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शाऊल जब से मूसा ने इस्राएलियों को मिस्त्र से निकाल लाया और यहोशू ने उन्हें प्रतिज्ञा की भूमि में पहुँचाया, देश में कोई राजा नहीं था। परमेश्वर ने उन पर स्वयं को अपनी व्यवस्था और उसके चुने हुए अगुवों द्वारा प्रगट किया था। परंतु इस्त्राएली लोग इस व्यवस्था से खुश नहीं थे क्योंकि अन्य सभी देशों में उन पर प्रभुता करने के लिये राजा हुआ करते थे। बेशक वे आसपास के राष्ट्रों के द्वारा ही राजा की मांग करने के लिये प्रभावित हुए थे। उनका विद्यमान न्यायी शमूएल बूढ़ा हो चला था और उसके पुत्र दिन प्रतिदिन ज्यादा भ्रष्ट होते जा रहे थे। अंत में इस्राएल के अगुवे शमूएल से इस विषय चर्चा करने रामाह में इकट्ठे हुए। उन्होंने उससे कहा, "देख, अब तू बूढ़ा हो गया, और तेरे पुत्र तेरी राह पर नहीं चलते, अब हम पर न्याय करने के लिये सब जातियों की रीति के अनुसार हमारे लिये एक राजा नियुक्त कर दे।" शमूएल उनके इस आग्रह से बहुत क्रोधित हुआ और सलाह के लिये परमेश्वर के सम्मुख गया। शमूएल के द्वारा परमेश्वर ने लोगों को चिताया कि राजा तकलीफदायक होगा और उसके द्वारा लगाए गए कर और सैन्य कारवाईयाँ उनकी आयस्त्रोतों से उन्हें वंचित कर देंगे। परंतु इन चेतावनियों पर ध्यान नहीं दिया गया और इस्राएल के लोगों ने हठीले होकर अपना ही मार्ग चुना। परमेश्वर उन्हें राजा देनेवाला था। मूसा के दिनों में जो बात सत्य थी वही बात अब भी सत्य थी। "तब उसने उन्हें मुँह मांगा वर तो दिया परंतु उनके प्राण को सुखा दिया।" (भजन106:15)। इसलिये, परमेश्वर ने शाऊल को इस्राएल का पहला राजा होने के लिये चुना। कीश एक धनी, और बिन्यामीन के गोत्र का शक्तिशाली व्यक्ति था। उसका पुत्र शाऊल इस्राएल में सबसे सुंदर व्यक्ति था - उसका सिर और कंधे इतने विशाल थे कि देश में उसके जैसा कोई और नहीं था। याकूब के 12 पुत्रों का के इतिहास की याद रखते हुए, उसका गोत्र उसके सबसे छोटे पुत्र बिन्यामीन से निकला जो उसके पिता का प्रिय था। फिर न्यायियों की पुस्तक में, एक पाप की घटना के कारण गोत्र की संख्या कम हो गई। वह बिन्यामीन का ही गोत्र था जिससे पहला राजा आया। मानवीय दृष्टिकोण से शाऊल इस कार्य के लिये उचित व्यक्ति था। उसकी अच्छी छवि, शैली और रूप था। केवल इतना ही नहीं वही अति आदर्श व्यक्ति भी था। परेशानी यह थी कि हृदय से वह राजा के स्वभाव का न था। एक दिन कीश के गदहें खो गए, तब उसने शाऊल से कहा, "एक सेवक को अपने साथ ले जा और गदहियों को ढूँढ ला।" इसलिये शाऊल ने एक सेवक को साथ लिया और एप्रैम के पहाड़ी देश, शलीशा देश, शालीम देश और बिन्यामीन के देश में घूमा परंतु उसे गदहियाँ कहीं नहीं मिलीं। अंत में वे सूफ नामक देश में आए और शाऊल ने अपने दास से कहा, "आ, हम लौट चलें, ऐसा न हो कि मेरा पिता गदहियों की चिंता छोड़कर हमारी चिंता करने लगे!" फिर उन्होंने पास के नगर के परमेश्वर के एक जन से गदहियों के विषय पूछने का निर्णय लिया। अपने हाथ में छोटी सी भेंट लेकर वे नगर को गए और कुछ जवान स्त्रियों से जाना कि जिस दर्शी को वे ढूँढ रहे थे वह उसी दिन उसी स्थान पर एक धार्मिक अनुष्ठान के लिये आता है। (उन दिनों में यदि लोगों को परमेश्वर से