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कलीसिया का सताव संसार का सृष्टिकर्ता प्रभु यीशु मसीह, इस संसार में आया जिसे उसने बनाया था। परंतु उसे ग्रहण करने के बदले इस संसार ने उसे क्रूस पर चढ़ा दिया। वर्तमान संसार उस दुष्ट के अधीन है (1 यूहन्ना 5:19)। यीशु मसीह ने कहा, "इस संसार में तुम्हें कष्ट होता है" परंतु वह हमें न डरने के लिए कहता है। क्योंकि उसने संसार को जीत लिया है। जितने भक्तिपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं वे दुख उठाएंगे (फिलि. 1:29)। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह संसार मसीह एवं मसीहियों के विरूद्ध है। यदि संसार हम से घृणा करता है तो हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि इसने प्रभु से भी घृणा किया था। एक मसीही के रूप में दुख उठाना शर्म की बात नहीं है। पतरस कहता है, "पर यदि कोई मसीही होने के कारण दुख उठाता है, तो वह लज्जित न हो, वरन अपने इस नाम के लिए परमेश्वर की महिमा करें" (1 पतरस 4:16)। प्रेरितों ने आनन्द किया क्योंकि उन्होंने मसीही गवाहों के रूप में दुख उठाया (प्रे.काम 5:41)। इस पाठ में हम उस सताव के और उसके प्रति उसकी प्रतिक्रिया के विषय सीखेंगे जिसे प्राचीन कलीसिया ने सहा। आरम्भ में विश्वासियों ने यहूदियों के हाथों दुख सहा। क्योंकि मसीही धर्म को यहूदी धर्म का हिस्सा माना जाता था। बाद में रोमी सरकार के द्वारा दुख सहा। 1. उन्हें पीटा गया प्रेरितों को मसीह के लिए उनकी साक्षी के लिए बंदिगृहों में रखा गया। तथापि, प्रभु ने उन्हें आश्चर्यजनक रीति से छुड़ाया और उन्होंने प्रचार करना बंद नहीं किया। इसलिए उन्हें पूछताछ के लिए सभाओं के समक्ष लाया गया। उन्होंने उत्तर दिया कि वे मनुष्यों की अपेक्षा परमेश्वर की आज्ञा मानेंगे। प्रेरितों को तब पीटा गया और फिर यीशु के नाम में प्रचार न करने की आज्ञा दी गई (प्रे.काम 5:40)। अलग-अलग अवसरों पर उन्हें पीटा गया (2 कुरिं. 11:25) और कोड़े लगाए गए (प्रे.काम 22:24)। हमारे प्रभु यीशु ने भी इन सतावों को सहा (यूह. 19:1)। इन कोड़ों के सिरों पर हड्डियाँ लगी होती थीं। प्रेरित पौलुस कहता है कि उसने पाँच बार 39-39 कोड़े खाए (2 कुरिं. 11:24-25)। 2. उन्हें पत्थरवाह किया गया पुराना नियम में, व्यभिचारियों और सब्त को तोड़ने वालों को पत्थरवाह करके मार डाला जाता था। पत्थरवाह एक रोमी दण्ड था। पत्थरवाह के द्वारा धीरे-धीरे मृत्यु होती है। मसीह के लिए, प्रेरितों ने भी इस पीड़ादायक अनुभव को सहा। एक बार पौलुस को लुस्त्रा की भीड़ द्वारा पत्थरवाह किया गया था (प्रे.काम 14:19)। कलीसिया के प्रथम शहीद स्तिफनुस को पत्थरवाह किया गया था (प्रे.काम 7:58-60)। 3. उन्हें बंदीग्रह पुराने समय में बंदीग्रह का जीवन बहुत बुरा होता था। पतरस और यूहन्ना प्रेरितों में पहले थे जिन्हें बंदीग्रह में डाला गया था (प्रे.काम 4:3)। अंततः अन्य अनेक प्रेरितों को बंदीग्रह में डाला गया था (प्रे.काम 5:8)। बंदीग्रह में डाले जाने की अन्य घटनाएं पतरस (प्रे.काम 12:4), पौलुस और सीलास (प्रे.काम 16:23), तीमुथियुस (इब्रा. 13:23) के साथ हुईं। 4. उन्होंने मृत्यु सही अपने विश्वास के लिए सर्वप्रथम स्तिफनुस ने दुख उठाया और मरा (प्रे.काम 7:58-60)। प्रेरित पतरस और याकूब तथा यूहन्ना के भाई को हेरोदेस अग्रिप्पा प्रथम द्वारा बंदीगृह में डाला गया। यहूदियों को प्रसन्न करने के लिए उसने उसका सिर कटवा दिया। जबकि हेरोदेस पतरस को मार डालने की योजना बना रहा था, प्रभु ने आश्चर्यजनक रीति से उसे बचा लिया। इतिहास बताता है कि पतरस के निवेदन पर उसे क्रूस पर उल्टा लटकाया गया था। पौलुस ने कहा कि उसका सिर कटवा दिया गया। रोमी संसार के विभिन्न भागों में विश्वासियों को शहीद होना पड़ा था। प्राचीन कलीसिया ने धीरज से इन सतावों को सहा। कहा जाता है कि, "इतिहास दोहराता है।" यह एक सर्वकालीन सत्य है। इतिहास में ऐसा कोई समय नहीं रहा जब संसार में कहीं न कहीं कुछ विश्वासी सताए न जा रहे हों। स्थिति बिगड़ती जा रही है। दक्षिण गलातिया का दिए पौलुस के प्रबोधन को स्मरण रखें कि हम विश्वास में बने रहें और कि हमें और भी सताव से होकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा (प्रे.काम 14:22)। पौलुस ने स्वयं अपने शहीद होने के समय को आते देख कहा, "मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ, मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैंने विश्वास की रक्षा की है।" भविष्य में मेरे लिए धार्मिकता का मुकुट रखा हुआ है जिसे प्रभु जो धार्मिकता से न्याय करने वाला है उस दिन मुझे प्रदान करेगा, और न केवल मुझे वरन् उन सबको भी जो उससे प्रकट होने को प्रिय जानते हैं (2 तीमु. 4:7,8)।
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