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न्यायी (क्रमागत) 5. गिदोन कनानियों से इस्राएल के छुटकारे के पश्चात् चालीस वर्ष शांतिपूर्ण रहे। फिर पुनः लोगों की एक नई पीढ़ी आ चुकी थी, उन्होंने यह ध्यान देना न चाहा कि उनके प्रति प्रभु का अनुग्रह और दया कितनी महान थी। उन्होंने इस बात को नहीं जाना कि वह उनके दुराचरण के लिए उन्हें दण्ड देगा। अतः वे बुराई करने में लगे रहे और परमेश्वर को अप्रसन्न किया। (मसीह की कलीसिया की पवित्रता एवं साक्षी को बनाए रखने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत रीति से मसीह का अनुभव करना चाहिए। माता-पिता का विश्वासी होना पर्याप्त नहीं है, यह किसी व्यक्ति को विश्वासी नहीं बना सकता है।) लोगों के बुरे चाल-चलन ने उन पर पुनः परमेश्वर का क्रोध लाया। सात वर्ष तक मिद्यानियों द्वारा उनका दमन किया गया। अ.गिदोन की बुलाहट (न्यायियों 6:11-24) मिद्यानी देश की उपज को लूटने के लिए बड़ी संख्या में आए और इस प्रकार इस्त्राएलियों को न केवल उनके खेत में उपजे अनाज से वंचित किया परंतु उनके मवेशियों से भी। जब उनकी पुकार स्वर्ग को पहुँची प्रभु ने उन पर तरस खाया। यहोवा के एक दूत ने योआश के पुत्र गिदोन को दर्शन दिया, जबकि वह मिद्यानियों से छिपकर एक दाख के कुण्ड में गेहूं झाड़ रहा था। जब उस स्वर्गदूत ने गिदोन को उसके लिए योजना बताई तो उसने बड़ी दीनता से कहा, "मेरा परिवार मनश्शे में सबसे छोटा है और मैं अपने पिता के घराने में सबसे छोटा हूँ।" तब गिदोन ने स्वयं को निश्चय दिलाने के लिए एक चिन्ह मांगा कि स्वयं प्रभु ही स्वर्गदूत के द्वारा उससे बात कर रहा था। उसे चिन्ह दिया गया (न्यायियों 6:20-22)। अतः गिदोन ने प्रभु के लिए एक वेदी बनाया और वहाँ उसकी उपासना किया (उसे यहोवा शालोम नाम दिया)। प्रभु को जानना उसकी उपासना करना है - यह प्रत्येक विश्वासी का अनुभव होना चाहिए। यहोवा ने गिदोन को आज्ञा दिया कि बाल की वेदी को नाश करे और प्रभु के लिए एक वेदी बनाए। उसने तुरंत वैसा ही किया (6:25-27), और स्वयं के लिए जेरूब्बाल नाम प्राप्त किया (अर्थात, यदि बाल देवता है तो वह स्वयं विवाद करे)। ब. गिदोन द्वारा लड़ी लड़ाईयाँ जब मिद्यानी, अमालेकी और देश के पूर्व की ओर के लोग इस्राएल के विरूद्ध युद्ध छेड़ने के लिए एकजुट हुए, गिदोन पर यहोवा का आत्मा उतरा। नेतृत्व सम्भालते हुए, उसने एक बड़ी सेना बनाया, परंतु केवल यह सुनिश्चित करने के पश्चात् कि परमेश्वर ने उसे इस कार्य के लिए चुना था (यह भी परमेश्वर से एक चिन्ह पाने के द्वारा किया गया 6:38-39)। परमेश्वर की ओर से सकारात्मक चिन्ह ने उसके नेतृत्व में उसके अपने विश्वास तथा लोगों के विश्वास को दृढ़ किया। यहोवा का कार्य करते हुए, एक विश्वासी को दो बातें सुनिश्चित करना चाहिए - (1) कि वह आत्मा से परिपूर्ण है (2) कि वह परमेश्वर की इच्छा पूरी कर रहा है। यह समस्त विपत्तियों पर जय पाने में उसे बल प्रदान करेगा। आरम्भ में गिदोन की सेना लगभग बत्तीस हजार पुरुषों की थी। परमेश्वर ने पुनः हस्तक्षेप किया। वह नहीं चाहता है कि लोग उनकी अपनी सेना की शक्ति पर निर्भर या घमण्ड करें। तब उन्हें कम कर दस हजार किया गया (7:3)। संख्या को और कम करने के लिए, परमेश्वर ने नदी पर सैनिकों को परखा। उन्हें पानी पीने के लिए कहा गया। जिन्होंने पानी पीने के लिए घुटने टेकने में समय लगाया उन्हें अलग कर दिया गया। तथापि, जिन्होंने एक कुत्ते के समान चपड़ चपड़ करके पानी पिया उन्हें सेना में रखा गया। वे तीन सौ पुरुष थे। प्रभु को अपनी सेना में सजग तथा दीन सैनिकों की आवश्यकता है। प्रभु की सेवकाई में संस्था महत्वपूर्ण नहीं है परंतु ऐसे लोग