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मसीह के विभिन्न नाम और पदनाम (क्रमागत) बारम्बार यीशु मसीह ने "मैं... हूँ" वाक्यांश का उपयोग करते हुए अनेक दावे किए। उदाहरण के लिए, उसने कहा, "पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ।" जब यीशु मसीह ने दावा किया कि वह जीवन है, उसका तात्पर्य मात्र शारीरिक जीवन नहीं था, परंतु अनंत एवं आत्मिक जीवन था। जीवन (यूहन्ना 11:25) परमेश्वर ने जब मनुष्य को बनाया, तो उसने उसे जीवन दिया (उत्पत्ति 2:7)। परंतु किसी से मसीह में जीवन प्राप्त नहीं होता है। वह जीवन का स्रोत है। उसमें जीवन था (यूहन्ना 1:4)। इसके साथ ही मसीह ने दावा किया, "मार्ग, सत्य और जीवन मैं ही हूँ" (यूहन्ना 14:6)। फिर उसने कहा, "पिता इसलिए मुझसे प्रेम रखता है कि मैं अपना प्राण देता हूँ कि उसे फिर ले लूँ" (यूहन्ना 10:17)। उसने अपने दावे को मृतक को जीवित करने के द्वारा सच ठहराया, इस प्रकार जीवन और मृत्यु पर अधिकार प्रकट किया। मसीह के पास नर्क और मृत्यु की कुँजी है (प्रकाशित. 1:18)। मसीह न केवल शारीरिक रूप से मरे हुओं को जीवन देता है, परंतु उन्हें भी जो पापों और अपराधों के कारण मरे हुए हैं (इफि. 2:1; यूह10:28)। जिन्होंने मसीह को ग्रहण किया है वे मृत्यु से पार होकर अनंत जीवन में प्रवेश कर चुके हैं (यूहन्ना 5:24)। जो मसीह पर विश्वास करते हैं वे मसीह में हैं (कुलु. 3:4)। वह जो कि जीवन है और जीवन का स्रोत है, मर कैसे सकता है? असम्भव! परंतु उसके मनुष्य बनने के द्वारा यह असम्भव कार्य हो सका है। उसकी मानवता की पुष्टि उसकी मृत्यु के द्वारा और उसके ईश्वरत्व की पुष्टि उसके पुनरुत्थान के द्वारा हुई। जीवन की रोटी (यूहन्ना 6:48) जीवन के लिए रोटी अनिवार्य है। मसीह ने दावा किया कि वह 'जीवन की रोटी' है। अर्थात मसीह के बिना किसी का आत्मिक जीवन नहीं मिल सकता है, आत्मिक विकास की बात तो दूर की है। एकमात्र आश्चर्यकर्म जिसे चारों सुसमाचारों में लिखा गया है वह पाँच रोटी से पाँच हजार लोगों को खिलाने का है। इस आश्चर्यकर्म के कारण अनेक लोग मसीह के पीछे हो लिए थे। आज भी लोग भौतिक लाभ के लिए यीशु का अनुसरण करते हैं। यीशु ने इस अवसर पर उपयोग उन्हें यह सिखाने के लिए किया कि उन्हें आत्मिक रोटी के लिए भूखे होना चाहिए। तब उसने कहा, "जीवन की रोटी मैं हूँ" वही स्वर्ग से उतरी रोटी है। पुराना नियम की मन्ना यीशु मसीह का प्रतीक है। कुछ लोग झूठी शिक्षा देते हैं कि प्रभु भोज की मेज़ के तत्व वास्तव में मसीह की देह और लोहू हैं। इस धर्म सिद्धांत को 'ट्रान्सबस्टेनसिएशन' कहते हैं। यह कथन, "जीवन की रोटी मैं हूँ", आत्मिक रूप से लिया जाना चाहिए। शारीरिक जीवन के लिए जिस रीति से रोटी और पानी अनिवार्य है, मसीह भी हमारे आत्मिक जीवन के लिए अनिवार्य है। जो उस से खाते और पीते हैं उन्हें पूर्ण संतुष्टि मिलेगी। वही जीवन की रोटी है।
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