Class 6, Lesson 7: इस्राएल कनान में

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इस्राएल कनान में यरदन पार करना प्रतिज्ञात देश के पास पहुँचने पर इस्त्राएलियों ने तीन चुनौतियों का सामना किया - प्रवेश करना, विजय प्राप्त करना, और उस देश पर अधिकार करना। यहोशू की पुस्तक इसी विषय पर है। यहोशू इस्राएलियों को यरदन की ओर शित्तीम लाया और तब तीन दिन तक वहाँ पड़ाव डाला। इस पड़ाव डालने के तीन उद्देश्य थे। 1. यरदन को पार करने के सम्बंध में परमेश्वर से स्पष्ट निर्देश पाना। 2. उनके हृदयों को तैयार करना कि उन अद्भुत कार्यों की स्तुति कर समझ सकें जिनके साथ परमेश्वर उनकी अगुवाई करने जा रहा था। इसके द्वारा वे और अर्थपूर्ण तरीके से उसकी उपासना एवं भक्ति कर सकेंगे। 3. उनके मध्य में परमेश्वर की पराक्रमी उपस्थिति के सम्बंध में उनके विश्वास को दृढ़ करना। यहोशू ने परमेश्वर के निर्देशों का अक्षरशः पालन किया। बारम्बार हम पढ़ते हैं कि "यहोवा ने यहोशू से कहा" (3:7; 4:15 इत्यादि) और यहोशू ने आज्ञापालन किया। जैसा कि गिनती 4:11 में बताया गया याजक लोग वाचा का सन्दूक लेकर आगे आगे चले (2 शमुएल 6 बताता है कि दाऊद कैसे उस सन्दूक के सम्बंध में प्रभु की आज्ञा से भटक गया और परमेश्वर के क्रोध को भड़काया)। लोग याजकों से लगभग दो हजार हाथ (1 हाथ = 1.5 फुट) की दूरी पर चल रहे थे। जब याजकों के तलवों ने यरदन नदी को स्पर्श किया, तो वह थम गई। जब याजकगण सूखी भूमि पर खड़े थे, समस्त इस्राइल सूखी भूमि पर से पार हुआ। वह सर्वसामर्थी परमेश्वर, जिसने पृथ्वी को और जो कुछ उसमें है बनाया है, आज्ञा देता है और पहाड़ियाँ, नदियाँ तथा समुद्र उसकी आज्ञा मानते हैं। वह समस्त पृथ्वी का स्वामी है (यहोशू 3ः11,13)। वर्तमान समय में, जब विज्ञान एवं तकनीक ने बड़ा विकास किया है, मनुष्य आश्चर्यकर्म पर कम विश्वास करते हैं, परंतु जो लोग सृष्टि पर परमेश्वर के प्रभुत्व को मानते हैं वे सहजता से इस तथ्य को ग्रहण कर सकते हैं कि वह निर्धारित क्रम को बदल सकता है। इस रीति से नदी को पार करना क्या अनिवार्य था?हम इस सम्ब ंध में निम्नलिखित विषयों पर विचार करेंगे। 1. जब इस्त्राएलियों ने लाल सागर पार किया वे ऐसी समस्या का सामना कर रहे थे। वे हज़ारों पुरुष, स्त्रियाँ एवं बच्चे थे। संध्या समय नदी में अक्सर बाढ़ हुआ करती थी। स्थानीय परिवहन माध्यम पर निर्भर करना असम्भव होता। सर्वप्रथम, वे उस देश के लिए अपरिचित थे। दूसरा, इतनी बड़ी संख्या में वे लोग दिन रहते नावों में सवार हो पार नहीं कर सकते थे और न ही रात्रि से पहले अपने तम्बू खड़े कर सकते थे। 2. उन्हें विश्वास में दृढ़ करने के लिए उनके डाँवाडोल मनों को प्रभु की महान शक्तियों को दिखाया जाता था। 3. मूसा की मृत्यु के बाद, जिस व्यक्ति ने अब तक उनकी अगुवाई किया था, उन्हें अब यहोशू के साथ परमेश्वर के हाथ को देखता था (3:7) ताकि वे उसके नेतृत्व पर भरोसा रखें। 