Class 6, Lesson 39: तरसुस के शाऊल का परिवर्तन

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तरसुस के शाऊल का परिवर्तन उसकी पृष्ठभूमि तरसुस के शाऊल का जीवन परिवर्तन कलीसिया के इतिहास में एक बहुत महत्वपूर्ण घटना है। शाऊल एक जवान यहूदी रब्बी था। उसकी अपनी साक्षी हमें उसके विषय पर्याप्त सूचना देती है। वह बिन्यामीन के गोत्र से, अर्थात् जिस गोत्र से इस्राएल का पहला राजा था, एक इस्राएली था। शेम इस्राएलियों का पूर्वज था। पौलुस किलिकिया के तरसुस में जन्मा था और एक रोमी नागरिक था। वह इब्रानियों का इब्रानी और फरीसी था। उसने गमलिएल के चरणों में बैठकर शिक्षा ली थीं (प्रे काम 22:3) और अपने साथियों में अगुवा बना था। वह यहूदियों की व्यवस्था का कड़ाई से पालन करता था, इसलिए वह कह सका, "व्यवस्था की धार्मिकता से अनुसार निर्दोष हूँ" (फिलि. 3:6)। उसने मसीह पर विश्वास नहीं किया। वरन् इसके विपरीत वह मसीहियों का शत्रु था और मसीह की कलीसिया को उजाड़ता था (प्रेकाम 8:3)। वह ऐसा इसलिए कर सका क्योंकि अनेक प्राचीन मसीही यहूदी थे और मसीहियत को यहूदीवाद का एक अंग माना जाता था। जीवन में उसे एक ही धुन थी कि जहाँ कहीं मसीही हों उन्हें नाश कर डाले। जब स्तिफनुस को पत्थरवाह किया गया वह भी उसके मारने वालों में सहमत था (8:1)। वास्तव में जिन्होंने स्तिफनुस को पत्थरवाह किया उनके गवाहों ने अपने अपने वस्त्र शाऊल के पास रखे थे। शाऊल इथियोपिया के खोजा के समान परमेश्वर के विषय अज्ञान नहीं था। वह एक रब्बी था जो कि पुराना नियम को अच्छे से जानता था। तथापि, अपने पुराने जीवन के विषय, पौलुस कहता है, "यद्यपि अंधेर करने वाला व्यक्ति था, फिर भी मुझ पर दया की गई क्योंकि मैंने यह सब अविश्वास की दशा में नासमझी से किया था" (1 तीमु. 1:13)। मानवीय रूप से कहें तो शाऊल का उद्धार पाना असम्भव था। वैसे भी पुराना नियम के उसके ज्ञान ने उसे मसीह के पास नहीं लाया। यह कितना सच है कि मनुष्य अपने आपका उद्धार नहीं कर सकता है। उसकी बुद्धि या शिक्षा या पारिवारिक परम्परा उसका उद्धार नहीं करा सकी। एक आत्मा को बचाने के लिए परमेश्वर को पहल करना होता है। उसका जीवन परिवर्तन शाऊल को पता चला कि दमिश्क में कुछ मसीही थे। वह उन्हें बंदी बनाना चाहता था। अतः वह महायाजक के पास गया और दमिश्क को जाकर वहाँ के मसीहियों को गिरफ्तार करने की अनुमति प्राप्त किया (प्रेकाम 22:5)। वह कुछ लोगों के साथ अपनी यात्रा पर चल पड़ा। जब वह दमिश्क के पास पहुँचा, दोपहर के समय आकाश से एकाएक एक बड़ी ज्योति उसके चारों ओर चमकी और वह भूमि पर गिर पड़ा। जीवित हो उठे प्रभु ने दर्शन दिया। शाऊल ने इब्रानी भाषा में उसे कहते स्वर्ग से सुना, "शाऊल, शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?" उसने उत्तर दिया, "प्रभु, तू कौन है?" यद्यपि दूसरों ने एक आवाज़ तो सुनी परंतु उन्होंने समझा नहीं और न ही उन्होंने किसी को देखा। प्रभु ने उत्तर दिया, "मैं यीशु नासरी हूँ, जिसे तू सताता है।" पौलुस को स्तिफनुस के वे शब्द स्मरण आए होंगे जो उसने महासभा के सामने कहे थे, "देखो, मैं स्वर्ग को खुला हुआ और मनुष्य के पुत्र को परमेश्वर के दाहिनी ओर खड़ा देखता हूँ।" और मरते समय जो शब्द उसने कहे, "प्रभु, यह पाप उन पर मत लगा" (प्रे.काम 7:54-60)। तरसुस का शाऊल केवल उस व्यवस्था को जानता था जो दोष लगा सकती थी, परंतु कोई व्यवस्था उद्धार नहीं कर सकती थी। थरथराते और विस्मित शाऊल ने आत्म-समर्पण किया, "मैं क्या करूं" (प्रे.काम 9:6)। यह उसका जीवन परिवर्तन था। यह पूरा समर्पण तथा आज्ञापालन था, कि अंत में वह कह सका, "हे राजा अग्रिप्पा, मैंने उस स्वर्गीय दर्शन की आज्ञा का उल्लंघन न किया" (प्रे.काम 26:19)। शिक्षा शाऊल के जीवन परिवर्तन से हम क्या सीखते हैं? हमारी पारिवारिक परम्परा हमारा उद्धार नहीं कराएगी। हमारा धार्मिक ज्ञान मात्र हमारा उद्धार नहीं करेगा। हम व्यवस्था का पालन करने के द्वारा उद्धार नहीं पा सकते हैं। यदि हम एक में दोषी हैं, तो हम पूरी व्यवस्था के दोषी हैं। हम अपने विश्वास में सच्चे हो सकते हैं परंतु हम सत्य से अनभिज्ञ हो सकते हैं। हम जोशीले हो सकते हैं परंतु गलत बात के लिए। केवल परमेश्वर हमें बचा सकता है। उद्धार हमेशा अनुग्रह से है। कोई मनुष्य परमेश्वर के अनुग्रह से परे नहीं है। यदि हम सबसे बुरे पापी भी हैं परमेश्वर हमें उद्धार दे सकता है। वास्तव में पौलुस ने एक बार कहा कि वह सबसे बड़ा पापी था। परमेश्वर सबसे बड़े पापी को बदल सकता और शाऊल के जैसे उपयोग कर सकता है।

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