Class 6, Lesson 6: यहोवा के लिए पर्व ( क्रमागत )

Media

AudioPrayerSongInstrumental

Lesson Text

यहोवा के लिए पर्व (क्रमागत) सप्ताहों का पर्व पिन्तेकुस्त के नाम से ज्ञात एक कटनी पर्व, प्रथम फल के सातवें सब्त के अगले दिन हुआ करता था। यूनानी में 'पिन्तेकुस्त' का अर्थ पचासवां है। 7 सब्त मिलकर 49 दिन होते हैं और अगला दिन पचासवां दिन। इस पर्व के विषय जो असाधारण बात थी वह यह थी कि इस्त्राएलियों को उनके घरों से दो खमीरी रोटियाँ लाना था। और किसी अवसर पर 'खमीर' की अनुमति नहीं थी, जो यह दर्शाता था कि परमेश्वर की उपस्थिति में पाप के लिए कोई स्थान नहीं हैं ये रोटियाँ, एक रीति से, यहूदियों एवं गैरयहूदियों का 'मसीह में एक नए मनुष्य' बनाए जाना दर्शाती थी। पिन्तेकुस्त के दिन कलीसिया निर्मित हुई। पचासवां दिन पिन्तेकुस्त का दिन है, जब पवित्र आत्मा उतरा कि अलग हो गए शिष्यों को एक करे। उस दिन 3000 लोग कलीसिया में मिलाए गए। ऐसा कहा जाता है कि इस पर्व को सीनै पर इस्त्राएल को दी गई व्यवस्था के स्मरण में मनाया जाता था। नया नियम में इसके समरूपों को देखना रोचक हैः मसीह फसह के दिन मरा और इसके द्वारा पापों का प्रायश्चित हुआ। प्रथम फल के पर्व के दिन वह मृतकों में से जी उठा। उसके पुनरुत्थान के पश्चात् पचासवें दिन को पवित्र आत्मा उतरा और जितनों ने विश्वास किया वे मसीह की देह, अर्थात् कलीसिया में मिलाए गए। नरसिंगों का पर्व इस पर्व को सातवें महीने के पहले दिन मनाया जाता था। यह भविष्य में इस्त्राएल के पुनः एकत्र किए जाने का एक नबूवतीय रूपक है। कलीसिया का युग शीघ्र समाप्त होगा और उसके आगमन की उद्घोषणा में तुरहियाँ फूँकी जाएंगी। इस दिन यहोवा के भवन में कुछ बलिदान चढ़ाए जाते थे, परंतु लोगों को अपने घरों में रहना तथा परिश्रम का कोई काम न करना होता था। पर्वों को मनाने के लिए उन्हें सचेत करने के लिए नरसिंगे बजाए जाते थे। हमें भी उसके आगमन के लिए तैयार रहने के लिए कहा जाता है। इसका अर्थ है कि हमें सारे संसार में सुसमाचार के नरसिंगों को फूँकना है। यरीहो नगर पर नरसिंगों के फूँके जाने से विजय प्राप्त की गई थी। नगर की दीवार (शैतान के बंधन) मसीह के नाम की घोषणा द्वारा गिर जाएंगी। प्रायश्चित का दिन पापों के प्रायश्चित के लिए व्यक्तिगत् बलिदान चढ़ाए जाते थे। परंतु सातवें महीने के दसवें दिन चढ़ाया जाने वाला बलिदान समस्त इस्त्राएल के लिए एक साथ प्रायश्चित के लिए था। यह छठवाँ पर्व था। पाप के लिए हमारे अपने प्रायश्चित के विषय इब्रा.10:14 कहती है, "क्योंकि उसके एक ही बलिदान के द्वारा उनको जो पवित्र किए जाते हैं सदा के लिए सिद्ध कर दिया है।" फिर "पाप के लिए बलिदान बाकी न रहा" (इब्रा. 10:18; लैव्य. 16:7-10)। यह बलिदान इस बात में विशिष्ट था कि दो बकरों का बलिदान चढ़ाना थाः एक को यहोवा के लिए बलि करना था और दूसरे को एक बलि के बकरे के रूप में पाप का बोझ लिए जंगल में भेज देना था। यहून्ना बपतिस्मादाता ने मसीह की ओर संकेत किया और कहा, "देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है, जो जगत के पाप उठा ले जाता है।" ये दो बकरे मसीह की मृत्यु के दो पहलुओं को दर्शाते हैं। एक यह कि, उसने क्रूस पर अपने आपको बलिदान करने के द्वारा पाप का दण्ड चुका दिया। दूसरा यह कि वह हमारे पापों को उठा ले गया, कि वे फिर कभी न दिखें। हम गीत गाते हैंः मेरे पाप यीशु पर डाले गए, जो परमेश्वर