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हमारे प्रभु ने यह दृष्टांत व्यवस्था के एक ज्ञानी द्वारा किए गए प्रश्न के उत्तर में दिया था।उसने प्रभु से पूछा था, ‘‘मेरा पड़ोसी कौन है?’’ जवाब में यीशु ने कहा, ‘‘एक मनुष्य यरूशलेम से यरीहो13 जा रहा था कि डाकुओं ने उस पर हमला कर दिया। उन्होंने उसके कपड़े उतार लिये, उसे मारा और उसे अधमरा करके छोड़कर भाग गए। उसी समय वहाँ से एक याजक निकला, उसने उसे देखा और दूसरी ओर से चला गया। फिर एक लेवी आया,उसने भी उसे देखा और दूसरी ओर से चला गया। कुछ समय के बाद वहाँ एक सामरी आया। उसने जब उसे देखा तो सामरी को उस पर तरस आया। वह उसके पास आया और उसके घावों पर पट्टियाँ बांधा, तेल और दाखरस उंडेला। फिर उसने उसे अपने गदहे पर डाला एक सराय में ले गया कि उसकी देखभाल हो। अगले दिन उसने सराय के मालिक को चाँदी के दो सिक्के दिया। ‘‘इसकी सेवा टहल करना, और जो कुछ तेरा और लगेगा, वह मैं तुझे लौटने पर भर दूंगा।’’ ‘‘इन तीनों में से उसका पड़ोसी कौन ठहरा जो डाकुओं के हाथों पड़ गया था?’’ यीशु ने पूछा, व्यवस्था के जानने वाले ने कहा, ‘‘वही जिसने उस पर दया की।’’ यीशु ने उससे कहा, ‘‘जा तू भी ऐसा ही कर।’’याजक और लेवी जो यहूदी थे, परमेश्वर के चुने हुए लोग थे, उस याजक व्यक्ति के लिये उनके पास हृदय नहीं था। लेकिन वह सामरी जिसे यहूदियों द्वारा तुच्छ समझा जाता था, वही दयालू व्यक्ति निकला। उसने घायल मनुष्य के टूटेपन और दर्द को देखा। सिंद्धांत यह है कि हम कौन हैं यह वही सिद्ध करता है जो हम देखते हैं, और जो हम देखते हैं, वही निश्चित करता है कि हम क्या करते हैं। परमेश्वर की संतानों को चाहिये कि वे देखभाल करने वाला और तरसपूर्ण हृदय रखें। लोग हमारी बात को तब तक नहीं सुनते जब तक वे हमारे कार्यों में मसीह के प्रेम को क्रियाशील नहीं देखते। यह बात ध्यान में रखी जानी चाहिये कि नजदीकी पड़ोसी होने की विशेषता या योग्यता नहीं होती। दो दे नदारों का दृष्टांत लूका 7:36-30 फरीसियों में से एक ने यीशु को उनके साथ भोजन करने को बुलाया और उसने उस आमंत्रण को स्वीकार कर लिया। जब वह भोजन करने बैठा तो उस नगर की एक स्त्री को जो पापी जीवन जीती थी, मालुम पड़ा कि यीशु फरीसी के घर भोजन कर रहा है। उसने संगमरमर के पात्र में इत्र लाई और उसके पैरों के पास पीछे खड़ी होकर रोने लगी। वह अपने आसुओं से उसके पैर धोने लगी और अपने बालों से पोछने लगी। इसके अलावा वह उसके पावों को चूमने लगी और उस पर इत्र डाल दी। वह फरीसी इस दृष्य को नजदीक से देख रहा था। उसने स्वयँ से कहा, ‘‘यदि वह भविष्यवक्ता होता तो जान जाता कि यह जो उसे छू रही है, वह कैसी स्त्री है।’’ उसके दिमाग में क्या चल रहा है जानकर यीशु ने उससे कहा, ‘‘शिमौन मुझे तुझसे कुछ कहना है।’’ ‘‘हे स्वामी कह’’ फरीसी ने कहा। फिर यीशु ने कहा,‘‘किसी महाजन के दो देनदार थे। एक पाँच सौ और दूसरा पचास दीनार का देनदार था। दोनों में से किसी के भी पास लौटाने के लिये पैसा नहीं था, इसलिये उसने दोनों का कर्ज माफ कर दिया फिर उनमें से कौन उससे ज्यादा प्रेम रखेगा?’’ शिमौन ने उत्तर दिया, ‘‘मेरी समझ में वह जिसका उसने अधिक छोड़ दिया।’’ ‘‘तूने ठीक विचार किया है।’’ फिर वह स्त्री की ओर फिरकर शिमौन से कहा, ‘‘क्या तू इस स्त्री को देखता है? मैं तेरे घर में आया, परंतु तूने मेरे पाँव धोने के लिये पानी नहीं दिया, परंतु इसने मेरे पाँव आसुओं से भिगोए। तूने मुझे चूमा न दिया, पर जब से मैं आया हूँ तब से इसने मेरे पावों को चूमना न छोड़ा। तूने मेरे सिर पर तेल नहीं मला, पर इसने मेरे पावों पर इत्र मला है। इसलिये मैं तुझसे कहता हूँ कि इसके पाप जो बहुत थे क्षमा हुए - क्योंकि इसने बहुत प्रेम किया, पर जिसका थोड़ा क्षमा हुआ वह थोड़ा प्रेम करता है। फिर यीशु ने उस स्त्री से कहा, ‘‘तेरे पाप क्षमा हुए।’’ बाकी लोग आपस में कहने लगे, ‘‘यह कौन है जो पापों को क्षमा करता है?’’ यीशु ने उस स्त्री से कहा, ‘‘तेरे विश्वास ने तुझे बचा लिया है, कुशल से चली जा।’’इस दृष्टांत से हम निम्नलिखित सबक सीख सकते हैं। 1. यीशु लोगों के हृदय में देख सकता है। हम शिमौन के विचारों पर यीशु के उत्तर को देख सकते हैं जो जोर से कहे और सुने गए थे। 2. पहुनाई में शिमौन द्वारा की गई कमी को उस स्त्री के द्वारा पूरी की गई जिसे वह तुच्छ समझता था। 3. शिमौन मात्र धार्मिकता का पूरा करनेवाला था जिसमें विश्वास नहीं था, उसमें क्षमा करने का हृदय नहीं था, जबकि प्रभु माफ करने के लिये हमेशा तैयार था। यह दृष्टांत जो दो देनदारों के विषय है, हमें सिखाता है कि सभी पापी हैं, और सभी लोग उसी आधार पर क्षमा किये जाते हैं, अर्थात परमेश्वर के अनुग्रह द्वारा। खोई हुई भेड़ का दृष्टांत लूका 15:4-7 अपने आप को धर्मी कहलवाने वाले फरीसी और शास्त्री हमेशा पापियों को तुच्छ समझते थे। वे महसूल लेने वालों को भी पापी समझते थे क्योंकि वे रोमियों के लिये धन इकट्ठा करते थे। यहाँ तक कि वे उनके साथ भोजन भी नहीं करते थे। फिर भी महसूल लेनेवाले और पापी यीशु को सुनने के लिये उसके आसपास इकट्ठे हो जाते थे, और यीशु उनके साथ मिलता जुलता था। इसलिये फरीसी और शास्त्री यह कहकर कुड़कुड़ाते थे, ‘‘यह मनुष्य पापियों की संगति करता और उनके साथ भोजन करता है।’’ इसी बात के उत्तर में यीशु ने यह दृष्टांत कहा।यदि किसी चरवाहे के पास सौ भेड़े हों, और एक भटक कर जंगल में खो जाए, तो क्या वह निन्यानबे को छोड़कर उस खोई हुई एक को खोजने न जाएगा जब तक वह मिल न जाए? और जब वह उसे पा लेता है तो वह उसे अपने कंधों पर लेकर आनंद करता हुआ घर लौटता है। घर आकर वह उसके मित्रों और पड़ोसियों को उसके आनंद में सहभागी होने के लिये आमंत्रित करता है क्योंकि उसकी खोई हुई भेड़ को उसने खोज निकाला। उसी प्रकार,स्वर्ग में भी उस समय आनंद मनाया जाता है जब एक पापी उन निन्यानबे लोगों से ज्यादा पश्चाताप करता है जिन्हें पश्चाताप की जरूरत नहीं थी। 13. यह दृष्टांत यरीहो के वास्तविक स्थिति से लिया गया है। यरूशलेम समुद्र सतह से 700 मीटर(2300 फीट) उपर है। मृत सागर जो यरीहो के पास है समुद्र सतह से 396 मीटर (1300 फीट) नीचे है। यरूशलेम से यरीहो की दूरी करीब 28 कि.मी. है (17 मील), जो यरदन नदी की ढुलान पर है जो मृत सागर के उत्तरी दिशा में बहती है यह चक्करदार, उबड़-खाबड़ चट्टानी मार्ग है जहाँ डाकू आसानी से छिप सकते हैं। यह भयानक रीति से खतरनाक मार्ग था।यह दृष्टांत मनुष्य की भ्रष्टता और परमेश्वर के प्रेमी खोज के दिखाता है। अक्सर मैं हठी और मूर्ख था जो दूर रहता था,परंतु उसके प्रेम की खातिर उसने मुझे ढूंढ़ा।और अपने कंधों पर प्रेम से बिठाया,और आनंद करते हुए मुझे घर वापस लाया।’’ मेरा चरवाहा प्रेम का राजा है...सभी लोग भटक गए हैं और इसलिये सभी को अच्छे चरवाहे की जरूरत है। वह सभी भटके हुओं को खोज रहा है। हम अपने आप को बचा सकने में असमर्थ हैं। लेकिन प्रभु यीशु न केवल हमें बचा सकने योग्य है परंतु हमें बचाना भी चाहता है। प्रभु यीशु कहता है, ‘‘औरमै उन्हें अनंत जीवन देता हूँ।’’ यूहन्ना 10:28।
प्रभु तेरा नाम है महान, तेरी स्तुति मैं गाऊंगा, मेरे जीवन में तू आया, उद्धार और खुशी देने आया, तू आया स्वर्ग से धरती पर, मुझको राह दिखाने को, धरती से क्रूस पर, मेरा कर्ज़ चुकाने को, क्रूस से कब्र में कब्र से आसमान, प्रभु तेरा नाम महान।