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कुछ लोग उनकी नीतियों और व्यवहार में बहुत कठोर होते हैं। क्या आप ऐसे लोगों को जानते हैं? वे कैसी हरकतें करते हैं? (बच्चों को उनके विचार बताने दें।) क्या आप भी कभी जिद्दी बन जाते हैं? मूसा भी काफी हठी लोगों के समूह का अगुवा था। इस्त्राएल के लोगों ने कई बार आज्ञा उलंघन किया। आज हम देखेंगे कि एक बार परमेश्वर ने हठी लोगों से कैसा बर्ताव किया। हमने देखा कि इस्त्राएल की संतानें मिस्त्र में जाकर बस गई जब यूसुफ मिस्त्र का शासक था। वे वहाँ कई वर्ष तक रहे और गिनती में बढ़ गए। जब यूसुफ मर गया और उसे भुला दिया तो मिस्त्र के राजाओं ने इस्त्राएलियों को बंधुआ गुलामों की तरह काम करवाया। जब उन्होंने सताव झेला तो परमेश्वर को पुकारा। परमेश्वर ने उनकी पुकार को सुना और उन्हें छुड़ाने के लिये मूसा को भेजा। परमेश्वर उसकी संतानों की पुकार से अपने कान बंद नही करता। मूसा के द्वारा परमेश्वर ने इस्त्राएल को फिरौन के हाथों से छुड़ाया और वे प्रतिज्ञा के देश की ओर चल पड़े। जब सबसे पहले वे मिस्त्र में आए थे वे गिनती में केवल सत्तर थे, परंतु जब वे वहाँ से निकले तो वे एक बड़ी संख्या में थे। केवल पुरुष ही छः हजार से अधिक थे (निर्गमन 12:37)। यात्रा करते हुए वे एक मरूस्थल पर आए जो कनान की सीमा पर है जो कादेश बर्ने कहलाता है। यह सीनै प्रायद्वीप के उत्तरपूर्व में है। प्रतिज्ञा की भूमि ठीक उसी के सामने है। मूसा ने उन्हें वहाँ जाकर उस पर निड़रता से कब्जा करने को कहा (व्यवस्थाविवरण 1:21)। यदि वे आज्ञा का पालन करते तो वे जाकर भूमि पर कब्जा कर लिये होते, परंतु परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर पूरी तरह भरोसा करने की बजाय उन्होंने अपनी बुद्धि से काम किया। उन्होंने पहले उस देश का भेद लेने की सोचा (व्यवस्थाविवरण 1:22)। जब हमें परमेश्वर की इच्छा निश्चित रूप से मालूम हो जाती है, तब हमें अपनी बुद्धि से नहीं चलना चाहिये और न आज्ञापालन के पहले वाद-विवाद करना चाहिये। क्योंकि लोगों ने ऐसी इच्छा किया था, परमेश्वर ने मूसा को उनकी इच्छानुसार करने को कहा (गिनती 13:1)। इसी प्रकार कई वर्षों के बाद उन लोगों के वंशजों ने शमुएल से एक राजा देने को कहा (1 शमुएल 8:7)। वह भी परमेश्वर की सिद्ध इच्छा के अनुसार नहीं था, फिर भी उसने इसकी अनुमति दिया। यदि हम किसी बात के लिये लगातार प्रार्थना करते रहें जो परमेश्वर की सिद्ध इच्छानुसार नहीं है, तौभी कभी-कभी वह हमें दे देगा, परंतु वे हमारे आशीष के लिये नहीं होंगे। मूसा ने बारह अगुवे चुना इस्त्राएल के प्रत्येक गोत्र में से एक और उन्हें कनान देश का भेद लेने को भेजा। वे पूरे देश मे चालीस दिनों तक घूमते रहे और वापस कादेश में पाश्न के जंगल में आ गए जहाँ इस्त्राएली छावनी डाले हुए थे। उन्होंने अपने साथ अंगूर के बड़े गुच्छे, कुछ अनार, और अंजीर ले आए जो उन्होंने कनान में इकट्ठा किया था। इस अभियान की रिपोर्ट सुनने के लिये लोग जमा हो गए। भेदियों ने कहा, ‘‘सचमुच दूध और मधु की धाराएँ बहती है...परंतु उस देश के निवासी बलवान है। वहाँ के लोग बहुत ऊँचे कद वाले हैं। शहरों की दीवलें आकाश तक ऊँची हैं। हमने वहाँ बहुत विशाल लोगों को देखा अनाकवंशियों के पुत्रों को देखा। उनके सामने हम टिड्डियों के समान है। (गिनती 13; व्यवस्थाविवरण 1:28)। उनकी रिपोर्ट बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताई हुई थी, और उसमें परमेश्वर का कोई जिक्र नहीं था। आप लोगों की भावनाओं का अंदाज लगा सकते हैं जिन्होंने यह सब सुना था। सभी लोग जोर से रो पड़े थे। वे परमेश्वर के विरुद्ध कुड़कुड़ाने लगे थे। यही होता है जब