Class 6, Lesson 33: पुनरुत्थान एवं प्रकटीकरण

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पुनरुत्थान एवं प्रकटीकरण प्रभु मृतकों में से जी उठा। प्रभु के पुनरुत्थान से पहले भी कई लोग जीवित हो उठे थे (लाज़र, याईर की बेटी, नाइन नगर की विधवा का बेटा, शुनेमिन का बेटा, वह मनुष्य जिसे एलीशा की कब्र में गाड़ा गया था)। परंतु वे सब नाशमान देह में जीवित हुए, जबकि यीशु मसीह उस महिमामय देह में जीवित हो उठा, जिसे मृत्यु द्वारा रोका नहीं जा सका था। प्रभु के द्वितीय आगमन पर संतगण भी प्रभु के समान जी उठेंगे। अपने पुनरुत्थान के द्वारा मसीह ने मृत्यु की शक्ति को नाश किया। वह विजयी रूप से मृतकों में से जी उठा और उसने शैतान की शक्ति को नाश किया (इब्रा. 2:14)। उसके पास मृत्यु एवं नर्क की कुँजी है (प्रका. 1:18)। जिस रीति से एक नई सरकार के आरम्भ में कुछ बन्दियों को छोड़ दिया जाता है, यीशु ख्रीस्त ने भी कई संतों को अपने पुनरुत्थान पर उनकी कब्रों से मुक्त किया (मत्ती 27:52)। प्रभु जी उठा है और स्वर्ग पर चढ़ा है कि पृथ्वी और स्वर्ग के साथ अधिकार प्राप्त करे (मत्ती 28:18)। वर्तमान में ऐसा प्रतीत हो सकता है कि सबकुछ उसके नियंत्रण में नहीं है, क्योंकि वह कुछ समय के लिए शैतान को अपनी मनमानी करने देता है। परंतु वह दिन आता है जब वह प्रभुओं का प्रभु और राजाओं का राजा के रूप में सबकुछ पर नियंत्रण प्राप्त करेगा। पुनरुत्थान से स्वर्गारोहण के मध्य 40 दिनों में यीशु मसीह ने अनेक बार चेलों को दर्शन दिए, परंतु वह संसार पर प्रकट नहीं हुआ। पुनरुत्थान के पश्चात दर्शन 1. मरियम मगदलीनी (मरकुस 16:9-11; यूहन्ना 20:11-18) मरियम मगदलीनी सब से बढ़कर प्रभु से प्रेम करती थी। प्रभु ने उसके पापों के क्षमा किया था और उसमें से दुष्टात्माओं को निकाला था। प्रभु की सार्वजनिक सेवकाई के समय वह अन्य कुछ स्त्रियों के साथ उसके पीछे चलती थी। वह क्रूस के निकट थी। जब यीशु की देह को कब्र में रखा गया तो वह वहाँ थी। वह इतवार की भोर को कब्र पर र्गइ थी। प्रभु के प्रति प्रेम ने उसे साहस दिया था कि जब अभी अंधेरा ही था, वह कब्र पर जाए। प्रभु उसे दिखाई दिया। जब प्रभु ने उसे 'मरियम' कहा तो वह उसे पहचान गई। अपने पुनरुत्थान के पश्चात् हमारे प्रभु ने एक स्त्री को सबसे पहले दर्शन दिया। 2. स्त्रियाँ (मत्ती 28:8-10) मसीह के क्रूस के निकट चार स्त्रियाँ थीं। (1) यीशु की माता (2) मरियम मगदलीनी (3) सलोमी, जो कि याकूब एवं यूहन्ना की माता तथा जब्दी की पत्नी थी। वह प्रभु की माता की बहन थी (4) क्लोपास की पत्नी मरियम। मरियम मगदलीनी, योअन्ना और याकूब की माता मरियम (लूका 24:10) इतवार की भोर को कब्र पर गई थीं। (यूहन्ना 20:11-18) में मरियम मगदलीनी को प्रभु के दर्शन के विषय में लिखा है। इसके पश्चात् मसीह ने अन्य दो स्त्रियों को दर्शन दिया और उन्होंने पैर पकड़कर उसको दण्डवत किया (मत्ती 28:10)। 3. पतरस (लूका 24:34; 1 कुरिं. 15:5) यह नहीं लिखा है कि मसीह ने पतरस को किस रीति से दर्शन दिया। पतरस बहुत दुखी था क्योंकि उसने तीन बार प्रभु का इनकार किया था। अतः यह सम्भव है कि प्रभु ने पतरस को विशेष रूप से दर्शन दिया कि उसके विश्वास को दृढ़ करे। 4. इम्माअस के मार्ग पर चेलों को (मरकुस 16:12-13; लूका 24:13-33) प्रभु एक अजनबी के समान दो मनुष्यों के साथ चल रहा था। मार्ग में उसने उन्हें वह समझाया जो पवित्र शास्त्र में कहा गया था। अंत में, जब वह उनके साथ भोजन करने बैठा उनकी आँखें खुल गईं और उन्होंने मसीह को पहचान लिया। 5. दस चेलों को (यूहन्ना 20:19-23) चेले भयभीत थे और एक घर में द्वार बंद कर बैठे हुए थे। यीशु आया और उनके मध्य खड़े होकर उसने कहा, "तुम्हें शांति मिले।" तब उसने उन्हें अपने हाथ और पंजर दोनों दिखाए। उन्होंने उसे देखा और विश्वास किया। चेले आनन्द से भर गए। अब थोमा, उन बारहों में से एक उस समय उनके साथ नहीं था। जब उसे यीशु के प्रकट होने के बारे में मालूम हुआ उसने कहा, "जब तक मैं उसके हाथों में कीलों के चिन्ह न देख लूं और कीलों के छेद में अपनी उंगली न डालूं और उसके पंजर में अपने हाथ न डालूं, तब तक मैं विश्वास न करूंगा।" 