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यहोशु और कालेब मूसा के पश्चात् यहोशू एवं कालेब इस्राएल के महान अगुवे थे। सर्वसामर्थी परमेश्वर में उनका विश्वास दृढ़ था और इस विश्वास से उन्होंने साहस एवं विजय के साथ इस्त्राएल के युद्ध लड़े। उनका पहला उल्लेख गिनती 13 में है। मिस्त्र से उनकी यात्रा के दो वर्ष पश्चात, इस्राएली लोग कनान की सीमा, कादेश-बर्ने पहुँचे। उस देश की बहुतायत तथा वहाँ के प्रतिरोध को जानने के लिए वहाँ गुप्तचर भेजने पड़े थे। अतः मूसा ने इसके लिए प्रत्येक बारह गोत्र से एक एक अगुवे को चुना। यहोशू को नून का पुत्र होशे कहा जाता है, और कालेब भी उनमें से एक था। यहोशू एवं कालेब को छोड़ शेष सभी गुप्तचरों ने उस देश के निवासियों को विशाल तथा बलवान बताया। जबकि अन्य दस ने इस्राएलियों के मनों को शंका, भय एवं आंतक से भर दिया, यहोशू एवं कालेब ने दृढ़ता के साथ कहा कि परमेश्वर की सहायता से वे विजयी होंगे। लोगों ने अन्य दस पर विश्वास किया और इन दो पुरुषों को पत्थरवाह करने का निर्णय लिया, क्योंकि उन्होंने सोचा कि वे उन्हें भ्रमित कर रहे थे। इस कारण परमेश्वर का क्रोध उन पर भड़का। वह अपने तेज़ के साथ मिलापवाले तम्बू में प्रकट हुआ और उनसे बात की। इस्त्राएलियों ने कितनी सहजता से मिस्र में हुए उन आश्चर्यकर्मों को भुला दिया था जिनका परिणाम बन्धुवाई से उनका छुटकारा था। उन्होंने कितनी शीघ्रता से उन आश्चर्यजनक कार्यों को भुला दिया था जिनके द्वारा परमेश्वर ने जंगल में उनकी अगुवाई की थी। वे अविश्वासी कुड़कुड़ाने वाले लोग बने रहे। अतः परमेश्वर ने घोषणा किया कि कालेब और यहोशू को छोड़ उनमें से कोई भी प्रतिज्ञात देश में प्रवेश नहीं करेगा (गिनती 14:29)। इस शाप को उन्होंने उनके अपने अविश्वास के द्वारा स्वयं पर लाया था। इसका परिणाम जंगल में और अड़तीस वर्ष तक भटकना हुआ। यरीहो के निकट मोआब पहुँचने पर मूसा ने लोगों की गणना की। कालेब और यहोशू को छोड़ उनमें कोई नहीं था जिनकी चालीस वर्ष पूर्व सीनै पर गिनती की गई थी (गिनती 26:63-65 और 32:10-12)। वे दृढ़ विश्वास के साथ मिस्र से निकले थे। फिर भी जब प्रतिज्ञात देश पर अधिकार करने का समय आया तो उन्होंने अपना विश्वास खो दिया। इसके अलावा वे प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने से पहले ही जंगल में मर गए। शेष लोगों से बिल्कुल विपरीत कालेब और यहोशू अपने विश्वास में स्थिर रहे। उन्हें उनकी दृढ़ता के लिए प्रतिफल दिया गया क्योंकि वे प्रतिज्ञात देश में गए और वहाँ अधिकार किया। कालेब यहूदा के गोत्र का था और यहोशू एप्रैम के। यहोशू को सीनै पर्वत पर मूसा के साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। पूर्व उल्लेखों में कालेब अधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति प्रतीत होता है। कालेब ने ही उन दस अगुवों को उनके नकारात्मक कथन के लिए उलाहना दिया था (गिनती. 13:30)। जब अनिश्चितता बनी हुई थी यहोशू ने हस्तक्षेप किया (गिनती. 14:6-10)। फिर भी हम देखते हैं कि यह परमेश्वर की योजना में था कि मूसा की मृत्यु के पश्चात यहोशू अगुवा बने। यह ध्यान देने योग्य बात है कि कालेब इस द्वितीय पद को ग्रहण करने का विशाल हृदय था - एक और ऐसा गुण जो सराहनीय है। हम देखते हैं कि कालेब वृद्धावस्था तक अपने इस विश्वास में बना रहा। वह अपने मीरास के प्रदेश (हेब्रोन, जिसे किर्यत-अर्बा भी कहते हैं) में गया, वहाँ के निवासियों को निकाल भगाया और उस पर अधिकार किया (यहोशू 15:13-15, 65), जबकि उसके गोत्र के अन्य अनेक लोगों ने सोचा कि ऐसे बलवान शत्रुओं का सामना कठिन होगा। कालेब ने अपने जीवन के लिए परमेश्वर की योजना को ग्रहण किया, इसलिए वह परमेश्वर की योजना पर चलने और अपने अधिकारों का दावा करने से नहीं हिचकिचाया। यहोशू का नेतृत्व इस्त्राएलियों के इतिहास में एक बड़े महत्व का है क्योंकि उसी ने उन्हें प्रतिज्ञात देश में प्रवेश कराया और उनके शत्रुओं को पराजित किया, इस प्रकार उन्हें उस देश पर अधिकार दिलाया। वह कभी भी प्रभु के मार्गों से नहीं भटका। उसने विश्वस्तता के साथ अपने दायित्व को पूरा किया। जो महानता एवं पहचान इन दो अगुवों ने प्राप्त की उससे उन्हें घमण्ड नहीं हुआ। वे सच्चे तथा दीन बने रहे। अतः प्रभु ने उन्हें बहुत आशीष दी।
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