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मसीह के विषय साक्षियाँ इसके पहले कि किसी व्यक्ति को किसी कार्य पर रखा जाता है, उसे अपनी आयु, शैक्षणिक योग्यता, स्वास्थ्य, चरित्र इत्यादि के सम्बंध में साक्ष्य देने होते हैं। यदि उसे विदेश यात्रा करनी है तो उसे अपने साथ कुछ साक्ष्य रखने होते हैं। हमारे प्रभु को एक विशेष कार्य के लिए स्वर्ग से भेजा गया था। अतः परमेश्वर पिता (यूहन्ना 18:8), व्यवस्था (यूहन्ना8:17-18), नबियों (प्रे.काम 13:27) और उसके अपने कार्यों ने यह साक्षी दी कि वह परमेश्वर की ओर से आया था। इसके अतिरिक्त स्वर्गदूतों, मनुष्यों तथा शैतान तक ने साक्षी दी। अ. स्वर्ग से साक्षी (मत्ती 3:17) उसके बपतिस्मे के तुरंत बाद, परमेश्वर पिता ने उसके सम्बंध में साक्षी दिया। 1. 'यह मेरा प्रिय पुत्र है।' यीशु परमेश्वर का पुत्र है, दाख की बारी का उत्तराधिकारी है जो फल पाने गया (मत्ती 21:33-39), परमेश्वर का पुत्र है जो कि संपूर्ण पृथ्वी पर राज्य करने के लिए परमेश्वर द्वारा ठहराया गया (भजन 2:8) और परमेश्वर का एकलौता पुत्र है जो कि समस्त विश्वास करने वालों के उद्धार के लिए भेजा गया (यूहन्ना 3:16)। 2. 'जिससे मैं प्रसन्न हूँ।' उसके तीस वर्ष के जीवन के विषय यह साक्षी है। मसीह के जीवन पर हमेशा परमेश्वर का अनुग्रह रहा (लूका 2:52)। हमें परमेश्वर की दृष्टि में अनुग्रह पाना है। ब. रुपान्तर के पर्वत पर (मत्ती 17:5) रूपान्तर के पर्वत पर परमेश्वर यह कहते हुए साक्षी देता है कि, "यह मेरा पुत्र है जिससे मैं प्रसन्न हूँ," वह आगे कहता है, "इसकी सुनो।" क. यरूशलेम से (यूहन्ना 12:28,29) हमारे प्रभु ने, जबकि क्रूस की छाया उस पर पड़ चुकी थी, प्रार्थना किया, "पिता, अपने नाम को महिमा दे।" तुरंत उत्तर आया, "मैंने उसे महिमा दी है, और उसे पुनः महिमा दूँगा।" हमारे प्रभु ने पहले ही कह दिया था कि यदि एक गेहूँ के दाने को और दाने उत्पन्न करना है तो उसे मरना होगा। इस बात से तुलना करने पर हम समझते हैं कि उसकी मृत्यु के द्वारा परमेश्वर के नाम को महिमा मिलनी थी।
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