6.चेलों को, थोमा उपस्थित था (मरकुस 16:14; यूह. 20:26-31) एक सप्ताह इतवार के दिन पश्चात् जब उसके चेले एक साथ थे, और थोमा उनके साथ था, यीशु आया और उनके मध्य खड़ा हुआ। तब यीशु ने थोमा से कहा, "अपनी उंगली यहाँ ला और मेरे हाथों को देख, और अपना हाथ बढ़ाकर मेरे पंजर में डाल और अविश्वासी नहीं परंतु विश्वासी हो।" थोमा ने तुरंत उत्तर दिया, "हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर।" 7. तिबिरियास की झील पर सात चेलों को (यूह. 21:1-23) हमारा प्रभु यरूशलेम में मरा और जी उठा। स्पष्टतः हमारे प्रभु के आरम्भिक दर्शन यरूशलेम में दिए गए। प्रभु चेलों से गलील को जाने के लिए कह चुका था (मत्ती 26:32; 28:10)। और वे वहाँ गए। जैसे जैसे दिन बीतने लगे वे प्रभु के दर्शन से प्राप्त जोश को खोने लगे। वे अपनी रोजी रोटी के बारे में सोचने लगे। एक संध्या पतरस ने कहा, "मैं मछली पकड़ने जा रहा हूँ।" छः अन्य उसके साथ हो लिए। वे गलील की झील में मछली पकड़ने गए थे। परंतु उस रात्रि उन्होंने कुछ भी नहीं पकड़ा। जब भोर होने लगी उनकी नाव तट से बहुत दूर थी। यीशु तट पर खड़ा था। उसके चेलों ने उसे नहीं पहचाना। उसने उनसे कहा, "बच्चो, तुम्हें मछलियाँ नहीं मिलीं, न?" उन्होंने उत्तर दिया, "नहीं।" यीशु ने कहा, "नाव के दाहिने ओर जाल डालो तो पाओगे।" उन्होंने वैसा ही किया, उन्हें बहुत मछलियाँ मिलीं। इस आश्चर्यकर्म द्वारा चेलों का विश्वास दृढ़ हुआ (लूका 5:1-11)। 8. गलील के पर्वत पर (मत्ती 28:16-20) (मत्ती 28:16) में एक और घटना का वर्णन है। यह गलील के पर्वत पर हुई। सम्भवतः इसी घटना का वर्णन (1 कुरिं. 15:6) में एक साथ 500 लोगों को दर्शन देने के रूप में किया गया है। 9. स्वर्गारोहण के समय में बैतनिय्याह (प्र.वा. 1:11-12; लूका 24:50-51) बैतनिय्याह जैतून पर्वत के निकट एक गाँव है। इसी पर्वत पर से यीशु स्वर्ग को चढ़ा। उसके चेलों ने उसे ऊपर जाते देखा जब वे आकाश की ओर देख रहे थे। और बादल ने उसे अपनी आँखों से ओझल कर दिया। अचानक से दो पुरुष श्वेत वस्त्र पहिने हुए उनके पास आ खड़े हुए। उन्होंने कहा, "गलीली पुरुषों, तुम खड़े खड़े आकाश की ओर क्यों देख रहे हो? यही यीशु जो तुम्हारे पास से स्वर्ग को उठा लिया गया है, वैसे ही फिर आएगा और जैसे तुमने उसे स्वर्ग में जाते देखा है।" 10. यीशु के भी याकूब को (1 कुरिं. 15:7) यीशु के भाई याकूब (मत्ती 13:53; मरकुस 6:3) ने यीशु पर विश्वास नहीं किया था जबकि वह पृथ्वी पर था (यूहन्ना 7:5)। हमारा प्रभु ने मृतकों में से जीवित होने के पश्चात् उसे दर्शन दिया। इससे उसका जीवन बदल गया। उसने विश्वास किया कि यीशु ही मसीह और उद्धारकर्ता था। यरूशलेम की कलीसिया में याकूब एक मुख्य अगुवा बना (प्रे.का. 15:12-21; गला. 1:19; 12:9) अंततः वह शहीद हुआ। 11. दमिश्क के मार्ग पर शाऊल को (1 कुरिं. 15:8) तर्शीश का शाऊल (पौलुस) मसीह एवं उसके चेलों का शत्रु था। वह किसी भी कीमत पर मसीहियों को नाश करना चाहता था। जब वह मसीहियों को बंदी बनाने तथा दण्ड के लिए यरूशलेम लाने के लिए यरूशलेम से दमिश्क की जा रहा था, एक आश्चर्यकर्म हुआ। वह दिन का समय था। तब आकाश से एक ज्योति उसके चारों ओर चमकी और वह भूमि पर गिर पड़ा। वहाँ उसने जी उठे प्रभु का दर्शन पाया। हम इस प्रकटीकरण के विषय प्रे.काम 9:1-16; 22:3-21; और 26:12-18 में पढ़ते हैं। मसीही धर्म हमारे प्रभु यीशु मसीह के पुनरुत्थान की पक्की ऐतिहासिक नींव पर आधारित है। अब जब वह जीवित है। वह आकर एक विश्वासी के जीवन में रह सकता है और एक मसीही कह सकता है कि, "मेरे लिए जीना मसीह और मरना लाभ है।"

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