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फरीसी और शास्त्री यीशु के विरुद्ध कुड़कुड़ाते थे क्योंकि वह चुंगी लेनेवालों और पापियों के साथ मिलता-जुलता था। वास्तव में ऐसे लोग थे जिन्हें उद्धारकर्ता की आवश्यकता थी। यीशु मसीह इस संसार में खोए हुओं को ढूंढ़ने और बचाने आया। इस सत्य को समझाने के लिये, उसने यह दृष्टांत कहा, ‘‘उड़ाऊ पुत्र का दृष्टांत। एक व्यक्ति था जिसके दो पुत्र थे। छोटे पुत्र ने अपने पिता से कहा, ‘‘पिताजी, मुझे अपनी संपत्ति में से मेरा हिस्सा दे दीजिये। जाहिर है कि वह एक विद्रोही पुत्र था। वह उसके पिता की मृत्यु होने तक नहीं रूक सका। इस प्रेमी पिता ने संपत्ति को उनके बीच बाँट दिया। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते थे कि छोटे बेटे ने अपनी सारी संपत्ति इकट्ठा किया और दूर देश चला गया जहाँ उसने उसे मोजमस्ती के जीवन में खर्च कर दिया। जब उसने सब धन खर्च कर डाला, तो उसी समय उस पूरे देश में भयानक अकाल पड़ा और उसे कमी होने लगी। इसलिये उसने उस देश के एक नागरिक से मिलकर बात किया जिसने उसे खेतों में सुअर चराने का काम दिया। वहाँ उसके लिये जीवन सचमुच दूभर था। वह अपना पेट उन फल्लियों से भरने पर मजबूर था जिस फल्ली को सूअर खाते थे, परंत किसी ने उसे अच्छा भोजन नहीं दिया। तब वह अपने आपे में आया, ‘‘मेरे पिता के कितने ही मजदूरों को भोजन से अधिक रोटी मिलती है और मैं यहाँ भूखा मर रहा हूँ। मैं अब उठकर अपने पिता के पास जाऊँगा और उससे कहूँगा कि पिता जी, मैंने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है। अब इस योग्य नहीं रहा कि तेरा पुत्र कहलाऊँ, मुझे एक मजदूर के समान रख ले।’’ तब वह उठा और उसके पिता के पास गया। परंतु जब वह कुछ दूर ही था, उसके पिता ने उसे देख लिया और उसका दिल उसके लिये तरस से भर गया। वह दौड़कर उसके पुत्र के पास गया, उसे आलिंगन किया और चूमा। ‘‘पुत्र ने उससे कहा, ‘‘पिताजी, मैंने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है, और अब इस योग्य नहीं रहा कि तेरा पुत्र कहलाऊँ।’’ परंतु पिता ने अपने दासों से कहा, ‘‘झट से अच्छा वस्त्र निकालकर उसे पहनाओ और उसके हाथ में अंगूठी और पावों में जूतियाँ पहिनाओ और पला हुआ बछड़ा लाकर मारो ताकि हम खाएँ और आनंद मनाएँ। क्योंकि मेरा यह पुत्र मर गया था, फिर जी उठा है; खो गया था अब मिल गया है।’’ इसलिये वे आनंद करने लगे। इसी बीच उसका जेष्ठ पुत्र खेत में था। जब वह आते हुए घर के निकट पहुँचा, तो उसने गाने-बजाने और नाचने का शब्द सुना।अतः उसने एक दास को बुलाकर पूछा, ‘‘यह क्या हो रहा है?’’ ‘‘तेरा भाई आया है’’ उसने कहा, ‘‘और तेरे पिता ने उसे भला चंगा पाया है।’’ बड़ा पुत्र क्रोध से भर गया और भीतर जाना न चाहा। इसलिये उसका पिता बाहर आया और उसे भीतर आने के लिये मनाने लगा। परंतु उसने पिता को उत्तर दिया, ‘‘देख मैं इतने वर्ष से तेरी सेवा कर रहा हूँ और कभी भी तेरी आज्ञा नहीं टाली, तौभी तूने मुझे कभी बकरी का एक बच्चा भी न दिया कि मैं अपने मित्रों के साथ आनंद करता। परंतु जब तेरा यह पुत्र जिसने तेरी संपत्ति वेश्याओं में उड़ा दी हैं, आया तो उसके लिये तू ने पला हुआ बछड़ा कटवाया।’’ ‘‘देख प्रिय पुत्र,’’ पिता ने कहा, ‘‘तू सर्वदा मेरे साथ है और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा ही है। परंतु अब आनंद करना और मगन होना चाहिये क्योंकि यह तेरा भाई मर गया था, फिर जी गया है, खो गया था, अब मिल गया है।’’बाइबल में यह एकदम मानवीय कहानी है और सामान्य अनुभव की है। हमारे घरों, नगरों और देश में उड़ाऊ पुत्र पापी का चित्रण है। उड़ाऊ पुत्र जो लौट आया, परमेश्वर की संतान को दिखाता है। बाइबल कहती है कि हमारे पाप जैसे पूरब से पश्चिम दूर है उसी प्रकार हम से दूर किये गये हैं (भजन 103:12)। पाप जो लाल रंग के थे, हिम के समान श्वेत किये गए हैं (यशायाह 1:18)। उड़ाऊ पुत्र ने तब ही पश्चाताप किया जब उसने सब कुछ खो दिया था। जवान लोग अक्सर ऐसे ही होते हैं। जब वे अपने जीवन का आनंद लेते हैं, वे परमेश्वर के विषय नहीं सोचते, घर या माता-पिता के विषय नहीं सोचते, परंतु जब वे मुसीबतों का सामना करते हैं, तब वे उनके बारे में सोचना शुरू करते हैं। सभोपदेशक में प्रचारक कहता है, ‘‘अपनी जवानी के दिनों में अपने सृजनहार को स्मरण रख, इससे पहले कि विपत्ति के दिन और वे वर्ष आएँ जिन में तू कहे कि मेरा मन इन में नहीं लगता।’’ वह विश्वास से पतित विश्वासी के विषय भी उदाहरण है जिसने पश्चाताप किया और परमेश्वर के पास लौट गया। इसके विपरीत, बड़े पुत्र में हम अपने आपको धर्मी समझने वाले पापी को देखते हैं, जो उसके उड़ाऊ भाई के लौटने से खुश नहीं था। फरीसी आर चुंगी लेने वाले का दृष्टांत लूका 18:10-14 यीशु के दिनों में, फरीसी एक संप्रदाय के रूप में उनके पाखंड और उनकी अपनी धार्मिकता के कारण उदंड थे। उनके वास्तविक चरित्र को उजागर करने के लिये यीशु ने यह दृष्टांत कहा।दो व्यक्ति मंदिर में प्रार्थना करने के लिये गए, एक फरीसी और एक चुंगी लेने वाला। फरीसी ने खड़े होकर अपने मन में यह प्रार्थना किया, ‘‘हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि मैं दूसरे मनुष्यों के समान अंधेर करनेवाला, अन्यायी, और व्यभिचारी नहीं - और न इस चुंगी लेने वाले के समान हूँ। मैं सप्ताह में दो बार उपवास रखता हूँ, मैं अपनी सब कमाई का दसवाँ अंश भी देता हूँ। परंतु चूंगी लेनेवाले ने दूर खडे़ होकर स्वर्ग की ओर आँखें उठाना भी न चाहा, वरन अपनी छाती पीट-पीट कर कहा, ‘‘हे परमेश्वर मुझ पापी पर दया कर।’’ यीशु ने अंत में कहा, ‘‘मैं तुमसे कहता हूँ कि वह दूसरा नहीं परंतु यही मनुष्य धर्मी ठहराकर घर गया। क्योंकि जो कोई अपने आपको बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा, और जो अपने आपको छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।कुछ लोग अपने आपको धर्मी ठहराकर घमंड करते है और स्वाभाविक है कि दूसरों को कम समझकर तुच्छ मानते हैं। यद्यपि फरीसी ‘प्रार्थना’ कर रहा था, जैसे हर प्रार्थना की जानी चाहिये। दूसरी ओर, वह अपने नैतिक और धार्मिक उपलब्धियों के विषय डींग मार रहा था। परमेश्वर के मापदंड से स्वयँ की तुलना करके अपनी पापी अवस्था को जानने की बजाय उसने दूसरों से तुलना किया और उनसे बेहतर होने की बात पर आनंदित हुआ। कुरिन्थियों को लिखे गये अपने पत्र में पौलुस ऐसे लोगों के विषय कहता है, ‘‘...