कुछ जानना होता था तो वे कहते थे, "आओ हम जाकर दर्शी से पूछें" क्योंकि भविष्यद्वक्ता दर्शी कहलाते थे। जब वे वहाँ गए तब उन्होंने वहाँ शमूएल को पाया जिसे ढूंढ रहे थे। उसके एक दिन पहले ही परमेश्वर ने प्रतिज्ञा किया था कि वह शमूएल के पास उस व्यक्ति को भेजेगा जो राजा बनाया जाएगा। और अब उस पर प्रगट हो गया था कि शाऊल ही वह व्यक्ति है। उसे तुरंत यह बात बताने की बजाय उसने उसे भोज पर आमंत्रित किया। उसने शाऊल और उसके दास को विशाल सभागृह में लाया और मेज पर मुखिया के स्थान पर पहुँचाया और वहाँ उपस्थित 30 मुख्य अतिथियों से भी बढ़कर उनका सम्मान किया। फिर उसने पकानेहारे से कहा कि वह माँस का सर्वोत्तम टुकड़ा ले आए, वह टुकड़ा जिसे सम्माननीय अतिथि के लिये अलग किया गया था। इसलिये पकानेहारे ने माँस के उस टुकड़े को लाकर शाऊल के सामने रख दिया। और शाऊल ने उसे शमूएल के साथ खाया। शाम के समय शमूएल से लंबी बातें किया। अगले दिन जब शाऊल नगर से बिदा लेने लगा तो शमूएल ने उसे परमेश्वर की इच्छा और संदेश के विषय बताया। जब वे नगर के सीमा पर पहुँचे तो शमूएल ने शाऊल से कहा कि वह उसके दास को आगे भेज दे। जब दास चला गया तो शमुएल ने शाऊल से कहा, "यहीं ठहर, क्योंकि तेरे लिये मुझे परमेश्वर की ओर से विशेष संदेश प्राप्त हुआ है।" फिर उसने कुप्पी में तेल लेकर शाऊल के सिर पर उंडेल दिया। उसने उसके गालों को चूमा और कहा, "मैं ऐसा इसलिये कर रहा हूँ क्योंकि परमेश्वर ने तुझे उसकी प्रजा इस्त्राएल का प्रधान होने के लिये नियुक्त किया है।" अभिषेक के साथ याजकीय सेवा भी उसे दी गई। और उसी तरह पहले राजा का अभिषेक किया गया। शाऊल को परमेश्वर के वचन की पुष्टि के लिये तीन वचन दिये गए थे। प्रथम, कि उसे राहेल की कब्र के पास दो लोग मिलेंगे जो उससे कहेंगे कि उसके पिता की गदहियाँ मिल गई हैं, दूसरा कि बेतेल को जाते हुए जब वह ताबोर के बांझ वृक्ष के पास पहुँचेगा तब उसे तीन लोग मिलेंगे और उसे दो रोटी देंगे, तीसरा यह है जब वह "परमेश्वर के पहाड़" के पास पहुँचेगा तो उसकी मुलाकात भविष्यद्वक्ताओं के एक समूह से होगी और परमेश्वर का आत्मा उस पर उतरेगा और वह नबूवत करने लगेगा। चिन्ह की सारी बातें उसी दिन पूरी हो गईं। भविष्यद्वक्ता लोग समर्पित लोग थे, और शाऊल को नबूवत करते हुए देखकर लोग चकित थे। इस बात ने इस कहावत की शुरूवात की, "क्या शाऊल भी भविष्यद्वक्ताओं में से है?" इसी बीच शमुएल ने इस्राएलियों को मिस्र में इकट्ठे होने को कहा। और उसने इस्राएल के परमेश्वर, प्रभु का यह संदेश दिया, "मैं तो इस्राएल को मिस्र देश से निकाल लाया, और तुम को मिस्रियों के हाथ से, और उन सब राज्यों के हाथ से जो तुम पर अंधेर करते थे, छुड़ाया है। परंतु यद्यपि मैंने तुम्हारे लिये इतना कुछ किया, तुमने मुझे तिरस्कृत कर दिया और कहा, हमें एक राजा की जरूरत है!" इसलिये अब तुम अपने आपको गोत्रों के अनुसार परमेश्वर के सामने उपस्थित करो।" इस प्रकार, शमुएल ने गोत्रों के अगुवों को परमेश्वर के सामने बुलाया और बिन्यामीन का गोत्र चुना गया। फिर उसने बिन्यामीन गोत्र के प्रत्येक परिवार को परमेश्वर के सामने लाया और मंत्री का परिवार चुना गया। और अंत में कीश का पुत्र शाऊल उनमें से चुना