Class 6, Lesson 8: यहोशू की लड़ाईयां

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यहोशु की लड़ाईयाँ गिलगाल पर शिविर डालने के पश्चात, इस्त्राएलियों को एक बैरी प्रजा से शेष देश को जीतना था। समीप ही, यरीहो नगर था जो कि सबसे बड़ा और बलवान था। वास्तव में यह प्रतिज्ञात देश, कनान के लिए एक प्रवेश द्वार था। इस नगर पर पहले विजय प्राप्त करना उनमें साहस एवं हियाव उत्पन्न करना। अतः प्रभु ने स्वयं को यहोशू पर सेनाओं के यहोवा के रूप में प्रगट किया (5:13-15) और उसे आज्ञा दिया कि उन लोगों को क्या करना था। वास्तव में उस लड़ाई के लिए कोई तैयारी नहीं थी। प्रतिदिन वे लोग उस दृढ़ नगर के चारों ओर निम्नलिखित क्रम में घूमे - शूरवीर सबसे आगे, सात याजक मेढ़ों के सींग से बनी तुरहियाँ फूंकते, और वाचा का संदूक उठाए याजकगण, और तब शेष प्रजा के लोग पीछे की ओर। इस प्रकार छः दिनों तक उन्होंने दिन में एक बार उस नगर की परिक्रमा की। सातवें दिन उन्होंने उस नगर की सात बार परिक्रमा की और अंत में यहोशू ने उनसे कहा, "जय जयकार करो, क्योंकि यहोवा ने यह नगर तुम्हें दे दिया है।" जब लोगों ने जयघोष किया और याजकों ने तुरहियाँ फूंकी, शहरपनाह गिर गई। और वे लोग अपने अपने सामने सीधे नगर में चढ़ गए और उन्होंने नगर को ले लिया। प्रभु के युद्ध में तरीके एवं हथियार मनुष्य की दृष्टि में साधारण हैं। एक गद्हे के जबड़े की हड्डी, मिट्टी के पात्र, या मटके, आग की मशाल, पत्थर एवं गोफन उसके हथियार रहे हैं। यरीहो के पतन के लिए प्रभु ने तुरहियों के शब्द का और लोगों के जयजयकार का उपयोग किया। इब्रा. 11:30 कहता है, "विश्वास ही से यरीहो की शहरपनाह भी ढह गई।" परमेश्वर अपनी विजय के लिए इन साधारण साधनों का उपयोग करता है, ताकि मनुष्य अपने स्रोतों एवं शक्ति पर घमण्ड न करे। प्रभु द्वारा यह आज्ञा दी गई थी कि उस नगर की धन-सम्पत्ति को परमेश्वर के लिए अर्पित किया जाए। समस्त चांदी एवं सोने के पात्रों, कोसे एवं लोहे इत्यादि की वस्तुओं को एकत्र करने के पश्चात उस नगर को जला डालना था। उन्हें उन पात्रों को प्रभु के कोष में रखना था और उनमें से कुछ भी अपने लिए नहीं रखना था क्योंकि यह उन पर शाप लाता। इस बीच जो प्रतिज्ञा राहाब वेश्या को दी गई थी, उसे पूरा किया गया। यरीहो के लोग इस्त्राएलियों से भयभीत थे क्योंकि उन्होंने यह माना था कि प्रभु का हाथ उनके साथ था। राहाब ने यह विश्वास करते हुए कि शीघ्र ही उस नगर पर इस्त्राएलियों का अधिकार हो जाएगा, उस देश पर इस्त्राएलियों की विजय से पहले यहोशू द्वारा जासूसी के लिए भेजे गए जासूसों की सहायता की और उन्हें शरण दी। उन्हें बच निकलने देने में सहायता करने के बदले उसने उनसे एक शपथ खिलवाई कि अंततः जब वे उस देश पर विजय प्राप्त कर लेंगे तो उसे एवं उसके घराने को 'स्मरण' रखेंगे। यहोशू ने राहाब एवं उसके घराने को अपने साथ रहने देने के द्वारा अपनी प्रतिज्ञा को पूरा किया। इस वेश्या का छुटकारा इस तथ्य को दर्शाता है, कि एक शापित नगर में भी, एक पापी व्यक्ति परमेश्वर पर विश्वास करने के द्वारा अनुग्रह एवं उद्धार पा सकता था। ऐ नगर में इस्राएल की पराजय ऐ नगर यरीहो के पश्चिम में 16 कि.मी. की दूरी पर था। जासूसी करने के लिए यहोशू द्वारा भेजे गए लोगों ने नगर को जीतने के लिए यहोशू से केवल थोड़ी ही सेना भेजने के लिए कहा क्योंकि वह नगर छोटा था और वहाँ थोड़े लोग थे। उस नगर को जीतने के लिए भेजे गए तीन हजार पुरुषों को ऐ नगर के लोगों ने पराजित कर दिया। उनमें से छत्तीस पुरुष मारे गए। यह एक शर्मनाक पराजय थी। यहोशू एवं इस्राएल के प्राचीनों ने अपने सिर धूल डाली। यहोशू ने अपने फाड़े और यहोवा के सन्दूक के सामने मुँह के बल गिर पड़ा। प्रभु ने उनकी पराजय के कारण को प्रकट किया। ऐ नगर