जो अपनी प्रशंसा आप करते हैं, और अपने आप को आपस में नाप तौलकर एक दूसरे से मिलान करके मूर्ख ठहरते हैं’’ (2 कुरि.10:12)। फरीसी के विपरीत, चुंगी लेनेवाले ने अपनी अयोग्यता को समझा और स्वर्ग की ओर देखना भी न चाहा। उसने रोते हुए अपनी छाती पीटकर कहा, ‘‘प्रभु मुझ पापी पर दया कर।’’ कुछ आश्चर्य की बात है कि चुंगी लेने वाला ही था जो धर्मी ठहराया गया। निदयीर्स व्यक्ति का दृष्टांत मत्ती 18:23-35 पतरस ने यीशु से पूछा कि यदि कोई भाई उसके विरुद्ध पाप करे तो उसे कितनी बार क्षमा करना चाहिये। शायद उसने सोचा होगा कि सात बार जरूरत से भी ज्यादा होगा। लेकिन प्रभु का जवाब था, ‘‘सात बार तक नहीं परंतु सात बार से सत्तर गुने तक।’’ इसे समझाने के लिये यीशु ने यह दृष्टांत कहा।स्वर्ग का राज्य उस राजा के समान है, जिसने अपने दासों से लेखा लेना चाहा। जब वह लेखा लेने लगा तो एक जन उसके सामने लाया गया जो दस हजार तोड़े का कर्जदार था। क्योंकि वह कर्ज अदा नहीं कर सकता था, स्वामी ने आदेश दिया कि उसका कर्ज अदा करने के लिये उसकी पत्नी, बच्चों को और जो कुछ उसका है, बेच दिया जाए। इस पर वह दास उसके सामने मुँह के बल गिर पड़ा। ‘‘मुझ पर दया कर’’ उसने विनती किया। ‘‘मैं सब कुछ चुका दूँगा।’’ दास के स्वामी ने उस पर दया किया, उसका कर्ज माफ कर दिया और उसे जाने दिया। दास आनंदित हृदय से बाहर निकला। रास्ते में उसे उसका एक संगी दास मिल गया जो उसके सौ दिनार का कर्जदार था। उसने उसे पकड़कर गला घोंटा और कहा, ‘‘जो कुछ तुझ पर कर्ज है, भर दे।’’ उसका संगी दास उसके पैरों पर गिर पड़ा और बिनती करने लगा, ‘‘धीरज धर मैं सब भर दूंगा।’’ परंतु वह न माना। इसके विपरीत वह गया और जाकर इस व्यक्ति को बंदीगृह में डाल दिया जब तक वह कर्ज अदा न कर दें, वहीं रहे। जब अन्य संगी दासों जो कुछ हुआ था देखा तो वे बहुत दुखी हुए और जाकर स्वामी से बता दिया। तब स्वामी ने उस पहले दास को भीतर बुलाया। ‘‘हे दुष्ट दास’’ उसने कहा, ‘‘तूने जो मुझसे विनती की, तो मैंने तुझ पर दया की, वैसे ही क्या तुझे भी अपने संगी दास पर दया नहीं करना चाहिये था?’’ क्रोध में आकर उसके स्वामी ने उसे दंड देनेवालों के हाथ में सौंप दिया कि जब तक वह सब कर्ज भर न दे, तब तक उनके हाथ में रहे।‘‘इसी प्रकार यदि तुम में से हर एक अपने भाई को मन से क्षमा न करेगा तो मेरा पिता जो स्वर्ग में है, तुमसे भी वैसा ही करेगा।’’‘‘सात बार के सत्तर गुने को शाब्दिक रूप में नहीं लेना चाहिये। हमारे प्रभु का उद्देश्य यह नहीं था कि हम हमारे भाई को केवल 490 बार ही माफ करें। यह संख्यकी तरीका था कि हमें असीमित रूप से माफ करना चाहिये। इस दृष्टांत से हम सीखते हैं कि हमें हमारे अनगिनित पापों के लिये क्षमा किया गया है, इसलिये हमें अपने भाइयों को भी क्षमा करना चाहिये। व्यक्ति को क्षमा प्राप्ति के लिये दूसरों को क्षमा करना चाहिये। ‘‘धन्य हैं वे जो दयावंत है, क्योंकि उन पर दया की जाएगी।’’ (मत्ती 5:7)
यीशु के पीछे मैं चलने लगा (3) न लौटूंगा। (2) 1 गर कोई मेरे साथ न आवे (3) न लौटूंगा । (2) 2 संसार को छोडकर सलीब को लेकर (3) न लौटूंगा। (2) 3 संसार में सबसे प्रभु है कीमती (3) न छोडूंगा। (2) 4 अगर मैं उसका इन्कार न करूं (3) ताज पाऊंगा। (2)