गया। परंतु जब उन्होंने उसे खोजा तो वह वहाँ से गायब हो गया। इसलिये परमेश्वर से पूछा, "वह कहाँ है?" और परमेश्वर ने कहा, "वह सामानों के बीच उन्होंने छिपा है।" तब उन्होंने वहाँ उसे पाया और वह सबसे सामने कंधे से लेकर सिर तक सब लोगों से लंबा था। तब शमूएल ने सब लोगों से कहा, "यही वह व्यक्ति है जिसे प्रभु ने तुम्हारा राजा होने के लिये चुना है। इस्त्राएल में इसके बराबर कोई और नहीं है।" और तब सभी लोग ललकारकर बोल उठे, "राजा चिरंजीव रहे!" फिर शमूएल ने लोगों को राजा के अधिकारों और कर्तव्यों के विषय बताया। उसने इन बातों को पुस्तक में लिखकर परमेश्वर के सामने रख दिया। कई साहसी लोगों ने शाऊल से संबंध जोड़ा और उसे उसके घर गिबा में छोड़ने गए, परंतु हर कोई पूरी तरह राजा के पक्ष में नहीं था। परंतु शाऊल ने उनको नजरअंदाज किया। जब अम्मोनियों ने गिलाद के याबेश पर चढ़ाई किया तो लोगों ने अम्मोनियों से अधीनता की शर्तों की वाचा बांधने को कहा। परंतु अम्मोनी राजा नाहाश ने कहा कि वह उनकी दाईं आँख फोड़कर उनकी नामधराई करना चाहता है। लेकिन उसने याबेश के बुजुर्गों को अनुमति दिया। कि वे सहायता खोजें। इस बात की खबर दूतों के द्वारा गिबा को भेजी गई जहाँ शाऊल खेत में कामकर रहा था। "क्या बात है? हर कोई क्यों रो रहा है?" शाऊल ने पूछा। तब उन्होंने उसे याबेश का संदेश कह सुनाया। तब यहोवा का आत्मा शाऊल पर सामर्थ के साथ उतरा और शाऊल अति क्रोधित हुआ। उसने दो बैल लेकर उनके टुकड़े कर दिया और दूतों ने कहा कि वे उन्हें पूरे इस्राएल में घुमाएँ और यह संदेश दे, "जो कोई आकर शाऊल और शमूएल के पीछे (युद्ध में) न हो लेगा, उसके बैलों से ऐसा ही किया जाएगा। और परमेश्वर ने लोगों को शाऊल के क्रोध से भयभीत किया, और वे सब एकजुट होकर निकल पड़े। उसने अपने लोगों को तीन टुकड़ियों में बांटा। तब इस्राएली अम्मोनियों के पीछे गए और उन्हें घात करते हुए ऐसा तितर-बितर किया कि उनमें से दो भी एक साथ नहीं रह सके। विजय से प्रोत्साहित होकर वे लोग उन लोगों को मार डालना चाहते थे जिन्होंने शाऊल की प्रभुता को स्वीकार नहीं किया था। परंतु शाऊल ने बुद्धिमानी से उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। तब शमूएल ने गिलगाल में सभा बुलाया और शाऊल का राज्य पुनः स्थापित किया गया। इस प्रकार शाऊल ने अम्मोनी नाहाश को पराजित किया और सारा देश अपने नए राजा के समर्थन में एकजुट हो गया। शाऊल जब राजा बना वह तीस वर्ष का था, और उसने 43 वर्षों तक राज्य किया परंतु विजयघोषणाओं और शाबासियों के मध्य उसकी नम्रता का स्थान घमंड ने ले लिया। परिणामस्वरूप, उसने ईर्ष्या, अधीरता, हठीले विद्रोह को प्रभु पर उसके विश्वास की जगह कब्जा करने दिया। अनजाने में ही शाऊल के कदम फिसल रहे थे। तीन उदाहरणों में कठिन स्थितियों में शाऊल की स्थिति उसकी कमजोरियों को उजागर करती हैं। पहली उस समय दिख पड़ती है जब फिलिस्तिनीयों के हमले के कारण देश भयभीत हो गया था। जब यह घटना घटी तब उसी समय शाऊल के बेटे योनातान और उसके सिपाहियों ने इस्त्राएल के मध्य स्थित एक पलिश्ती डेरे को हराया था। शाऊल और उसकी सेना गिलगाल की ओर बढ़ी कि और शक्तिशाली बने और शमुएल से मुलाकात करें। हाल ही की विजय के