Audio | Prayer | Song | Instrumental |
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गलील के काना में एक विवाह था। यीशु की माता मरियम वहाँ थी। यीशु और उसके चेलों को भी उस समारोह में आमंत्रित किया गया था। बेशक यह खुशी का अवसर था। लेकिन जल्द ही कुछ गड़बड़ हो गई। भोज के दौरान दाखरस खत्म हो गया। यह बडे़ शर्म की बात थी। मरियम ने यीशु को इस समस्या के विषय बताई। ‘‘उनके पास दाखरस नहीं रहा’’ वह बोली, ‘‘हे महिला मुझे तुझ से क्या काम? उसने पूछा, ‘‘अभी मेरा समय नहीं आया।’’ यह जानकर कि यीशु इस विषय कुछ न कुछ करेगा, मरियम दासों से बोली, ‘‘जो कुछ वह तुमसे कहे, वही करना।’’ वहाँ पर छः मटके धरे थे जिन्हें समारोह में यहूदी लोग धोने के लिये पानी भरते थे। उनमें प्रत्येक में सत्तर लीटर से कम पानी नहीं आता था। यीशु ने उन्हें पानी से भर देने को कहा। ‘‘अब निकालकर भोज के प्रधान के पास ले जाओ।’’ उन्होंने वैसा ही किया जैसा उसने उनको करने को कहा था। जब भोज के प्रधान ने उसे चखा और नहीं जानता था कि वह कहाँ से लाया गया है, तो उसने दूल्हे को बुलाकर कहा, ‘‘हर एक मनुष्य पहले अच्छा दाखरस देता है और लोग जब पीकर छक जाते हैं तब मध्यम देता है, परंतु तूने अच्छा दाखरस अब तक रख छोड़ा है।’’ काना में यह आश्चर्यजनक चिन्ह यीशु की महिमा का पहला प्रदर्शन था। और उसके चेलों ने उस पर विश्वास किया। यह बात ध्यान देने योग्य है कि वह आनंद मनाने का समय था जब यीशु ने अपना पहला चमत्कार किया। हमारा प्रभु दुख से परिचित था परंतु वह आनंद के समय को भी जानता था। स्थिति चाहे दुख की हो या खुशी की, तब भी वह हमारा प्रभु होता है। इस आश्चर्यकर्म ने शिष्यों के विश्वास को मजबूत बना दिया। दूसरे लोग उससे प्रभावित होंगे, परंतु केवल वे जो उससे प्रेम करते और उस पर विश्वास करते हैं, वास्तव में उसके विषय सत्य को समझते हैं। दाखरस आनंद को दर्शाता है। (भजन 104:15)। जीवन में हम कभी-कभी इसकी कमी महसूस करते हैं। लेकिन हमारा प्रभु अद्भुत रीति से हमारे जीवन में मिठास ला सकता है। 2. पाँच हजार को खिलाना मत्ती 14:15-21। (मरकुस 6:30-44, लूका 9:10-17, यूहन्ना 6:1-14 भी देखें)। यह आश्चर्यकर्म चारों सुसमाचारों में लिखा गया है। लूका के अनुसार यह चमत्कार बैतहसदा के क्षेत्र में हुआ। यह मालुम होते ही कि यीशु वहाँ है, एक बड़ी भीड़ उसके पास गई। वह उनके प्रति तरस से भर गया क्योंकि वे चरवाहे के बिना भेडों के समान थे। उसने उन्हें परमेश्वर के राज्य के विषय बताया और बीमारों को चंगा किया। दोपहर के बाद चेले उसके पास आए कहने लगे, ‘‘इन लोगों को विदा किया जाए कि वे बस्तियों में जाकर अपने लिये भोजन मोल लें और रात को टिक सकें।’’ यीशु ने फिलिप्पुस से कहा, ‘‘हम इनके भोजन के लिये कहाँ से रोटी मोल लाएँ।’’ वह उसे परख रहा था, क्योंकि वह स्वयँ जानता था कि वह क्या करने वाला था। फिलिप्पुस ने उसे उत्तर दिया, ‘‘दो सौ दीनार10 की रोटी भी उनके लिये पूरी न होंगी कि उनमें से हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल जाए।’’ शिमौन पतरस के भाई अंद्रियास ने कहा, ‘‘यहाँ एक लड़का है जिसके पास जौ कि पाँच रोटी और दो मछलियाँ है, परंतु इतने लोगों के लिये वे क्या हैं? यीशु ने उसके चेलों से कहा, लोगों को 50-50 की पंक्ति में बिठा दो।’’ (वहाँ करीब पांच हजार लोग थे)। वह एक घासवाला स्थान था। चेलों ने वैसा ही किया। सब लोग बैठ गए। पाँच रोटी और दो मछलियों को धन्यवाद दिया।और उसे तोड़ा। फिर उसने उन्हें चेलों को दिया कि लोगों को बाँटे। उन सबने पेट भर खाया और तृप्त हो गए। तब यीशु ने चेले से कहा, ‘‘जो टुकडे़ बच गए हैं उन्हें बटोर लो।’’ ‘‘तब चेलों ने टुकड़ों से भरी बारह टोकरियाँ उठाया। एक अन्य अवसर पद यीशु ने चार हजार पुरुषों को जो स्त्रियों और बच्चों को छोड़कर थे, सात रोटी और कुछ मछलियों में से खिलाया और चेलों ने टुकड़ों की सात टोकरियाँ को अंत में बटोरा।