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न्यायी (क्रमागत) 13. शिमशोन दान के गोत्र में मानोह नाम एक पुरुष था। उसकी पत्नी बांझ थी और इसलिए उसकी कोई संतान नहीं थी। एक दिन मानोह की पत्नी को यहोवा के एक दूत ने दर्शन दिया। और उसने कहा,"तू न तो दाखमधु व किसी प्रकार की मदिरा पीना और न ही अशुद्ध वस्तु खाना।" स्वर्गदूत ने आगे कहा, "तू गर्भवती होगी और एक पुत्र को जन्म देगी। और उसके सिर पर उस्तरा न फिरे क्योंकि गर्भ ही से वह बालक परमेश्वर का नाज़ीर होगा और वह पलिस्तियों के हाथ से इस्त्राएलियों को छुड़ाना आरम्भ करेगा।" शिमशोन का जन्म (न्यायियों 13:1-25) स्वर्गदूत के वचन के अनुसार, उस स्त्री ने एक पुत्र को जन्म दिया और उसका नाम शिमशोन अर्थात 'छोटा सूर्य' रखा। प्रभु ने उसे आशीष दी। यहोवा का आत्मा उसे सोरा और एशताओल के बीच महनेदान में उसको उभारने लगा। शिमशोन के प्रभावी कार्य यहोवा के आत्मा ने शिमशोन को बड़ी शक्ति एवं पराक्रम दिया। निम्नलिखित कार्य उसकी शारीरिक एवं परमेश्वर प्रदत्त आत्मिक सामर्थ को बताते हैं। 1. निहत्थे शिमशोन ने एक जवान सिंह को जिसने उस पर हमला किया था, ऐसे चीर दिया जैसे वह कोई बकरी का बच्चा हो (14:6)। 2. उसने अश्कलोन में तीस पलिश्तियों को मार डाला (14:19)। 3. जब उसके ससुर ने उसे उसकी पत्नी से मिलने देने से इन्कार किया, शिमशोन ने तीन सौ लोमड़ियाँ पकड़ी और मशालें लीं और लोमड़ियों की पूंछ से पूंछ बांधी और दो पूंछों के बीच में एक मशाल बांधी। फिर उसने मशालों में आग लगाकर उन लोमड़ियों को पलिश्तियों के खड़े खेतों में छोड़ दिया। इस प्रकार दाख की बारियों और बगीचों के साथ पूलों के ढेर तथा खड़ी फसल दोनों ही जल गए (15:4-5)। 4. उसने उन मज़बूत रस्सियों को तोड़ दिया जिससे उसे बांधा गया था (15:14; 16:9,12)। 5. एक गद्हे के जबड़े की हड्डी से उसने एक हजार पुरुषों को घात किया (15:15)। 6. जब शिमशोन ने पानी के लिए प्रार्थना किया, परमेश्वर ने अचानक से भूमि में से एक जल का सोता बहाया (15:19)। 7. जब पलिश्ती गाजा में उसकी घात में बैठे थे, शिमशोन ने नगर के फाटक के दोनों पल्लों और दोनों बाजुओं को पकड़ कर बेड़ों समेत उखाड़ दिया और उन्हें अपने कंधों पर रखकर पहाड़ी की चोटी पर चढ़ गया (16:3)। 8. उसने दागोन के मन्दिर में तीन हजार पुरुषों को घात किया (16:29,30)। शिमशोन का पतन एक नाज़ीर के रूप में रहने की अपनी प्रतिज्ञा से जब तक शिमशोन ने रखा, प्रभु विशेष रीति से उसके साथ रहा। परंतु वह अपनी शारीरिक अभिलाषा में उलझ गया जिसके कारण उसका पतन हुआ। उसने जब एक पलिश्ती स्त्री से प्रभु की आज्ञा और अपने माता-पिता की इच्छा के विरूद्ध विवाह किया तो उसने अपनी शपथ को तोड़ दिया (14:3)। एक नाज़ीर के रूप में उसे किसी मृतक वस्तु को नहीं छूना था। परंतु उसने सिंह के पंजर से मधु लिया (14:9; 15:15)। वह परमेश्वर के लिए समर्पित था और उसे मदिरा के दूर रहना था। अपनी पत्नी के घर में जब उसने एक भव्य भोज दिया तो उसने इस नियम को तोड़ा (14:10)। उसके सिर के उस्तरा फिरे बाल उसकी शक्ति का रहस्य थे, और वह भी प्रकट कर दिया गया था इस प्रकार उसकी सारी शक्ति चली गई और उसका एक शर्मनाक अंत हुआ। शिमशोन की मृत्यु (16:1-31) उसने दलीला को अपनी शक्ति का भेद बता दिया था। जब उसने शपथ को पूर्णतः तोड़ दिया परमेश्वर ने उसे त्याग दिया। अंधा और निन्दाजनक कार्य के लिए, शिमशोन को गाजा के बंदिगृह से एक मनोरंजन करती भीड़ के सामने दागोन के मंदिर में लाया गया। उसने प्रार्थना किया, "हे प्रभु, मेरी सुधि ले।" और प्रभु ने लिया, और शिमशोन की शक्ति लौट आई। तब उसने उन दो खम्भों की ओर हाथ बढ़ाया जिन पर वह मंदिर खड़ा था। एक को दाहिने हाथ से दूसरे को बाएं हाथ से पकड़कर ढकेला और अपना संपूर्ण बल लगा दिया जिससे वह घर सब सरदारों और उन लोगों पर गिर गया जो उसमें थे। इस प्रकार उसने इतने लोगों को मार डाला जितने उसने अपने संपूर्ण जीवनकाल में नहीं मारे थे। यद्यपि शिमशोन ने स्वयं को अपवित्र किया था, परमेश्वर पर उसके विश्वास ने उसे विश्वास के नायकों में स्थान दिलाया (इब्रा11:32)।
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