्याह जो कर सकता था वह किया। यहाँ तक कि वह खुद भी पूरे हृदय से परमेश्वर की ओर फिरा। परंतु यहूदा की पुनः बहाली को राजा अधिक दिन नहीं देख सका, और परमेश्वर का दंड उस पर आ गया। (2 राजा 23:26-27)।

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