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हमने यीशु को बड़ी भीड़ों में देखा है। अब हम उसे नीकुदेमुस नामक एक व्यक्ति से बात करते हुए देखेंगे। वह एक फरीसी था, ‘यहूदियों का सरदार’ और सन्हेद्रिन15 का सदस्य था। वह अन्य फरीसियों के समान पाखंडी नहीं था, वह ऐसा था जो सत्य को जानना चाहता था।एक रात वह यीशु से बात करने आया। उसकी बातचीत में उसने यह स्वीकार किया कि यीशु एक गुरू था जो परमेश्वर की ओर से आया था। उसने कहा कि ‘‘कोई इन चिन्हों को जो तू दिखाता है, यदि परमेश्वर उसके साथ न हो तो नहीं दिखा सकता।’’ नीकुदेमुस की बात पर कोई टिप्पणी न करते हुए यीशु ने विषय का संबंध नए जन्म से जोड़ दिया जो यहूदी शिक्षक के लिये पूरी तरह नई बात थी। उसने कहा, ‘‘मैं तुझ से सच सच कहता हूँ यदि कोई नए सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।’’ नीकुदेमुस समझ नहीं पाया कि यीशु किस विषय कह रहा था। यीशु आत्मिक जन्म के विषय कह रहा था, परंतु उसने केवल शारीरिक जन्म के विषय ही सोचा। इसलिये प्रभु को कहना पड़ा कि व्यक्ति का जन्म पानी और पवित्र आत्मा से होता है। यहाँ पानी का मतलब परमेश्वर का वचन है (इफिसियों 5:25; 1 पतरस 1:28; याकूब 1:18; यूहन्ना 17:17)। यीशु ने यह स्पष्ट किया कि नया जन्म इसलिये आवश्यक है क्योंकि शरीर, शरीर को जन्म देता है, परंतु आत्मा, आत्मा को जन्म देता है कोई भी व्यक्ति इसलिये मसीही नहीं होता क्योंकि वह मसीही माता-पिता से जन्मा है। उदाहरण के लिये, जरूरी नहीं कि डॉक्टर का बेटा डॉक्टर हो। डॉक्टर बनने के लिये उसे उस स्थिति के योग्य बनना होगा। यीशु ने यह कहते हुए अपने शब्द जारी रखा, ‘‘जिस रीति से मूसा ने जंगल में साँप को उँचे पर चढ़ाया, उसी रीति से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी उँचे पर चढ़ाया जाए, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह अनंत जीवन पाए।’’ यहाँ यीशु इस्त्राएलियों के जंगल यात्रा की घटना के संबंध में बता रहा था। (गिनती 21:4-9)। इस्त्राएलियों के हठ के कारण, परमेश्वर ने जहरीले साँपों को भेजा जिन्होंने उन्हें काटा और वे मर गए। मूसा ने लोगों के लिये मध्यस्थी किया और परमेश्वर ने मूसा से एक पीतल का साँप बनाने और खंबे पर लटकाने को कहा कि सब उसे देखें।परमेश्वर ने कहा कि साँप द्वारा डसा हुआ कोई भी व्यक्ति जो उस साँप को देखेगा, वह तुरंत चंगा हो जाएगा। यह घटना परमेश्वर के न्याय को, और अनुग्रह और विश्वास के द्वारा उद्धार का बताता है (इफिसियों 2:8-10)। हम जानते हैं कि हमारा प्रभु यीशु, मनुष्यों के उद्धार के लिये क्रूस पर चढ़ाया गया। पापरहित व्यक्ति पापियों के लिये क्रूस पर चढ़ाया गया।इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिये कि जहरीले साँपों में विष होता था और उससे मृत्यु हो जाती थी, जबकि पीतल का साँप जो बिना ‘‘विष’’ का था, विश्वास करने वालों के लिये जीवन लाता था।पहले नीकुदेमुस यीशु को मात्र गुरू समझता था। लेकिन स्वामी के साथ उसकी बातचीत से उसे यकीन दिला दिया कि परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिये नया जन्म आवश्यक था। उसी समय से पीतल का साँप जो जंगल में चढ़ाया गया था, उसका उदाहरण उसके विचारों में समा गया था। इसलिये जब उसने यीशु को क्रूस पर चढ़ाया हुआ देखा, तो उसे यकीन हो गया कि यीशु परमेश्वर का पुत्र और उद्धारकर्ता था। उसने उस पर विश्वास किया और उद्धार पाया। यही कारण था कि अरिमतियाह के यूसुफ के साथ हो लिया कि वे यीशु को दफना सकें।
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