का निर्दोष मेम्ना था, उसने सबकुछ उठा लिया और मुझे स्वतंत्र किया, पापों के शाप और बोझ से। मेरा दण्ड यीशु ने सहा, उसने लाल रंग के धब्बों को धोया। अपने बहुमूल्य लोहू से, और एक भी दाग बाकी नहीं। यह इस्त्राएल के लिए पश्चाताप का भी दिन था। उन्हें अपने जी को दुख देने के लिए कहा गया था। पश्चाताप के द्वारा ही हम क्षमा किए जाते हैं। पचासवाँ वर्ष जुबली का वर्ष था। यह प्रायश्चित के दिन से आरम्भ होता था। सारे ऋण निरस्त किए जाते थे। दासों को तथा बेची गई भूमि को मुक्त किया जाता था, लौटा दिया जाता था। क्रूस पर मसीह की मृत्यु के द्वारा हमारे ऋण क्षमा हुए हैं। हम पाप के बंधन से स्वतंत्र किए गए हैं और आत्मिक रूप से धनी बनाए गए हैं (गला. 5:1; यूहन्ना 8:32)। एक राष्ट्र के रूप में इस्त्राएल के प्रायश्चित का दिन प्रतीक्षित है। वे अभी तितर-बितर तथा अंधकार में हैं; परंतु वे पुनः एकत्र किए जाएंगे। याकूब (इस्त्राएल) से अभक्ति दूर की जाएगी (रोमि. 11:26)। वह एक महान प्रायश्चित का दिन होगा। झोपड़ियों का पर्व इस सातवें पर्व को 40 वर्षों तक जंगल में इस्त्राएल की यात्रा के स्मरणार्थ ठहराया गया था जब वे तम्बूओं में रह रहे थे। सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन से बाइसवें दिन तक उन्हें झोपड़ियों (तम्बुओं) में रहना था। यह पर्व हमें स्मरण दिलाता है कि इस पृथ्वी पर हमारे जीवन कुछ समय के लिए हैं। झोपड़ियाँ मात्र अस्थायी घर हैं (1 कुरिं. 5:1)। यह समय अपनी भूमि की उपज को भी प्रभु को चढ़ाने के लिए ठहराया गया था। उसकी बहुतायत से हम जो कुछ भी पाते हैं हमें उसके प्रति धन्यवादी होना चाहिए और प्रभु की सेवा के लिए सहर्ष कुछ देना चाहिए। यह पर्व इस्त्राएल को यह भी स्मरण दिलाता था कि उनकी यात्रा के समय परमेश्वर उनके मध्य था।वह जो स्वर्ग में रहता है एक साधारण सी झोपड़ी में रहने के लिए तैयार था। हमारे जीवनों में भी यह दीनता दिखाई देना चाहिए। हम आखिरकार, तम्बुओं में निवास करने वाले हैं। सब्त यह एक निरंतर मनाया जाने वाला पर्व था जिसे कि संपूर्ण देश में, प्रत्येक घर में तथा कार्य स्थल पर मनाना था। आज भी सब्त को माना जाता है। यहूदी लोग शुक्रवार की संध्या से अगली संध्या तक कोई काम नहीं करते हैं - एक विश्राम दिन (24 घंटे का)। जो एक विश्राम में प्रवेश रखते हैं हम विश्वासी लोग उनके साथ एक विश्राम में (इब्रा. 4:3) न केवल सप्ताह में एक बार प्रवेश करते हैं परंतु इसे प्रतिदिन अनुभव करते हैं। यहूदियों को एक मण्डली के रूप में आराधनालयों में एकत्र होने के लिए कहा गया था।विभिन्न स्थानों पर परमेश्वर के भवन थे।इन आराधनालयों में कोई याजक नहीं होते थे, न ही बलिदान चढ़ाए जाते थे। वहाँ वे परमेश्वर के वचन को पढ़ते थे जिसे एक रब्बी समझाता था। आरंभिक मसीही सब्त के दिनों में एकत्र नहीं होते थे, परंतु सप्ताह के पहले दिन कि प्रभु की मृत्यु एवं पुनरुत्थान का उत्सव मनाएं तथा उसकी उपासना करें। हमारे लिए यह एक आदर्श होना चाहिए। प्रभु ने दो कारणों से सब्त को ठहरायाः 1) यह स्मरण रखने के लिए कि उसने इस संसार को और जो कुछ भी इसमें है छः दिनों में बनाया। यह विकासवाद का खण्डन करता है। "सबकुछ का बनानेवाला परमेश्वर है" (इब्रा. 3:4)। 2) मिस्त्र में उनकी बन्धुवाई से छुटकारे को स्मरण रखने के लिए (व्यव.5:15)। इसी रीति से हम भी पाप के दासत्व से छुड़ाए गए हैं।

Excercies

Song

Not Available