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मसीह के विभिन्न नाम और पदनाम बाइबल में यीशु के अनेक नामों का उल्लेख है। विभिन्न नाम एवं पद-नाम हैं जिन्हें उसने स्वयं के लिए होने का दावा किया। इस पाठ में हम उनमें से दो विषय सीखेंगे, 'वचन' और 'एकलौता पुत्र।' 1. वचन यूनानी शब्द 'लोगोस' का अनुवाद 'वचन' किया गया है। लोगोस शब्द का व्यापक अर्थ में किया गया है और अति अर्थपूर्ण है। इसका अर्थ एक सोच या विचार और उस सोच की अभिव्यक्ति या उच्चारण है। पवित्र शास्त्र परमेश्वर का लिखित वचन है। पुराना नियम मूसा एवं नबियों को परमेश्वर का प्रकाशन है। परमेश्वर का वचन उसकी सामर्थ को प्रकट करता है, "उसी प्रकार मेरे मुँह से निकलने वाला वचन होगा। वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, वरन् मेरी इच्छा पूरी करेगा और जिस काम के लिए मैंने उसे भेजा है उसे पूरा करके ही लौटेगा" (यशा55:11)। 'ऐसा हो' शब्द में सृष्टि करने की सामर्थ है और इस प्रकार सबकुछ की सृष्टि हुई (2 पतरस 3:5)। मसीह परमेश्वर के उद्देश्य स्वरूप एवं तेज़ का प्रतिरूप है। इसलिए मसीह को वचन कहा गया है। मसीह के देहधारण को 'वचन देहधारी हुआ' के रूप में बताया गया है। यूहन्ना ने स्पष्ट किया कि मसीह ही वह सनातन है जो देहधारी हुआ। 'वचन' के विषय हम निम्नलिखित बातें देख सकते हैंः वचन आदि में था। अतः वचन सनातन है। वचन परमेश्वर पिता के साथ था। इससे हम जानते हैं कि वचन का एक विशिष्ट व्यक्तित्व भी है, वचन की परमेश्वर से गहरी संगति थी। वचन परमेश्वर था और वह वचन का तत्व था और वचन परमेश्वर हैं। उसके द्वारा सबकुछ बना। वचन के द्वारा ही उसने सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की - देखी एवं अनदेखी (कुलु. 1:16; इब्रा. 1:2)। 2. जीवन उसमें जीवन था। वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था (यूहन्ना 1:4)। अर्थात् कि यीशु मसीह ही उस ज्योति का स्रोत है और वह ज्योति मनुष्यों के जीवन जैसे कार्य करती है। इस संदर्भ में पौलुस का कथन बहुत प्रासंगिक है। "उसमें परमेश्वर की समस्त परिपूर्णता सदेह वास करती है" (कुलु. 2:9)। 3. एकलौता पुत्र नया नियम में परमेश्वर को पुत्र मसीह यीशु का पिता कहा गया है। परमेश्वर (वचन) जो कि परमेश्वर के साथ था मनुष्य बना कि वह मनुष्य के साथ विवाद करे। उसने देहधारण किया और हमारे मध्य रहा। जब वह मनुष्य बना, उसका परमेश्वरत्व उसमें पूर्णतः बना रहा। (फिलिप्पियों 2:7) में हम पढ़ते हैं कि "वह मनुष्य की समानता में हो गया।" उसने "परमेश्वर के समान होने को अपने अधिकार में रखने की वस्तु न समझा, उसने अपने आपको शून्य कर दिया।" इसका अर्थ यह नहीं है कि उसने अपने परमेश्वर होने को छोड़ दिया, परंतु उसने मनुष्यों के मध्य निवास करने के लिए परमेश्वर की महिमा को छोड़ दिया। जब वह मनुष्य बना तो उसकी महिमा अदृश्य थी। अर्थात, कुछ समय के लिए उसकी मानवता द्वारा उसकी महिमा ढंकी हुई थी। जैसे कि एक पुत्र अपने पिता के गुण एवं व्यक्तित्व को प्रकट करता है, वैसे ही मसीह ने परमेश्वर पिता के स्वभाव एवं गुणों को प्रकट किया। अतः "परमेश्वर का पुत्र" नाम मसीह के लिए बिल्कुल उपयुक्त है। मसीह वह व्यक्तित्व है जिसमें परमेश्वरत्व तथा मनुष्यत्व एक होते हैं। परमेश्वर सब युगों में अपने आपको प्रकट करता रहा था। तथापि, जब उसने मनुष्य का रूप धारण किया, उसने एक अनूठे पद को लिया और एक मनुष्य के रूप में मनुष्यों के मध्य रहा। उपरोक्त बात से हम, समझ सकते हैं कि मसीह का पुत्रत्व अद्वितीय है। वह एकलौता पुत्र है (यूहन्ना 3:16)। पुत्र शब्द का उपयोग किया गया है क्योंकि ऐसा अन्य कोई उपयुकत शब्द नहीं है जिसके द्वारा हम परमेश्वर पिता और परमेश्वर पुत्र के मध्य सम्बंध को समझ सकें।
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