Class 6, Lesson 18: मरकुस रचित सुसमाचार

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मरकुस रचित सुसमाचार लेखक मरकुस, जिसे यूहन्ना भी कहा जाता है, यरूशलेम का निवासी था। उसकी माता का नाम मरियम था। यूहन्ना मरकुस, बरनाबास का भाई लगता था (कुलु. 4:10)। 1 पतरस 5:13 के अनुसार वह पतरस का आत्मिक पुत्र था। ऐसा कहा जाता है कि 14:15-52 में वर्णित जवान स्वयं मरकुस है। जब पौलुस और बरनबास अपनी प्रथम मिशनरी यात्रा पर गए, तो यूहन्ना मरकुस आधे मार्ग तक उनके साथ गया और अज्ञात कारणों से पिरगा में उन्हें छोड़ दिया। दूसरी मिशनरी यात्रा पर उसे साथ ले चलने पर पौलुस ने आपत्ति किया, जिसके कारण बरनबास से मतभेद हुआ। तथापि बरनबास उसे लेकर सायप्रस चला गया। जब पौलुस ने तीमुथियुस को पत्र लिखा, उसने उसे मरकुस को अपने साथ लाने के लिए कहा क्योंकि वह उसकी सेवकाई में 'उपयोगी' था (2 तीमु. 4:11)। यह प्रकट करता है कि उसने स्वयं को प्रभु की दाख की बारी में एक स्थिर तथा उपयोगी सेवक सिद्ध किया था। मरकुस अधिकतर पतरस की सेवकाई मे उसके साथ रहा। उसका सुसमाचार वास्तव में मसीह के विषय पतरस के दृष्टिकोण को दर्शाने वाला माना जाता है। अतः इसे अक्सर पतरस का सुसमाचार कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि चारों सुसमाचारों में, यह सुसमाचार सबसे पहले लिखा गया था। जिस रीति से मिलापवाले तम्बू के खम्भे, पर्दों की सुंदरता को प्रकट करते हैं, सुसमाचार के लेखक अपनी पहचान बताए बिना मसीह के विषय में लिखते हैं। सुसमाचारों के लेखकों में, मत्ती और यूहन्ना प्रेरित हैं और मरकुस एवं लूका ने प्रेरितों के साथ यात्रा एवं सेवकाई की। सुसमाचार यह पुस्तक मिलापवाले तम्बू के द्वार के लाल रंग के पर्दे को दर्शाती है जो कि प्रभु के सेवक के रूप में मसीह को प्रस्तुत करता है। यह यहेजकेल 1:10 में बैल के मुँह वाले प्राणी को भी दर्शाती है। इस पुस्तक में कुछ एक ही दृष्टांत एवं पुराना नियम के उद्धरण हैं। क्योंकि यीशु शब्द को एक सेवक के रूप में प्रस्तुत किया गया है, उसकी वंशावली या उसके बाल्यकाल का उल्लेख अप्रासंगिक है। इस सुसमाचार का मुख्य शब्द 'सीधा मार्ग' है (उदा. 1:10, 18, 20)। मुख्य पद 10:45 सेवक यीशु को बताता है, जिसे एक फिरौती के मूल्य में दिया गया (जैसे कि एक बोझ उठाने वाला पशु जो कि खेत में काम करता है, जुआ उठाता है, और एक बलिदान के रूप में चढ़ाया जाता है)। इस सुसमाचार में, यीशु को भोजन करते या प्रार्थना करने तक भी नहीं देखा जाता है। वह निरंतर सेवा में लगा है। पौलुस ने फिलिप्पी के विश्वासियों से कहा, "अपने आप मंे वही स्वभाव रखो जो मसीह यीशु में था" (फिलि. 2:5)। उसका स्वभाव कैसा था? हम अगले पदों में पढ़ते हैं (6-8)। स्वयं को एक दास के रूप में दीन करने का। किसे लिखा गया यह सुसमाचार अन्यजातियों के लिए लिखा गया, विशेषकर रोमियों के लिए। वे पुराना नियम से परिचित नहीं थे। अतः इस पुस्तक में पुराना नियम के संदर्भ नहीं हैं। जहाँ कहीं रोमियों के लिए किसी अपरिचित शब्द का या यहूदी प्रथा का उपयोग किया गया है, लेखक उन्हें समझाने का कष्ट करता है (3:17; 5:41; 7:3-4; 7:11,34; 14:12; 14:36; 15:42 इत्यादि), कुछ लातीनी शब्द जिनसे रोमी परिचित थे उनका भी उपयोग किया गया है। वे बोलने वाले नहीं परंतु करने वाले लोग थे। अतः यह पुस्तक उन्हें प्रेरित करने की शैली में लिखी गई है। यह सुसमाचार 'परमेश्वर के पुत्र, यीशु मसीह' शब्दों के साथ आरम्भ होता है। हमारे जीवनों में भी हमें परमेश्वर की संतान बनना है। केवल तब ही हम 'मसीह के स्वभाव' में दीनता से सेवकाई कर सकते हैं।

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