हम परमेश्वर के वचन पर विश्वास नहीं करते। हम भयभीत हो जाते हैं, शिकायत करते हैं और अनआज्ञाकारी हो जाते हैं, और दूसरों को भी डराते हैं। परंतु बारह भेदियों में दो पुरुष थे जिनका नाम यहोशू और कालेब था जो परमेश्वर पर विश्वास करते थे और उसके साथ विश्वासयोग्य थे। लोगों के उँचे कद उन्हें नहीं डरा सके। ‘‘यदि यहोवा हमारी ओर से हो तो हम वहाँ जाकर उस देश पर कब्जा कर सकते हैं’’ उन्होंने कहा। लेकिन लोगों ने यहोशू और कालेब के प्रोत्साहित करने वाले शब्दों को नहीं सुना। इसके विपरीत उन्होंने उन्हें ऐसे स्थान में ले आने के लिये परमेश्वर को दोषी ठहराया। उन्होंने उनकी गुलामी के स्थान मिस्त्र में लौटने का षडयंत्र रचा और यहाँ तक कि इस उद्देश्य के लिये उन्होंने एक अगुवा भी चुन लिया (नहेम्याह 9:17)। मूसा और हारून लोगों के सामने मुँह के बल गिर पड़े और उनसे परमेश्वर के विरुद्ध बलवा न करने को कहा। परंतु उन्होंने उन अगुवों को पथरवाह करने की बात कहा जिन्होंने उनकी यहाँ तक अगुवाई की थी। मनुष्य का हर्दये कितना दुष्ट है! ये वही लोग है जिन्हांने मिस्त्र में मूसा के द्वारा किए गए चमत्कारों को देखा था। अभी ज्यादा समय नहीं हुआ था जब लाल समुद्र दो भागों में बाँटा गया था और वे उसमें से चलकर सूखी भूमिपर आए थे। यहाँ तक कि जब वे कुड़कुड़ाते थे तब भी बादल और आग का खंबा उनकी यात्रा में उनका मार्गदर्शन करता था। उसी सुबह उन्होंने स्वर्ग की गिराई हुई मन्ना खाया था। वे लोग जिन्होंने यह सब देखा और इनका आनंद लिया था, वे लोग ही परमेश्वर पर संदेह कर रहे थे। यदि हम परमेश्वर की ओर से अनगिनित आशीषों को प्राप्त करने के बाद भी उसके विरुद्ध कुड़कुड़ाते हैं तो यह बड़ा पाप है परमेश्वर का क्रोध इस्त्राएल के विरुद्ध भड़क उठा। उसने कहा कि वह उन्हें नाश कर देगा और मूसा को आशीषित करके उसे उनसे भी बड़ा राष्ट्र बनाएगा। परंतू मूसा ने इस बात से इन्कार कर दिया और उन लोगों के लिये प्रार्थना किया जिन्होंने उसके विरुद्ध बोला था। क्या हम उनके लिये प्रार्थना करते हैं जो हमारे विरुद्ध बोलते हैं? परमेश्वर ने मूसा की प्रार्थना को सुना और इस्त्राएल को क्षमा किया। परंतु उसने कहा कि यहोशू और कालेब को छोड़ और उनमें से जो बीस वर्ष या उससे अधिक की आयु के थे, प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश नहीं कर पाएंगे। वे भेदिये जो बुरा समाचार लाये थे और पूरे राष्ट्र को परमेश्वर के विरुद्ध शिकायत करने के लिये उकसाए थे, बीमारी से मर गए। इस्त्राएल को चालीस वर्ष तक जंगल में भटकना पड़ा, एक वर्ष चालीस दिनों की खोज के प्रत्येक दिन के लिये। उस दौरान जितने लोग बीस वर्ष से ज्यादा के थे, मर गए। जब वे कुड़कुड़ा रहे थे, उन्होंने कहा, ‘‘काश हम मिस्त्र या मरूस्थल में ही मर गए होते’’ (गिनती 14:2)। उनके लिये वैसा ही हुआ जैसा वे चाहते थे। आप जब क्रोधित हों या नाराज हों तो आपको बहुत संभलकर बोलना चाहिये। वे मूर्खतापूर्ण शब्द जो हमारे मुँह से निकलते हैं, शैतान उन्हीं शब्दों को हम पर हमला करने के लिये उपयोग कर सकता है।यहोशू और कालेब जिन्होंने परमेश्वर के वचन पर विश्वास किया था, और विश्वासयोग्य थे, वे ही प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश कर सके। इतना ही नहीं, भूमि पर कब्जा करने में इस्त्राएल की अगुवाई करने के लिये परमेश्वर ने यहोशू का चुनाव किया। परमेश्वर उन्हें आशीष देगा और उँचा उठाएगा जो उसके साथ विश्वासयोग्य रहते हैं। नोट : यहोशू का नाम पहले होशे था (गिनती 13:16)। होशे का मतलब उद्धार और यहोशू का मतलब उद्धारकर्ता है। यीशु का मतलब भी उद्धारकर्ता है
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