जो कि समर्पित हों। प्रभु ने गिदोन को शत्रु की छावनी को जाने के लिए कहा। वहाँ उसने एक पुरुष को अपना स्वप्न बताते तथा दूसरे को उसकी व्याख्या करते सुना (7:9-14)। इस घटना से गिदोन को साहस मिला और उसने जाना कि प्रभु यही चाहता था। गिदोन और उसके शूरवीरों ने प्रभु के निर्देशों का पालन किया। उसने प्रत्येक सैनिक को एक एक नरसिंगा और खाली घड़ा दिया और हर एक घड़े में एक मशाल थी। उन्होंने सौ सौ पुरुषों की तीन टुकड़ियाँ बनाईं और शत्रु की छावनी को गए। उन्होंने नरसिंगे फूंकें, घड़ों को फोड़ दिया और अपने बाएं हाथ में मशाल लिए चिल्ला उठे, "यहोवा की तलवार और गिदोन की तलवार।" छावनी में बड़ी गड़बड़ी फैल गई। उन्होंने इस गड़बड़ी में उनके अपने संगी को मार डाला और शेष भाग खड़े हुए। दो शासक अर्थात् ओरब और जेब पकड़े गए और मार डाले गए। प्रभु ने पुनः इस्त्राएल को यह दिखाया कि वह कैसे साधारण वस्तु का उपयोग कर बड़ी सेना को हराने के लिए कर सकता था। क. युद्ध के बाद की स्थिति (न्यायियों 8:1-35) अध्याय 8 उस गहरे बैर, ईर्ष्या, क्षेत्रवाद तथा गोत्र के आत्म स्वार्थ को बताता जिसे इस्त्राएलियों ने प्रदर्शित किया। एप्रैम के लोगों ने बुरा माना क्योंकि उन्हें शत्रुओं के विरूद्ध लड़ाई में नहीं लिया गया था। अतः उन्होंने गिदोन से विवाद किया और अपने विरोध को प्रकट किया। सुक्कोत और पनुएल के लोगों ने गिदोन की थकी हुई सेना को भोजन देने से इन्कार कर दिया (8:1-17)। तब गिदोन ने जेबह तथा सल्मुन्ना की सेना का पीछा किया। उसके पास बीस हजार शूरवीर थे। उन्होंने राजाओं को बंधक बनाया और सेना को घात किया (8:31)। मिद्यानियों पर विजय प्राप्त करने के पश्चात, लोगों ने गिदोन को अपना राजा बनाना चाहा। वे वंशागत राजतंत्र चाहते थे। परंतु गिदोन ने मना कर दिया (8:22-23)। इस इन्कार में उसकी दीनता एवं विश्वस्तता स्पष्ट दिखाई देती है। फिर भी, बाद में उसने युद्ध की लूट में से कुछ ग्रहण किया और उससे सोने का एक एपोद बनवाया जिसे उसने अपने नगर में रखा (एपोद एक याजकीय वस्त्र था,जो कि परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में एक याजक पद को दर्शाता था)। परमेश्वर इससे अप्रसन्न हुआ और वह एपोद गिदोन तथा उसके परिवार के लिए 'फंदा' ठहरा। 6. अबीमेलेक (न्यायियों 9:1-57) अबीमेलेक गिदोन के अनेक पुत्रों में से एक था। उसकी माता शकेम की थी। उसने शकेम में अपने सम्बंधियों के साथ मंत्रणा की और उसके अपने सत्तर भाइयों को मार डाला (9:15)। परंतु यह ध्यान देने योग्य है कि वह एक शर्मनाक मृत्यु से मरा जब एक स्त्री ने उसके सिर पर चक्की का पाट पटक दिया जिससे उसकी खोपड़ी फट गई। उसने अपने हथियार ढोनेवाले जवान से कहा कि वह उसे मार डाले क्योंकि वह यह नहीं चाहता था कि लोग जाने कि एक स्त्री ने उसकी हत्या की थी (9:54)। अबीमेलेक की गति ईश्वरीय पल्टे का एक अच्छा उदाहरण है। परमेश्वर का न्याय होने में देर होती लग सकती है, परंतु कोई उससे बच नहीं सकता है। "मनुष्य जो कुछ बोता है वही काटेगा" (गला. 6:4) और जो तलवार से मारता है वह तलवार से मारा जाएगा (प्रका. 13:10)। रोमियों 1:18 में वचन कहता है, "इसलिए परमेश्वर का क्रोध मनुष्यों की समस्त अभक्ति और अधार्मिकता पर स्वर्ग से प्रकट होता है, क्योंकि वे सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं।" 7. तोला (न्यायियों 10:1-2) इस्साकार के गोत्र के तोला ने तेईस वर्ष तक इस्राएल का न्याय किया, इस समय देश में शांति थी। 8. याईर (न्यायियों 10:3) गिलादी याईर ने बाईस वर्ष राज्य किया उसके राज्य की समय की किसी अप्रिय घटना का उल्लेख नहीं है।
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