Class 6, Lesson 32: क्रूसीकरण

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क्रूसीकरण क्रूसीकरण रोमियों द्वारा घोर अपराधियों को दिया जाने वाला एक दण्ड था। रोमी व्यवस्था के अनुसार रोमी नागरिकों को क्रूस की सजा नहीं दी जाती थी। अपराधी को भूमि पर रखे क्रूस पर पीठ के बल लिटाया जाता था और उसके हाथों एवं पैरों को कीलों से उस क्रूस पर ठोंक दिया जाता था। तब क्रूस को उठाकर एक सीधा गाड़ दिया जाता था। इस दण्ड से तुरंत मृत्यु नहीं होती थी। यद्यपि उन्हें बेहोश करने के लिए सिरका पिलाया जाता था, वे दो तीन दिन तक जीवित रह सकते थे और गिद्धों तथा अन्य पक्षियों द्वारा उन्हें खा लिया जाता था। हमारे प्रभु को एक शुक्रवार की सुबह नौ बजे गुलगुता में दो डाकूओं के बीच क्रूस पर चढ़ाया गया था। वह दोपहर तीन बजे मरा था। हमारे प्रभु ने न केवल शारीरिक पीड़ा सही परंतु नरक की वेदना भी जो कि हमारे पाप का दण्ड थी। यीशु वास्तव में शैतान के विरूद्ध लड़ रहा था। अतः उसने शरीर, प्राण और आत्मा में हमारे बदले बड़ी पीड़ा सही। इसलिए वह हमारा उद्धारकर्ता है। तब हम यह विश्वास करते हैं कि उसने हमारे लिए दुख सहा और मरा तो हम उद्धार पा सकते हैं (गला. 3:1; 2 तीमु. 2:8; प्रकाशित 5:12; फिलि. 3:9-11, 1 कुरिं. 1:23; 2:2)। क्रूस पर से सात वचन सुसमाचारों में हम यीशु द्वारा क्रूस पर से कहे सात वचनों को देखते हैं। उनमें से तीन उसने परमेश्वर से कहे, एक उस डाकू से जिसने पश्चाताप किया, एक अपनी माता से जो कि निकट खड़ी थी और एक सारे संसार से। 1. पिता इन्हें क्षमा कर (लूका 23:34) यह एक प्रार्थना निवेदन है। यह उसने उनके लिए किया जिन्होंने उसे क्रूस पर चढ़ाया था। यह वह क्षण था जब उसने अपनी शिक्षाओं को व्यवहारिक रूप से लागू किया (मत्ती 5:39,44,45)। 2. आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा (लूका 23:43) यह उसने उस डाकू से कहा जिसे उसके साथ क्रूस पर चढ़ाया गया था। हमें निम्नलिखित बातों को देखना चाहिएः 1. यद्यपि उस डाकू को रोमी कानून के अनुसार मरना था, परमेश्वर द्वारा उसके पाप क्षमा किए गए। 2. यद्यपि वह मरा, वह प्रभु के साथ स्वर्गलोग में गया। 3. उद्धार पाए हुए लोग मृत्यु के पश्चात् शांत कब्र में नहीं जाते हैं परंतु वे मसीह के साथ रहने जाते हैं। 4. एक पापी मृत्यु के निकट भी उद्धार पा सकता है यदि वह पश्चाताप करे। 5. हमारा प्रभु पूरा पूरा उद्धार करने में सामर्थ है (इब्रा. 7:25)। 3. नारी, देख यह तेरा पुत्र (यूहन्ना 19:26,27) यीशु ने ये वचन अपनी माता से कहे, वह अपने प्रिय पुत्र के दर्द एवं पीड़ा को देख रही थी। शमौन के वचन, "और तलवार तेरे प्राण को छेद देगी" (लूका 2:35) इस समय पूरे हो रहे थे। उसने अपनी माता को अपने प्रिय शिष्य यूहन्ना की देखभाल एवं सुरक्षा में सौंपा। कैसा धन्य प्रभु! 4.हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर तूने मुझे क्यों छोड़ दिया (मत्ती 27:46,47; मरकुस 15:34,35): यह भजन 22 का पहला पद है। भजनकार नबूवतीय आत्मा में क्रूस की पीड़ा को समझाता है। वह पुत्र जिसे पिता द्वारा छोड़ दिया गया था यहाँ देखा जा सकता है। इस संसार में कोई यह नहीं कह सकता है कि उसे परमेश्वर ने छोड़ दिया हैं यहाँ पर परमेश्वर ने अपने पुत्र की पुकार का उत्तर नहीं दिया। लाज़र की कब्र के बाहर खड़े यीशु ने कहा, "पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि तूने मेरी सुन ली है।" तब उसने बड़ी ज़ोर से पुकारा, "हे लाज़र निकल आ," और वह निकल आया। परंतु यहाँ क्रूस पर उसे कोई उत्तर नहीं मिला। यीशु परमेश्वर को पिता कहा करता था, परंतु जब वह क्रूस पर था तो परमेश्वर ने उसके साथ पिता का सा व्यवहार नहीं किया, परंतु एक धर्मी न्यायी का सा जो न्याय चुका रहा था। इसी कारण, यहाँ यीशु पुकार उठा, "मेरे परमेश्वर" "मेरे परमेश्वर।" जो सबसे कड़वा प्याला यीशु ने पिया वह परमेश्वर द्वारा उसे त्याग दिया जाना था। 5.मैं प्यासा हूँ (यूहन्ना 19:28) जिसने विशाल जलधाराओं एवं समुद्रों को बनाया वह पुकार उठा, "मैं प्यासा हूँ।" जब शरीर से लोहू बह जाता है तो एक व्यक्ति को प्यास लगती है। उसने हमारे लिए अपना लोहू बहाया। उसने अपने बहुमूल्य लोहू से हमारे पापों को धो दिया (इफि. 1:7; 1 यूह. 1:7)। उसने हमें अपने बहुमूल्य लोहू से मोल लिया और हमें याजकों का समाज बनाया (प्रकाशित. 5:9; 1 पतरस 2:9)। जब इस्राएल की संतान प्यासी थी, परमेश्वर ने उन्हें चट्टान से पानी दिया। जब शिमशोन प्यासा था, परमेश्वर ने उसके लिए एक गड्ढा बना दिया कि वह पानी पीए। परंतु जब प्रभु प्यासा था तो उन्होंने उसे पीने के लिए सिरका दिया, जैसा कि(भजन 69:21) में लिखा है। जब इस्राएल की संतान मारा में पानी नहीं पी पाई थी, क्योंकि वह कड़वा था, परमेश्वर ने उनके लिए उसे मीठा कर दिया था। परंतु जब परमेश्वर का पुत्र प्यासा था, उन्होंने उसे सिरका दिया। 6. पूरा हुआ (यूहन्ना 19:30) एक बहुत अर्धपूर्ण शब्द! मनुष्यजाति के उद्धार के लिए जो कुछ आवश्यक था वह क्रूस पर पूरा हुआ था। जो कोई भी कलवरी के क्रूस पर उस पूरे हुए कार्य पर विश्वास करता है वह उद्धार पाता है। 7.हे पिता मैं अपनी आत्मा तेरे हाथ में सौंपता हूँ (लूका 23:46) यीशु ने क्रूस पर से ये अंतिम वचन कहे। यह कहते हुए उसने अपनी आत्मा को सौंप दिया। उसने बड़े शब्द से पुकारा। अपनी मृत्यु के समय प्रभु पूर्णतः सचेत था। वह मृत्यु के समय वृद्धावस्था के कारण दुर्बल नहीं था, परंतु युवा और उर्जावान था। क्योंकि उसका जीवन इस पृथ्वी पर उठा लिया जाता है (प्रे.काम 8:33)। "अत्याचार करके और दोष लगाकर उसे ले जाया गया (यशा. 53:8)। दूसरे शब्दों में वह इस संसार के लिए अपने आपको दे रहा था (यूहन्ना 10:11,15,18; इब्रा. 7:27; 9:14)। जब स्तिफनुस को पत्थवाह किया गया, उसने पुकारा, "हे प्रभु यीशु, मेरी आत्मा को ग्रहण कर।" मृत्यु के समय हमारी आत्मा हमारे पृथ्वी पर के पात्र अर्थात् हमारी देह को छोड़ देती है और प्रभु के पास रहने चली जाती है। अतः डरने की कोई बात नहीं है।

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