बावजूद, सैनिक डर से टूट रहे थे। यह एक डरावना समय था। शाऊल शमूएल के द्वारा परमेश्वर के संदेश को सुनने के लिये उत्सुक था, परंतु शमूएल वहाँ नहीं था। हर बीतते दिन के साथ अधिक से अधिक सिपाही छोड़कर जाने लगे। जब शमूएल के आने में देरी होने लगी तब शाऊल ने तनाव में आकर स्वयं ही होमबलि किया। शाऊल को कोई अधिकार नहीं था कि वह याजकीय बलिदान चढ़ाए क्योंकि वह लेवी के गोत्र से नहीं था। जैसे ही उसने यह कार्य पूरा किया, शमूएल प्रगट हो गया और उसने शाऊल को फटकारा। उसने उससे पूछा, "तूने क्या किया?" शाऊल ने कहा, "जब मैंने देखा कि लोग मेरे पास से इधर-उधर हो चले हैं, और ठहराए हुए दिनों के भीतर नहीं आए, और पलिश्ती मिकमाश में इकट्ठा हुए हैं, तब मैंने सोचा कि पलिश्ती गिलगाल में मुझ पर अभी आ पड़ेंगे, और मैंने यहोवा से विनती भी नहीं की है, अतः मैंने अपनी इच्छा न रहते भी होमबलि चढ़ाया।" शाऊल ने यह बात नहीं समझा कि यहोवा के मार्गदर्शन के लिये ठहरे रहना, उसके बिना कुछ करने से बेहतर है। जो भी उचित सफाईयाँ उस विषय दी गई थीं, इस सच्चाई को नहीं बदल पाई कि शाऊल ने परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया था। इस कारण उसे राज्य खोना पड़ा। परमेश्वर ने अपने मन के अनुसार पहले ही एक अन्य व्यक्ति को चुन लिया था। शाऊल पर परमेश्वर के राज्य की गंभीरता को परमेश्वर की पवित्रता के प्रकाश में देखा जाना चाहिये। परमेश्वर ऐसे व्यक्ति को खोज रहा था जो उसके मन के अनुसार हो ऐसा व्यक्ति जिसकी भक्ति और विश्वास अचूक हो। शाऊल वह व्यक्ति नहीं था, क्योंकि यद्यपि शाऊल परिस्थितियों के विषय गंभीर था, उसने परमेश्वर को गंभीरता से नहीं लिया। उसकी अनाज्ञाकारिता के कारण परमेश्वर ने उससे राजसी परंपरा ले लिया और दूसरे को दे दिया - दाऊद चरवाहा को दिया जो एक लड़का ही था। होमबलि चढ़ाने के बाद शाऊल अपने 600 सैनिकों की सेना को लेकर पहाड़ी प्रदेश गिलगाल की और चला जहाँ उसने पलिश्तियों का सामना करने की योजना बनाया था। पलिश्ती लोगों ने मिकमाश में इस तरह घेरा डाला था कि इस्राएलियों को आनेवाला युद्ध निराशाजनक लगने लगा था। बड़े उत्साह और विश्वास के साथ योनातन और उसके शस्त्र ढोनेवाला इस्राएलियों की छावनी से पलिश्तियों पर हमला करने चुपचाप निकल पड़े। इस हमले ने पलिश्तियों को अचानक धर दबोचा और वे हर दिशा में भागने लगे। उनकी असमंजसता को देखकर इस्राएली लोगों ने अपनी ताकत बटोरा और भागते दुश्मनों को खदेड़ दिया। यह एक आश्चर्यजनक विजय थी। अब इस्राएलियों पर उसी दिन एक और दबाव पड़ा। क्योंकि शाऊल ने यह कहकर लोगों पर प्रतिबंध लगा दिया था कि, "शापित हो वह, जो सांझ से पहले कुछ खाए, इसी रीति से मैं अपने शत्रुओं से बदला ले सकूंगा," इसलिये किसी ने भी भोजन नहीं किया। शाऊल ने उतावलेपन में एक मूर्खतापूर्ण प्रतिज्ञा किया था जिसने लोगों की आत्माओं को उदास कर दिया था और उसका बेटा भी करीब करीब मार डाला गया होता। इस बात से अनजान शाऊल के पुत्र योनातान ने कुछ शहद पाया और खाया। सौभाग्य से योनातान को कुछ लोगों रोक दिया और उसे उसके पिता की बेतुकी कठोरता से बचा लिया। लेकिन शाऊल ने कभी यह स्वीकार नहीं किया उसने गलती किया था। उसकी मूर्खता उसके चरित्र की एक