में पराजय का कारण: प्रभु ने यहोशू से कहा (7:13) कि उन लोगों के मध्य पाप हुआ था। उन्होंने उसकी वाचा को तोड़ा था। अतः उन्हें पवित्र किया जाना था। प्रभु ने यहोशू की सहायता किया कि उस व्यक्ति को ढूंढ निकाले जिसने स्वयं के लिए यरीहो की सम्पत्ति लेने के द्वारा इस्त्राएल पर शाप लाया था! आकान पकड़ा गया और वह धन मिल गया। उसे उसके घराने के साथ आकोर की तराई ले जाया गया। उन्हें पथरवाह किया गया और उन्हें उनकी धन-सम्पत्ति सहित जला डाला गया। वहाँ उन्होंने उसके ऊपर पत्थरों का एक ढेर खड़ा किया। उनके पवित्र किए जाने के पश्चात् इस्राएल ने ऐ नगर पर विजय प्राप्त की। अतः उन्होंने जाना कि उस देश पर विजय प्राप्त करने में पाप कैसे एक रूकावट हो सकता था। ऐ नगर पर विजय प्राप्त करने के पश्चात, परमेश्वर लोगों को अपनी व्यवस्था स्मरण दिलाना चाहता था। यहोशू ने समस्त इस्त्राएल को एकत्र किया, अनगढ़े पत्थरों से एक वेदी बनाया और बलिदान चढ़ाए। तत्पश्चात उसने परमेश्वर की व्यवस्था को विस्तारपूर्वक पढ़कर सुनाया और समस्त मण्डली की उपस्थिति में उसने उस व्यवस्था को वेदी के पत्थरों पर लिख दिया (8:30-35)। निवासियों को अधीन करने के पश्चात कनान में इस्त्राएलियों को स्थापित करना वास्तव में परमेश्वर का कार्य था। इन कनानी लोगों ने नूह एवं लूत के दिनों के समान उनके अनेक पापों द्वारा अपने आप पर परमेश्वर का शाप बुलाया था। एक दुष्ट देश पर यह प्रभु का दण्ड था। यरीहो एवं ऐ नगर में इस्त्राएल की विजय ने आसपास के छोटे राज्यों के राजाओं को आतंकित कर दिया और उन्होंने चुनौती का सामना करने का निर्णय लिया। इस्राएल के विरुद्ध पाँच राजाओं की संधि: गिबोन के निवासियों ने अपने मार डाले जाने के डर से इस्त्राएल के साथ शांति स्थापना किया। यह सुनने पर कि गिबोनियों ने इस्त्राएल के साथ संधि कर ली है, यरूशलेम के राजा अदोनी-सेदेक ने हेब्रोन, यर्मूत, लाकीश और एग्लोन के राजा दबीर को इकट्ठे करके गिबोन के साथ युद्ध किया। गिबोनियों के निवेदन पर, यहोशू और उसके साथी उनकी सहायता के लिए गए। प्रभु ने यहोशू से प्रतिज्ञा किया कि वह शत्रुओं के उसके हाथ में कर देगा। आकाश से उन पर बड़े-बड़े पत्थर बरसे और इस्राएलियों की तलवार से अधिक लोग इन ओलों के द्वारा मारे गए। अतः उन्होंने जान लिया कि स्वयं परमेश्वर उनकी ओर से लड़ा था जैसा कि उसने यरीहो एवं ऐ में भी किया था। पुनः जब यहोशू के मालूम हुआ कि कुछ शत्रु पहाड़ियों से होकर भाग रहे थे उसने परमेश्वर से प्रार्थना किया कि सूर्य थम जाए (ताकि युद्ध का दिन बड़ा होवे) और चन्द्रमा न निकले (ताकि रात्रि न हो)। प्रभु ने वैसा ही किया, पूरे एक दिन। इसने पुनः प्रमाणित किया कि प्रभु ने इस्राएल की ओर से युद्ध किया था (10:42)। अपने सारे युद्ध अभियान में वे राजाओं को पराजित कर सके। इस प्रकार पलिस्तीन का अधिकांश दक्षिणी क्षेत्र उनके द्वारा जीत लिया गया (यहोशू 10:15-43)। उत्तरी शिविरः दक्षिण में इस्त्राएलियों की जीत के समाचार के साथ, हासोर के राजा याबीन के नेतृत्व में उत्तरी राजाओं ने रथों एवं घोड़ों की एक बड़ी सेना तैयार की। उन्होंने इस शक्तिशाली सेना पर यहोशू की एक और विजय को आश्वासित किया। प्रभु द्वारा उनके हाथों में शत्रुओं को करने के पश्चात उनके घोड़े नाश किए गए और रथों को जला दिया गया। यह इसलिए किया गया कि इस्राएल अपनी बाद की लड़ाईयों में इस प्रकार के युद्ध (घोड़ों एवं रथों के) का सहारा लेने की परीक्षा में न पड़े, वरन परमेश्वर की सामर्थ पर निर्भर करे। इस्राएल ने अनेक और लड़ाईयाँ जीतीं और यहोशू ने सारे देश पर अधिकार किया, जैसा कि परमेश्वर ने मूसा से प्रतिज्ञा किया था, तब देश को युद्ध से शांति मिली (11:23)।

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