यह आनंदमय बात है कि किस तरह यीशु ने भीड़ का स्वागत किया। वह उनके प्रति तरस से भर गया था। इस आश्चर्यकर्म में हम प्रभु के कार्य करने के तरीके को देखते हैं। पहले उसने चेलों को उनके सीमित स्त्रोत को लाने को कहा। फिर उसने अद्भुत रीति से उनके योगदान को बहुगुणित किया और भीड़ को बांटने के लिये उन्हें भी लौटा दिया। आज वह लोगों की जरूरत को पूरा करने के लिये हमारा उपयोग करना चाहता है। वह कहता है कि हमारे पास थोड़ा जो कुछ है, उसे हम उसके पास लाएँ। वह उन्हें अपने अनोखे तरीके से आशीषित करता है, और हमें लौटा देता है। 3. यीशु पानी पर चलता है मत्ती 14:22,23 (मरकुस 6:45-56 भी देखें) पाँच हजार लोगों को खिलाने के बाद यीशु ने चेलों को नाव में बैठकर झील के उस पार जाने को कहा। जब वह भीड़ को विदा कर चुका तो वह स्वंय पहाड़ पर प्रार्थना करने चला गया। जब संध्या हुई वह यहाँ अकेला था। उस समय तक नाव झील के बीच में थी और आंधी उसके विपरीत थी। परिणामस्वरूप, नाव डोलने लगी थी। रात के चैथे पहर11 के दौरान यीशु झील पर चलते हुए उनके पास आया। जब चेलों ने उसे पानी पर चलते देखा तो वे घबरा गए। ‘‘यह भूत है’’ उन्होंने कहा, और डर कर चिल्ला पड़े। परंतु यीशु ने उन्हें तुरंत कहा, ‘‘ढाढ़स बाँधो, मैं हूँ डरो मत।’’ इस पर पतरस बहुत चकित हुआ। उसके जिज्ञासु स्वभाव के कारण उसने यीशु से कहा, ‘‘हे प्रभु यदि तू ही है तो मुझे अपने पास पानी पर चलकर आने की आज्ञा दे।’’ ‘‘आ’’ यीशु ने कहा। तब पतरस नाव से उतरकर यीशु के पास जाने को पानी पर चलने लगा। परंतु जब उसने ऊँची लहरों के चारों तरफ देखा तो डर गया और डूबने लगा। ‘‘हे प्रभु मुझे बचा,’’ वह चिल्ला पड़ा। यीशु ने तुरंत हाथ बढ़ाकर उसे थाम लिया और उससे कहा, ‘‘हे अल्प विश्वासी, तूने क्यों संदेह किया?’’ और जब वे नाव पर चढ़ गये तब हवा थम गई। तब जो नाव में थे उन्होंने यह कहकर दंडवत किया,‘‘सचमुच, तू परमेश्वर का पुत्र है।हमारे प्रभु ने बारहों को नाव में भेज दिया। वह स्वयँ पहाड़ पर प्रार्थना करने को गया। चेलों ने उसकी आज्ञा का पालन किया था। फिर भी उन्हें तूफान का सामना करना पड़ा। फिर भी हमारा प्रभु उन्हें शांति देने और शक्ति देने के लिये वहाँ था। अशांत लहरें उसके पैरों के लिये चांदी का मार्ग बन गई। हम पतरस को भी उसके साथ चलते देखते हैं। वह विश्वास से निकल पड़ा परंतु डर के आगे झुक गया। उसे केवल यीशु की ओर ही देखना था।(इब्रानियों 12:2)। उनका डर प्रभु की उपस्थिति से दूर हो गया, और तूफान उसकी सामर्थ द्वारा शांत हो गया।10. करीब-करीब यह मजदूर की आठ माह की मजदूरी होती है। 4. यीशु तूफान को शांत करता है मत्ती 8:23-26; (मरकुस 4:36-41; लूका 8:22-25 भी )। एक दिन यीशु अपने शिष्यों के साथ एक नाव में गलील के समुद्र के पार गया। उनकी यात्रा के दौरान, एक भयानक तूफान उठा और ऊँची लहरों ने नाव को डगमगाना शुरू कर दिया। परंतु यीशु सो रहा था। शिष्यों ने जाकर उसे उठाया, ‘‘प्रभु, हमें बचा, हम नष्ट हुए जाते हैं।’’ उसने कहा, ‘‘हे अल्पविश्वासियों, क्यों डरते हो?’’ फिर वह उठा और आँधी और पानी को डाँटा। तूफान शांत हो गया और बड़ी शांति हो गई। वे लोग चकित हो गए, ‘‘यह कैसा मनुष्य है कि आँधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं।’’ हमारा प्रभु हमारी भी संसार की इस तीर्थ यात्रा में हमारे साथ है। वह हमारे साथ है और हमें शांत किनारे पर ले जाएगा। हम इस प्रार्थना गीत को अच्छी तरह गाएँगे। ‘‘हे स्वर्गीय पिता हमारी अगुवाई कर,संसार की परीक्षाओं के समुद्र में, हमारी रक्षा कर, मार्गदर्शन कर, संभाल और हमें तृप्त कर, क्योंकि हमारा कोई सहायक नहीं सिवाय तेरे,फिर भी हम सारी आशीषें पाते हैं यदि परमेश्वर हमारा पिता हो।’’
नेरियां झगडां नाल तुफानी बेड़ी गोते खांदी सी, डरदे रोला पौंदे चेले जिन्द सी मुकदी जान्दी सी, बचा लिया तू ओन्हा नू-(2), ओह गल्लां करदे हां । दूर जंगल विच पहाड़ा ओथे डेरा लाया सी, पंज रोटियां दो मच्छियां लैके पंज हजार रजाया सी, बारां टोकरे बच गए ओथे-(2), बरकतां मांगदे हां । धानवाद करदे हां, यीशु जी तेरा धानवाद करदे हां, तू मौत शैतान ते फतेह पाई-(2), असी तेरे कोलों डरदे हां ।