4. इस आश्चर्यकर्म ने उन्हें उनके सामने की गैरयहूदी जातियों के बैर का सामना करने का साहस दिया। स्मारक पत्थरः लोग आसानी से भूल जाते हैं। एक बार जब यरदन पुनः बहने लगती यह सम्भव था कि वे उस आश्चर्यकर्म को भूल जाते जो प्रभु ने किया था। जिस रीति से प्रभु ने फसह के पर्व को स्थापित किया था, कि प्रजा को मिस्त्र से उनके छुटकारे को स्मरण दिलाए, उसने यरदन को पार करने के लिए एक स्मारक की आज्ञा दी। जिस स्थान पर याजकों के पैर दृढ़ता से जमे हुए हैं, उस स्थान से, इस्राएल के बारह गोत्रों को दर्शाते हुए, गोत्रों के चुने हुए बारह पुरुषों द्वारा बारह पत्थर लिए गए। इन पत्थरों को गिलगाल में खड़ा किया जाना था, जहाँ उन्होंने पड़ाव डाला (4:1-8)। साथ ही साथ यहोशू ने उस स्थान पर जहाँ याजक खड़े थे बारह पत्थर खड़े कर दिए (4:9)। यह सब कुछ उस समय किया गया जब याजकगण नदी के मध्य वाचा का सन्दूक लिए खड़े थे। तब लोगों ने शीघ्रता से नदी पार किया। इस स्मारक को उनके लिए चिन्ह होना था। जब उनकी सन्तान इन पत्थरों के विषय पूछती तो वे माता-पिता यरदन पर हुए उस आश्चर्यकर्म को उन्हें बताते (4:6,7)। गिलगालः इस्त्राएलियों ने यरदन से पाँच मील की दूरी पर अपना पहला शिविर खड़ा किया। यह स्थान यरीहो से दो मील की दूरी पर था, जिसे बाद में गिलगाल कहा गया। जंगल में यात्रा के समय, इस्त्राएलियों ने दो महत्वपूर्ण विधियों को पूरा नहीं किया था। प्रतिज्ञात देश पर अधिकार करने की लड़ाई में प्रवेश करने से पहले उन्हें इन विधियों को पूरा करना था। इब्राहीम की वाचा के अनुसार, खतना वह चिन्ह था जिसने परमेश्वर की प्रजा को अन्यजातियों से पृथक किया था। जो लोग चालीस वर्ष की यात्रा के समय जन्मे थे उनका खतना नहीं हुआ था। इसे, प्रभु ने 'मिस्त्र में हुए अपमान' कहा (5:9)। प्रभु ने यहोशू को आज्ञा दिया कि इस्त्राएल की सन्तान का खतना करे और उसने किया। "आज मैंने मिस्त्र में हुए तुम्हारे अपमान को दूर कर दिया है" प्रभु ने कहा और उस स्थान का नाम गिलगाल पड़ा। फसह एक और अवसर था जिन्हें उन्होंने अड़तीस वर्षों से अनदेखा किया था। उनकी यात्रा के दूसरे वर्ष के पहले महीने में उन्होंने सीनै के जंगल में फसह मनाया था। अब जबकि उन्होंने प्रभु की वाचा (खतना) का पालन किया था तो इस पर्व को मनाने के लिए स्वतंत्र थे और उन्होंने गिलगाल में उनके पड़ाव के चैथे दिन इसे मनाया। आत्मिक शिक्षाएंः इन महान घटनाओं का जिन्हें इन इस्राएलियों ने अनुभव किया, विश्वासियों के जीवनों से गहरा सम्बंध है। 1. फसहः लहू द्वारा छुटकारा। यह कलवरी पर लोहू बहाए जाने और विश्वास द्वारा प्राप्त उद्धार को दर्शाता है (निर्गमन 12, 1 कुरिं. 5:7)। 2. मिस्र की शत्रुता: यह एक विश्वासी के प्रति इस संसार के बैर को दर्शाता है। लाल सागर को पार करना एक विश्वासी का इस संसार से और इसकी रीतियों से अलगाव की साक्षी देता है। 3. मारा, एलिम में जो कुछ हुआ, अमालेकियों के साथ लड़ाई में, इन सब को विश्वासियों के जीवन के प्रभाव में देखा जा सकता है। 4. यरदन नदी को पार करने के पश्चात अन्यजातियों पर विजय की एक विश्वासी के नए जन्म के पश्चात उस विजयी जीवन के साथ तुलना की जा सकती है। 5. गिलगाल पर के स्मारक पत्थर मसीह में दण्ड से उस छुटकारे को दर्शाते हैं जिनको एक विश्वासी प्राप्त करता है। यरदन के मध्य के पत्थर, मसीह के दुखभोग के प्रतिरूप हैं, जिसने दण्ड के शाप को अपने ऊपर ले लिया, ताकि हम उद्धार पाएं (भजन 42:7)।

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