और दरार को उजागर करती है। यह उसके लिये कितना बेहतर होता यदि वह इस प्रतिज्ञा की मूर्खता को स्वीकार कर लेता जिससे उसे लोगों का सम्मान और सहायता प्राप्त हुई होती। यद्यपि परमेश्वर ने शाऊल को राजसी परंपरा से हटा दिया था, उसने अपनी करूणा के अनुसार उसका अनुग्रह फिर से प्राप्त करने के लिये उसे एक और मौका दिया। शमूएल के द्वारा, उसने शाऊल को निर्देश दिया कि वह शताब्दियों बाद अमालेकियों को इस्राएल पर उनके आक्रमण के लिये दंडित करें।1 शाऊल ने लड़ाई जीत लिया, परंतु उसने मामले को अपने हाथों में लिया। पूरा विनाश करने के बजाय उसने अपनी कुछ महान विजयों का, अगाग के राजा और उसकी संपत्ति के विषय समझौता (लापरवाही) किया। फिर लौटते समय उसे शमूएल मिला। पूरी मुस्कान और चेहरे की चमक के साथ उसने कहा, "तुझे यहोवा की ओर से आशीष मिले, मैंने यहोवा की आज्ञा पूरी की है।" उसकी अनाज्ञाकारिता के प्रकाश में शाऊल को चाहिये था कि वह घुटनों पर आकर उससे माफी मांगता। इसके विपरीत उसने शमुएल से झूठ बोला। उसने प्रभु की आज्ञा का पालन नहीं किया था और शमूएल ने उसे उसके इस धोखेबाजी के लिये तुरंत फटकारा। शाऊल के पास बहानों की कभी कमी नहीं थी। उसने सारा दोष लोगों पर मढ़ दिया। कितनी दुख की बात है! यहाँ तक कि शाऊल ने अपने आप को इस बात से सहमत कर लिया था कि उसने ठीक ही किया है। उसने कहा, मैंने परमेश्वर की आज्ञा का पालन किया है।" परंतु सत्य ने उसके पापी हृदय को उजागर कर दिया। शमूएल ने परमेश्वर की ओर से दंड की आज्ञा सुना दिया। "क्या यहोवा होमबलियों और मेलबलियों से उतना प्रसन्न होता है, जितना कि अपनी बात के माने जाने से प्रसन्न होता है? सुन, मानना तो बलि चढ़ाने से और कान लगाना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है। तूने जो यहोवा की बात को तुच्छ जाना, इसलिये उसने तुझे राजा होने के लिये तुच्छ जाना है।" तुच्छ जाना गया! शाऊल ने यह पहले भी सुना था (13:14)। अंततः शाऊल भूमि पर गिर पड़ा। वह इस पाप के विषय कैसे अंधा बना रहा? एक बार फिर से उसने यद्यपि लोगों को गंभीरता से लिया, लेकिन परमेश्वर के विषय वह गंभीर नहीं था। उसने पश्चाताप का नाटक किया और शमूएल से कहा कि वह उसे छोड़कर न जाए। यहाँ तक कि जब भविष्यद्वक्ता जाने लगा तो उसने भविष्यद्वक्ता का वस्त्र भी फाड़ दिया। यह इस बात का संकेत था कि उसका राज्य तोड़ा जाएगा दूसरे व्यक्ति को दे दिया जाएगा। शाऊल के साथ आराधना करने के बाद शमूएल ने अगाग को बुलवाया। फिर उसने उसे तलवार से टुकड़ों में काट डाला। शाऊल की यह असफलता से शमूएल के पूरे जीवन में बोझ बनकर रही। इस प्रकार की विफलताओं की श्रंखला के बाद भी समय शाऊल के पतन की यात्रा में सुधार नहीं ला सका, क्योंकि वह अपने ही उद्देश्यों में लीन रहता था। परमेश्वर की स्पष्ट आज्ञाओं का उलंघन करते हुए उसने शमूएल भविष्यद्वक्ता को विस्मित कर दिया और परमेश्वर के क्रोध और न्याय को न्योता दिया। परमेश्वर पूरी तरह आज्ञापालन की मांग करता है और अनाज्ञाकारिता से किये गए किसी भी कार्य को वह कोई विशेषता प्रदान नहीं करता। आखिरकार, अधूरी आज्ञापालन को अधूरी अनाज्ञाकारिता कहा जा सकता है!
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