Class 6, Lesson 38: इथियोपिया के खोजा का परिवर्तन

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इथियोपिया के खोजा का परिवर्तन हम जानते हैं कि कलीसिया को उपासना करने, प्रार्थना करने और साक्षी देने के लिए ठहराया गया है। विश्वासियों की साक्षी के द्वारा ही अन्य लोग परमेश्वर की कलीसिया में मिलाए जाते हैं। यद्यपि वे क्लेशों में थे, कलीसिया शांत नहीं रही। वे साक्षी देते रहे और सुसमाचार पृथ्वी के छोर तक फैलता गया। जलप्रलय के पश्चात् नूह और उसका घराना जहाज से बाहर आया। नूह के पुत्र शेम, हाम और येपेत थे, और इन्हीं से जलप्रलय के पश्चात् जातियाँ बनीं (उत्प. 10:1, 32)। अगले तीन अध्यायों में हम इथियोपिया के खोजे, तरसुस के शाऊल, तथा अन्यजाति कुरनेलियस के हृदय परिवर्तन के विषय अध्ययन करेंगे। वे क्रमशः हाम, शेम तथा येपेत के प्रतिनिधि हैं। अभी हम एक इथियोपिया वासी का अध्ययन करेंगे जो कि हाम का एक वंशज था। इथियोपिया का यह खोजा रानी कन्दाके का वित्त मंत्री था। वह यहूदी भक्त था। वह इस्त्राएल के परमेश्वर की आराधना करने यरूशलेम आया था और अपने रथ पर सवार हो लौट रहा था। यात्रा करते हुए वह यशायाह नबी की पुस्तक पढ़ रहा था। जो वह पढ़ रहा था उसे समझने की अभिलाषा कर रहा था। हमारा परमेश्वर सबकुछ जानता है। वह उस खोजे के हृदय तथा लालसा को जानता था। इसलिए उसने फिलिप्पुस को बुलाया, जो कि यरूशलेम की कलीसिया में एक सेवक था। उस समय वह सामरिया में प्रभावशाली रीति से सुसमाचार प्रचार कर रहा था। प्रभु ने उसे उस मार्ग पर जाने को कहा जो यरूशलेम से गाजा की ओर जाता है। आत्मा ने फिलिप्पुस को जाने और खोजे से मिलने के लिए कहा। उस समय वह खोजा इस स्थल को पढ़ रहा था, "वह सताया गया और उसे दुख दिया गया, फिर भी उसने अपना मुँह न खोला। जैसे मेम्ना वध होने के समय तथा भेड़ ऊन कतरने वाले के सामने शांत रहती है, वैसे ही उसने भी अपना मुँह न खोलाः अत्याचार करके और दोष लगाकर उसे ले जाया गया। और उस पीढ़ी के लोगों में से किसने उस पर ध्यान दिया कि वह जीव-लोक में से काट डाला गया? "(यशायाह 53:7-8)। फिलिप्पुस ने उससे पूछा कि जो वह पढ़ रहा था क्या उसे समझ रहा था। उस खोजे ने चाहा कि फिलिप्पुस उसे समझाए। अतः उसने फिलिप्पुस को अपने पास ऊपर बैठा लिया। प्रभु द्वारा अवसर प्रदान किया गया और फिलिप्पुस ने उसका उपयोग किया। उसने खोजे को सुसमाचार दिया। फिलिप्पुस ने समझाया कि नबी उस दुखभोगी मसीहा के विषय लिख रहा था। निस्संदेह उसने यह भी बताया कि यह नबूवत नासरत के यीशु में पूरी हुई थी जिसने दुख सहा, मारा गया और जी उठा। फिलिप्पुस ने आगे कहा कि जो लोग अपने बदले मसीह की मृत्यु पर और उसके पुनरुत्थान पर विश्वास करते हैं उन्हें अपने पापों से पश्चाताप कर उस पर विश्वास लाना चाहिए। उन्हें जल के बपतिस्मे द्वारा अपने विश्वास की साक्षी देना चाहिए। उस खोजे ने विश्वास किया और उद्धार पाया। फिलिप्पुस ने उसे बपतिस्मा दिया। इस उद्धार पाए खोजा ने आफ्रिका में सुसमाचार फैलाया। यह पाठ से हम कुछ शिक्षाएं पाते हैं। एक विश्वासी को, आत्मा की बुलाहट का पालन करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए (प्रे.काम 8:26-27)। यह प्रभु का काम है कि कटनी के लिए मज़दूरों को बुलाए और भेजे (मत्ती 9:37-39)। वह अपने पूर्व-ज्ञान में जानता है कि लोग कहाँ हैं और कौन विश्वास लाएंगे। जब पौलुस कुरिन्थ में निराश था, प्रभु ने उसे हियाव के साथ प्रचार करने के लिए कहा। प्रभु ने कारण दिया, "क्योंकि इस नगर में मेरे बहुत से लोग हैं" (प्रे.काम 18:10)। हमें यह भी सीखना चाहिए कि एक विश्वासी को जब कभी अवसर मिले साक्षी देने के लिए तैयार रहना चाहिए। फिलिप्पुस ने यही किया (प्रे.काम 8:35)। हमें यह भी स्मरण रखना चाहिए कि पवित्र आत्मा ने पौलुस को उसकी द्वितीय मिशनरी यात्रा के समय एशिया में प्रचार नहीं करने दिया था (प्रे.काम 16:6)। उसे अवसर आने पर हमेशा साक्षी देने के लिए तैयार रहना चाहिए (प्रे.काम 8:35)। तथापि, जब उसने मकिदुनिया के एक व्यक्ति को दर्शन में देखा तो वह यूरोप में प्रचार करने गया। अतः हम यह जानते हैं कि मसीह ही हमारी सेवकाई का प्रभु है। वही हमें बताएगा कि कब, कहाँ और क्या बोलना है। इस खोजा की कहानी से हम यह भी सीखते हैं कि मसीह पर विश्वास लाने के बाद बपतिस्मा भी लेना चाहिए।

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